किसान खेतीबाड़ी में जहां आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं पौधों के पोषण के मामले में जैविक खाद को तरजीह दे रहे है. जैविक खेती के लिए केंचुआ खाद की ज़रूरत होती है. बहुत से किसान जैविक खेती करने के साथ जैविक खाद बनाकर बाज़ार में बेच रहे हैं, जिससे उन्हें ख़ासी आमदनी हो रही है.
ग़ौरतलब है कि केंद्र सरकार परंपरागत खेती विकास योजना के तहत जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है. मौजूदा आम बजट में इस मद के लिए 412 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. इस योजना के तहत उत्तर प्रदेश के गोरखपुर बुलंदशहर, अलीगढ़, मुरादाबाद, पीलीभीत, झांसी, जालौन, हमीरपुर, बांदा, मिर्ज़ापुर, ललितपुर, ग़ाज़ियाबाद, महोबा, कन्नौज और चित्रकूट को चुना गया है. इस योजना के तहत जैविक खेती करने वाले किसानों का पंजीकरण किया जाएगा. पहले चरण में यह योजना तीन वित्तीय वर्ष के लिए बनाई गई है. इस योजना के बेहतर क्रियान्वयन के लिए ग़ैर सरकारी संगठन (एनजीओ) का चयन किया जाएगा. एनजीओ के ज़रिये 20 क्लस्टर बनाए जाएंगे. एक क्लस्टर में पचास एकड़ ज़मीन का चयन किया जाएगा. योजना के तहत एक हज़ार किसानों को फ़ायदा पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. क्लस्टर को जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया जाएगा और साथ ही बेहतर क्रियान्वयन की तकनीक और तमाम संसाधन मुहैया कराए जाएंगे. प्रदेश में 28,750 एकड़ ज़मीन का चयन किया गया और 575 क्लस्टर बनाए गए हैं. योजना के तहत एनजीओ के ज़रिये हर क्लस्टर को विभिन्न सुविधाएं मुहैया कराईं जाएंगी. एक क्लस्टर पर कुल 14.35 लाख रुपये ख़र्च किए जाएंगे. हर क्लस्टर को पहले साल में 6,80 लाख रुपये, दूसरे साल में 4.81 लाख रुपये और तीसरे साल में 2.72 लाख रुपये दिए जाएंगे. इस रक़म का इस्तेमाल इस्तेमाल किसानों को जैविक खेती के बारे में बताने के लिए होने वाली बैठक, एक्सपोजर विजिट, ट्रेनिंग सत्र, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, मृदा परीक्षण, ऑर्गेनिक खेती व नर्सरी की जानकारी, लिक्विड बायोफ़र्टीलाइज़र, लिक्विड बायो पेस्टीसाइड उपलब्ध कराने, नीम तेल, बर्मी कंपोस्ट और कृषि यंत्र आदि पर पर किया जाएगा. इसके साथ ही जैविक खेती से पैदा होने वाले उत्पाद की पैकिंग और ट्रांसपोर्टेशन के लिए भी अनुदान दिया जाएगा.
जैविक खाद के लिए केंचुओं की ज़रूरत होती है. फ़िलहाल केंचुओं की विदेशी प्रजाति से ही खाद बनाई जा रही है, लेकिन अब केंचुए की देशी प्रजाति भी विकसित की जा चुकी है, जो भारत जैसे गर्म देश के लिए बेहद उपयोगी है. जयगोपाल नामक इस केंचुए की देशी प्रजाति का विकास बरेली स्थित इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईवीआरआई) के वैज्ञानिक डा.रनवीर सिंह ने किया है. इसकी ख़ासियत यह है कि 46 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसकी कार्यक्षमता पर कोई असर नहीं पड़ता, जबकि परंपरागत रूप से केंचुआ खाद बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले केंचुए की विदेशी प्रजातियां ज़्यादा तापमान के प्रति संवेदनशील होती हैं. आईवीआरआई शुल्क लेकर समूह में किसानों को जैविक बनाने का प्रशिक्षण भी देता है. प्रशिक्षण के बाद किसानों को निवेश के तौर पर तय मात्रा में केंचुआ नि:शुल्क दिया जाता है.
केंचुए की जयगोपाल प्रजाति जैविक खाद बनाने के क्षेत्र में बेहद कारगर साबित हो सकती है.
कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर शिविरों का आयोजन कर किसानों को जैविक खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है.
जैविक खाद बनाने वाले हरियाणा के मानसिंह का कहना है वह जैविक खेती करने के साथ ही जैविक खाद भी बना रहे हैं, जिससे उन्हें ज़्यादा आमदनी हो रही है. वह अपने खेतों में उत्पन्न होने वाले पत्तियों के कचरे और गोबर से केंचुआ खाद बनाते हैं. केंचुए से ही कीटनाशक वर्मीवाश तैयार करते हैं और इसके अलावा गोमूत्र को भी कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने जैविक खाद और कीटनाशक बनाने का प्रशिक्षण कृषि विभाग के अधिकारियों से लिया था. आज वे अन्य किसानों को इसका प्रशिक्षण दे रहे हैं.
ग़ौरतलब है कि जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए नाबार्ड योजना चला रही है. इसके तहत वाणिज्यिक जैव खाद उत्पादन इकाई की स्थापना के लिए 20 लाख रुपये तक की राशि 25 प्रतिशत सब्सिडी पर दी जाती है. इसके अलावा वर्मी कल्चर हैचरी यूनिट के लिए डेढ़ लाख रुपये और ख़राब हुए फल-सब्जियां व कूड़े-कर्कट से खाद बनाने की इकाई के लिए 40 लाख रुपये तक का क़र्ज़ विभिन्न बैंकों के ज़रिये दिया जाता है. इस पर भी 25 प्रतिशत सब्सिडी है.
बहरहाल, जैविक खाद की बाज़ार में बहुत मांग है. बेरोज़गार युवक जैविक खाद बनाने का काम कर स्वरोज़गार हासिल कर सकते हैं.