डॉ. के परमेश्‍वरन
पाम ऑयल एक संतुलित वनस्‍पति तेल और ऊर्जा स्रोत है। इससे भी ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण बात यह है कि यह एक कोलस्‍टरोल मुक्‍त होता है और ट्रांस फेटी एसिड मुक्‍त तेल है। इसके अलावा इस तेल में कैरोटिनोइड होते हैं, जो विटामिन ए के मुख्‍य स्रोत हैं। इस तेल में विटामिन ई भी पाया जाता है।

पाम ऑयल का रसोई में खूब इस्‍तेमाल होता है क्‍योंकि यह सस्‍ता पड़ता है। यह ओलियो कैमिकल्‍स बनाने के लिए कच्‍चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है जो साबुन, मोमबत्‍ती और प्‍लास्टिक की चीजे बनाने के काम आता है।

पाम (ताड़) वृक्ष का उदभव पश्चिम अफ्रीका में हुआ था। इसका बीज खाद्य तेल निकालने के काम आता है और इसकी फसल बारहमासी होती है। इससे दो चीजें खासतौर से पैदा होती हैं-पाम ऑयल और पाम की गूदी का तेल जो भोजन बनाने और उद्योगों में काम आता है। यह तेल ताड़ के फल से मिलता है, जिसमें 45-55 प्रतिशत तक तेल होता है।
वर्तमान परिदृश्‍य
वर्तमान परिदृश्‍य में पाम ऑयल की खेती पर बहुत जोर दिया जा रहा है। भारत यह फल पैदा और खपत करने वाला प्रमुख देश है और दुनिया में पैदा होने वाले वनस्‍पति तेलों का 6-7 प्रतिशत भारत में पैदा होता है, जहां तिलहनों के 12-15 प्रतिशत तक के रकबे पर ताड़ की खेती होती है। हर साल देश में लगभग 27.00 मिलियन टन तिलहन पैदा होता है और घरेलू मांग पूरी करने के लिए यह काफी नहीं होता।
तिलहनों की घरेलू पैदावार लगभग स्थिर रही है और हाल के वर्षों में खाद्य तेलों के लिए आयात पर हमारी निर्भरता बढ़ गई है। इस समय देश में जरूरत के 50 प्रतिशत खाद्य तेलों का ही उत्‍पादन होता है। अर्थव्‍यवस्‍था की प्रगति के कारण देश में खाद्य तेलों की प्रति व्‍यक्ति खपत और आयात पर निर्भरता बढ़ने की संभावना है।
पैदावार बढ़ाने का कार्यक्रम
उक्‍त बातों को देखते हुए 1991-1992 में ऑयल पाम डेवलेपमेंट प्रोग्राम (ओपीडीपी) शुरू किया गया। यह कार्यक्रम तिलहनों और दालों से संबंधित टेक्‍नालोजी मिशन का एक भाग था। इस कार्यक्रम का ज्‍यादा जोर आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओड़ीशा, गुजरात और गोवा पर है। 2004-05 से आगे यह कार्यक्रम तिलहनों और दालों और आयल पाम तथा मक्‍का के बारे में एकीकृत योजना के एक भाग के रूप में कार्यान्वित किया जा रहा है और 12 राज्‍यों में पाम आयल की खेती को प्रोत्‍साहित किया जा रहा है। इन राज्‍यों में तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
तमिलनाडु में तेल के लिए ताड़ की खेती त्रिची, करूर, नागपट्टिनम, पेरमबूर, तनजाउर, तेनी, तिरूवल्‍लूर और तूतीकोरिन में की जाती है।
ताड़ की खेती के रकबे में वृद्धि
राष्‍ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत तेल के लिए ताड़ की खेती का रकबा बढ़ाने के लिए एक विशेष कार्यक्रम लागू किया जा रहा है, ताकि अगले पांच वर्षों में इसकी पैदावार में 2.5 से 3.00 लाख टन तक की वृद्धि की जा सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रस्‍ताव है कि तमिलनाडु में ताड़ की खेती के रकबे में लगभग 700 एकड़ की वृद्धि की जाए। इस कार्यक्रम पर लगभग 4.2 करोड़ रूपये का परिव्‍यय का अनुमान लगाया गया है।
राष्‍ट्रीय स्‍तर पर प्रस्‍ताव है कि तेल के लिए ताड़ की खेती का रकबा बढ़ाकर ओपीएई कार्यक्रम के अंतर्गत 60,000 हेक्टेयर कर दिया जाए। ये भी फैसला किया गया है कि ताड़ की खेती का रकबा वर्तमान मिलों के आसपास बढ़ाया जाए ताकि आर्थिक दृष्टि से यह कार्यक्रम सक्षम बना रहे। 


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