फ़िरदौस ख़ान
सुप्रसिद्ध कवि एवं गीतकार डॉ. रामनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ द्वारा लिखित ‘नवगीत कोश’ पढ़ने का मौक़ा मिला। इसे पढ़कर लगा कि अगर इसे पढ़ा नहीं होता, तो कितना कुछ जानने और समझने से रह जाता। कितना कुछ ऐसा छूट जाता, जिसका मलाल रहता। किताबों की भीड़ में बहुत-सी किताबें ऐसी होती हैं, जो सबसे अलग नज़र आती हैं। ये वो किताबें होती हैं, जिनसे सीखने को बहुत कुछ मिलता है, जो किसी शिक्षक की तरह हमें किसी विषय विशेष की विस्तृत जानकारी मुहैया करवाती हैं। ऐसी किताबें संग्रहणीय होती हैं, जो वर्तमान ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी ज्ञान की थाती होती हैं। यह भी एक ऐसी ही किताब है।     

इस ‘नवगीत कोश’ को आगरा के निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स ने प्रकाशित किया है। इसमें पाँच खंड हैं। प्रथम खंड में प्रस्तावना है, जिसमें गीत, नवगीत की प्रामाणिक भूमिका, इतिहास, संवेदना संसार और शिल्प पर प्रामाणिक चर्चा है। द्वितीय खंड में 700 एकल और 100 समवेत नवगीत संग्रहों का परिचय है। तृतीय खंड में 297 नवगीतकारों का संक्षिप्त परिचय है। इसमें पाँच प्रवासी भी हैं। चतुर्थ खंड में नवगीत के समीक्षा सम्बन्धी 103 प्रकाशित ग्रंथों, 73 अप्रकाशित शोध ग्रंथों और 58 पत्रिकाओं का परिचय है। पंचम खंड में 29 नवगीतकारों और समीक्षकों का साक्षात्कार है, जिनमें स्वयं डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ सहित अनूप अशेष, डॉ. आलमगीर अली, डॉ. इन्दीवर, डॉ. ओमप्रकाश सिंह, गणेश गम्भीर, जगदीश ‘पंकज’, देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’, नचिकेता, पारसनाथ गोवर्धन, डॉ. पार्वती जे. गोसाईं, पूर्णिमा वर्मन, भारतेन्दु मिश्र, मधुकर अष्ठाना, मयंक श्रीवास्तव, महेश उपाध्याय, डॉ. योगेन्द्र दत्त शर्मा, रमेश गौतम, राधेश्याम बन्धु, विनोद निगम, वीरेन्द्र आस्तिक, वेद प्रकाश शर्मा ‘अमिताभ’, डॉ. वेद प्रकाश शर्मा ‘वेद’, डॉ. श्रीराम परिहार, संजीव वर्मा ‘सलिल’, सोम ठाकुर, हरिशंकर सक्सेना, हरीश निगम और हृदयेश्वर शामिल हैं। साक्षात्कार में ऐसे सवाल पूछे गए हैं, जो साहित्य प्रेमियों की जिज्ञासा को तृप्त करते हैं। सभी नवगीतकारों ने अपने-अपने अंदाज़ में जवाब दिए हैं। इनसे बहुत कुछ जानने, समझने और सीखने को मिलता है।                             
 
इस ‘नवगीत’ को तैयार करने में डॉ. यायावर ने अपनी ज़िन्दगी के तीन अनमोल साल ख़र्च किए हैं। इसमें उनकी मेहनत, उनकी लगन और उनका समर्पण सबकुछ ही तो झलकता है। उन्होंने गीत के शब्दार्थ, मीमांसा  और परिभाषा का बहुत ही सहजता से वर्णन किया है। जो व्यक्ति साहित्य से सम्बन्ध नहीं रखता या जिसे नवगीत के विषय में बुनियादी जानकारी भी नहीं है, वह भी इसे पढ़कर नवगीत के विषय में जान जाएगा कि नवगीत क्या है। 
    
उनकी भाषा शैली और उनके शब्दों का चयन इतना सुन्दर है कि वह पाठक को ऐसे बहा ले जाता है, जैसे नदी किसी नाव को अपनी अविरल धारा के साथ बहा ले जाती है। पाठक बस उसमें बहता चला जाता है। कहीं रुकने का उसका मन ही नहीं करता। पढ़ते-पढ़ते कब किताब मुकम्मल हो गई, पता ही नहीं चलता। बानगी देखें- गीत हृदय की वर्णमयी झंकार या दूसरे शब्दों में यह हृदय-हिमालय से फूट पड़ने वाली वह अविरल स्रोतास्विनी है, जो भावाच्छ्वास के ताप से पिघलकर अनायास फूट पड़ती है। यह काव्य की आदि विधा है। सृष्टि के जन्म के साथ ही गीत जन्मा, क्योंकि सृष्टा ने प्रकृति के कण-कण में गीत की अस्मिता भर दी है। ऋतुओं का क्रमिक परिवर्तन, सूर्य का निश्चित समय पर उदयास्त, पवन का गतिमय संचालन, कल-कल बढ़ती सरिताओं का गतिमय गायन, झरनों का उद्वेगमय निपतन, दिवा रात्रि का क्रमश: आवागमन, पृथ्वी द्वारा सूर्य का और चन्द्रमा द्वारा पृथ्वी का लययुक्त परिभ्रमण, तरु शिखरों पर पक्षियों का संगीतमय कलरव, कोमल किसलयों की मर्मर ध्वनि, कभी क्रुद्ध प्रकृति द्वारा निर्देशित विध्वंस रचती झंझाओं का भैरव नर्तन, मधुऋतु में पुष्पों की मधुर मुस्कान, उपवन के भ्रमरों की लयबद्ध गुनगुनाहट, पावस की अँधेरी रात में झींगुरों की झंकार, मयूर की केका ध्वनि के साथ किया गया मोहक नृत्य, वर्षा के बादलों की घुमड़न और बरसी बूँदों का शीतल स्पर्श, शिशिर में ओस की बूँदों का मुक्ताभासी सौन्दर्य, पतझड़ में पियराते पत्तों का गिरना, कृषक बाला का अकृत्रिम गायन, शरद पूर्णिमा में चन्द्रमा की निष्कलुष स्वच्छ चाँदनी का अछोर विस्तार और श्रम से सँवरती-बिखरती ज़िन्दगी का स्वेद आदि सबमें एक गीत है। प्रकृति में और जीवन में जहाँ भी लय है, संगीत है गुनगुनाहट है, झंकार है, वहाँ-वहाँ गीत उपस्थित है। गीत अनुभूति और संगीत की लाड़ली सन्तान है। सत्य, शिव और सौन्दर्य का लयबद्ध संयोजन है, जीवन-राग का स्वरबद्ध गायन है। सम्भवत: एक गीत में कहा गया है-
धरती, अम्बर, फूल पाँखुरी
आँसू, पीड़ा, दर्द, बाँसुरी 
मौल, ऋतुगंधा, केसर 
सबके भीतर एक गीत है 

पीपल, बरगद, चीड़ों के वन
सूरज, चन्दा, ऋतु परिवर्तन 
फुनगी पर इतराती चिड़िया 
दूब भरे कोमल तुषार कन 
जलता जेठ भीगता सावन 
सबके भीतर एक गीत है 

रात अकेली चन्दा प्रहरी
अरुणोदय की किरण अकेली 
फैली दूर तलक हरियाली 
उमड़ी हुई घटायें गहरी 
मुखर फूल शरमाती कलियाँ 
मादक ऋतुपति, सूखा पतझर 
सबके भीतर एक गीत है     

                                 
पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला प्रथम गीतकार माने जाते हैं। डॉ. यायावर उनकी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। नवगीत लेखन के क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वे नवगीतकारों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनका मानना है कि नवगीत का भविष्य उज्ज्वल है। नयी, युवा पीढ़ी अपनी ताज़गी भरी रचनाधर्मी ऊर्जा के साथ उससे जुड़ रही है। अब वह अन्तर्जाल के द्वारा भारत के बाहर भी लोकप्रिय हो रहा है। इसलिए जब तक मानव है, उसमें संवेदयें हैं, जीवन में जटिलतायें हैं और मानव में अभिव्यक्ति की ललक है, तब तक नवगीत रहेगा। सम्भव है आने वाला कल किसी और परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव करे, तो वह होगा, परन्तु गीत रहेगा। वह मानव का कालजयी सहचर है।

डॉ. यायावर को काव्य की यह पुण्य विधा अपने पिता स्वर्गीय पंडित रामप्रसाद शर्मा से विरासत में मिली है। वे स्वतंत्रता सेनानी और लोकगायक थे। पहले वे भजन और फिर लोक महाकाव्य ढोला के द्वारा जन-जागरण करते रहे। इसलिइ उन्हें बचपन से ही संगीत और लोकसंस्कृति को क़रीब से जानने का मौक़ा मिला। उन्होंने सातवीं कक्षा में ही पहला बालगीत लिख लिया था।

बहरहाल, डॉ. यायावर की यह पुस्तक साहित्य के छात्रों के लिए बहुत उपयोगी है। पुस्तक का आवरण भी आकर्षक है। किताब का मूल्य भी वाजिब है। डॉ. यायावर ने पाठकों की सुविधा के लिए इसका मूल्य कम रखवाया है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा पाठक इसे ख़रीद सकें।       

पुस्तक का नाम : नवगीत कोश 
लेखक : डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 
प्रकाशक : निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, आगरा 
पृष्ठ : 640
मूल्य : 500 रुपये      


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