फ़िरदौस ख़ान
दुनिया की तमाम सभ्यताएं नदियों के किनारे ही परवान चढ़ी हैं, क्योंकि पानी के बिना ज़िंदगी का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता. हिंदुस्तान में भी नदियों के किनारे बस्तियां बसीं और कई सभ्यताएं फली-फूलीं. ख़ास बात तो यह है कि यहां के बाशिंदों ने नदियों को देवी मानकर उनकी पूजा तक की. इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगम पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है. इस साल का कुंभ बहुत अहम रहा है. ज्योतिष के मुताबिक़, 535 साल बाद ग्रहों के अति कल्याणकारी योग बने हैं. बदलती राशियों ने अमृत की बूंदें बढ़ा दी हैं, जिससे गंगा का पानी कई सौ गुना पवित्र हो गया है. वैज्ञानिकों का मानना यह भी है कि कुंभ और बृहस्पति के योग से धरती का जल पहले के मुक़ाबले ज़्यादा सा़फ हो गया है.  भारतीय संस्कृति में आस्था का पर्व महाकुंभ हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि समूची दुनिया में मशहूर है. पूरी दुनिया से लोग इलाहाबाद पहुंचते हैं और पावन गंगा में स्नान करके मोक्ष की कामना करते हैं. हाल में हिन्द पॉकेट बुक्स ने महाकुंभ से संबंधित एक किताब प्रकाशित की है, जिसका नाम है महाकुंभ. इस किताब की ख़ास बात यह है कि इसमें तस्वीरों से महाकुंभ के हर पहलू पर रोशनी डाली गई है. कुंभ को लेकर तीन कथाएं कही जाती हैं. पहली कथा इंद्र से संबंधित है, जिसमें दुर्वासा द्वारा दी गई दिव्य माला का अपमान हुआ. इंद्र ने उस माला को ऐरावत के मस्तक पर रख दिया और ऐरावत ने उसे नीचे पैरों से कुचल दिया. इस पर दुर्वासा ने इंद्र को शाप दिया. इस शाप की वजह से पूरी दुनिया में हाहाकार मच गया. नारायण की कृपा से समुद्र मंथन की प्रक्रिया द्वारा लक्ष्मी प्रकट हुईं और उन्होंने जनता के कष्ट दूर करे. अमृतपान से वंचित असुरों ने कुंभ को नागलोक में छिपा दिया, जहां से गरूड़ ने उसका उद्धार किया और उसी संदर्भ में क्षीरसागर तक पहुंचने से पहले जिन स्थानों पर उन्होंने कलश रखा, वे कुंभ स्थलों के रूप में प्रसिद्ध हुए. दूसरी कथा प्रजापति कश्यप की दो पत्नियों के सौतियाडाह से संबंधित है. विवाद इस बात पर हुआ था कि सूर्य के केश काले हैं या सफ़ेद. जिसकी बात झूठी निकलेगी, वही दासी बन जाएगी. कद्रू के पुत्र थे नागराज वासुकि और विनता के पुत्र थे वैनतेय गरु़ड. कद्रू ने अपने नागवंशों को प्रेरित करके उनके कालेपन से सूर्य के अश्वों को ढक दिया. नतीजतन, विनता हार गई. ख़ुद को दासता से छुड़ाने के लिए उसने अपने पुत्र गरूड़ से कहा. कद्रू ने शर्त रखी कि नागलोक से वासुकि-रक्षित अमृत-कुंभ जब भी कोई ला देगा, तो मैं उसे दासत्व से मुक्त कर दूंगी. गरूड़ अमृत कलश लेकर भू-लोक होते हुए अपने पिता कश्यप मुनि के उत्तराखंड में गंधमादन पर्वत पर स्थित आश्रम के लिए चल पड़े. उधर, वासुकि ने इंद्र को सूचना दे दी.

इंद्र ने गरूड़ पर चार बार हमला किया और चारों प्रसिद्ध स्थानों पर कुंभ का अमृत छलका, जिससे कुंभ पर्व की धारणा पैदा हुई. अमृत-मंथन की उस कथा को अधिक महत्व दिया जाता है, जिसमें ख़ुद विष्णु मोहिनी रूप धारण करके असुरों को छल से पराजित करते हैं. यह कथा अनेक ग्रंथों में मिलती है. हरिद्वार, तीर्थराज प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चार प्रमुख स्थलों पर अमृत-कलश से छलकी हुई बूंदों के कारण कुंभ जैसे महापर्व को मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई. अमृत-कलश की रक्षा में संलग्न चंद्रमा ने अमृत को गिरने से बचाया, सूर्य ने घ़डे को टूटने से, बृहस्पति ने दैत्यों द्वारा छीने जाने से और शनि ने कहीं जयंत अकेले ही संपूर्ण अमृत पान न कर ले, इस तरह से उस कुंभ की रक्षा की. इन्हीं ग्रहों के परस्पर संयोग होने पर कुंभ पर्व का योग अलग-अलग स्थलों पर हुआ करता है. हरिद्वार में कुंभ राशि का बृहस्पति हो, और मेष में सूर्य संक्रांति हो, तो कुंभ का महापर्व हुआ करता है. भारतीय ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को ज्ञान का, सूर्य को आत्मा का और चंद्रमा को मन का प्रतीक माना गया है. मन, आत्मा और ज्ञान इन तीनों की अनुकूल स्थिति वस्तुत: लौकिक और परालौकिक दोनों दृष्टियों से महत्व रखती है. चारों स्थलों पर लगने वाले कुंभ की तिथि इन विशिष्ट ग्रहों सूर्य, चंद्र और बृहस्पति की स्थिति विशेष होने पर ही संभव होती है. भारतीय संस्कृति में कुंभ सृष्टि का प्रतीक माना गया है. बहरहाल, यह किताब बेहद प्रासंगिक और उपयोगी है, क्योंकि इसमें कुंभ के पौराणिक महत्व सहित इससे जुड़ी हर छोटी-ब़डी जानकारी दी गई है. इसमें कोई दो राय नहीं कि यह महाकुंभ पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है.

समीक्ष्य कृति : महाकुंभ
लेखक: तेजपाल सिंह धामा
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स
क़ीमत : 100 रुपये

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