माँ की खिदमत, नन्हें बच्चों से मोहब्बत थी मुझे।
कौन कहता है खुदा की बंदगी करते नहीं।।
गूंगे-बहरे हो गए हैं रहनुमा इस दौर के।
है अंधेरा ही अंधेरा रोशनी करते नहीं।।
है अंधेरा ही अंधेरा रोशनी करते नहीं।।
मुस्कुरा कर मीठी बातों से बनाते काम हैं।
हाँ, सयाने लोग खुलकर दुश्मनी करते नहीं।।
ये तो मेरा दिल ही जाने है किसी से क्या कहें।
याद न आती तो 'तन्हा' शायरी करते नहीं।।
-सलीम तन्हा
शायर भोपाल के दैनिक अक्षर सम्राट में सम्पादक हैं.
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