लाल बिहारी लाल
दिल्ली. आज दिल्ली विश्व में टोकियो के बाद सर्वाधिक प्रदूषित शहर है. सन 2014 में टोकियो की आबादी 3.80 करोड़ थी, जबकि दिल्ली की 2.5 करोड़ आबादी थी. बढ़ती हुई आबादी के दर को देख के कहा जा सकता है कि सन 2030 तक दिल्ली दूसरे नंबर पर ही प्रदूशित शहरों की श्रेणी में रहेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) एंव यूरोपियन यूनियन ने पी.एम. 2.5 प्रदूषण का स्तर प्रतिघन मीटर 25 माइक्रोग्राम निर्धारित किया है, जबकि अमेरिका इससे भी कड़ा यह स्तर
12 माइक्रोग्राम निर्धारित किया है. दिल्ली में यह स्तर सामान्यतः 317 है कभी कभार इससे ज्यादा भी हो जाता है.  यह स्तर अमेरिका से लगभग 30 गुना और विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानको से 15 गुना ज्यादा है. इससे कैंसर,दिल की
बीमारियां, अस्थमा एवं अन्य घातक बिमारियां होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.  भारी यातायात,स्थानीय उद्योग,थर्मल पावर प्लांट एवं झूग्गियों में कोयले पर खाना बनाना दिल्ली में वायू प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में काफी योगदान करते है. अतः दिल्ली की जनता प्रदूषण से काफी बेहाल है. आज जरूरत है कि इससे निजात
के लिए कुछ किया जाए.

भारत की भूमी दुनिया के 2.4 प्रतिशत जबकि आबादी लगभग 18 प्रतिशत है. इस तरह प्रति ब्यक्ति संसाधनों पर अन्य देशों की वनिस्पत काफी दबाव है, जिससे तेजी से शहरीकरण एवं औद्योदिकरण हो रहा है. सन 1947 में वर्ष 2002
तक पानी की उपलब्धता 70 प्रतिशत घटकर 1822 घनमीटर प्रति व्यक्ति रह गया है. अगर इसी तरह संसाधनों का दोहन तेजी से होता रहा तो मावव जल के बिना मछली की तरह तड़प-तड़प कर जान दे देगा. भारत में वनों का औसत भौगोलिक
क्षेत्रफल 18.34 प्रतिशत है, जो कि 33 प्रतिशत के मनदंड से काफी कम है. इसमें भी 50 प्रतिशत म.प्र.(20.7) और पूर्वोत्तर के राज्यो में (25.7) प्रतिशत है बाकी  के राज्य वन के मामले में काफी निर्धन है. वन की कमी से जलवायु परिवर्तन हो
रहा है. अभी तामिलनाड्ड़ू जल गांडव से ग्रस्त है.

प्रदूषण के मामले में केन्द्र एवं राज्य सरकारें नियम तो बना रखा है पर इस पर सख्ती से अमल नहीं हो पाता है. यही कारण है की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा है। यहा पर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था काफी लचर
है. आम आदमी की नई सरकार बनी थी तो लोगो ने सोचा की काफी सुधार होगा पर यह सरकार पिछली सरकार से भी फिसड्डी साबित हुई। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टीश टी.एस. ठाकुर के फटकार पर दिल्ली सरकार ने फौरी तौर पर
गाड़ियो के ओड एंव इभेन नंबर एक-एक दिन चलाने के प्रस्ताव पर बिचार कर रही है, पर यह स्थायी समाधान नही हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए और नियमों पर सख्ती से
अमल हो तथा लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाए. जब राजनीतिज्ञों को वोट की राजनीति से बाहर आकर ही देशहित एवं समाजहित में कुछ किया जाए, तभी देशवासियो एवं दिल्ली वासियों का भला हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर 2015 को केन्द्र एवं राच्य सरकार को सुझाव के साथ तलब किया है. देखें जनप्रतिनिधि जनता के हितों की रक्षा के लिए क्या ठोस  कदम उठाते हैं.
(लेखक-पर्यावरणप्रेमी और लाल कला मंच के सचिव हैं)

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