फ़िरदौस ख़ान
भारत एक कृषि प्रधान देश है. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. प्राकृतिक संसाधनों ख़ासकर भूमि की सीमित उपलब्धरता का देखते हुए सतत् कृषि विकास सुनिश्चित करने की ज़रूरत है. मिट्टी, पानी और उर्वरक कृषि के आधार तत्व हैं और भरपूर उत्पादन के लिए उपजाऊ मिट्टी, पर्याप्त सिंचाई जल और उर्वरकों की ज़रूरत होती है.  इनके बिना कृषि का समग्र विकास मुमकिन नहीं है. इसलिए कृषि और खाद्य प्रसंस्कचरण उद्योग मंत्री शरद पवार भी कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए कृषि के हर पहलू पर ध्यान देते हैं, वह चाहे मिट्टी, पानी, उर्वरक से जुड़ा हो या फिर बाज़ार से संबंधित हो. उनका कहना है कि हमारे किसानों के सामने एक अरब आबादी का पेट भरने का महान उद्देश्यक है. खेती योग्य  भूमि का लगातार छोटा होना, प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण और जलवायु परिवर्तन की उभरती चिंताओं के बीच कृषि उत्पािदन बढ़ाना अपने-आप में एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में मिट्टी की उर्वरता और पोषण प्रबंधन को उच्चच प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि यही तो कृषि का आधार है. मिट्टी की उर्वरता कृषि की उत्पाधदकता को सुनिश्चित करने के लिए काफ़ी महत्वापूर्ण है, जबकि पिछले कई वर्षों से इसमें गिरावट आई है. मिट्टी की जांच के आधार पर मिट्टी और फ़सल विशेष के लिए बहुपोषक तत्वोंह का इस्ते माल करना करना चाहिए. इसके अलावा कम्पोरस्टस खाद, फ़सल के अवशेषों, जैविक कम्पोकस्टी, जैविक उर्वरकों, हरित खाद आदि जैसे जैविक पोषक स्रोत भी पर्यावरण अनुकूल कृषि को लागू करने में महत्वषपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. सरकार द्वारा पूर्वी भारत और वर्षा प्रभावित कृषि के लिए उत्पाकदकता बढ़ाने के लिए की गई क़वायद का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पूर्वी भारत में हरित क्रांति योजना (बीजीआरईआई) का मक़सद चावल आधारित फ़सल प्रणाली की उत्पानदकता में सुधार लाना है, वहीं वर्षा प्रभावित क्षेत्र विकास कार्यक्रम (आरएडीपी) इन क्षेत्रों में समन्वित कृषि के माध्यंम से खाद्य और आजीविका सुरक्षा बढ़ाने पर ज़ोर देता है. इसी तरह राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) कृषि और संबंधित क्षेत्रों तथा राज्योंा में विकास कार्यक्रमों और बुनियादी निवेश के क्षेत्र में वित्त पोषण के लिए बेहद ज़रूरी है. उन्होंंने कहा कि बारहवीं पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र के आधारभूत विकास पर और भी ज़्यादा ज़ोर दिया जाएगा.

मिट्टी के बाद बारी आती है पानी की. फ़सलों के लहलहाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी की ज़रूरत होती है. सिंचाई जल का ज़िक्र करते हुए शरद पवार कहते हैं कि जब तक किसानों को समय पर पर्याप्तप मात्रा में पानी मुहैया कराने की चुनौती से नहीं निपटा जाता, तब तक कृषि उत्पाीदन और उत्पाह‍दकता में बढ़ौतरी की उम्मी द नहीं की जा सकती. उपलब्ध  पानी की हर बूंद को बचाने के लिए तुरंत योजनाएं और मिशन बनाने की ज़रूरत है.  कुछ दशक पहले तक हमारी कृषि उत्पा्दन नीति का मुख्यक उद्देश्यत अनाज उत्पािदन में देश को आत्महनिर्भर बनाना था. वह मक़सद उम्मीद से ज़्यादा हासिल कर लिया गया है और गेंहू, चावल, कपास, गन्ना  और फलों आदि के उत्पाशदन में देश को काफ़ी कामयाबी मिली है. पिछ्ले साल देश से कृषि उपज का निर्यात 37 अरब अमरीकी डॉलर के रिकॊर्ड स्तंर तक पहुंच गया है, जिसमें विभिन्न  प्रकार की फ़सलें शामिल हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में हमारी जल उपलब्ध ता का स्त्र चिंताजनक सीमा तक नीचे पहुंच गया है, जिसका असर भविष्यं में हमारे कृषि उत्पा दनों पर पड़ सकता है. इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन, ग्लोजबल वार्मिंग और मानसून के बदलते स्वसरूप की भी समस्याउएं है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि हम पानी की हर बूंद का किस तरह से बेहतर इस्तेसमाल करें. उन्होंने कहा कि सूक्ष्मी सिंचाई प्रणाली को कामयाब बनाने के लिए आवश्यरक प्रौद्योगिकी, संस्था्गत मज़बूती और किसानों के सहयोग की ज़रूरत है. जहां तक प्रौद्योगिकी की बात है, अनुसंधान और विकास के परिणामस्वज़रूप भारतीय कंपनियों ने देश में ही ऐसी तकनीकों का विकास कर लिया है, जिनकी सहायता से प्रति हेक्टेीयर लागत को कम किया जा सकता है. देश में सूक्ष्म  सिंचाई प्रणाली के लिए भारतीय कंपनियां न केवल देश के किसानों के लिए, बल्कि विदेशों को भी अपने उत्पामद और सेवाएं उपलब्ध  करा रही हैं. पिछले कुछ वर्षों में इनके लिए घरेलू बाज़ार 3500 करोड़ रुपये वार्षिक तक पहुंच गया है और लगातार बढ़ रहा है. हमारी कंपनियों को अफ़्रीका और पश्चिम एशिया में अनुबंध प्राप्तर करने में कामयाबी मिली है. जहां तक संस्थाकगत मज़बूती की बात है, 2010-11 में केंद्र प्रायोजित योजना राष्ट्री य सूक्ष्म  सिंचाई मिशन की शुरुआत के बाद स्थिति काफ़ी अनुकूल हुई है. राज्य0 और ज़िला सूक्ष्मे और सिंचाई समितियां बनाई गई हैं और ज़िला पंचायतों से भी सहयोग लिया जा रहा है. राष्ट्री य बाग़वानी मिशन की ओर से भी सहायता उपलब्ध  कराई जा रही है. तीसरा पहलू किसानों के सहयोग का है और किसान नई तकनीकें अपनाने के लिए तैयार हैं. तक़रीबन सभी मंत्रियों ने सूक्ष्मा सिंचाई के तहत अपने राज्यि के लिए आबंटन बढ़ाने का आग्रह किया है. किसान अब केवल बाग़वानी के लिए ही नहीं, अन्य  फ़सलों में भी सूक्ष्मि सिंचाई की प्रणाली शुरू करना चाहते हैं. प्रयोगों से पता चला है कि सूक्ष्म  सिंचाई से न केवल उत्पायदन बढ़ता है, बल्कि पानी और खाद पर भी कम ख़र्च होता है, जिससे किसानों का मुनाफ़ा बढ़ता है. यह स्थिति लघु सिंचाई उद्योगों के लिए बहुत अच्छाऔ अवसर है कि वे कमान क्षेत्रों में सूक्ष्मम सिंचाई के लिए प्रस्ताउवित सरकारी-निजी क्षेत्र की व्यचवस्थार में सक्रिय रूप से भाग लेने के साथ-साथ किसानों को बेहतर सेवाएं उपलब्धे कराएं.

शरद पवार कृषि क्षेत्र के विकास के लिए कृषि को और ज़्यादा प्रतिस्पर्धी, प्रभावकारी, लाभकारी बनाने और जलवायु परिवर्तन के प्रति इसकी कमज़ोरी दूर करने के लिए तंत्र विकसित करने पर ज़ोर देते हैं. उनका कहना है कि भारतीय किसानों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को इन मुद्दों को पूरी तरह हल करना होगा और इसे लागू करने की क्षमता को बढ़ाने के लिए रणनीतियां विकसित करनी होंगी.  वैसे, पहले ही भारत ने जलवायु की प्रतिकूलताओं से निपटने के लिए क्षमता निर्माण कर लिया था, जैसे सूखे की स्थिति से निपटने के लिए खाद्यान्न का भंडार रखना, सिंचाई सुविधा को सशक्त बनाना और कृषि बीमा योजना तैयार करना आदि. अब हमारे लिए इन उपायों पर और ज़्यादा ज़ोर देने की ज़रूरत है. कृषि के विकास के लिए आधुनिक तकनीक अपनाए जाने की भी ज़रूरत है. उन्होंने कृषि क्षेत्र में एक व्याीपक तकनीकी तेज़ी लाने का आह्वान करते हुए कहा कि कृषि रणनीति के लिए एक व्यारपक तकनीकी तेज़ी लाने की ज़रूरत है. साथ ही विश्वआविद्यालयों को समुचित फंड और स्टॉषफ उपलब्ध  कराना होगा, जिससे वे कृषि की गुणवत्ता में सुधार ला सकें. कृषि शोध और शिक्षा में निवेश के स्तंर में बढ़ोतरी लाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी अनिवार्य है. छात्रों को कृषि को एक पेशे की तरह अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा. इस काम में कृषि विश्व विद्यालयों और महाविद्यालयों का व्यातपक नेटवर्क छात्रों में आत्मतविश्वाास और क्षमताओं के विकास में एक नेतृत्व कारी भूमिका अदा कर सकता है. इससे कृषि को फ़ायदा होगा. शोध की कामयाबी हमारे उत्पांदन के आंकड़ों में दिखती है. कृषि और इससे संबंधित क्षेत्र में ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में दसवीं योजना के 2.4 फ़ीसद  के मुक़ाबले 3.7 फ़ीसद की उल्लेाखनीय बढ़ोतरी देखी गई है. वनक्षेत्र का विकास इससे अलग है, जिसे शामिल करने पर यह बढ़ोतरी 3.8 फ़ीसद होती, जो अपने लक्ष्यह 4 फ़ीसद के काफ़ी क़रीब है.

कृषि मज़दूरों की कमी के बारे में उनका है कि सरकार कृषि प्रणाली पर ज़ोर देते हुए छोटे और सीमांत किसानों की समस्यारओं पर ध्याेन केंद्रित कर रही है. उनका मंत्रालय बारहवीं योजना के दौरान कृषि प्रणाली के लिए एक बड़े कार्यक्रम का प्रस्ताधव कर रहा है, जिसमें सीधे तौर पर कृषि उत्पा दकता को बढ़ाने के लिए महात्माण गांधी राष्ट्री य ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम का इस्तेजमाल करने की कोशिश की जाएगी.

ग़ौरतलब है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष शरद पवार का जन्म 12 दिसंबर, 1940 को महाराष्ट्र के पुणे के गांव बारामती में हुआ था. उनका नाम शरतचंद्र गोविंदाराव पवार है, लेकिन वह शरद पवार के नाम से जाने जाते हैं. वह महाराष्ट्र के क़द्दावर नेता हैं. वह  भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं. उनके छह भाई और चार बहनें हैं. वह अपने माता-पिता की ग्यारहवीं संतान हैं. उनके पिता गोविंद राव पवार बारामती किसान सहकारी बैंक में काम करते थे और मां गांव से दूर एक पारिवारिक फार्म में काम करती थीं. शरद पवार पढ़ाई में औसत थे. उनके भाई- बहन शिक्षा प्राप्त हैं. शरद पवार ने ब्रिहन महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ कॉमर्स से पढ़ाई की. पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने राजनीति में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी. उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत साल 1956 में गोवा की स्वाधीनता के लिए चलाए जा रहे आंदोलन से हुई. उन्होंने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर शिरकत की थी. साल 1967 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर बारामती निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. मगर वह ज़्यादा वक़्त तक कांग्रेस में नहीं रहे. आपातकाल की वजह से हर तरफ़ कांग्रेस और इंदिरा गांधी का विरोध हो रहा था. ऐसे में 1978 में शरद पवार ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया. इसके बाद उन्होंने जनता पार्टी के साथ मिलकर प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से एक अलग पार्टी बनाई. लेकिन वह इस पार्टी में भी ज़्यादा वक़्त तक नहीं रह पाए. जब 1980 में इंदिरा गांधी सत्ता में आईं, तो फ़रवरी 1980 में शरद पवार ने यह पार्टी छोड़ दी. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जीत हासिल हुई और एके अंतुले मुख्यमंत्री बने. 1981 में शरद पवार कांग्रेस प्रेसीडेंसी पद संभाला. इसके बाद 1984 में उन्होंने बारामती लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. अगले ही साल उन्होंने बारामती निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ा. वह चुनाव जीते और फिर विधानसभा में विपक्ष के नेता चुने गए. 1996 में उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा, जीत हासिल की और फिर राष्ट्रीय राज्नीति में ही आगे बढ़ गए. एक बार फिर शरद पवार का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और 25 मई, 1999 को उन्होंने पीए संगमा और तारिक़ अनवर के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की. उनकी पार्टी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिरकत की. लेकिन किसी भी राज्नीतिक दल को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ. नतीजतन, शरद पवार की नई पार्टी को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करना पड़ा. विलासराव देशमुख को मुख्यमंत्री और छगन भुजबल को उपमुख्यमंत्री बनाया गया. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद शरद पवार कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार में कृषि मंत्री बने.  अगले ही साल 29 नवंबर, 2005 को वह भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष भी चुने गए. फिर 2009 में उन्हें कृषि और उपभोक्ता मामलों के साथ-साथ खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण का केंद्रीय मंत्री बनाया गया. इसके बाद 2010 में वह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष नियुक्त किए गए.

हालांकि उन पर कई तरह के आरोप भी लगे और उन्होंने अपने ब्लॉग के ज़रिये उनका जवाब भी दिया. बहरहाल, शरद पवार कृषि के समग्र विकास और खाद्यान्न के भरपूर उत्पादन पर ज़ोर दे रहे हैं, ताकि खाद्य सुरक्षा क़ानून को बेहतर तरीक़े से कार्यान्वित किया जा सके. उनका कहना है कि देश में खाद्य और पौष्टिक सुरक्षा सुनिश्चित करने का एकमात्र दीर्घकालिक समाधान कृषि क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाना है, ताकि प्रत्येक नागरिक को पौष्टिक ख़ुराक उपलब्ध की जा सके. देश में तेज़ी से हुए औद्योगिकीकरण और शहरीकरण ने अनाज की पैदावार के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधन जैसे ज़मीन और पानी की उपलब्धता कम कर दी है. इस वजह से यह ज़रूरी हो गया है कि देश में लगातार बढ़ती हुई आबादी के लिए अनाज की सतत् उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कुशल और कारगर नीतियां अपनाई जाएं. खाद्य प्रणालियों का टिकाऊपन सुनिश्चित करते समय हमें न केवल अपनी मौजूदा आबादी के लिए पौष्टिक अनाज पैदा करना है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए क्षमता भी बनाए रखनी है. टिकाऊ खाद्य प्रणालियों के लिए खाद्य उत्पादकों के साथ-साथ खाद्य उपभोक्ताओं से प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, ताकि प्रत्येक स्तर पर पानी की प्रत्येक बूंद, जमीन के प्रत्येक इंच, उर्वरक के प्रत्येक दाने और मज़दूरों के समय का सर्वाधिक लाभ उठाने के लिए संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा सके. टिकाऊपन व्यर्थ के पदार्थों को बहुमूल्य उर्वरक अथवा ऊर्जा के रूप में बदलकर और अनाज के नुक़सान तथा बर्बादी को कम से कम रखकर सुधारा जा सकता है. भारत में टिकाऊ कृषि विकास और खाद्य सुरक्षा का भविष्य बहुत हद तक छोटे और मझौले किसानों के निष्पादन पर निर्भर करता है. सरकार ने इन किसानों और अन्य लाभार्थियों विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को ध्यान में रखते हुए कई क़दम उठाए हैं. वह कहते हैं कि आओ हम सब उपलब्ध सीमित संसाधनों का सर्वाधिक उपयोग करने का संकल्प लें, ताकि देश में कुपोषण और भूख का पूर्ण उन्मूलन सुनिश्चित किया जा सके.


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