चल दिया दिसम्बर मास आज
लो वर्ष हुआ नौ दो ग्यारह।
कुछ आशाएँ फलवती हुईं
कुछ सपने ठेंगा दिखा गये
कुछ नाम जुड़ गए सूची में
कुछ नाम पुराने कटा गए
कुछ जग-प्रपंच को छोड़ गए
कुछ करते रहे तीन-तेरह।।
'मैं' लड़ता था मेरे 'मैं' से
'तुमने' 'उसने'तो प्यार दिया
'इसने''उसने'जाने 'किसने'
मेरे सपनों को मार दिया
यह अपराजेय समर जारी
चल रहा आज तक भी अहरह।।
आ गया नए परिधान पहन
चौखट पर देता है दस्तक
यह नया वर्ष ही है शायद
ले आया सपनों की पुस्तक
कल जो होगा सो होगा ही
उल्लास अभी आता बह-बह।।
जो बीत गया मृत हुआ आज
डालो अब धूल असंगत पर
जो अतिथि खड़ा दरवाजे पर
दें ध्यान उसी के स्वागत पर
चेतना उमग कर नदी बनी
उठतीं उमंग-लहरें रह-रह।।
-डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा 'यायावर'
