फ़िरदौस ख़ान
नई दिल्ली. भारतीय जनता पार्टी के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं. पहले उनका प्रधानमंत्री सपना चकनाचूर हो गया. फिर लोकसभा में विपक्ष के नेता का ओहदा भी उनसे छिन गया. अब बाबरी मस्जिद की शहादत के मामले में भी आ रही शहादतें सियासी हाशिये पर पड़े आडवाणी के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही हैं.
बाबरी मस्जिद शहादत के मामले में आडवाणी की सुरक्षा अधिकारी रह चुकी आईपीएस अधिकारी अंजू गुप्ता ने आज रायबरेली कोर्ट के सामने दी गई अपनी गवाही में कहा है कि वह अपने पिछले बयान पर ही अडिग रहेंगी, लेकिन जब आडवाणी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद तोड़ने के लिए आडवाणी ने ही भीड़ को उकसाया था. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आडवाणी के भाषण के बाद हालात और ज़्यादा ख़राब हो गए थे. उन्होंने यह भी कहा कि जब पहला, दूसरा और तीसरा गुंबज गिरा तो उस वक़्त उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा एक दूसरे के गले लगी थीं. इन लोगों ने आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, और एस.सी.दीक्षित को भी गले लगाकर बधाई दी थी. क़ाबिले-गौर है कि अंजू गुप्ता बाबरी मस्जिद शहादत के दौरान आडवाणी की भूमिका की गवाह हैं. साल 2005 में अंजू गुप्ता के बयान के बाद आडवाणी के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया था. हालांकि आडवाणी बाबरी मस्जिद गिराने के आरोप से मुक्त हो गए हैं, लेकिन 2005 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उनके ख़िलाफ़ लोगों को उकसाने का मामला दर्ज करने का आदेश दिया था. आडवाणी के अलावा आडवाणी बाबरी मस्जिद शहादत मामले में भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, अशोक सिंघल, उमा भारती, गिरिराज किशोर और साध्वी ऋतंभरा मुख्य आरोपी हैं.
गौरतलब है कि सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाली भाजपा बाबरी मस्जिद को मुद्दा बनाकर केंद्र में सत्ता तक पहुंची, लेकिन जिस मुद्दे को आधार बनाकर पार्टी ने केंद्र में शासन किया, बाद में वही मुद्दा उसके पतन का कारण बना. मतदाता जागरूक हुए और उन्होंने इस बात को समझा कि उनकी बुनियादी ज़रूरतें क्या हैं और सांप्रदायिकता फैलाने वाली पार्टी उन्हें क्या दे सकती है और क्या नहीं.
क़ाबिले-गौर है कि साल 1528 अयोध्या में बादशाह बाबर ने इस मस्जिद को बनवाया था. बाबर के नाम पर ही इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद पड़ा.
कुछ हिन्दुओं का मानना था कि इस जगह राम का जन्म हुआ था. मस्जिद के निर्माण के क़रीब तीन सौ साल बाद 1853 में यहां सांप्रदायिक दंगा हुआ. यह विवाद हो हल करने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने 1859 में मस्जिद के पास बाड़ लगा दी और मुसलमानों से मस्जिद के अन्दर नमाज़ पढने को कहा, जबकि बाहरी हिस्से में हिन्दुओं से पूजा-पाठ करने को कहा गया. साल 1947 में देश के बंटवारे के वक़्त माहौल काफ़ी खराब हो गया था. साल 1949 में अचानक मस्जिद में कथित तौर पर राम की मूर्तियां कथित तौर पाई गईं. माना जाता है कि कुछ हिन्दुओं ने ये मूर्तियां वहां रखवाईं थीं, क्योंकि अगर मूर्तियाँ वहां होती तो वो 1859 में जब ब्रिटिश हुकूमत ने मामले को हल करने की पहल की थी, तब भी नज़र आतीं. मुसलमानों ने इस बात का विरोध किया. उनका कहना था कि हिन्दू पहले से ही मस्जिद के बाहरी हिस्से में पूजा-पाठ करते आ रहे हैं और अब वो साजिश रचकर उनकी इबादतगाह पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं. विरोध बढ़ा और नतीजतन मामला अदालत में चला गया. इसके बाद सरकार ने बाबरी मस्जिद को विवादित स्थल घोषित करते हुए इस पर ताला लगा दिया.
इसके बाद हिन्दुत्ववादी संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर खूब सियासी रोटियां सेंकी. सबसे पहले 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया. बाद में भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी को इसका नेतृत्व सौंप दिया गया. इस मुद्दे के सहारे आडवाणी ने अपने सियासी हित साधने शुरू कर दिए.25 सितंबर 1992 को सुबह सोमनाथ के मंदिर से अपनी रथ यात्रा शुरू की, जो 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को तोड़ने के साथ ही ख़त्म हुई. इस दिन भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने देश की एक ऐतिहासिक इबादतगाह को शहीद कर दिया था. इसके बाद जिसके बाद पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे और ईन दंगों ने दो हज़ार से भी ज़्यादा लोगों की जान ले ली.
इतना कुछ होने के बाद भी हिन्दुत्ववादी संगठनों ने अपना रवैया नहीं बदला. साल 2001 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर पूरे देश में तनाव बढ़ गया और जिसके बाद विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने के अपना संकल्प दोहराया. हालांकि फ़रवरी 2002 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणा-पत्र में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल करने से इनकार कर दिया. विश्व हिंदू परिषद ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरु करने की घोषणा कर दी. सैकड़ों कार्यकर्ता अयोध्या में एकत्रित हुए. अयोध्या से लौट रहे कार्यकर्ता जिस रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे उसमें आग लगने से 58 लोग मारे गए. इसके बाद गुजरात में हिंसा भड़क उठी और एक विशेष समुदाय के लोगों को चुन-चुनकर मारा गया. इस मामले में गुजरात की भाजपा सरकार और पुलिस पर सीधे आरोप लगे हैं और मामला अदालत में है.
इसके बाद 13 मार्च, 2002 सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में अयोध्या में यथास्थिति बरक़रार रखने का आदेश देते हुए कहा कि किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहीत ज़मीन पर शिलापूजन की अनुमति नहीं दी जाएगी. दो दिन बाद 15 मार्च, 2002 को विश्व हिंदू परिषद और केंद्र सरकार के बीच इस बात को लेकर समझौता हुआ कि विहिप के नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंपेंगे. रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास और विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में लगभग आठ सौ कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारी को अखाड़े में शिलाएं सौंपीं. 22 जून, 2002 विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि के हस्तांतरण की मांग उठाकर इसे हवा दी. जनवरी 2003 में रेडियो तरंगों के ज़रिए ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष दबे हैं, कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकला. हालांकि इस मामले में कई तरह की अफवाहें फैलाई गईं. मार्च 2003 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया. अप्रैल में इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की खुदाई शुरू की, जून महीने तक खुदाई चलने के बाद आई रिपोर्ट में कोई नतीजा नहीं निकला. मई में सीबीआई ने 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के ख़िलाफ़ पूरक आरोप-पत्र दाखिल किए. जून कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की और उम्मीद जताई कि जुलाई तक अयोध्या मुद्दे का हल निकाल लिया जाएगा, लेकिन नतीजा वही 'ढाक के तीन पात' रहा. अगस्त में भाजपा नेता और उप प्रधानमंत्री ने विहिप के इस अनुरोध को ठुकराया कि राम मंदिर बनाने के लिए विशेष विधेयक लाया जाए. इसके एक साल बाद अप्रैल 2004 में आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राममंदिर में पूजा की और मंदिर निर्माण के अपने संकल्प को दोहराया. फिर जनवरी 2005 में आडवाणी को बाबरी मस्जिद की शहादत में उनकी भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया. जुलाई में पांच हथियारबंद लोगों ने विवादित परिसर पर हमला किया. जवाबी कार्रवाई में पांचों हमलावरों समेत छह लोग मारे गए. इसके कुछ दिन बाद 28 जुलाई को आडवाणी बाबरी मस्जिद की शहादत के मामले में रायबरेली की अदालत में पेश हुए. अदालत में लालकृष्ण आडवाणी के ख़िलाफ़ आरोप तय किए. इसके एक साल बाद 20 अप्रैल 2006 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने लिब्रहान आयोग के समक्ष लिखित बयान में आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था और इसमें भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल और शिव सेना के शामिल थे. जुलाई में सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ़ कांच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव रखा. 30 जून को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जांच के लिए गठित लिब्रहान आयोग ने 17 वर्षों के बाद अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी. 23 नवंबर 2009 को एक अंग्रेजी अख़बार में आयोग की रिपोर्ट लीक होने की ख़बर प्रकाशित हुई जिस पर संसद में खूब हंगामा हुआ. हालांकि बाबरी मस्जिद की शहादत को लेकर केंद्र सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठ चुके हैं.
बाबरी मस्जिद शहादत के मामले में आडवाणी की सुरक्षा अधिकारी रह चुकी आईपीएस अधिकारी अंजू गुप्ता ने आज रायबरेली कोर्ट के सामने दी गई अपनी गवाही में कहा है कि वह अपने पिछले बयान पर ही अडिग रहेंगी, लेकिन जब आडवाणी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद तोड़ने के लिए आडवाणी ने ही भीड़ को उकसाया था. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आडवाणी के भाषण के बाद हालात और ज़्यादा ख़राब हो गए थे. उन्होंने यह भी कहा कि जब पहला, दूसरा और तीसरा गुंबज गिरा तो उस वक़्त उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा एक दूसरे के गले लगी थीं. इन लोगों ने आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, और एस.सी.दीक्षित को भी गले लगाकर बधाई दी थी. क़ाबिले-गौर है कि अंजू गुप्ता बाबरी मस्जिद शहादत के दौरान आडवाणी की भूमिका की गवाह हैं. साल 2005 में अंजू गुप्ता के बयान के बाद आडवाणी के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया था. हालांकि आडवाणी बाबरी मस्जिद गिराने के आरोप से मुक्त हो गए हैं, लेकिन 2005 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उनके ख़िलाफ़ लोगों को उकसाने का मामला दर्ज करने का आदेश दिया था. आडवाणी के अलावा आडवाणी बाबरी मस्जिद शहादत मामले में भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, अशोक सिंघल, उमा भारती, गिरिराज किशोर और साध्वी ऋतंभरा मुख्य आरोपी हैं.
गौरतलब है कि सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाली भाजपा बाबरी मस्जिद को मुद्दा बनाकर केंद्र में सत्ता तक पहुंची, लेकिन जिस मुद्दे को आधार बनाकर पार्टी ने केंद्र में शासन किया, बाद में वही मुद्दा उसके पतन का कारण बना. मतदाता जागरूक हुए और उन्होंने इस बात को समझा कि उनकी बुनियादी ज़रूरतें क्या हैं और सांप्रदायिकता फैलाने वाली पार्टी उन्हें क्या दे सकती है और क्या नहीं.
क़ाबिले-गौर है कि साल 1528 अयोध्या में बादशाह बाबर ने इस मस्जिद को बनवाया था. बाबर के नाम पर ही इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद पड़ा.
कुछ हिन्दुओं का मानना था कि इस जगह राम का जन्म हुआ था. मस्जिद के निर्माण के क़रीब तीन सौ साल बाद 1853 में यहां सांप्रदायिक दंगा हुआ. यह विवाद हो हल करने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने 1859 में मस्जिद के पास बाड़ लगा दी और मुसलमानों से मस्जिद के अन्दर नमाज़ पढने को कहा, जबकि बाहरी हिस्से में हिन्दुओं से पूजा-पाठ करने को कहा गया. साल 1947 में देश के बंटवारे के वक़्त माहौल काफ़ी खराब हो गया था. साल 1949 में अचानक मस्जिद में कथित तौर पर राम की मूर्तियां कथित तौर पाई गईं. माना जाता है कि कुछ हिन्दुओं ने ये मूर्तियां वहां रखवाईं थीं, क्योंकि अगर मूर्तियाँ वहां होती तो वो 1859 में जब ब्रिटिश हुकूमत ने मामले को हल करने की पहल की थी, तब भी नज़र आतीं. मुसलमानों ने इस बात का विरोध किया. उनका कहना था कि हिन्दू पहले से ही मस्जिद के बाहरी हिस्से में पूजा-पाठ करते आ रहे हैं और अब वो साजिश रचकर उनकी इबादतगाह पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं. विरोध बढ़ा और नतीजतन मामला अदालत में चला गया. इसके बाद सरकार ने बाबरी मस्जिद को विवादित स्थल घोषित करते हुए इस पर ताला लगा दिया.
इसके बाद हिन्दुत्ववादी संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर खूब सियासी रोटियां सेंकी. सबसे पहले 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया. बाद में भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी को इसका नेतृत्व सौंप दिया गया. इस मुद्दे के सहारे आडवाणी ने अपने सियासी हित साधने शुरू कर दिए.25 सितंबर 1992 को सुबह सोमनाथ के मंदिर से अपनी रथ यात्रा शुरू की, जो 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को तोड़ने के साथ ही ख़त्म हुई. इस दिन भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने देश की एक ऐतिहासिक इबादतगाह को शहीद कर दिया था. इसके बाद जिसके बाद पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे और ईन दंगों ने दो हज़ार से भी ज़्यादा लोगों की जान ले ली.
इतना कुछ होने के बाद भी हिन्दुत्ववादी संगठनों ने अपना रवैया नहीं बदला. साल 2001 में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर पूरे देश में तनाव बढ़ गया और जिसके बाद विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने के अपना संकल्प दोहराया. हालांकि फ़रवरी 2002 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणा-पत्र में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल करने से इनकार कर दिया. विश्व हिंदू परिषद ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरु करने की घोषणा कर दी. सैकड़ों कार्यकर्ता अयोध्या में एकत्रित हुए. अयोध्या से लौट रहे कार्यकर्ता जिस रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे उसमें आग लगने से 58 लोग मारे गए. इसके बाद गुजरात में हिंसा भड़क उठी और एक विशेष समुदाय के लोगों को चुन-चुनकर मारा गया. इस मामले में गुजरात की भाजपा सरकार और पुलिस पर सीधे आरोप लगे हैं और मामला अदालत में है.
इसके बाद 13 मार्च, 2002 सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में अयोध्या में यथास्थिति बरक़रार रखने का आदेश देते हुए कहा कि किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहीत ज़मीन पर शिलापूजन की अनुमति नहीं दी जाएगी. दो दिन बाद 15 मार्च, 2002 को विश्व हिंदू परिषद और केंद्र सरकार के बीच इस बात को लेकर समझौता हुआ कि विहिप के नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंपेंगे. रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास और विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में लगभग आठ सौ कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारी को अखाड़े में शिलाएं सौंपीं. 22 जून, 2002 विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि के हस्तांतरण की मांग उठाकर इसे हवा दी. जनवरी 2003 में रेडियो तरंगों के ज़रिए ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष दबे हैं, कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकला. हालांकि इस मामले में कई तरह की अफवाहें फैलाई गईं. मार्च 2003 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया. अप्रैल में इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की खुदाई शुरू की, जून महीने तक खुदाई चलने के बाद आई रिपोर्ट में कोई नतीजा नहीं निकला. मई में सीबीआई ने 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के ख़िलाफ़ पूरक आरोप-पत्र दाखिल किए. जून कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की और उम्मीद जताई कि जुलाई तक अयोध्या मुद्दे का हल निकाल लिया जाएगा, लेकिन नतीजा वही 'ढाक के तीन पात' रहा. अगस्त में भाजपा नेता और उप प्रधानमंत्री ने विहिप के इस अनुरोध को ठुकराया कि राम मंदिर बनाने के लिए विशेष विधेयक लाया जाए. इसके एक साल बाद अप्रैल 2004 में आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राममंदिर में पूजा की और मंदिर निर्माण के अपने संकल्प को दोहराया. फिर जनवरी 2005 में आडवाणी को बाबरी मस्जिद की शहादत में उनकी भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया. जुलाई में पांच हथियारबंद लोगों ने विवादित परिसर पर हमला किया. जवाबी कार्रवाई में पांचों हमलावरों समेत छह लोग मारे गए. इसके कुछ दिन बाद 28 जुलाई को आडवाणी बाबरी मस्जिद की शहादत के मामले में रायबरेली की अदालत में पेश हुए. अदालत में लालकृष्ण आडवाणी के ख़िलाफ़ आरोप तय किए. इसके एक साल बाद 20 अप्रैल 2006 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने लिब्रहान आयोग के समक्ष लिखित बयान में आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था और इसमें भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल और शिव सेना के शामिल थे. जुलाई में सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ़ कांच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव रखा. 30 जून को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जांच के लिए गठित लिब्रहान आयोग ने 17 वर्षों के बाद अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी. 23 नवंबर 2009 को एक अंग्रेजी अख़बार में आयोग की रिपोर्ट लीक होने की ख़बर प्रकाशित हुई जिस पर संसद में खूब हंगामा हुआ. हालांकि बाबरी मस्जिद की शहादत को लेकर केंद्र सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठ चुके हैं.