लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी के नाम से प्रसिद्ध फ़िरदौस ख़ान ने फ़हम अल क़ुरआन लिखा हैं. क़ुरआन आसमानी किताब है, जिसे अल्लाह ने हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम के ज़रिये अपने आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल किया था.  

फ़िरदौस ख़ान बताती हैं कि जब किसी महफ़िल में क़ुरआन का ज़िक्र होता था और बात तर्जुमे की होती थी, तो यही बात सामने आती थी कि तर्जुमा समझ में नहीं आता. बहुत से लोगों से ख़ासकर महिलाओं से बात हुई तो अमूमन सबका यह कहना था कि क़ुरआन को तो आलिम ही समझ सकते हैं. ये आम लोगों के समझने की किताब नहीं है. हम तो इतना ही जानते हैं, जितना मौलाना बता देते हैं. तब हमने सोचा कि क्यों न हम फ़हम अल क़ुरआन लिखें. फ़हम अल क़ुरआन का मतलब है ऐसा क़ुरआन, जो आसानी से एक आम इंसान की समझ में आ जाए. हमने क़ुरआन के कई तर्जुमे देखे. हमने क़ुरआन का उर्दू, हिन्दी और अंग्रेज़ी का तर्जुमा देखा. सबने अपने-अपने हिसाब से तर्जुमा किया हुआ है. ये क़ुरआन का मौजज़ा है कि आप इसे जितनी बार पढ़ो, एक नई बात समझ में आती है.   

दरअसल क़ुरआन शरीफ़ में कई बातें कम शब्दों में कहीं गई हैं, उन्हें मुकम्मल तौर पर समझने के लिए हदीसों को पढ़ना ज़रूरी है. हम क़ुरआन का ऐसा तर्जुमा करना चाहते थे, जिसे पढ़कर लोग आसानी से आयत का मफ़हूम यानी आशय समझ सकें. इसके लिए क़ुरआन को समझना ज़रूरी था. हमने अरबी भाषा सीखी और क़ुरआन के एक-एक लफ़्ज़ को समझा और उनसे मुताल्लिक़ हदीसों का अध्ययन किया. ये कोई आसान काम नहीं था. एक-एक लफ़्ज़ पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र करनी थी. सारी तवज्जो इसी बात पर होती थी कि कहीं ज़रा सी भी चूक न हो जाए. कई बार हिम्मत ने जवाब दिया. फिर सोचा कि जिस मौला ने इस अज़ीम और मुक़द्दस काम को करने की हिदायत दी है, वही इसे मुकम्मल भी कराएगा. ये हमारा यक़ीन था अपने पाक परवरदिगार पर. फिर अल्लाह के महबूब और हमारे प्यारे आक़ा हज़रत मुहम्मद सललल्लाहु अलैहि वसल्लम की मेहर थी कि ये मुक़द्दस काम मुकम्मल हो गया. 

हमने क़ुरआन करीम को आम ज़ुबान में पेश करने की कोशिश की है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग क़ुरआन को पढ़ सकें, समझ सकें और उन तक क़ुरआन का पैग़ाम पहुंच सके. हमें उम्मीद है ये फ़हम अल क़ुरआन रहती दुनिया तक लोगों को अल्लाह के पैग़ाम से रूबरू कराएगा.

फ़िरदौस ख़ान कहती हैं कि हमारी ज़िन्दगी का मक़सद ख़ुदा की रज़ा हासिल करना है. हमारा काम इसी मंज़िल तक पहुंचने का रास्ता है, इसी क़वायद का एक हिस्सा है. कायनात की फ़ानी चीज़ों में हमें न पहले कभी दिलचस्पी थी और न आज है और कभी होगी. फ़हम अल क़ुरआन लिखते वक़्त हमें इस बात का अहसास हुआ कि हमने अपनी ज़िन्दगी फ़ानी चीज़ों के लिए ज़ाया नहीं की. बचपन से ही हमारी दिलचस्पी इबादत और रूहानी इल्म हासिल करने में ही रही. वे कहती हैं कि इस अज़ीम काम को करते वक़्त पापा सत्तार अहमद ख़ान बहुत याद आते थे. बचपन में पापा क़ुरआन करीम के बारे में हमें बताया करते थे. वे कहा करते थे कि क़ुरआन एक मुकम्मल पाक किताब है. ये हिदायत भी है और शिफ़ा भी. इस क़ुरआन के ज़रिये अल्लाह ने हमारी अम्मी ख़ुशनूदी उर्फ़ चांदनी ख़ान की भी एक तमन्ना पूरी करवा दी. वे अकसर हमसे कहा करती थीं कि कोई ऐसी किताब लिखो, जिसे पढ़ते हुए उम्र बीत जाए और दिल न भरे.      
 
फ़िरदौस ख़ान शायरा, लेखिका और पत्रकार हैं। वे रूहानियत में यक़ीन रखती हैं. वे सूफ़ी सिलसिले से जुड़ी हैं. उन्होंने सूफ़ी-संतों के जीवन दर्शन पर आधारित एक किताब 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' लिखी है. वे अपनी अम्मी मरहूमा ख़ुशनूदी ख़ान उर्फ़ चांदनी ख़ान को अपना पहला मुर्शिद और अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान को अपना दूसरा मुर्शिद मानती हैं. वे उर्दू, हिन्दी, इंग्लिश और पंजाबी में लिखती हैं. उन्होंने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कई साल तक सेवाएं दी हैं. उन्होंने अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं का संपादन भी किया. ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर उनके कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहा है. उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनलों के लिए भी काम किया है. वे देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और समाचार व फ़ीचर्स एजेंसी के लिए लिखती हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. वे मुशायरों और कवि सम्मेलनों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली. वे मासिक पैग़ामे-मादरे-वतन की भी संपादक रही हैं और मासिक वंचित जनता में संपादकीय सलाहकार भी रही हैं. फ़िलहाल वे स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं.
अपने बारे में वे कहती है- 
नफ़रत, जलन, अदावत दिल में नहीं है मेरे
अख़लाक़ के सांचे में अल्लाह ने ढाला है…

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