फ़िरदौस ख़ान
बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने की वजह से कृषि भूमि लगातर घट रही है. पहले खेत बड़े-बड़े हुआ करते थे, लेकिन संयुक्त परिवारों के टूटने के कारण अब खेत छोटे हो रहे हैं. महंगाई आसमान छू रही है. उर्वरक, कीटनाशक, बीज, डीज़ल और कृषि यंत्र सभी महंगे हो गए हैं. ऐसे में पारंपरिक खेती से किसानों का गुज़ारा मुश्किल हो गया है. अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए किसान अब पारंपरिक खेती को छोड़कर फलों की खेती को तरजीह देने लगे हैं, वे अपने खेतों में स्ट्रॉबेरी उगा रहे हैं. इसमें उन्हें एक बार पैसे ख़र्च तो करने पड़ते हैं, लेकिन फिर आमदनी भी अच्छी होती है.
हरियाणा के हिसार के ओमप्रकाश पिछले पांच साल से स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. वह बताते हैं कि पहले उनके यहां पारंपरिक फ़सलें उगाई जाती थीं. छोटे खेत और बढ़ती कृषि लागत की वजह से उन्हें ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं हो पाता था. वह अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने स्ट्रॉबेरी उगाने की सोची. फिर क्या था उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती की जानकारी हासिल की. वे स्ट्रॉबेरी के अच्छी क़िस्म के पौधे लाए और उन्हें अपने खेतों में रोपा. पहले साल उन्हें काफ़ी मेहनत करनी पड़ी और स्ट्रॉबेरी की खेती की तैयारी में अच्छी ख़ासी लागत आई. उन्होंने पौधे ख़रीदे, ड्रिप सिस्टम लगवाया. मलचिंग के लिए प्लास्टिक ख़रीदा. फल पैकिंग मेटीरियल और पौध संरक्षण रसायन, कीटनाशक और खाद पर भी काफ़ी पैसे ख़र्च किए. कुछ ख़र्च ऐसे होते हैं, जो बस एक बार ही करने होते हैं और फिर बरसों तक उनका फ़ायदा मिलता रहता है. स्ट्रॉबेरी को ख़ास देखभाल की ज़रूरत होती है. उनके परिवार के सदस्यों ने भी उनकी मदद की. आख़िरकार उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें अच्छा मुनाफ़ा हुआ. उन्हें प्रति एकड़ दो लाख से तीन लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है. गांव स्याहड़वा के राजेश गोस्वामी पिछले दो दशक से स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. उनका कहना है कि प्रति एकड़ 80 से 200 क्विंटल तक स्ट्रॉबेरी की पैदावार ली जा सकती है. ज़्यादा पैदावार होने पर प्रति एकड़ मुनाफ़ा पांच लाख तक पहुंच जाता है. बाज़ार में इसकी क़ीमत 150 से 300 रुपये प्रति किलो है. स्ट्रॉबेरी को तोड़ने के बाद ज़्यादा वक़्त तक नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि यह फल बहुत जल्दी ख़राब हो जाता है. तोड़ने के बाद फ़ौरन इसकी पैकिंग कर लेनी चाहिए. फिर इसे जल्द से जल्द बाज़ार पहुंचा देना चाहिए. गांव के किसानों ने अपनी यूनियन बनाई हुई है, जो खेत से फल तोड़ने से लेकर पैकिंग करने और माल को दिल्ली पहुंचाने तक का सारा काम आसानी से कर लेती है. सिरसा ज़िले के गांव तलवाड़ा खुर्द के गुरमीत सिंधु भी स्ट्रॉबेरी की खेती करके प्रति एकड़ पांच लाख रुपये तक कमा रहे हैं. स्ट्रॉबेरी की पैकिंग वह ख़ुद ही करते हैं. अपने उत्पाद की मार्केटिंग के लिए वह हरियाणा, पंजाब के अलावा दिल्ली भी जाते हैं. वह फ़सल चक्र अपनाते हुए स्ट्रॉबेरी के साथ टमाटर के पौधे भी लगाते हैं. जब स्ट्रॉबेरी का मौसम चला जाता है, तब टमाटर फल देना शुरू कर देते हैं. भिवानी ज़िले के किसान भी पंरपरागत खेती के साथ ही स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. यहां 50 एकड़ से ज़्यादा कृषि भूमि में स्ट्रॉबेरी उगाई जा रही है. किसानों का कहना है कि सर्दी का मौसम शुरू होते ही वह स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू कर देते हैं. अगस्त माह में इसकी पौध तैयार की जाती है और सितंबर में रोपी जाती है. नवंबर माह के आख़िर में ये पौधे फल देना शुरू कर देते हैं. उनका कहना है कि सरकार स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए अनुदान दे रही है. कृषि विभाग द्वारा किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती की तकनीकी जानकारी भी मुहैया कराई जा रही है. रेवाड़ी ज़िले के गांव तिगरा के किसान पवन का कहना है कि स्ट्रॉबेरी की खेती में पारंपरिक खेती से दस गुना ज़्यादा मुनाफ़ा है. जिन किसानों के पास सिर्फ़ एक एकड़ ज़मीन है, वे भी स्ट्रॉबेरी उगाकर चार-पांच लाख रुपये सालाना कमा सकते हैं. हरियाणा के अलावा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार आदि राज्यों में स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही है. जम्मू-कश्मीर देश के सबसे बड़े स्ट्रॉबेरी उत्पादक राज्य है. स्ट्रॉबेरी की बढ़ती मांग को देखते हुए जम्मू-कश्मीर का बाग़वानी विभाग किसानों को इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. बाग़वानी विभाग द्वारा हार्टिकल्चर मिशन के तहत किसानों को अनुदान दिया जा रहा है. ग़ौरतलब है कि स्ट्रॉबेरी पौष्टिक तत्वों से भरपूर है. इसमें प्रोटीन, वसा, खनिज लवण, रेशा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फ़ास्फ़ोरस, आयरन, निकोटिनिक एसिड, विटामिन सी और कैलोरी उर्जा मिलती है. बाज़ार में स्ट्रॉबेरी की बहुत मांग है. इससे जैम, स्क्वैश, टॊफ़ियां, आइसक्रीम, मिल्क शेक, स्ट्रॉबेरी फ़्लेवर, क्रीम और विटामिन की दवाएं भी बनाई जा रही हैं.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक़ ऊसर एवं मटियार भूमि को छोड़कर सभी तरह की भूमि में स्ट्रॉबेरी की खेती की जा सकती है. स्ट्रॉबेरी की कई क़िस्में हैं, जैसे चन्देलर, स्वीट चारली, ज्योलीकोट, रेडकोट, ईसी-362602 और स्टील मास्ट है, लेकिन स्वीट चारली सबसे अच्छी क़िस्म साबित हुई है. इससे प्रति एकड़ 70 से 75 क्विंटल फल प्राप्त किए जा सकते हैं. स्ट्रॉबेरी की अच्छी पैदावार के लिए खाद और उर्वरकों का सही अनुपात में इस्तेमाल करना चाहिए. बुआई से 15-20 दिन पहले खेत में 10 से 12 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की सड़ी खाद डालनी चाहिए. इससे भूमि में पानी सोखने की क्षमता बढ़ जाती है. इसके अलावा प्रति एकड़ 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फ़ास्फ़ोरस और 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम मल्टीप्लेक्स ग्रेन्युल की भी ज़रूरत होती है. इन सभी को आख़िरी जुताई के वक़्त खेत में डालकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए. पौधों को लगाने के 10 से 15 दिन बाद प्रति हर हफ़्ते 0.2 फ़ीसद यूरिया के घोल का छिड़काव करना चाहिए. इसके साथ ही 15 दिन के अंतराल पर मल्टीप्लेक्स और मल्टीके का छिड़काव करने से पैदावार अच्छी होती है. मैदानी इलाक़ों में अक्टूबर माह में पौधे रोपने चाहिए. रोपाई शाम के वक़्त करनी ठीक रहती है. क्यारियों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जबकि पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. एक एकड़ में तक़रीबन 40 हज़ार पौधे लगाए जाते हैं. पौधों की रोपाई करते वक़्त उसके अंकुरित हिस्से को मिट्टी से बाहर रखना चाहिए. रोपाई के फ़ौरन बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए. अगली सिंचाई 10 से 15 दिन के अंतराल पर करना ठीक रहता है.
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि स्ट्रॉबेरी की खेती के फ़ायदे को देखते हुए किसानों का रुझान इसके प्रति लगातार बढ़ रहा है. जो किसान स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं, उन्हें देखकर दूसरे किसान भी इसे अपना रहे हैं. किसानों का यह भ्रम टूट रहा है कि स्ट्रॉबेरी की खेती अब घाटे का सौदा है. स्ट्रॉबेरी की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार किसानों को अनुदान दे रही है. इसके अलावा किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है. कृषि अधिकारी ख़ुद खेतों का जायज़ा लेते हैं और किसानों का मार्गदर्शन भी करते हैं.
अगर किसान के पास एक एकड़ भी कृषि भूमि है, तो वह स्ट्रॉबेरी की खेती कर सकता है. स्ट्रॉबेरी चार माह में तैयार हो जाती है. इसलिए बाक़ी के आठ माह किसान दूसरी फ़सलें उगा सकते हैं. छोटे खेतों और बढ़ती लागत की वजह से किसानों का खेती से मोह भंग हो रहा है. वे रोज़गार की तलाश में शहरों की तरफ़ पलायन कर रहे हैं. शहरों में पहले ही बेरोज़गारों की भरमार है. ऐसे में किसानों के सामने रोज़गार की एक नई समस्या खड़ी हो जाती है. स्ट्रॉबेरी किसानों की ज़िंन्दगी में मिठास लेकर आई है. इससे किसानों की आमदनी बढ़ी है. बस पहली बार उन्हें थोड़ी-बहुत परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. जब एक बार फ़सल उगाकर बाज़ार में बेच दी, तो फिर उनके लिए काफ़ी आसानी हो जाती है. वैसे भी मुश्किलें किस काम में नहीं आतीं. कामयाबी के लिए बस ज़रूरत होती है, धैर्य और समझदारी की. पहली बार स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले किसान कृषि अधिकारियों से संपर्क करके खेती से संबंधित जानकारी ले सकते हैं. किसान कॉल सेंटर के टोल फ़्री नंबर भी उपलब्ध हैं ही, जहां संपर्क करके किसान अपनी किसी भी समस्या का समाधान पूछ सकते हैं. किसान स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए अनुदान भी ले सकते हैं, जो उनका हक़ है. उम्मीद की जा सकती है कि स्ट्रॉबेरी की खेती से छोटे किसानों का खेती से पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी. बहरहाल, किसान स्ट्रॉबेरी की खेती को अपनाकर अच्छा मुनाफ़ा हासिल कर सकते है. जब आमदनी बढ़ती है, तो ज़िंन्दगी में मिठास भी घुल जाती है.
बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने की वजह से कृषि भूमि लगातर घट रही है. पहले खेत बड़े-बड़े हुआ करते थे, लेकिन संयुक्त परिवारों के टूटने के कारण अब खेत छोटे हो रहे हैं. महंगाई आसमान छू रही है. उर्वरक, कीटनाशक, बीज, डीज़ल और कृषि यंत्र सभी महंगे हो गए हैं. ऐसे में पारंपरिक खेती से किसानों का गुज़ारा मुश्किल हो गया है. अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए किसान अब पारंपरिक खेती को छोड़कर फलों की खेती को तरजीह देने लगे हैं, वे अपने खेतों में स्ट्रॉबेरी उगा रहे हैं. इसमें उन्हें एक बार पैसे ख़र्च तो करने पड़ते हैं, लेकिन फिर आमदनी भी अच्छी होती है.
हरियाणा के हिसार के ओमप्रकाश पिछले पांच साल से स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. वह बताते हैं कि पहले उनके यहां पारंपरिक फ़सलें उगाई जाती थीं. छोटे खेत और बढ़ती कृषि लागत की वजह से उन्हें ज़्यादा मुनाफ़ा नहीं हो पाता था. वह अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने स्ट्रॉबेरी उगाने की सोची. फिर क्या था उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती की जानकारी हासिल की. वे स्ट्रॉबेरी के अच्छी क़िस्म के पौधे लाए और उन्हें अपने खेतों में रोपा. पहले साल उन्हें काफ़ी मेहनत करनी पड़ी और स्ट्रॉबेरी की खेती की तैयारी में अच्छी ख़ासी लागत आई. उन्होंने पौधे ख़रीदे, ड्रिप सिस्टम लगवाया. मलचिंग के लिए प्लास्टिक ख़रीदा. फल पैकिंग मेटीरियल और पौध संरक्षण रसायन, कीटनाशक और खाद पर भी काफ़ी पैसे ख़र्च किए. कुछ ख़र्च ऐसे होते हैं, जो बस एक बार ही करने होते हैं और फिर बरसों तक उनका फ़ायदा मिलता रहता है. स्ट्रॉबेरी को ख़ास देखभाल की ज़रूरत होती है. उनके परिवार के सदस्यों ने भी उनकी मदद की. आख़िरकार उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें अच्छा मुनाफ़ा हुआ. उन्हें प्रति एकड़ दो लाख से तीन लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है. गांव स्याहड़वा के राजेश गोस्वामी पिछले दो दशक से स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. उनका कहना है कि प्रति एकड़ 80 से 200 क्विंटल तक स्ट्रॉबेरी की पैदावार ली जा सकती है. ज़्यादा पैदावार होने पर प्रति एकड़ मुनाफ़ा पांच लाख तक पहुंच जाता है. बाज़ार में इसकी क़ीमत 150 से 300 रुपये प्रति किलो है. स्ट्रॉबेरी को तोड़ने के बाद ज़्यादा वक़्त तक नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि यह फल बहुत जल्दी ख़राब हो जाता है. तोड़ने के बाद फ़ौरन इसकी पैकिंग कर लेनी चाहिए. फिर इसे जल्द से जल्द बाज़ार पहुंचा देना चाहिए. गांव के किसानों ने अपनी यूनियन बनाई हुई है, जो खेत से फल तोड़ने से लेकर पैकिंग करने और माल को दिल्ली पहुंचाने तक का सारा काम आसानी से कर लेती है. सिरसा ज़िले के गांव तलवाड़ा खुर्द के गुरमीत सिंधु भी स्ट्रॉबेरी की खेती करके प्रति एकड़ पांच लाख रुपये तक कमा रहे हैं. स्ट्रॉबेरी की पैकिंग वह ख़ुद ही करते हैं. अपने उत्पाद की मार्केटिंग के लिए वह हरियाणा, पंजाब के अलावा दिल्ली भी जाते हैं. वह फ़सल चक्र अपनाते हुए स्ट्रॉबेरी के साथ टमाटर के पौधे भी लगाते हैं. जब स्ट्रॉबेरी का मौसम चला जाता है, तब टमाटर फल देना शुरू कर देते हैं. भिवानी ज़िले के किसान भी पंरपरागत खेती के साथ ही स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. यहां 50 एकड़ से ज़्यादा कृषि भूमि में स्ट्रॉबेरी उगाई जा रही है. किसानों का कहना है कि सर्दी का मौसम शुरू होते ही वह स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू कर देते हैं. अगस्त माह में इसकी पौध तैयार की जाती है और सितंबर में रोपी जाती है. नवंबर माह के आख़िर में ये पौधे फल देना शुरू कर देते हैं. उनका कहना है कि सरकार स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए अनुदान दे रही है. कृषि विभाग द्वारा किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती की तकनीकी जानकारी भी मुहैया कराई जा रही है. रेवाड़ी ज़िले के गांव तिगरा के किसान पवन का कहना है कि स्ट्रॉबेरी की खेती में पारंपरिक खेती से दस गुना ज़्यादा मुनाफ़ा है. जिन किसानों के पास सिर्फ़ एक एकड़ ज़मीन है, वे भी स्ट्रॉबेरी उगाकर चार-पांच लाख रुपये सालाना कमा सकते हैं. हरियाणा के अलावा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार आदि राज्यों में स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही है. जम्मू-कश्मीर देश के सबसे बड़े स्ट्रॉबेरी उत्पादक राज्य है. स्ट्रॉबेरी की बढ़ती मांग को देखते हुए जम्मू-कश्मीर का बाग़वानी विभाग किसानों को इसकी खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. बाग़वानी विभाग द्वारा हार्टिकल्चर मिशन के तहत किसानों को अनुदान दिया जा रहा है. ग़ौरतलब है कि स्ट्रॉबेरी पौष्टिक तत्वों से भरपूर है. इसमें प्रोटीन, वसा, खनिज लवण, रेशा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फ़ास्फ़ोरस, आयरन, निकोटिनिक एसिड, विटामिन सी और कैलोरी उर्जा मिलती है. बाज़ार में स्ट्रॉबेरी की बहुत मांग है. इससे जैम, स्क्वैश, टॊफ़ियां, आइसक्रीम, मिल्क शेक, स्ट्रॉबेरी फ़्लेवर, क्रीम और विटामिन की दवाएं भी बनाई जा रही हैं.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक़ ऊसर एवं मटियार भूमि को छोड़कर सभी तरह की भूमि में स्ट्रॉबेरी की खेती की जा सकती है. स्ट्रॉबेरी की कई क़िस्में हैं, जैसे चन्देलर, स्वीट चारली, ज्योलीकोट, रेडकोट, ईसी-362602 और स्टील मास्ट है, लेकिन स्वीट चारली सबसे अच्छी क़िस्म साबित हुई है. इससे प्रति एकड़ 70 से 75 क्विंटल फल प्राप्त किए जा सकते हैं. स्ट्रॉबेरी की अच्छी पैदावार के लिए खाद और उर्वरकों का सही अनुपात में इस्तेमाल करना चाहिए. बुआई से 15-20 दिन पहले खेत में 10 से 12 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की सड़ी खाद डालनी चाहिए. इससे भूमि में पानी सोखने की क्षमता बढ़ जाती है. इसके अलावा प्रति एकड़ 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फ़ास्फ़ोरस और 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम मल्टीप्लेक्स ग्रेन्युल की भी ज़रूरत होती है. इन सभी को आख़िरी जुताई के वक़्त खेत में डालकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए. पौधों को लगाने के 10 से 15 दिन बाद प्रति हर हफ़्ते 0.2 फ़ीसद यूरिया के घोल का छिड़काव करना चाहिए. इसके साथ ही 15 दिन के अंतराल पर मल्टीप्लेक्स और मल्टीके का छिड़काव करने से पैदावार अच्छी होती है. मैदानी इलाक़ों में अक्टूबर माह में पौधे रोपने चाहिए. रोपाई शाम के वक़्त करनी ठीक रहती है. क्यारियों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जबकि पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. एक एकड़ में तक़रीबन 40 हज़ार पौधे लगाए जाते हैं. पौधों की रोपाई करते वक़्त उसके अंकुरित हिस्से को मिट्टी से बाहर रखना चाहिए. रोपाई के फ़ौरन बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए. अगली सिंचाई 10 से 15 दिन के अंतराल पर करना ठीक रहता है.
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि स्ट्रॉबेरी की खेती के फ़ायदे को देखते हुए किसानों का रुझान इसके प्रति लगातार बढ़ रहा है. जो किसान स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं, उन्हें देखकर दूसरे किसान भी इसे अपना रहे हैं. किसानों का यह भ्रम टूट रहा है कि स्ट्रॉबेरी की खेती अब घाटे का सौदा है. स्ट्रॉबेरी की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार किसानों को अनुदान दे रही है. इसके अलावा किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है. कृषि अधिकारी ख़ुद खेतों का जायज़ा लेते हैं और किसानों का मार्गदर्शन भी करते हैं.
अगर किसान के पास एक एकड़ भी कृषि भूमि है, तो वह स्ट्रॉबेरी की खेती कर सकता है. स्ट्रॉबेरी चार माह में तैयार हो जाती है. इसलिए बाक़ी के आठ माह किसान दूसरी फ़सलें उगा सकते हैं. छोटे खेतों और बढ़ती लागत की वजह से किसानों का खेती से मोह भंग हो रहा है. वे रोज़गार की तलाश में शहरों की तरफ़ पलायन कर रहे हैं. शहरों में पहले ही बेरोज़गारों की भरमार है. ऐसे में किसानों के सामने रोज़गार की एक नई समस्या खड़ी हो जाती है. स्ट्रॉबेरी किसानों की ज़िंन्दगी में मिठास लेकर आई है. इससे किसानों की आमदनी बढ़ी है. बस पहली बार उन्हें थोड़ी-बहुत परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. जब एक बार फ़सल उगाकर बाज़ार में बेच दी, तो फिर उनके लिए काफ़ी आसानी हो जाती है. वैसे भी मुश्किलें किस काम में नहीं आतीं. कामयाबी के लिए बस ज़रूरत होती है, धैर्य और समझदारी की. पहली बार स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले किसान कृषि अधिकारियों से संपर्क करके खेती से संबंधित जानकारी ले सकते हैं. किसान कॉल सेंटर के टोल फ़्री नंबर भी उपलब्ध हैं ही, जहां संपर्क करके किसान अपनी किसी भी समस्या का समाधान पूछ सकते हैं. किसान स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए अनुदान भी ले सकते हैं, जो उनका हक़ है. उम्मीद की जा सकती है कि स्ट्रॉबेरी की खेती से छोटे किसानों का खेती से पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी. बहरहाल, किसान स्ट्रॉबेरी की खेती को अपनाकर अच्छा मुनाफ़ा हासिल कर सकते है. जब आमदनी बढ़ती है, तो ज़िंन्दगी में मिठास भी घुल जाती है.