अतुल कुमार तिवारी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि वास्तविक भारत गांवों में बसता है। सभी प्रयासों के बावजूद आजादी के छह दशक बाद भी देश के आश्चर्यजनक पहलुओं में एक है- सुविधाओं के दृष्टि से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत बड़ा अंतर । शहरी भारत और ग्रामीण भारत के बीच के इस अंतर को दूर करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाएं योजना ﴾पुरा ﴿ के माध्यम से एक और प्रयास कर रहा है।
पुरा एक केंद्रीय योजना है जिसे ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्यारहवीं योजना की शेष अवधि के लिए आर्थिक मामले विभाग के सहयोग और एशियाई विकास बैंक की तकनीकी सहायता से फिर से शुरू की है। मंत्रालय ग्राम पंचायत और निजी क्षेत्र के बीच सार्वजनिक निजी साझेदारी(पीपीपी) के माध्यम से पुरा योजना लागू कर रहा है और इसमें राज्य सरकारें सक्रिय सहयोग प्रदान कर रही हैं।
इस योजना का उद्देश्य गांवों में आर्थिक उपार्जन गतिविधियों के साथ ही समानांतर अवसरंचना विकास एवं प्रबंधन सुनिश्चित करना है तथा यह ग्रामीण क्षेत्रों में पीपीपी के माध्यम से अवसंरचना और सुविधाएं उपलब्ध कराने का पहला प्रयास है। यह ग्रामीण अवसंरचना विकास योजनाओं के कार्यान्वयन और परिसंपत्तियों के रखरखाव एवं सेवाओं की आपूर्ति में निजी क्षेत्र की कार्यकुशलता का दोहन करने के लिए बिल्कुल अलग प्रारूप है। पीपीपी के माध्यम से समेकित ग्रामीण अवसंरचना विकास का यह दुनिया में संभवत: पहला प्रयास है।
इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य जीविका का अवसर सृजित करना और ग्रामीण शहर अंतर को दूर करने के लिए शहरी सुविधाएं विकसित करना है। किसी भी छोटे क्षेत्र का समग्र विकास ग्राम पंचायत के इर्दगिर्द घूमता है और इसके तहत पीपीपी के माध्यम से जीविका के अवसर सृजित करने और ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार के लिए शहरी सुविधाएं उपलब्ध कराने पर बल दिया जाता है।
ग्राम पंचायतों और निजी क्षेत्र के बीच साझेदारी के माध्यम से पुरा का उद्देश्य हासिल किया जाना है और उसमें राज्य सरकार का सक्रिय सहयोग होगा। केंद्रीय वित्त पोषण पुरा की केंद्रीय क्षेत्र योजना से होगा तथा इसमें विभिन्न केंद्रीय योजनाओं के बीच तालमेल के माध्यम से अतिरिक्त सहयोग सुनिश्चित किया जाएगा। निजी क्षेत्र परियोजना में विशेषज्ञता प्रदान करने के अलावा निवेश भी करेंगे। यह योजना निजी क्षेत्र इस सोच के साथ लागू करेंगे और उसका प्रबंधन संभालेंगे कि यह आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक हो और साथ ही यह ग्रामीण विकास के संपूर्ण लक्ष्यों की प्राप्ति में पूरी तरह अनुकूल हों।
ग्रामीण विकास मंत्रालय की योजनाओं के तहत जल और सीवरेज निर्माण, गांव की गलियों का रखरखाव, निकासी, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, कौशल विकास और आर्थिक गतिविधियों जैसी सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएंगी। इसी प्रकार गैर ग्रामीण विकास मंत्रालय योजनाओं के तहत ग्राम स्ट्रीट लाइट, दूरसंचार, बिजली आदि सुविधाएं प्रदान की जाएंगी।
इसके अलावा गांव आधारित पर्यटन, समेकित ग्रामीण हब, ग्रामीण बाजार, कृषि साझा सेवा केंद्र, गोदाम आदि ग्रामीण अर्थव्यवस्था से संबंधी उपादानों पर ध्यान दिया जाएगा।
ऐसी उम्मीद है कि पुरा जैसी योजना, और ग्रामीण अवसंरचना से संबंधित सभी अन्य योजनाओं को 10 साल की अवधि के लिए मिला देने से अच्छा आर्थिक प्रभाव होगा तथा निजी क्षेत्र के लिए न्यूनतम विकास बाध्यता से पंचायत क्षेत्र में सेवा आपूर्ति स्तर सुधरेगा।
प्रायोगिक चरण में निजी डेवलपर को पुरा परियोजनाओं के वास्ते ग्राम पंचायतों की पहचान और चयन में लचीलापन प्रदान किया जाएगा ताकि वे शुरू में ऐसे इलाके को हाथ में लें जिससे वह परिचित हैं या जहां ग्रामीण स्तर पर काम करने का उनके पास अनुभव है। हालांकि संबंधित ग्राम पंचायतों की सहमति और राज्य सरकार का अनापत्ति प्रमाण पत्र अनिवार्य है ताकि चयन में सभी पक्षों की सहमति हो।
पुरा परियोजनाओं के लिए धन चार स्रोतों- ग्रामीण विकास मंत्रालय योजनाएं, गैर ग्रामीण विकास मंत्रालय योजनाएं, निजी वित्त पोषण, पुरा के तहत पूंजी अनुदान, से आता है। हर पुरा परियोजना लागत और उपयुक्त पूंजी अनुदान ( परियोजना लागत की 35 फीसदी﴿ का निर्धारण योजना की मूल धारणा और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के आधार पर तय होगा और इसका मूल्यांकन अंतरमंत्रालीय उच्चाधिकार समिति करेगी। ऐसी उम्मीद है कि अतिरिक्त राजस्व सृजन गतिविधि और पूंजी अनुदान सहयोग से पीपीपी माडल सफल होगा। इसके तहत विभिन्न जोखिमों का भी पता लगाया गया है। ग्रामीण विकास प्राथमिकताओं पर बल देने के अलावा आर्थिक रूप से व्यावहारिक परियोजना में डेवलपर के हितों का भी ख्याल रखा जाता है। जिस प्रकार से परियोजना का डिजायन तैयार किया गया है उससे 10 साल की परियोजना अवधि के दौरान डेवलपर को उचित लाभ मिलेगा।
प्रस्तावित प्रायोगिक परियोजना के क्रियान्वयन के माध्यम से इस योजना की अनोखी विशेषताओं का जमीनी स्तर पर परीक्षण होगा और भविष्य में इसे बड़े पैमाने पर चलाने के लिए एक सीख मिलेगी। इसके अलावा पूरी प्रक्रिया से ग्राम पंचायत की पीपीपी को हाथ में लेने की क्षमता मजबूत होगी तथा ग्रामीण अवसंरचना विकास में पीपीपी की व्यवहार्यता के परीक्षण में मदद मिलेगी। जहां तक ढाई लाख पंचायतों में पुरा परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था और प्रबंधन का सवाल है तो इसका विस्तार किया जा सकता है और पांच दस सालों के लिए यह सरकार के लिए वित्तीय रूप से व्यावहारिक है।
इस पृष्ठभूमि में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ऐसे निजी क्षेत्र सहयोगियों को ढूढ़ने का काम शुरू कर दिया है जो ग्रामीण अवसंरचना विकास में योगदान दे सकते हैं। चयन खुली प्रतिस्पर्धात्मक तकनीकी निविदा प्रक्रिया के माध्यम से किया गया और इसके लिए कठोर शर्त / मानक अपनाए गए । चूंकि यह प्रायोगिक परियोजना है अतएव वित्तीय निविदा नहीं निकाली गयी। इस प्रायोगिक परीक्षण में निविदाकर्ताओं का उसकी तकनीकी क्षमता के आधार पर मूल्यांकन किया गया और उसे पूर्व र्निर्धारित मूल्यांकन प्रविधि के आधार पर अंक दिए गए। जिन नौ कंपनियों की सूची बनायी गयी है, वे अवसंरचना क्षेत्र की कंपनियां हैं और उन्हें मजबूत ग्रामीण एवं सामुदायिक सहभागिता का अनुभव है।
पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अबुल कलाम ने स्थानीय लोगों, जनप्रशासन एवं निजी क्षेत्रों के आपसी सहयोग के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा आपूर्ति के आत्मनिर्भर और व्यावहारिक माडल के रूप में पुरा की संकल्पना व्यक्त की थी। बाद में राज्य सरकार, निजी क्षेत्र और एडीबी जैसे बहुपरक संगठनों के साथ मिलकर व्यापक विचार विमर्श एवं शोध के बाद इस योजना की रूपरेखा फिर से तय की गयी। इस वर्ष के प्रारंभ में जब पीपीपी के माध्यम से इस दिशा में कार्य शुरू किया गया है तो अभिरुचि की अभिव्यक्ति के प्रति निजी क्षेत्र ने बिना परख वाले इस जटिल क्षेत्र के लिए अप्रत्याशित उत्साह दिखाया। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने देशभर में 8-10 प्रायोगिक परियोजना चलाने का विचार व्यक्त किया। इसके लिए 95 कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई जिनमें आईडीएफसी, टाटा पावर, रिलायंस इंडस्ट्रीज, आईएलएंडएफएस, श्री इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी कुछ बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं।
यह योजना निजी क्षेत्र के जोरदार उत्साह से ग्रामीण अवसंरचना विकास के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन लाने वाली है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में पीपीपी के माध्यम से अवसंरचना एवं सुविधाएं पहुंचाने की अबतक की पहली योजना है।