फ़िरदौस ख़ान
किसान अब पारंपरिक खाद्यान्न की खेती के साथ मसालों की खेती के प्रति आकर्षित हो रहे हैं. जिन किसानों के पास खेती योग्य ज़मीन कम है, वे मसालों की खेती करके अच्छी आमदनी हासिल कर रहे हैं. देश में हर साल अनुमानित 12.50 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में मसालों की खेती होती है. विभिन्न प्रकार की जलवायु के की वजह से उष्णकटिबंध क्षेत्र से उपोष्ण कटिबंध और शीतोष्ण क्षेत्र तक तक़रीबन सभी तरह के मसालों की खेती की जा रही है. संसद द्वारा पारित अधिनियम के तहत स्पाइसेस बोर्ड के अधिकार-क्षेत्र के अधीन कुल 52 मसाले लाए गए हैं. हालांकि आईएसओ की सूची में 109 मसालों के नाम शामिल हैं , जिनमें ऑलस्पाइस, सौंफ़, हींग, तुलसी, बे-पत्ता, मसाले का पौधा, केम्बोज, केपर, कलौंजी, बड़ी इलायची, केसिया, सेलरी, दालचीनी, लौंग, धनिया, पुदीना, करी पत्ता, सोआ, बड़ी सौंफ, मेथी, लहसुन, महा गेलेंजा, हॊर्स रैडिश, हिस्सप, जूनिपर बेरी, कोकम लूवेज, मर्जोरम, सरसों, जायफल व जावित्री, ओरगेनो, अजमोद, पीपला, अनारदाना, ख़शख़श, रोज़मेरी, केसर, सेज, स्टार एनीज़, घोड बच, इमली, तेजपात, थाइम, वैनिला, अदरक, हल्दी, ज़ीरा, मिर्च, काली मिर्च और छोटी इलायची शामिल हैं.

दुनिया भर में भारत मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. इतना ही नहीं, मसालों की खपत और निर्यात में भी भारत सबसे आगे है.  भारत 30 से ज़्यादा देशों को मसाले निर्यात करता है. दुनियाभर की मसालों की तक़रीबन आधी यानी 48 फ़ीसद मांग हमारा देश पूरी करता है. यूं तो मसालों की खेती देश के कई राज्यों में होती है, लेकिन केरल में सबसे ज़्यादा मसालों का उत्पादन होता है. एक अंदाज़ के मुताबिक़ देश में मसालों की खपत 5.11 मिलियन टन है.  देश में तक़रीबन 60 मसालों की खेती की जाती है.

देश में जैविक मसालों की खेती भी हो रही है. यूरोप, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में जैविक मसालों की मांग लगातार बढ़ रही है. मसालों की बढ़ती मांग को देखते हुए सरकार इनकी खेती को प्रोत्साहित कर रही है. देश में राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इसके लिए वाणिज्य मंत्रालय के अधीन एक राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन भी किया गया है. भारतीय मसाला बोर्ड को भी इसका सदस्य बनाया गया है. ग़ौरतलब है कि राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम देश में उन केंद्रों का नियमन करता है, जो जैविक उत्पादों का प्रमाणन करते हैं. फ़िलहाल देश में जैविक उत्पादों के प्रमाणन के लिए 24 केंद्र काम कर रहे हैं.

जो किसान मसालों की खेती करना चाहते हैं, बाग़वानी विभाग उन्हें हरसंभव मदद मुहैया करा रहा है. राष्ट्रीय बाग़वानी मिशन के तहत मसालों की खेती के लिए किसानों को 50 फ़ीसद का अनुदान दिया जाता है. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत फव्वारा, बूंद-बूंद सिंचाई के साथ ही अन्य पर कृषि यंत्रों पर भी अनुदान देने का प्रावधान है. मसालों की जैविक खेती के लिए किसानों को अतिरिक्त अनुदान दिया जाता है. मसालों की जैविक खेती करने वाले किसानों को लागत का 50 फ़ीसद या अधिकतम 10 हज़ार रुपये प्रति हैक्टेयर के तौर पर अनुदान दिया जाता है. कीट रोग प्रबंधन के लिए लागत का 30 फ़ीसद यानी 1200 रुपये प्रति हैक्टेयर अनुदान दिया जाता है. राष्ट्रीय बाग़वानी मिशन के तहत कोल्ड स्टोरेज पर अधिकतम चार करोड़ रुपये तक का अनुदान देने का प्रावधान है. मसालों से संबंधित प्रसंस्करण यूनिट लगाने के लिए लागत का 40 फ़ीसद और अधिकतम 10 लाख रुपये का अनुदान दिया जाता है. इसके अलावा छंटाई करने ग्रेडिंग, शॉर्टिंग के लिए 35 फ़ीसद अनुदान देने का प्रावधान है. इसकी इकाई लगाने के लिए 40 फ़ीसद अनुदान दिया जाता है. मसालों की खेती के लिए लागत का 40 फ़ीसद या अधिकतम 5500 रुपये प्रति हैक्टेयर अनुदान देने का प्रावधान है. अनुदान प्राप्त करने के लिए किसान ज़िले में मौजूद सहायक निदेशक (बाग़वानी) कार्यालय में आवेदन कर सकते हैं. हॉर्टीकल्चर कार्यालय जाकर भी बाग़वानी मिशन के तहत मसालों की खेती की समुचित जानकारी हासिल की जा सकती है.

भारतीय मसाला बोर्ड द्वारा देश में मसाला उत्पादक क्षेत्रों में मसाला पार्क स्थापित किए गए हैं. बोर्ड ने मसाला उत्पादकों की मदद के लिए उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में तीन और मसाला पार्कों की स्थापना की योजना बना रहा है. फ़िलहाल देश में छह मसाला पार्क हैं. तीन नए पार्क उत्तर प्रदेश के रायबरेली, राजस्थान के कोटा और गुजरात के ऊंझा में स्थापित किए जाएंगे. हर पार्क की परियोजना लागत 20 करोड़ रुपये होगी. हाल ही में मध्यप्रदेश के गुना में भी ऐसा ही मसाला पार्क शुरू किया गया है. गुना का मसाला पार्क देश के विभिन्न मसाला उत्पादक क्षेत्रों में मसाला बोर्ड द्वारा स्थापित किए गए मसाला पार्कों में चौथा मसाला पार्क है, जिसमें 45 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है. किसान अपने मसालों के उत्पाद को वाजिब किराया देकर पार्क में रख सकते हैं या पार्क के अंदर स्थित मसाला प्रोसेसरों को सीधे बेच सकते हैं. इसमें बिचौलियों की भूमिका न होने की वजह से किसानों को अपनी उपज की सही क़ीमत मिल जाएगी. इन पार्कों में निर्यातक भी मसाला बोर्ड द्वारा निर्धारित शर्तों पर अपने यूनिट खोल सकेंगे. मसाला पार्कों  को मसालों और मसाला उत्पादों के प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन के लिए औद्योगिक पार्क माना जाता है. यहां अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप प्रोसेसिंग की सुविधाएं होती हैं.

हाल में हरियाणा के हिसार स्थित चौधरी चरण सिंग विश्वविद्यालय में मसालों की फ़सलों पर दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसमें सौ से ज़्यादा किसानों ने शिरकत की. विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॊ. एमएस दहिया ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि मसाला उत्पादों की मांग न केवल भारत, बल्कि विश्व में दिनोदिन बढ़ रही है. ऐसे में इनकी खेती को बढ़ावा देने की ज़रूरत है. किसान मसाला फ़सलों की खेती को फ़सल-चक्र में शामिल करके मांग आपूर्ति के साथ-साथ ज़्यादा मुनाफ़ा भी कमा सकते हैं. हरियाणा के लिए मसालों की फ़सलें नई नहीं हैं. इन फ़सलों में बीमारियां कम लगती हैं और इन्हें कम सिंचाई वाले इलाक़ों में भी उगाया जा सकता है. किसानों को मसालों की फ़सलों के उत्पादन की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए.

बहरहाल, मसालों की ज़्यादा क़ीमत और बढ़ती मांग को देखते हुए किसानों को मसालों की खेती की तरफ़ भी ध्यान देना चाहिए.

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