वीर विनोद छाबड़ा  
फ़िल्मी दुनिया की परमानेंट सिस्टर का ख़िताब उढ़ा दिए जाने वाली साठ और सत्तर के सालों की मशहूर एक्ट्रेस नाज़िमा का 11 अगस्त 2025 को इस फानी दुनिया से रुख़सत फ़रमा गयी. वो 77 बरस की थीं.  कुछ साल पहले उन पर लिखा ये आर्टिकल साझा कर रहा हूँ. 
विचित्र है ये फ़िल्मी दुनिया भी. आज ज़र्रा आसमान पर बैठा दिखा तो दूसरे दिन धड़ाम ज़मीन पर. ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे?  25 मार्च 1948 को नासिक में जन्मी नाज़िमा का केस भी कुछ ऐसा ही है. उनका संबंध फ़िल्मी घराने से रहा. दादी शरीफा बाई और फूफी हुस्नबानो अपने दौर की प्रसिद्ध अभिनेत्रियां थीं. बचपन से ही फिल्मों का शौक रहा. देवदास, बिराज बहु, अब दिल्ली दूर नहीं, हम पंछी एक डाल के आदि में बेबी चाँद के नाम से दिखी. वैसे उनका असली नाम था, मेहरूनिसा.  पंद्रह साल की उम्र में अपने फूफा अस्पी ईरानी की 'उमर क़ैद' (1961) की नायिका बन गयी. उनके नायक थे सुधीर, जो बाद में हरदिल पसंद कॅरेक्टर आर्टिस्ट के रूप में स्थापित हुए. मुकेश की आवाज़ में सुधीर-नाज़िमा पर फिल्माया ये गाना आज भी यादगार है...मुझे रात दिन ये ख्याल है वो नज़र से मुझको गिरा न दे...
किसी को यक़ीन नहीं होगा कि संजीव कुमार की बतौर नायक पहली फिल्म 'निशान' (1965) की नायिका नाज़िमा ही थी. याद करें इस गाने को...हाए तबस्सुम तेरा, धूप खिल गई रात में या बिजली गिरी बरसात में....संजीव के साथ नाज़िमा की एक अन्य फिल्म भी याद आती है, प्रसाद प्रोडक्शन की गोल्डन जुबली हिट 'राजा और रंक'...ओ फिरकी वाली तू कल फिर आना, नहीं फिर जाना तू अपनी जुबान से ओ तेरे नैना हैं बईमान से...'अधिकार' में देब मुखर्जी उनके दीवाने थे... कोई माने या न माने जो कल तक तक थे अनजाने वो आज हम जान से प्यारे हो गए...जैमिनी की 'औरत' (1967) में राजेश खन्ना के ऑपोज़िट थीं नाज़िमा...शोला उल्फत का भड़का दे दिल में आग लगा दे...बाद के दिनों में संजीव कुमार और राजेश खन्ना तो सफलता की सीढ़ियां चढ़ते ही गए मगर नाज़िमा को कुछ नहीं मिला. दो साल बाद 'डोली' में वो राजेश की बहन का किरदार करती दिखीं. फिर तो वो स्थाई बहन हो गयीं, वो भी दुखियारी बहना, 'ग़ज़ल' में सुनील दत्त की तो 'बेईमान' में मनोज कुमार की...ये राखी बंधन है ऐसा....'अनजाना' में राजेंद्र कुमार के पीछे राखी लेकर घूमना पड़ा...हम बहनों के लिए मेरे भैया, आता है एक दिन साल में...पब्लिक को भी उनमें परफेक्ट दुखियारी बहन दिखने लगी, उनकी खिलखिलाहट नहीं सुनाई दी. 
'अप्रेल फूल' में नाज़िमा को सायरा बानो की बहन बनना पड़ा तो 'ज़िद्दी' में आशा पारेख की. 'आरज़ू' में वो राजेंद्र कुमार की बहन थीं तो साधना की सहेली भी...जब इश्क़ कहीं हो जाता है तो ऐसी हालात होती है...'आये दिन बहार के' में वो आशा पारेख को आड़े वक़्त में सहारा देने वाली पक्की सहेली थीं, बहन की  समानांतर भूमिका में...ए काश किसी दीवाने को हमसे भी मोहब्बत हो जाए...राजश्री फिल्म्स की कॉमेडी 'हनीमून' में सहेली लीना चंद्रावरकर के साथ भी नाज़िमा का रोल बराबरी का था, जिसमें दोनों अपने बॉय फ्रेंड्स से नाता तोड़ कर अरेंज मैरिज करती हैं मगर संयोग से लीना का पति अनिल धवन नाज़िमा का एक्स बॉय फ्रेंड होता है और नाज़िमा का पति सुरेश चटवाल लीना का एक्स बॉयफ्रेंड. दुर्भाग्य ये रहा कि लीना-अनिल पर तो दो-दो गाने फिल्माए गए लेकिन नाज़िमा-सुरेश पर एक भी नही. ऐसा ही करते हैं डायरेक्टर, किसी को उठाओ तो किसी को गिराओ.  सबके अपने इंटरेस्ट होते हैं. 
सत्तर के सालों की फ़िल्मी दुनिया नाज़िमा को 'रेसीडेंट सिस्टर' कहती थी. नाज़िमा ने इस बदहाली के लिए खुद को ही कसूरवार माना. नायिका के रोल के लिए लंबा इंतज़ार उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ इसलिए जो भी ऑफर आया, झट से स्वीकार कर लिया ये सोच कर कि प्रोडक्शन बड़ा है, फिर जिसकी बहन या सहेली बनना है वो नामी स्टार हैं. उनकी सुंदरता, प्रतिभा सब धरी की धरी ही रह गयी. उनके आसूओं में किसी को दर्द नहीं दिखा, गलेसरीनी समझे गए.  हमने 'दयारे मदीना' (1975) में नाज़िमा को अंतिम बार देखा था. उसके बाद वो अचानक ही ग़ायब हो गयी. तरह-तरह की अफवाहें उड़ीं. किसी ने लिखा उन्हें कैंसर है तो किसी ने स्वर्ग ही भेज दिया, ये शीर्षक लगाते हुए कि सबसे ज़्यादा 'रेप' का शिकार हुई ये बहना. अंदाज़ा लगा सकते हैं, लिखने वाले का स्तर का.  दरअसल नाज़िमा जब उन्होंने समझ लिया था कि बहन या सहेली के आगे उनका कोई स्कोप नहीं है तो अपने एक जहाजी दोस्त अरशद रहमान से उन्होंने शादी कर ली थी. उनके बच्चे हैं. कुछ साल पहले शौहर का इंतकाल हो चुका है और वो पक्की धार्मिक हो गयीं. मुंबई में ही गुमनामी की ज़िंदगी जीती रहीं. हिज़ाब से ढके रहने के कारण उन्हें कोई पहचानता नहीं पाता था. और वो ऐसा चाहती भी थीं.  


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