अतुल मिश्र
शराब पीना स्वास्थ्य के लिए भले ही हानिकारक हो, मगर हमारी सरकार के लिए बहुत लाभदायक है! लोग अगर वाकई शराब पीना बंद कर दें कि लो, आज से पीनी बंद, तो सरकार का तो भट्टा ही बैठ जाएगा! एक ओ़र तो शराब पीने पर इस अंदाज़ में दीवारों पर लिखी मनाही कि 'बाप शराब पियेंगे, बच्चे भूखे मरेंगे', और दूसरी ओ़र जिन गावों में बिजली-पानी तक अभी नहीं पहुंचे हैं, वहां भी सरकारी तौर पर ठेके खोल दिए गए हैं कि बेटे, जितनी पी सकते हो, पियो!
'शराब पीना एक सामाजिक अभिशाप है', जैसे नारों की मार्फ़त हर एक किलोमीटर पर सरकार की तरफ से अभिशाप भी दिया जा रहा है और बराबर में ही ठेके भी खोल दिए गए हैं! सरकार की जो नीतियाँ हैं, वो हमेशा दोगली होती हैं! एक तरफ तो वह शराब के ठेके और बार खुलबाती है कि आदमी जो है, वो नशे में धुत्त पड़ा रहे और दूसरी ओ़र जब वह सड़कों पर निकले तो उसका सारा नशा ही हिरन हो जाए कि 'जो शराब का हुआ शिकार, उसने फूंक दिया घर-बार'! अब शिकार हुआ आदमी खुद को गालियाँ दे या सरकार को, यह उसकी समझ में नहीं आता और वह सोचने के झंझट से मुक्ति पाने के लिए फिर से हट्टी या बार में चला जाता है और सरकारी नीतियाँ अपनी सफलता पर खुश होकर जश्न मनाती हैं!
एक कोई 'मद्य-निषेध विभाग' है, जो आबकारी विभाग से अलग किसी ख़ुफ़िया जगह पर मौजूद है! कहाँ मौजूद है, यह कोई नहीं जानता! हाँ, इस विभाग की ओ़र से जारी किये गए भयानक नारे ज़रूर पढ़ने को मिल जाते हैं, जिनसे यह सूचना मिलती है कि 'जो कुछ हम बिकवा रहे हैं, वह खरीदना तो है, मगर उसके अंजाम क्या होंगे यह भी पढ़ लो!' इस किस्म के नारे किसी भी शराबी को आधा तो वैसे ही मार देते हैं, रही-सही कसर सरकार द्वारा परोसी जा रही शराब पूरी कर देती है!
आंकड़े बताते हैं कि भारत-सरकार को सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा उस शराब से होता है, जो लोगों के घर-बार फूंक देती है या जो एक सामाजिक अभिशाप है! इसी से सरकार की नीयतों का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है! यह बिलकुल वैसा ही है, जैसे शराब पिलाने के बाद 'स्वास्थ्य के लिए हानिकारक' वाला मन्त्र कान में फूंक देना! किसी ने आज तक सरकारी नुमाइंदों से यह नहीं पूछा कि जब आपकी नीयत की तरह शराब भी खराब है तो उसकी जगह सिंथेटिक दूध के ही ठेके क्यों नहीं खोले जा रहे? उनसे भी तो भारी मात्रा में राजस्व अर्जित किया जा सकता है!


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