आपके बैग में नमक है

Posted Star News Agency Wednesday, March 26, 2025


डाॅ. प्रभात समीर 
ग्वालियर का छोटा सा  एयरपोर्ट।बहुत ,स्नेह सम्मान देते अपने से लगते कर्मचारी ।
दो घंटे की यात्रा के लिए बेटी ने मना करते रहने पर भी न जाने कितना सामान जुटा दिया ।
यह नारियल पानी एयरपोर्ट पर ही पी लीजिएगा ।
यह आपकी जीवनदायिनी चाय।
इतना तक तो ठीक था ।...  ..
ये कुछ दाने अंगूर के
भिंड के दो पेड़े
भोलेनाथ की ताज़ा बनी बर्फी के दो टुकड़े
ये बहादुरा के दो लड्डू
यह एक सैंडविच, एक परांठा
ये किस्म किस्म के बिस्किट्स का छोटा सा पैक
सौंफ, इमली वाली गोली...
इतना सब अलग से  केबिन बैग में!
ग्वालियर से मुंबई दो घंटेऔर घर पहुंचने तक के 2- 3घंटे और।थोड़े से समय के लिए इतना सब!
 -- ' मैं कुछ खा भी पाती हूं क्या?'मैंने आहिस्ता से कहा ।
 -- ' नहीं खा पातीं ,इसीलिए तो। न जाने क्या मुंह में डाल लेने से आपकी तबियत सुधरी रहे ।' 
   पर्स mobile ,केबिन bag... सब  स्क्रीन होकर बाहर आने की प्रक्रिया में थे,तभी सुनाई दिया
' यह लाल केबिन बैग?.. ' 
-- ' मेरा है?' 
- *आपके bag में नमक है* !  
 मेरे पास टुथपेस्ट तो है नहीं...नमक कहां?
मिठाई ,चपाती ,बिस्किट  वगैरह ....कहीं तो नमक  दिखाई दे!
समय की तेज़ रफ़्तार ,हरेक कोई मददग़ार...तसल्ली देती  हुई आवाज़ें 'आराम से देख लें..'
 ओह,अचानक एक मसाले की डिब्बी कूदकर बाहर....
साथ में खड़े एक सज्जन ने कहा...'कुछ नहीं है,इंदौर का मसाला है..इसे जीरावन कहते हैं ।और जगह मिलता ही कहां है?'
- ' अगर explosive लग रहा है तो मैं छोड़ देती हूं....' मेरी आवाज़ में मज़ाक का पुट था।
- ' क्यों छोड़ें?आप इस बैग को भी चैक इन में भेज दीजिए।हम हैं न मदद के लिए ।
बस,थोड़ा जल्दी..बोर्डिंग टाइम हो रहा है। ' 
सिर्फ़ हथेली भर की थर्मस, अपनी एक पत्रिका पर्स में डाली,शेष की ज़रूरत ही नहीं थी।
भिंड, बहादुरा,भोलेनाथ 
सैंडविच,चपाती,बिस्किट.. सबने अलविदा कहा और lock होकर चल दिए।
आगे से इतना सब साथ में न रखने की नसीहत मैं अपनी बेटी को नहीं दूॅंगी। 
मंज़ूर है यह सुनना...'आपके बैग में नमक है..'
मेरे पास न माॅं हैं,न मायका । मैं तो यह भी नहीं गा पाती..'अब के बरस भेज भैया को...'
एक बेटी ही तो है  ,जो जब मेरे लिए इतनी साज-संभाल, कुछ सामने ,कुछ छिपाकर, करती है तो मुझे माॅं याद आने लगती हैं।
 वह भी कुछ सामान घोषणा करके रखती थीं और कुछ घर के सभी सदस्यों से छिपाकर ।
छिपाकर क्यों? यह आज तक भी रहस्य है ।
मिठाई के डिब्बे, कागज़ के लिफ़ाफ़े, कुछ पोटलियां जितने बैग,उतनों में से आश्चर्यजनक अन्दाज़ में कुछ न कुछ निकलता जाता....सब पर 'घर का बना' label।
किसी कोने से कुछ सामान ऐसा भी निकलता ,जो माॅं की आवाज़ में कहता सुनाई देता - - ' समीर,यह सिर्फ़ और सिर्फ़ तेरे लिए..' 
उम्र के साथ बच्चे घर के बुज़ुर्ग़ों सा दायित्व निभाने लगते हैं और हम किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह उनके आदेशों को मानने का सुख जीते हैं।
(लेखिका पिछले 40 वर्ष से आकाशवाणी से जुड़ी हैं। उनका एक कहानी - संग्रह 'मन नहीं लग रहा मदाम' है) 

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