तेरी यादों से टकराती हैं आंखें
तुझे न पाकर बह जाती हैं आंखें
नज़र उसकी है मुझ पे जब भी उसकी
मेरे जीवन को महकाती हैं आंखें
तेरी राहों को अकसर देखती हैं
मगर तुझको नहीं पाती हैं आंखें
गये लम्हों के गुलदस्ते सजाकर
बिन सोचे चली आती हैं आंखें
-सरफ़राज़ ख़ान
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
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*फ़िरदौस ख़ान*ज़िन्दगी का सबसे ख़ूबसूरत हिस्सा बचपन होता है. बचपन की यादें
हमारे दिलो-दिमाग़ पर नक़्श हो जाती हैं. और जब बात गर्मियों की छुट्टियों की
हो, त...