चांदनी
नई दिल्ली. अगर आपको यह शक हो कि आपके खाने की वजह से बीमारी हो रही है तो इसके विकल्प को अपनाएं। बेसन या चने के आटे को गेहूं के आटे की जगह प्रयोग करना सबसे बढ़िया विकल्प हो सकता है। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल के मुताबिक जो लोग सीलिएक डिसीज से ग्रसित होते हैं और प्रोटीन को हजम नहीं कर सकते उसे ग्लूटेन कहते हैं जो जौ और गेहूं के आटे में पायी जाती है। इस ग्लूटेन से इम्यून सिस्टम प्रभावित होता है और छोटी आंत की विल्ली खराब हो जाती है, जिसकी वजह से मरीज इसके पौष्टिक तत्व को हजम नहीं कर पाता। इसका परिणाम यह होता है कि मरीज एनीमिया या वज़न में कमी अथवा थकावट महसूस करने लगता है। सीलिएक डिसीज के मरीज फैट मैलाबॉरप्शन की गिरफ्त में आ जाते हैं।
जिन लोगों में गेहूं, डर्मैटाइटिस हर्पेटीफार्मिस; कई तरह के स्लेरोसिस, आटोइम्यून डिसआर्डर, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसआर्डर, एडीएचडी और कुछ व्यवहार सम्बंधी समस्याओं से एलर्जी होती है उन्हें ग्लूटेन फ्री डायट लेने की सलाह दी जाती है। ग्लूटेन गेहूं, जौ, राई, ओट और ट्रिटिकेल में पाया जाता है। फ्लेवर, स्टब्लाइजिंग या मोटापे के लिए तैयार किये गए भोजन में भी ग्लूटेन पाया जाता है। ऐसी परिस्थितियों में चाहिए कि ग्लूटेन मुक्त भोजन लें। इसके लिए सबसे बढ़िया विकल्प गेहूं के आटे की जगह बेसन का इस्तेमाल करें।