प्रदीप सरदाना
आज फिर से रेडियो श्रोताओं के दिलों में अपनी जगह बना चुका है. अपने घर, दफ्तर ही नहीं कार, बस सहित विभिन्न वाहनों में तो लोगों को बड़े चाव से रेडियो सुनते देखा जा  सकता है. साथ ही, मोबाइल हैंड सेट से लेकर दूर दराज के गाँवों में भी रेडियो की दिलकश आवाज़ कानों में गूंजती है] लेकिन कुछ बरस पहले बहुत से लोगों के मन में यह आशंका उत्पन्न होने लगी थी कि रेडियो कहीं इतिहास बनकर न रह जाए. कभी देश-विदेश में अपनी धाक ज़माने और जंगल में मंगल करने वाले रेडियो को लेकर ऐसी आशंका बेवजह नहीं थी. इस आशंका का पहला कारण था विश्व भर में टेलीविजन और उसके विभिन्न किस्म के सैकड़ों चैनल का आना और दूसरा मोबाइल सहित और भी कई माध्यमों से संगीत से लेकर समाचारों तक लगभग हर जगह सीधे पहुँच जाना. ऐसे में भला रेडियो की आवश्यकता और उपयोगिता भला क्या रह जायेगी? ज्यों-ज्यों टीवी की लोकप्रियता और कोने कोने में उसकी पहुँच बनती गयी, यह आशंका प्रबल होने लगी कि रेडियो के दिन अब लदने लगे हैं.

फिर संचार माध्यम के इस शक्तिशाली और खूबसूरत साधन रेडियो के प्रति ऐसी धारणा सिर्फ हमारे देश में ही नहीं दुनिया के और भी कई देशों में बनने लगी थी, लेकिन बहुत से लोग चाहते थे कि रेडियो अतीत बनकर न रह जाए. रेडियो की प्रासंगिकता भी बनी रहे और उसके प्रति लोगों की दीवानगी भी. यही सोच कर स्पेन रेडियो की ओर से संयुक्त राष्ट्र संघ में यह प्रस्ताव आया कि वर्ष में एक दिन विश्व में रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए.  स्पेन के इस प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने व्यापक स्तर पर एक सर्वेक्षण कराने के साथ बहुत से देशों के प्रसारण संस्थानों के विचार सुने तो 91 प्रतिशत लोगों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया. उसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने अपनी 36वीं आम सभा में 13 फरवरी 2011 को विश्व रेडियो दिवस मनाने की घोषणा कर दी. इसके लिए 13 फरवरी की तारीख रखने का विशेष कारण यह था कि संयुक्त राष्ट्र संघ के अपने यू एन रेडियो की स्थापना 13 फरवरी 1946 को हुई थी.

हालांकि प्रथम रेडियो दिवस जब 13 फरवरी 2012 को मनाया गया तब इसकी कोई थीम नहीं थी, लेकिन सन 2014 से इसके लिए एक विशेष थीम भी रखी जाने लगी है, जिससे प्रति वर्ष कोई नया सन्देश देने के साथ अधिक से अधिक लोगों को रेडियो से जोड़ा जा सके. पहली बार जो थीम रखी गयी वह थी-‘लिंग समानता और महिला सशक्तिकरण’, फिर 2015 में ‘युवा और रेडियो’ को थीम का विषय चुना गया तथा 2016 में ‘आपातकाल और आपदा’ विषय को थीम बनाया गया. इस वर्ष जो थीम है वह है-‘रेडियो आप ही हैं’. इस थीम को रखने का अभिप्राय एक बड़े वर्ग की रेडियो के साथ रेडियो प्रसारण की नीतियों और योजनाओं में भागीदारी बनाना है.
भारत में रेडियो
भारत में रेडियो प्रसारण की पहली शुरुआत जून 1923 रेडियो क्लब मुंबई द्वारा हुई थी लेकिन इंडियन ब्रॉडकास्ट कंपनी के तहत देश के पहले रेडियो स्टेशन के रूप में बॉम्बे स्टेशन तब अस्तित्व में आया जब 23 जुलाई 1927 को वाइसराय लार्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया, लेकिन 8 जून 1936 को इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विस को ‘ऑल  इंडिया रेडियो’ का नाम दे दिया गया जिस नाम से यह आज तक प्रचलित है.

सन 1947 में देश के विभाजन के समय भारत में कुल 9 रेडियो स्टेशन थे, जिनमें पेशावर, लाहौर और ढाका तीन पाकिस्तान में चले गए, भारत में दिल्ली, बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, तिरुचिरापल्ली और लखनऊ के 6 केंद्र रह गए, लेकिन आज देश में रेडियो के कुल 420  प्रसारण केंद्र हैं और आज देश की 99.20 प्रतिशत जनसँख्या तक आल इंडिया रेडियो का प्रसारण पहुँच रहा है, जो इस बात का प्रमाण है कि इन पिछले करीब 70 बरसों में रेडियो का विकास कितनी तीव्र गति से हुआ है.

यूं सन 1990 के बाद जब देश में दूरदर्शन के साथ कई समाचार और मनोरंजन चैनल्स ने अपने पाँव ज़माने तेज कर लिए तो रेडियो की लोकप्रियता धीरे धीरे कम होने लगी, तभी लगा कि यही हाल रहा तो रेडियो को लोग भूल ही जायेंगे. यह रेडियो के लिए निश्चय ही बड़ी चुनौती का समय था. एक ऐसी चुनौती, जहाँ करो या मरो जैसी परिस्थितियां बन गयीं थीं. अच्छी बात यह है कि रेडियो ने इस बात को समझते हुए एक साथ कई बड़े कदम उठाने आरम्भ कर दिए जिससे आज रेडियो का अस्तित्व के साथ इसकी अहमियत और लोकप्रियता भी बरक़रार है. समय के साथ कदम ताल मिलाते हुए रेडियो ने जहाँ अपने कार्यक्रमों में कई व्यापक बदलाव किये वहां देश में कई निजी एफ एम चैनल्स के साथ ऑल इंडिया रेडियो के अपने एफ एम गोल्ड और रेनबो जैसे आधुनिक चैनल्स भी शुरू कर दिये गए. इन एफ एम चैनल्स को जहाँ युवा पीढ़ी ने बहुत पसंद किया वहीं पुरानी पीढ़ी के लिए भी इन चैनल्स में उनके पसंद और महत्वा के कई प्रसारण रखे गए.

ऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली केंद्र में उपमहानिदेशक राजीव कुमार शुक्ल बताते हैं- “रेडियो की उपयोगिता और इसका महत्व आज भी बरकरार है. प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम के बाद तो रेडियो की लोकप्रियता में एक साथ काफी बढ़ोतरी हुई है. रेडियो का आज भी कोई मुकाबला नहीं है, क्योंकि हमारे यहाँ रेडियो पर देश के हर क्षेत्र, हर वर्ग और हर भाषा के कार्यक्रम प्रसारण होते हैं. आल इंडिया रेडियो के प्रसारण देश के 92 प्रतिशत क्षेत्र तक पहुँच रहे हैं. फिर हम विभिन्न किस्म के कार्यक्रम प्रसारित करते हैं जिससे सूचना, शिक्षा और मनोरंजन सभी कुछ है. बच्चे हों, या युवा और महिलाएं, दंपत्ति हों या बुजुर्ग सभी के लिए रेडियो पर इतना कुछ है कि श्रोताओं को और कहीं जाने की जरुरत ही नहीं.
श्री शुक्ल यह भी कहते हैं- “रेडियो लोक प्रसारक होने के कारण समाचार और सामायिक विषयों पर वार्ता के साथ गीत, संगीत, स्वास्थ्य, शिक्षा, करियर, खेल, साहित्य, सिनेमा और मनोरंजन सहित सभी विषयों पर विभिन्न कार्यक्रम प्रसारित करता है. साथ ही, रेडियो ने अपने नाटकों रूपकों की गौरवशाली परंपरा को भी रखा है. हमारे एम गोल्ड और रेनबो के साथ इन्द्रप्रस्थ और राजधानी चैनल्स के कितने ही कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हैं, जिनमें युववाणी के महफ़िल जैसे कार्यक्रमों से लेकर शाम मस्तानी, गा मेरे मन गा, वो जो एक फिल्म थी और बहारें हमको ढूंढेंगी तक बहुत से कार्यक्रम हैं, जिनमें गुड मॉर्निंग इंडिया, हमकदम, दिल्लीनामा, संदेश टू सोल्जर, गाने सुहाने, महफिले कव्वाली, कलाकार बेमिसाल और दिल ही तो है जैसे कार्यक्रम भी हैं.

आपदा समय का साथी भी है रेडियो

     रेडियो आपदा समय में भी एक अच्छा और मदद्गार साथी बन सकता है, यह बात भी बताते हैं उपमहानिदेशक राजीव कुमार शुक्ल. वह कहते हैं कि आपदा के समय जैसे भूकंप, सुनामी या बाढ़ आदि में भी रेडियो काफी मददगार रहता है. ऐसे समय में जब बिजली आदि भी चली जाती है तो बैटरी चलित रेडियो के माध्यम से मुसीबत में फंसे लोग मार्गदर्शन के साथ सही सूचनाएं भी प्राप्त कर सकते हैं. सभी लोगों को शिक्षित करने के लिए अपने यहाँ आपदा प्रबंध पर नियमित रूप से हम विशेष कार्यक्रमों का प्रसारण भी करते हैं.”

विदेश प्रसारण सेवा

     इधर, इन पिछले बरसों में आल इंडिया रेडियो की विदेश प्रसारण सेवा ने भी लगभग पूरी दुनिया को अपने साथ जोड़ते हुए अपनी सफलता की उल्लेखनीय कहानी लिखी है. हालांकि विदेश प्रसारण के अधिकांश कार्यक्रमों का प्रसारण भारत में नहीं होता इसलिए देश का एक बड़ा वर्ग इस ऐतिहासिक प्रसारण सेवा से कुछ अनभिज्ञ सा है, लेकिन विश्व में बसे अनेकों अप्रवासी भारतीयों के लिए यह घर से दूर एक घर जैसा अहसास है, साथ ही उन अन्य विदेशी श्रोताओं के लिए तो यह सेवा एक वरदान जैसी है जो भारत को अधिक से अधिक जानने के लिए लगातार उत्सुक रहते हैं.

भारत में विदेश प्रसारण सेवा का आरम्भ सन 1939 के उन दिनों में ही हो गया था जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था. इससे पहले सन 1938 में बीबीसी ने पहली विदेश प्रसारण सेवा अरबी भाषा में शुरू की थी. उस दौर में हिन्दुस्तान पर इंग्लैंड का राज था. उधर विश्व युद्ध के दौरान जर्मन रेडियो भारत और सहयोगी सेनाओं के विरुद्ध प्रचार कर रहा था. उस प्रचार के खंडन-प्रतिकार के लिए ऑल इंडिया रेडियो की भी विदेश प्रसारण सेवा शुरू कर दी गयी. इस सेवा का प्रथम प्रसारण 1 अक्तूबर 1939 को पश्तो भाषा में आरम्भ हुआ. पश्तो में इसलिए क्योंकि जर्मन रेडियो का यह प्रचार अफगानिस्तान में अधिक हो रहा था इसीलिए हमारे यहाँ से भी उसका जवाब अफगानिस्तान की भाषा में दिया गया.कुछ दिन बाद वहां की एक और भाषा दारी में भी यह सेवा शुरू की गयी. इस सेवा का उद्देश्य तब विरोधी देशों के गठबंधन दलों को प्रत्युत्तर देना ही था. इसलिए जैसे जैसे यह युद्ध जहां जहां फैलता गया वैसे वैसे ऑल इंडिया रेडियो उन उन भाषाओँ में भी अपना विदेश प्रसारण आरम्भ करता गया. इससे सन 1945 यानी द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक विदेश प्रसारण सेवा 42 भाषाओँ में पहुँच गयी. जिनमें चाइनीज,थाई,बलूची,बर्मीज जैसी भाषाएँ भी थीं.
आज ऑल इंडिया रेडियो का यह विदेश प्रसारण विभाग विश्व के 139 देशों में अपना प्रसारण कर रहा है. जिसमें 27 भाषाओँ में प्रतिदिन 72 घंटे का प्रसारण होता है.इन 27 भाषाओँ में 12 भारतीय भाषाएं हैं और 15 विदेशी भाषा. विदेश प्रसारण सेवा में हिंदी सेवा भी काफी अहम् है.ऑल इंडिया रेडियो ने विदेशों के लिए अपना हिंदी प्रसारण स्वतंत्रता पूर्व 1944 में ही आरम्भ कर दिया था.आज इसके 5 ट्रांसमिशंस पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया,अफ्रीका,पश्चिम यूरोप,गल्फ और ओसीनिया देशों के लिए प्रतिदिन 8 घंटे का प्रसारण कर रहे हैं.

विदेश प्रसारण सेवा की एक मुख्य सेवा उर्दू प्रसारण सेवा है.जहां हिंदी और इंग्लिश प्रसारण प्रतिदिन करीब 8 घंटे होता है वहां जून 2006 से उर्दू सेवा का प्रसारण पूरे 24 घंटे होने लगा है.साथ ही विदेश प्रसारण सेवा की उर्दू सेवा ही ऐसी है जिसके प्रसारण को भारत में भी सुना जा सकता है.

आल इंडिया रेडियो, विदेश प्रसारण सेवा के केंद्र निदेशक अम्लान्ज्योती मजूमदार बताते हैं- ‘”हमने विदेश प्रसारण सेवा के लिए नयी तकनीक से हाथ मिला लिया है और अब हम जहाँ एक ओर प्रसारण तकनीक में बदलाव कर रहे हैं.वहां अपने सभी भाषाओँ के प्रसारण को मल्टी मीडिया वेब साईट से जोड़ते जा रहे हैं. इनमें हमने रेडियो ऑन डिमांड,वीडियो,पिक्चर,लाइव स्ट्रीमिंग जैसे कई फीचर भी इसमें शामिल कर दिए हैं. इससे श्रोता अब प्रसारित हो चुके कार्यक्रमों को उनके प्रसारण के बाद भी सुन सकेंगे.इसके अतिरिक्त इस सेवा को विंडोज,एंड्राइड ओर आईओएस पर अपनी एप के साथ भी मौजूदगी दर्ज करायी है.साथ ही मार्च 2017 तक सभी 27 भाषाएँ वेब साइट्स से लिंक होकर डिजिटल हो जायेंगी. इससे उन देशों में भी इस प्रसारण सेवा की पहुँच हो जाएगी जहाँ इसके कार्यक्रमों का प्रसारण नहीं भी हो रहा.
(लेखक ‘पुनर्वास’ साप्ताहिक के संपादक हैं)



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