सुधा एस. नंबूदिरी
भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 14 फरवरी को केरल के वल्लारपडम, कोचीन अपतट पर सबसे बडे और भारत के पहले प्रमुख वैश्विक टर्मिनल, अंतराष्ट्रीय कंटेनर पोतांतरण टर्मिनल (आईसीटीटी) को राष्ट्र को समर्पित किया। टर्मिनल की आधारशिला प्रधानमंत्री ने छह वर्ष पूर्व जनवरी 2005 में रखी थी। उम्मीद है कि सभी बुनियादी सुविधाओं सहित 3000 करोड़ रुपए से भी अधिक लागत से बने इस टर्मिनल के द्वारा भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में माल भाड़े की क़ीमत में काफी हद तक कमी आएगी
आईसीटीटी वल्लारपडम की शुरूआत से पूर्व वेम्बानाड झील के किनारे शांत वातावरण से परिपूर्ण एक छोटा सा द्वीप प्रमुख कैथोलिक तीर्थ केंद्र के रूप में प्रसिद्ध था। पुर्तगाली मिशनरियों ने 1524 में ऐतिहासिक अवर लेडी ऑफ रेनसम चर्च का निर्माण किया। कहा जाता है कि मिशनरियों को लेडी ऑफ रेनसम का एक चित्र मिला और इसके बाद उन्हें स्वपन में चर्च की स्थापना करने को कहा गया। कई चमत्कारों का संबंध इस चर्च से जोड़ा गया है। माना जाता है कि इसकी वजह से समुद्री दुर्घटनाओं से लोगों की रक्षा होती है। यह चर्च वीरापोली सूबे का एक हिस्सा है और कैथोलिक इसे बेहद पवित्र मानते हैं। 17 वीं सदी में बाढ़ की वजह से इसकी मूल इमारत नष्ट हो गई थी जिसे बाद में पुनःनिर्मित किया गया। कहा जाता है कि वर्तमान इमारत का निर्माण 1676 में हुआ पोतांतरण व्यापार में अपनी वैश्विक स्थिति के कारण यह द्वीप आज सही मायनों में  प्रसिद्ध होने जा रहा है। उच्च तकनीक कार्गो हैंडलिंग उपकरणों के साथ विशेष आर्थिक ज़ोन में संचालित होने वाला देश का यह पहला आधुनिक टर्मिनल होगा। पूर्व-पश्चिम की मुख्य वैश्विक नौवहन रेखा पर रणनितिक रूप से स्थित और 14.5 मीटर गहरे बहाव वाले स्थान के साथ कोचीन का दक्षिण भारत के प्रमुख प्रवेश द्वार के रूप में विकसित होना निश्चित है। आज देश में 45 प्रतिशत से भी अधिक जहाज़ी माल कोलम्बो दुबई और सिंगापुर के द्वारा पोतांतरित किया जाता है। वल्लारपडम नौवहन रेखाओं के ज़रिए नाविकों को सीधे तौर पर सुविधाएं उपलब्ध कराकर इस स्थिति को बदलने का भरोसा व्यक्त करता है। इससे जहाज़ियों को प्रति टी..यू. दस हज़ार रूपए बचाने में मदद मिलेगी। यह टर्मिनल आठ हज़ार टी..यू. या इससे बडे आकार वाले जहाज़ों को समायोजित कर सकेगा। आईसीटीटी सिर्फ कोचीन बंदरगाह पर अधिक माल लाने में मददगार होगा बल्कि इससे संबंधित गतिविधियों जैसे मालगोदाम ढुलाई और कोचीन में तथा इसके इर्द-गिर्द माल अग्रेषण की मांग को बढ़ावा भी देगा।
आईसीटीटी को तीन चरणों में पूरा किया जाएगा। यह टर्मिनल प्रथम चरण में 600 मीटर लंबे जहाज़ी घाट और 15 मीटर से अधिक की जलीय गहराई के साथ सालाना एक मिलियन बीस फीट के जहाज़ों (टी..यू.) को संभालने में सक्षम होगा। माल रखने के क्षेत्र और जहाज़ों के पाल समेटने के 450 प्लग प्वांइट के अतिरिक्त वर्तमान में जहाज़ी घाटों के चार क्रेन और रबड़ टायर के 11 ढ़ांचागत क्रेन है। दूसरे चरण में इस क्षमता को 1.5 मिलियन टी..यू. तक बढ़ाया जाएगा, एक बार पूरी तरह अधिकृत हो जाने के बाद इसे तीन मिलियन टी..यू. तक बढ़ाया जाएगा।
2005 में दुबई सरकार के स्वामित्व वाले अंतर्राष्ट्रीय टर्मिनल संचालकों, डीपी वर्ल्ड को बीओटी आधार पर टर्मिनल दिया गया था लेकिन इलाके की समायोजकता बढ़ाने के लिए सड़क रेल और अन्य आधारभूत सुविधाओं को विकसित करने का दायित्व कोचीन बंदरगाह का था। तलमार्जन की लागत सहित, 1,700 करोड़ रूपए से अधिक की राशि सीपीटी द्वारा व्यय की गई और डीपी वर्ल्ड ने इस परियोजना में 1,600 करोड़ रूपए से अधिक का निवेश किया। कोचीन बंदरगाह न्यास के साथ डीपी वर्ल्ड राजस्व का 33.3 प्रतिशत हिस्सा बांटेगी। डीपी वर्ल्ड जो कि पहले से ही देश में पांच टर्मिनलों का संचालन कर रहा है, उसके कारोबार को बढ़ावा देने में वल्लारपडम की अहम भूमिका होगी। इससे इस समूह का अखिल भारतीय व्यापार 42 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत तक हो जाएगा। यह पश्चिम बंगाल में कुल्पी पर एक और टर्मिनल का विकास कर रहा है।
कोचीन में वल्लारपडम रेलवे लिंक भारत का सबसे लंबा रेल पुल है। 4.62 कि.मी. का यह रेल पुल, आईसीटीटी को कोचीन शहर के एक उपनगर इडापल्ली से जोड़ने वाले 8.86 कि.मी. लंबे रेल गलियारे का हिस्सा है। बिहार में सोन नदी पर बना, 3.065 कि.मी. लंबाई वाला नेहरू सेतु जो कि देश का दूसरा सबसे लंबा पुल है, को यह पुल पीछे छोड़ देता है। 4.62 कि.मी. लंबाई वाले देश के इस सबसे लंबे पुल का निर्माण दो वर्ष की अवधि में किया गया जो कि प्रति माह 190 मीटर और प्रति दिन 6.3 मीटर पुल निर्माण के बराबर है। यह एक आश्चर्यजनक आंकड़ा है, इस तथ्य के मद्देनज़र कि पुल का 80 प्रतिशत निर्माण अप्रवाही जल में किया गया है। 133 स्थानों पर पुल का निर्माण स्तंभों पर किया गया है। 20 मीटर के 33 मेहराबों और 40 मीटर के 99 मेहराबों सहित  पुल में कुल 132 मेहराब हैं। 220 टन वजनी कुल 231 शहतीरों को वल्लारपडम में ढाला गया जिसे मोटरीकृत ट्रॉलियों के जरिए नियत स्थल तक पहुंचाया गया और चीन से आयातित पूर्णतः स्वतः संचालित मशीन के द्वारा सही स्थिति में लगाया गया। यह इसके महत्व को दर्शाता है क्योंकि पुल का अधिकांश भाग अप्रवाही जल पर है। पुल के ऊपर पटरी बिछाने के लिए नवीनतम ढांचों वाले कंक्रीट आधुनिकतम रेल कसावों और ठोस रेलों का उपयोग किया जाएगा। पुल के निर्माण में 18000 टन इस्पात, 500000 टन सीमेंट का प्रयोग हुआ और भविष्य में ट्रैक निर्माण को ध्यान रखने सहित पुल के निर्माण में आधारशिला के लिए कुल 64000 स्तंभों का इस्तेमाल हुआ। रेल विकास निगम की निगरानी में प्रतिदिन लगभग 700 कामगरों और 50 इंजीनियरों के सामूहिक प्रयास ने इसे हकीकत का रूप दिया।
आईसीटीटी के संचालकों को अधिकृत करने में रेल लिंक परियोजना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि टर्मिनल से माल लाने ले-जाने के लिए इसका प्रयोग अनन्य रूप से किया जाएगा। इस मार्ग पर 31 मार्च, 2010 को सफल परीक्षण किया गया था। रेलवे लाइन और इससे संबंधित अन्य बुनियादी निर्माणों पर 350 करोड़ रूपयों की लागत आई जिसका पूर्ण वहन केंद्र सरकार ने शिपिंग मंत्रालय के माध्यम से किया। रेलवे लाइन परियोजना के लिए भारतीय रेलवे का सार्वजनिक उपक्रम रेल विकास निगम (आरवीएनएल), आसामी था।
वल्लारपडम द्वीप जहाँ अंतराष्ट्रीय कंटेनर पोतांतरण टर्मिनल स्थित है को खाड़ी के साथ पुल निर्माण के जरिए मुख्य भूमि से जोड़ा गया है। इसके लिए वाइपीन द्वीप को वल्लारपडम के साथ, वल्लारपडम को बोलघाटी द्वीप के साथ और बोलघाटी द्वीप को एर्नाकुलम शहर के साथ, पुल निर्माण के जरिए, गोश्री द्वीप विकास प्राधिकरण ने जोड़ा है। वल्लारपडम में नए आईसीटीटी के क्रियान्वयन के साथ ही इस मार्ग पर वाहनों की तीव्रता काफी बढ़ जाएगी परिणामतः यातायात लगातार बाधित होगा इसलिए एनएच-47 और एनएच -17 के साथ वल्लारपडम को जोड़ने के लिए इस परियोजना के गलियारे के निर्माण का विकल्प प्रस्तावित किया गया है। वल्लारपडम टर्मिनल पर कलामसेरी से वल्लारपडम तक चार लेन की सड़क और 17.2 कि.मी. की लंबाई के पुल के साथ नई एनएच समायोजकता का निष्पादन एनएचएआई के द्वारा किया जा रहा है। अनुमानित लागत 872 करोड़ रुपए है। इस समायोजकता के अंतर्गत विविध द्वीपों को जोड़ने के लिए एनएच-47 पर एक फ्लाई-ओवर, 11 मुख्य पुल और अप्रवाही जल में एक छोटे पुल का निर्माण शामिल है। कोचीन पत्तन न्यास को अप्रवाही जल में 6.70 कि.मी. जमीन के निकर्षण और तटबंध बनाने का काम सौंपा गया था जिसे उसने अगस्त 2009 में पूरा कर लिया था। दो लेनों की समायोजकता का काम अक्टूबर 2010 में पूरा कर लिया गया था और अन्य दो लेनों का कार्य प्रगति पर है। परियोजना पूरा होने की अंतिम तारीख 31 दिसंबर, 2013 के रुप में लक्षित की गई है।
कोचीन के इतिहास में आईसीटीटी ने एक नए युग की शुरुआत की है और कोचीन तथा समस्त रूप से केरल में यह कई अन्य कामयाबियां लाएगा। 1600 करोड़ रुपए के एलएनजी टर्मिनल, 1,510 करोड पत्तन आधारित विशेष आर्थिक ज़ोन, 315 करोड़ रुपए का अंतर्राष्ट्रीय जहाज़ मरम्मत परिसर, कोच्चि रिफाइनरी लिमिटेड के लिए 720 करोड़ रुपए का एकल तरेरी नौबंध, भारतीय गैस प्राधिकरण के लिए 7000 करोड़ रुपए का पेट्रो रसायन परिसर, कार्गो टर्मिनल पर्यटन जहाज़ टर्मिनल और एक अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह सहित अनेक महत्वपूर्ण श्रृंखलाओं की शुरुआत इस परियोजना के जरिए हुई है।
डॉ. एन रामचंद्रन के लिए यह सपने का सच होना है। 2005 में जब वो अध्यक्ष के तौर पर कोचीन बंदरगाह से जुड़े उस समय वल्लारपडम कंटेनर परियोजना काग़ज़ों में ही थी। वो स्वीकार करते हैं कि मंज़ूरियां लेने, स्वीकृतियां प्राप्त करने, धन जुटाने, भूमि अधिग्रहण वगैरह में परेशानियां पेश आई लेकिन कुल मिलाकर सारा अनुभव अच्छा रहा। उनके योगदान को स्वीकार करते हुए उनका कार्यकाल बढ़ाया गया ताकि वो इस अवसर के गवाह बन सकें। छह वर्षो के बाद यह टर्मिनल आज एक सच्चाई है।

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