फ़ारूख़ अहमद ख़ान
वर्तमान सदी की सबसे बड़ी शरणार्थी त्रासदी, ईराक, सीरिया, लीबिया, नाईजीरिया, म्यांमार एवं अफगानिस्तान आदि देशों में मुसलमानों के पलायन के रूप में सामने आई है। United Nation High Commissioner for Refugees (UNHR) द्वारा 18 जून 2015 को जारी आकड़ों के अनुसार सीरिया एवं इराक में लगभग 6 करोड़ इसके अतिरिक्त अफगानिस्तान, गाजा एवं म्यांमार के लगभग 40 लाख नागरिकों को अपना घर छोड़कर शरणार्थी जीवन व्यतीत करने पर मजबूर होना पड़ा यह आकड़ें गत वर्ष से लगभग 80 लाख अधिक है। केवल सीरिया में गत एक वर्ष 2014 में 2 करोड़ 15 लाख मुसलमानों को अपने पुश्तैनी घरों को छोड़ना पड़ा। इस पलायन का मुख्य कारण इस्लामिक स्टेट का कथित जिहाद, अनेक आतंकवादी संगठनों एवं सरकारी सेना के बीच सशस्त्र संघर्ष एवं मित्र राष्ट्रों की वायुसेना द्वारा लगातार भीषण बमबारी तथा गरीबी, बेरोजगारी, उत्पीड़न एवं भूखमरी है। इस त्रासदी के लिए कोई और नहीं, बल्कि उनके अपने मुस्लिम भाई ही जिम्मेदार हैं
सीरिया : संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी-स्थापन एवं कल्याण केन्द्र द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार सन् 2011 से मार्च 2014 तक 2 करोड़ 15 लाख से अधिक सीरियाई अपने पुस्तैनी घरों को छोड़कर अन्यत्र बसने पर मजबूर हो गए, जिनमें से लगभग 50 लाख अपना वतन सीरिया छोड़कर अन्य देश तुर्की, जोर्डन एवं लेबनान, जर्मनी व अन्य देशों में चले गए, शेष अपने ही देश सीरिया के दूरस्थ इलाकों में शरणार्थियों की जिन्दगी जीने पर मजबूर हैं। गत सर्दियों के मौसम में अधिकांश शरणार्थी, सीरिया एवं तुर्की की सरहद पर, जहां तापमान जीरो डिग्री से भी कम होता है, खुले आसमान के नीचे, सर्दी और बरसात में तथा कुछ भाग्यशालियों को टेंट में महीनों गुजारने पड़े।
संयुक्त राष्ट्र संघ स्थापन एवं कल्याण आयुक्त विभाग द्वारा गणना के अनुसार सीरिया के विदेशों में बसे शरणार्थियों की संख्या निम्नानुसार :-
तुर्की - 17 लाख
लेबनान - 12 लाख
मिस्त्र - 12 लाख, 50 हजार
जोर्डन - 6 लाख, 30 हजार
जर्मनी - 1 लाख, 75 हजार
ईरान - 8 लाख
अपने देश में ही विस्थापितों की संख्या इन आकड़ों कहीं अधिक है जिन्हें अपना घर छोड़कर देश के दूरस्थ भागों में जाकर बसने पर मजबूर होना पड़ा। कुर्द समुदाय के लोग कोबानी के रास्ते तुर्की में पलायन की कोशिश करते रहे हैं, परन्तु पिछले मार्च माह में तुर्की में अपनी सीमा सील कर दी।
10 जून, 2015 से तुर्की की सेना ने सीरिया से स्थापित शरणार्थियों को अपनी सीमा में प्रवेश रोकने के लिए वॉटर केनन (Water Cannon) का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इराक : अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन तथा संयुक्त राष्ट्र संघ हाई कमिश्नर कार्यालय (विस्थापित - समस्या) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इराक के लगभग 60 प्रतिशत भूभाग पर IS ने कब्जा कर लिया है। गत वर्ष से 2 करोड़ 30 लाख इराकियों को पलायन करना पड़ा जिसका मुख्य कारण सुन्नी-इस्लामिक स्टेट IS तथा सरकारी सेना एवं शिया मिलेशिया के बीच जमीनी जंग एवं मित्र राष्ट्रों द्वारा इस्लामिक स्टेट के कब्जे वाले शहर, कस्बे, मिलीट्री टारगेट, तेल के कुओं, रिफाइनरी तथा शहरों पर भयंकर बमबारी, बेरोजगारी एवं भूखमरी है। यह संघर्ष सन् 2011 में अमरीकी सेना के वापसी के बाद और अधिक उग्र होता जा रहा है। इराक में अब तक 3 करोड़ नागरिकों को अपना घर छोड़ना पड़ा। लगभग 60 लाख से अधिक इराकी अपना देश छोड़कर विदेशों में शरण लेने के लिए मजबूर हो गए हैं। इराक के लगभग 60 प्रतिशत भूभाग पर IS का कब्जा है। इराक के तिरकिट शहर को दो महीने पहले सरकारी सेनाओं ने IS उग्रवादियों से मुक्त करवा लिया। सरकारी सेनाओं ने अपने 1700 सैनिकों के शव दो बड़ी कब्रों में मिले, जिन्हें IS के उग्रवादियों ने बेरहमी से कत्ल कर दिया था। तिरकिट पर सरकारी सेनाओं का कब्जा होने पर शिया मलेशिया ने सुन्नी मुसलमानों के लगभग 500 घर जला दिए और 400 दुकानों को लूट लिया। दूसरी तरफ IS ने बगदाद से 60 किलोमीटर दूर मौसूल पर कब्जा कर लिया। मौसूल के लगभग 30 हजार शिया नागरिकों ने ईरान में जाकर अपनी जान बचाई।
IS ने पवित्र माह रमजान में, शिया मुसलमानों पर अधिक हमले करने के लिए अपने लड़ाकों को हिदायत जारी कर दी है। 26 जून 2015 को कुवैत, अदन एवं बेरूत में रमजान का दूसरा जुम्मा की नमाज के दौरान शिया धुर्मावलियों की मस्जिद में आत्मघाती फिदायीन किए गए जिसमें लगभग 100 से अधिक नमाजी मारे गए और 1000 से अधिक घायल हुए।
प्रेस ट्रस्ट की रिपोर्ट के अनुसार पवित्र माह रमजान में IS ने मुखबरी/जासूसी के शक में अपने ही लगभग 40 मुजाहिदों को मौत की सजा दी। मौत की सजा देने में IS ने अपनी पिशास प्रवृत्ति का पूरा परिचय दिया। लगभग 10 जवानों को एक पंक्ति में बैठाकर उनके गले में विस्फोटक बांध कर उड़ा दिया गया, कुछ लड़ाकों को कार में बिठाकर उन्हें भाग जाने को कहा जब कार रवाना हुई तो उसे रॉकेट लॉचर से उड़ा दिया। कुछ मुजादिनों को लोहे के पिंजरों में बंद करके पानी में डुबो कर मार दिया तथा कुछ मुजादिनों को लोहे के पिंजरों में बंद करके आग में जला कर मार दिया।
भूमध्य सागर - नौका पलायन
संयुक्त राष्ट्र संघ के जन एवं शरणार्थी कल्याण विभाग की सूचना अनुसार सन् 2014 में सीरिया, लीबिया, सूड़ान तथा नाईजीरिया में जारी आतंकवाद, गृहयुद्ध एवं भुखमरी से त्रस्त होकर तस्करों की सहायता से मछली पकड़नेवाली नावों के सहारे भूमध्य सागर को पार करके इटली और सिसली पहुंचनेवाले मुसलमानों की संख्या कुछ कम नहीं है।
लीबिया : 2011 में कर्नल गद्दाफी की मौत के बाद इस देश में 4 हुकुमतें सरकार चल रही हैं। ये चारों हुकुमतें उग्रवादी संगठन अलकायदा, IS हिजबुल्लाह तथा शिया मिलेशिया की मदद से सैनिक अभियान में लिप्त हैं, इसलिए इस देश में गृह युद्ध चरम सीमा पर है। कभी धनी अरब देश लीबिया के नागरिक अपनी जान बचाने और रोजगार तलाश करने के लिए भूमध्य सागर को पार करके इटली के रास्ते यूरोप की ओर पलायन कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के विस्थापित जन कल्याण कार्यालय की सूचना के अनुसार सन् 2014 में 2 लाख 19 हजार शरणार्थी सिसली एवं इटली पहुंचे, 2015 में अब तक 78000 शरणार्थी सिसली एवं इटली पहुंच चुके हैं। 3 लाख से अधिक लीबिया के नागरिक जर्मनी, इटली एवं सिसली में शरण ले चुके हैं। केवल माह मई 2015 में 12,400 लीबियाई नागरिक भूमध्य सागर को पार कर इटली पहुंचने में सफल हुए। 2015 के अप्रेल माह तक लगभग 78000 मुख्यतः लीबिया निवासी यूरोप में इटली एवं सिसली के तट पर पहुंचने में कामयाब रहे, परन्तु इस प्रयास में लगभग 1900 शरणार्थी भूमध्य सागर की भेंट चढ़ गए।
11 जून, 2015 को 450 शरणार्थी लेकर लीबिया के तट से एक मछली पकड़नेवाला जहाज, जिसे मानव तस्कर चला रहे थे, इटली की तरफ जाते समय भूमध्य सागर की गहराइयों में डूब गया, जिसमें से केवल 10 प्रतिशत लोग ही जिन्दा बच पाए। मानव तस्करी में लिप्त संगठन प्रति व्यक्ति 400 से 700 डॉलर खर्चा वसूल कर रहे हैं। अधिक खतरा होने पर यह राशि 1500 डॉलर प्रति व्यक्ति पहुंच जाती है।
ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी की सूचना के अनुसार,
- माह मार्च व अप्रेल 2014 में 18 नावें/छोटे जहाज भूमध्य सागर में डूब गए।
- 13 अप्रेल, 2015 को मछली पकड़नेवाले जहाज के डूबने से 400 लोगों की मृत्यु हुई।
- 19 अप्रेल, 2015 को मछली पकड़ने के जहाज डूबने से 800 लोगों की मौत हुई।
अनेक जहाज एवं नावें भूमध्य सागर के अथाह गहराइयों में डूब चुकी हैं, जिनका लेखा-जोखा किसी के पास नहीं है इसलिए मौतों की सही जानकारी किसी के पास होना सम्भव नहीं है।
अफगानिस्तान : सन् 1979, रूसी अतिक्रमण, अलकायदा का प्रारम्भ, मित्र राष्ट्रों की सेनाओं का आगमन, तालिबान की हुकुमत, वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर तालिबानी हमला, अमेरिकी बमबारी, अमेरिकी सेना का आधिपत्य, सन् 2014 अमेरिकी सेना की वापसी, तहरीके तालिबान-ए-पाकिस्तान आदि 20 से अधिक उग्रवादी संगठनों का आतंकवाद, अमेरिकी ड्रोन हमले तथा पाकिस्तानी सेना का समय-समय पर अभियान।
अफगानिस्तान आज दुनिया का सबसे गरीब मुल्कों में से एक है। यह देश Stone हम पाषण युद्ध में पहुंच चुका है। 30 लाख अफगानी शरणार्थी पाकिस्तान एवं ईरान आदि देशों में पनाह लिए हुए हैं।
गाजा : गत वर्ष रमजान के पवित्र माह में गाजा पट्टी में इजरायल के हमलों में लगभग 20 प्रतिशत आवासीय मकान क्षतिग्रस्त हो गए। 10 हजार से अधिक नागरिक हताहत हुए हैं तथा लगभग 2 लाख नागरिक गाजा से पलायन करके आसपास के देशों में जा बसे हैं। गाजा पट्टी के अन्दर ही लगभग 5 लाख मुसलमान सरकारी इमारतों, स्कूल भवनों आदि में शरण लिए हुए हैं।
म्यांमार : म्यांमार में बंगाल की खाड़ी के तट के आसपास के इलाके में बसे रोहिग्या मुसलमानों को जब अधिक प्रताड़ित किया गया एवं उन्हें म्यांमार का नागरिक मानने से इन्कार कर दिया गया। तब रोहिग्या समुदाय के लोगों के पास इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था कि वे अपना देश और अपना घर छोड़ कर मलेशिया, थाईलैण्ड या इण्डोनेशिया जैसे देशों में जा बसे, जहां उन्हें रोटी एवं रोजगार मिल सके। रोहिग्या समुदाय बहुत वर्षों पहले असम एवं उत्तरी बंगाल में हुए सम्प्रदायिक दंगों के कारण सीमा पार करके बर्मा में जाकर बसने पर मजबूर हो गए थे। ये आज भी बर्मी भाषा नहीं बोलते है इसलिए बर्मा में इन रोहिग्या समुदाय के लोग विरूद्ध वातावरण बनता चला गया।
इस शरणार्थी त्रासदी का सबसे ज्यादा फायदा मानव तस्करों को हुआ है, जो पलायन करनेवाले प्रति व्यक्ति से 700 से 800 डालर वसूल कर रहे हैं तथा मछली पकड़नेवाले जहाज या नाव के सहारे शरणार्थियों को अन्तर्राष्ट्रीय समुद्र के रास्ते होकर मलेशिया, थाइलैण्ड एवं इण्डोनेशिया पहुंचाने का वादा करते हैं, परन्तु अधिकांशतः एक या दो माह समुद्र में रहने के बाद इन बंधक शरणार्थियों को भूखा-प्यासा रखकर समुद्र तट के पास छोड़कर भाग जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के विस्थापन विभाग के सूचना के अनुसार इस वर्ष की पहली तिमाही में लगभग 25 हजार रोहिग्या मुसलमानों को तस्कर नाव में बिठाकर थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया के तट पर छोड़कर चले गए। इनमें से अधिकांश कई सप्ताह तक भूखे व प्यासे रहे। तस्करों ने इन्हें 3 माह की यात्रा में नाम मात्र खाद्य सामग्री व पीने का पानी दिया।
इन देशों में इन विस्थापितों को अपने देश में आने से रोका जिसका कई जगह संघर्ष भी हुआ। 3 से 4 माह से भूखे प्यासे इन बेसहारों को इण्डोनेशिया के मछली पकड़नेवाले समुदाय ने सहायता दी। लगभग 1100 रोहिग्या मुसलमान भारत पहुंचने में सफल हुए हैं।
इस प्रकार अधिकृत आंकड़ों के अनुसार 6 करोड़ से अधिक मुसलमान सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, लीबिया एवं म्यांमार आदि देशों में अपना सब कुछ छोड़कर शरणार्थी बन चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार संसार की सबसे बड़ा पलायन है। यह शरणार्थी त्रासदी संसार की सबसे बड़ी त्रासदी है। इस समस्या का हल निकालने के लिए सभी राष्ट्र अपनी प्रतिबद्धता जता रहे हैं, परन्तु वास्तविक एवं आवसहयक सहायता इन 6 करोड़ शरणार्थियों तक अब तक नहीं पहुंच पाई। इन शरणार्थियों में अधिक संख्या महिलाओं, बच्चों एवं बेसहारा, बुजुर्गों की है।
अपनी इस बर्बादी और खून खराबे के लिए स्वयं मुसलमान ही जिम्मेदार हैं। यह खुदा का आजाब ही तो है कि मुसलमानों की इस बर्बादी के लिए मुसलमान ही जिम्मेदार है। जितना भी खून-खराबा हुआ है वह मुसलमानों ने अपने हाथों से मुसलमानों का ही किया है। अफसोस हजार बार अफसोस कि कोई भी इमान, पीर या उलमा इस शैतानी कृत के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द नहीं कर रहा है, सभी दर्शक बनकर इस सबसे बड़े नरसंहार को देख रहे हैं।
इस समस्या का समाधान और 6 करोड़ शरणार्थी, बेसहारा मुसलमानों का सरपरस्त या रहनुमा कोई नहीं है। यह मजलूम खुदा के भरोसे अपनी जिन्दगी गुजार रहे हैं।
ना समझोगे तो मिट जाओगे, ए मुसलमानों
तुम्हारी दास्ता तक ना होगी दास्तानों में।।
(लेखक साम्प्रदायिक सदभावना एवं हिंसा विरोधी संगठन के अध्यक्ष हैं)
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