फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
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*फ़िरदौस ख़ान*ज़िन्दगी का सबसे ख़ूबसूरत हिस्सा बचपन होता है. बचपन की यादें
हमारे दिलो-दिमाग़ पर नक़्श हो जाती हैं. और जब बात गर्मियों की छुट्टियों की
हो, त...

आज जन्मदिन पर विशेषभीड़ में भी तन्हा हैं राहुल गांधी -फ़िरदौस ख़ानराहुल गांधी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. वे देश और राज्यों में सबसे लम्बे अरसे तक हुकूमत करने वाली कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं. हाल के लोकसभा चुनाव में उन्होंने उत्तर प्रदेश के रायबरेली और केरल के वायनाड लोकसभा क्षेत्र से लाखों मतों से जीत हासिल कर इतिहास रचा है. उन्होंने अपने पुराने लोकसभा क्षेत्र वायनाड छोड़कर रायबरेली से सांसद रहने का फ़ैसला किया है. बहरहाल, उनकी ज़िन्दगी...

आज ईद-अल-ग़दीर है. ईद-अल-ग़दीर 18 जिल'हिज्ज को मनाई जाती है. इस दिन अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ग़दीर-ए-ख़ुम के मैदान में मौला-ए-कायनात को सवा लाख हाजियों के दरम्यान, अल्लाह के हुक्म से अपना जानशीन और ख़लीफ़ा मुक़र्रर किया था.आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं-जिसका मैं मौला, उसका अली मौला.ग़ौरतलब है कि ग़दीर मक्का से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक जगह थी,...

अल्लाह के महबूब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आख़िरी ख़ुतबा.आपने इरशाद फ़रमाया-प्यारे भाइयो! मैं जो कुछ कहूं, ध्यान से सुनो.ऐ इंसानो! तुम्हारा रब एक है. अल्लाह की किताब और उसके रसूल की सुन्नत को मज़बूती से पकड़े रहना.लोगों की जान-माल और इज़्ज़त का ख़्याल रखना, न तुम लोगों पर ज़ुल्म करो, न क़यामत में तुम्हारे साथ ज़ुल्म किया जाएगा.कोई अमानत रखे, तो उसमें ख़यानत न करना.ब्याज़ के क़रीब न भटकना.किसी अरबी को किसी अजमी (ग़ैर अरबी) पर...

फ़िरदौस ख़ानज़िन्दगी का सबसे ख़ूबसूरत हिस्सा बचपन होता है. बचपन की यादें हमारे दिलो-दिमाग़ पर नक़्श हो जाती हैं. और जब बात गर्मियों की छुट्टियों की हो, तो फिर कहना ही क्या. शायद ही कोई बच्चा हो, जिसे गर्मियों की छुट्टियों का इंतज़ार न रहता हो. हमें भी सालभर गर्मियों की छुट्टी का इंतज़ार रहता था, क्योंकि गर्मियों की छुट्टियों में हमें अपनी नानी जान के घर जाने का मौक़ा मिलता था. हमारे नाना के बाग़ थे, जिनमें आम, अमरूद, जामुन और शहतूत के अलावा...

फ़िरदौस ख़ान फ़ारूख़ शेख़ फ़िल्मी दुनिया के आसमान का एक ऐसा रौशन सितारे थे, जिसकी चमक से समानांतर सिनेमा दमकता था. उनके चेहरे पर मासूमियत थी. उनके अंदाज़ में शोख़ी थी और उनका मिज़ाज शायराना था.फ़ारूख़ शेख़ का जन्म 25 मार्च 1948 को गुजरात के सूरत ज़िले के गांव अमरोली में हुआ था. उनके पिता मुस्तफ़ा शेख़ मुम्बई के जाने माने वकील थे. उनके पिता ज़मींदार परिवार से ताल्लुक़ रखते थे. उनकी परवरिश बड़ी शानो-शौकत से हुई थी. उनके कहने से पहले ही ज़रूरत...
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फ़िरदौस ख़ास पर्यटन भी ज़िन्दगी का एक अहम हिस्सा है. कुछ लोग क़ुदरत की ख़ूबसूरती निहारने के लिए दूर-दराज़ के इलाक़ों में जाते हैं, तो कुछ लोगों को अक़ीदत इबादतगाहों और मज़ारों तक ले जाती है. पर्यटन रोज़गार का भी एक बड़ा साधन है. हमारे देश भारत में लाखों लोग पर्यटन से जुड़े हैं. यहां मज़हबी पर्यटन ख़ूब फल-फूल रहा है. हर साल विदेशों से लाखों लोग भारत भ्रमण के लिए आते हैं, जिनमें एक बड़ी तादाद धार्मिक स्थलों पर आने वाले ज़ायरीनों यानी पर्यटकों की होती...

मेरे महबूब !
आज तुम्हारी सालगिरह है... ये दिन मेरे लिए भी बहुत ख़ास है...बिलकुल ईद की तरह... क्योंकि अगर तुम न होते तो...मैं भी कहां होती... तुम्हारे दम से ही मेरी ज़िन्दगी में मुहब्बत की रौशनी है...और अगर ये रौशनी न होती, तो ज़िन्दगी कितनी अधूरी होती, लाहासिल होती...
तुम्हारे लिए एक दुआ...
मेरे महबूब !
तुम्हारी ज़िन्दगी में
हमेशा मुहब्बत का मौसम रहे...
मुहब्बत के मौसम के
वही चम्पई उजाले वाले दिन
जिसकी बसंती सुबहें
सूरज की बनफ़शी किरनों...

यूं ही किसी के ध्यान में अपने आप में गाती दोपहरेंनर्म गुलाबी जाड़ों वाली बाल सुखाती दोपहरेंसारे घर में शाम ढले तक खेल वो धूप और छांव कालिपे पुते कच्चे आंगन में लोट लगाती दोपहरेंजीवन-डोर के पीछे हैरां भागती टोली बच्चों कीगलियों-गलियों नंगे पांव धूल उड़ाती दोपहरेंसरगोशी करते पर्दे कुंडी खटकाता नटखट दिनदबे-दबे क़दमों से तपती छत पर जाती दोपहरेंकम में हैरान खड़े आईना जैसे हंसते दिनख़ुद से लड़कर गौरेया-सी शोर मचाती दोपहरेंवही मुज़ाफ़ातों के भेद...

फ़िरदौस ख़ानअबुल हसन ख़रक़ानी प्रसिद्ध सूफ़ी संत हैं. उनका असली नाम अबुल हसन हैं, मगर ख़रक़ान में जन्म लेने की वजह से वे अबुल हसन ख़रक़ानी के नाम से विख्यात हुए. सुप्रसिद्ध ग्रंथकार हज़रत शेख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार के मुताबिक़ एक बार सत्संग में अबुल हसन ख़रक़ानी ने बताया कि उन्हें उस वक़्त की बातें भी याद हैं, जब वे अपनी मां के गर्भ में चार महीने के थे.अबुल हसन ख़रक़ानी एक चमत्कारी संत थे, लेकिन उन्होंने कभी लोगों को प्रभावित करने के लिए अपनी दैवीय शक्तियों...

अमृता प्रीतमअंगूरी, मेरे पड़ोसियों के पड़ोसियों के पड़ोसियों के घर, उनके बड़े ही पुराने नौकर की बिल्कुल नई बीवी है। एक तो नई इस बात से कि वह अपने पति की दूसरी बीवी है, सो उसका पति ‘दुहाजू’ हुआ। जू का मतलब अगर ‘जून’ हो तो इसका मतलब निकला ‘दूसरी जून में पड़ा चुका आदमी’, यानी दूसरे विवाह की जून में, और अंगूरी क्योंकि अभी विवाह की पहली जून में ही है, यानी पहली विवाह की जून में, इसलिए नई हुई। और दूसरे वह इस बात से भी नई है कि उसका गौना आए अभी...