फ़िरदौस ख़ान
बढ़ती आबादी की वजह से कृषि भूमि लगातार कम हो रही है. ऐसे में जहां खाद्यान्न संकट का ख़तरा पैदा हो गया है, वहीं खेत छोटे होने से किसानों का गुज़ारा भी मुश्किल होता जा रहा है. ऐसे में मछली पालन व्यवसाय एक बेहतर विकल्प के तौर पर उभरा है. ये आमदनी का अच्छा साधन है. देश के विभिन्न प्रदेशों के किसान पारंपरिक खेती के साथ मछली पालन करके ख़ासी आमदनी हासिल कर रहे हैं. वे ऐसी ज़मीन पर भी मछली पालन कर रहे हैं,  जो खेती के योग्य नहीं है. मछ्ली पालन ने बहुत से लोगों की ज़िन्दगी बदल दी. उनका कहना है कि आमदनी बढ़ने से उनका रहन-सहन पहले से बेहतर हुआ है. कच्चे मकानों की जगह पक्के मकान बन गए. घर में सुविधा की महंगी चीज़ें आ गईं.

जम्मू के गांव सई के अजित राम ने खेती के साथ-साथ मछली पालन को अपनाकर ज़्यादा आमदनी हासिल की. उनकी देखादेखी अब अन्य लोग भी मछली पालन करने लगे हैं. इस इलाक़े में बासमती चावल की खेती होती है. अजित राम का कहना है कि परिवार बढ़ने से ज़मीन कम हो गई है. अब खेती से परिवार का गुज़ारा ठीक से नहीं हो पाता. ऐसे में मछली पालन से अच्छी आमदनी हासिल की जा सकती है. उन्होंने अपने खेत में तालाब बनवाकर उसमें मछली पालन शुरू किया, जिससे उनकी आमदनी बढ़ गई. हरियाणा में भी मछली पालन ख़ूब फलफूल रहा है. महेंद्रगढ़ ज़िले के गांव भुरजट, पाली, लावन, मालडा बास, रिवासा, नानगवास, झूक, चितलाग, धौली, माजरा खुर्द, श्यामपुरा, बवाना, पालड़ी पनिहार, बासड़ी, डेरोली, मालड़ा सराय, खातौद, खुडाना, डुलाना आदि के जोहड़ों में मछली पालन किया जा रहा है. यहां किसान ही नहीं, अन्य लोग भी मछली पालन को अपना रहे हैं. ग्राम पंचायतों द्वारा गांवों के जोहड़ों और तालाबों को मछली पालन के लिए पट्टे पर देने से पंचायतों के फ़ंड में भी इज़ाफ़ा हो रहा है.  पंजाब के मोगा ज़िले के गांव जाफ़र वाला के गुरबचन सिंह के पास बहुत कम ज़मीन थी, जिससे उनका गुज़ारा मुश्किल से हो रहा था. उन्होंने मछली पालन के लिए साल 2007 मछली पालन विभाग से संपर्क किया. उन्होंने पांच दिन का प्रशिक्षण लिया. इसके बाद उन्होंने मछली पालन विभाग के सहयोग से अपनी दो एकड़ ज़मीन में मछली पालन के तालाब और नर्सरी टंकी बनवाई. उन्होंने मछली पालन शुरू किया, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई.

छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले के गांव छुरी के गौतम सारथी ने भी मछली पालन को अपनाकर जहां अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाया, वहीं दूसरों के लिए मिसाल बनकर पुरस्कार भी जीता. उनके मुताबिक़ पहले वह मंडी से मछली ख़रीदकर बस्ती में फेरी लगाकर बेचते थे. प्रतिदिन उन्हें तीन सौ से चार सौ रुपये तक की आमदनी हो जाती थी. चार साल पहले मत्स्य पालन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें गांव के तालाब को पट्टे पर लेकर मछली पालन करने की सलाह दी. साथ ही मत्स्य पालन योजना की भी जानकारी दी. उन्होंने तालाब को पट्टे पर लेकर मछली पालन शुरू किया. मत्स्य विभाग द्वारा पांच हज़ार रुपये का मछली बीज नि:शुल्क दिया गया. इसके सालभर बाद उन्होंने मछली को बेचना शुरू किया, जिससे उन्हें ख़ासी आमदनी हुई.  मछली पालन से उन्हें सालाना तीन से साढ़े तीन लाख रुपये की आमदनी हो जाती है. आमदनी बढऩे से उनके रहन-सहन का स्तर भी बेहतर हुआ है. पहले वह कच्चे मकान में रहते थे, अब उन्होंने पक्का मकान बना लिया है. सरकारी योजना का लाभ उठाते हुए अच्छी आमदनी अर्जित करने पर गौतम सारथी का चयन ज़िला स्तरीय पुरस्कार के लिए किया गया. पुरस्कार में 25 हज़ार रुपये की राशि विजेता को प्रोत्साहन राशि के रूप में दी जाती है. जांजगीर ज़िले के गांव परसदा के कृष्ण कुमार वर्मा परंपरागत खेती के साथ मछली पालन कर रहे हैं. उन्होंने साल 2011 में अपने खेत में आधा हेक्टेयर ज़मीन में तालाब बनवाकर उसमें मछली पालन शुरू किया. इससे उन्हें धान की खेती के मुक़ाबले ज़्यादा आमदनी हो रही है. कांकेर ज़िले के गांव कोटेला की पुनई बाई ने भी गांव में मछली पालन शुरू कर अपनी ज़िन्दगी को बेहतर बनाया. उन्होंने गांव में महिला स्वयं सहायता समूह का गठन कर मत्स्य विभाग के सहयोग से मछली पालन का प्रशिक्षण लिया. फिर उन्होंने साल 2011 में गांव की पंचायत का तालाब 10 साल के पट्टे पर लेकर उसमें मछली पालन शुरू किया. उन्हें मछली पालन से अच्छी ख़ासी आमदनी हो रही है. आज वो अपने काम से बहुत ख़ुश हैं.

मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार मत्स्य पालन योजना चला रही है. इस योजना का मक़सद बेरोज़गार लोगों को मछली पालन का प्रशिक्षण देकर उन्हें स्वरोज़गार मुहैया कराना है. जिस व्यक्ति के पास अपना तालाब, भूमि या पट्टे का तालाब हो, वह इस योजना का लाभ उठा सकता है. मछली पालन के लिए किसी भी शैक्षिक योग्यता या उम्र की पाबंदी नहीं है. मछली पालन करने वाले व्यक्ति को मत्स्य विभाग द्वारा दिए जाने वाला मछली पालन प्रशिक्षण लेना ज़रूरी है, जिसके लिए मछली पालक को 50 रुपये प्रतिदिन की दर से प्रशिक्षण भत्ता भी दिया जाता है. योजना का लाभ लेने के लिए व्यक्ति को प्रशिक्षण प्रमाण-पत्र सहित अन्य ज़रूरी दस्तावेज़ संबंधित कार्यालय में जमा कराने होते हैं. मत्स्य किसान विकास एजेंसी द्वारा मछली पालकों की मदद की जाती हैं. मछली पालकों को ग्राम पंचायत से पांच से दस साल के लिए ग्रामीण तालाब पट्टे पर दिलवाकर मछली पालन करवाया जाता है. मछली पालकों को पट्टे पर लिए हुए तालाब में सुधार कार्य जैसे तालाब की गहराई बढ़वाने, बंध बनवाने और आउटलेट, इनलेट आदि बनवाने के लिए 60 हज़ार रुपये प्रति हेक्टेयर पर बैंक से क़र्ज़ दिलवाया जाता है. साथ ही इस पर 20 फ़ीसद अनुदान दिया जाता है. मछली पालकों को मछली की ख़ुराक और बीज आदि के लिए 30 हज़ार रुपये बैंक क़र्ज़ और उस पर 20 फ़ीसद अनुदान दिया जाता है. जो व्यक्ति निजी भूमि पर नया तालाब बनवाना चाहता है, उसे तालाब की खुदाई के लिए दो लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से बैंक से क़र्ज़ दिलवाया जाता है. उस पर 20 फ़ीसद अनुदान दिया जाता है. मछली की ख़ुराक और बीज आदि के लिए 30 हज़ार रुपये का बैंक क़र्ज़ और उस पर 20 फ़ीसद अनुदान दिया जाता है. मछली बीज हैचरी के निर्माण के लिए आठ लाख रुपये का बैंक से क़र्ज़ दिलवाया जाता है. इस पर 10 फ़ीसद अनुदान दिया जाता है. तालाब में ज़्यादा मछली उत्पादन लेने के लिए उसमें एरिएटर लगाने के लिए 50 हज़ार रुपये का बैंक क़र्ज़ और उस पर 20 फ़ीसद अनुदान दिया जाता है. क़ाबिले-ग़ौर है कि सभी कार्यों के लिए अनुसूचित जाति के प्रार्थियों को 20 फ़ीसद की जगह 25 फ़ीसद अनुदान दिया जाता है. मछली पालकों को एजेंसी द्वारा विभिन्न प्रकार की तकनीकी सहायता जैसे तालाब में मछली बढ़ोतरी और बीमारी इत्यादि की जांच, ट्रायल नेंटिंग आदि मुहैया कराई जाती है. इसके अलावा 75 रुपये प्रति हज़ार की दर से उत्तम क्वालिटी का बीज उनके तालाब पर उपलब्ध करवाया जाता है. मछली पालन के लिए विभाग द्वारा मिश्रित प्रजाति के बीज दिए जाते हैं. इसमें रोहू, कतला, मृगल, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प क़िस्म की मछली शामिल हैं. मत्स्य पालन विभाग के अधिकारी मिश्रित या संग्रथित मत्स्य पालन पर ख़ास ज़ोर देते हैं. मिश्रित या संग्रथित मत्स्य पालन मछली पालने की वह प्रणाली है, जिसके तहत एक तालाब के अलग-अलग हिस्सों में रहकर, भिन्न-भिन्न भोजन करने वाली कई प्रकार की मछलियों को पाला जाता है. इस तरह एक साथ पाली जाने वाली मछलियां तालाब के हर हिस्से में पाए जाने वाले प्राकृतिक भोजन का पूरी तरह इस्तेमाल कर लेती हैं और एक दूसरे को नुक़सान भी नहीं पहुंचातीं. इससे ज़्यादा मत्स्य उत्पादन हासिल किया जा सकता है. इस प्रणाली में विदेशी कार्प मछलियों जैसे सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प व कामन कार्प और भारतीय मूल की मेजर कार्प मछलियों जैसे रोहू, कतला व नरेन को एक साथ एक ही तालाब में वैज्ञानिक विधि से पाला जाता है.

मत्स्य पालन विशेषज्ञों के मुताबिक़ मछली पालन के लिए ऐसे तालाबों को चुना जाना चाहिए, जिनमें सालभर कम से कम दो मीटर पानी भरा रहे. तालाबों को भरा रखने के लिए जल की आपूर्ति का साधन होना चाहिए. कम गहराई वाली जगह से मिट्टी निकालकर गहराई एक समान की जा सकती है. तालाब के बंधे बाढ़ स्तर से ऊंचे रखने चाहिए. पानी के आने और निकलने के रास्ते में जाली का इंतज़ाम ज़रूरी है, ताकि मछलियां बाहर न जा सकें और बाहरी मछलियां व अन्य जल जीव तालाब में न आ सकें. नये तालाब के निर्माण के लिए सही जगह का चुना जाना ज़रूरी है. जगह के चयन के लिए मिट्टी की जल धारण क्षमता और उर्वरकता को ध्यान में रखना चाहिए. तालाब के लिए ऊसर और बंजर ज़मीन ठीक नहीं रहती. ज़्यादा अम्लीय और क्षारीय मिट्टी वाली ज़मीन भी तालाब के लिए सही नहीं है. बलुई मिट्टी वाली ज़मीन में भी तालाब नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि बलुई मिट्टी वाले तालाबों में पानी नहीं रुकता. चिकनी मिट्टी वाली ज़मीन तालाब के लिए सबसे अच्छी होती है. इस मिट्टी में जलधारण क्षमता ज़्यादा होती है. मिट्टी की पी-एच 6.5-8.0, आर्गेनिक कार्बन एक फ़ीसद और मिट्टी में रेत 40 फ़ीसद, सिल्ट 30 फ़ीसद और क्ले 30 फ़ीसद होना चाहिए. तालाब बनाने से पहले मत्स्य विभाग की प्रयोगशालाओं से मिट्टी की जांच करा लेनी चाहिए. तालाब के बंधे में दोनों तरफ़ के ढलानों में आधार व ऊंचाई का अनुपात 2:1 या 1.5:1 होना अच्छा माना जाता है. बंधे की ऊंचाई शुरू से ही वांछित ऊंचाई से ज़्यादा रखनी चाहिए. बंध का कटान रोकने के लिए घास या फलदार पेड़ लगाने चाहिए.

मछ्ली का ज़्यादा उत्पादन लेने के लिए कई बातों का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है. मत्स्य पालन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मत्स्य उत्पादन बढ़ाने के मद्देनज़र मछलियों के आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए. मछली पालन की कामयाबी कई बातों पर निर्भर करती है, जिनमें तालाब का चयन व तैयारी, खरपतवारों की सफ़ाई व निंयत्रण, परभक्षी व अनावश्यक मछलियों का नियंत्रण, खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल, मछली बीज संचय, कृत्रिम या परिपूरक भोजन का इस्तेमाल, मछलियों में होने वाली बीमारियों का वक़्त पर उपचार आदि शामिल है.

सरकार मछली पालन को बढ़ावा देने पर ज़ोर दे रही है. कृषि मंत्री राधामोहन सिंह का कहना है कि सरकार मछलियों के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए नीली क्रांति पर ध्यान केंद्रित करेगी. उन्होंने बताया कि मछली उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में भारत का दूसरा स्थान है और हमारा देश विश्व में दूसरा सबसे बड़ा एक्वाकल्चर यानी जल से लाभान्वित होने वाला देश है. भारत में मछुआरों की संख्या 145 लाख है और यहां तटीय लंबाई 8,118 किलोमीटर है. इसे देखते हुए भारत विश्व में मछली पालन के क्षेत्र में प्रमुख पक्ष बन सकता है. भारत में मछली पकड़ने की दो लाख नौकाएं हैं. विगत वर्ष देश से पांच अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का मछली का निर्यात किया गया. भारत में देश के भीतर अब तक इस्तेमाल न किए गए जल संसाधनों का बहुत बड़ा क्षेत्र है और देश में गुणवत्ता पूर्ण मछली बीज की कमी है. इसके अलावा मछलियों के तैयार भोजन की भी कमी है. सरकार इन कमियों को पूरा करने पर ध्यान देगी. उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने पिछले बजट सत्र में नीली क्रांति-देश के भीतर मछली पालन की नई स्कीम की घोषणा की थी. सरकार शीघ्र नीली क्रांति के युग में सूत्रपात करने के लिए एक कार्यक्रम की शुरुआत भी करेगी. विश्व में हालांकि प्रति व्यक्ति वार्षिक मछली खपत 18 किलोग्राम है, जबकि भारत में यह महज़ आठ किलोग्राम है. वर्तमान में भारत 95,80,000 मीट्रिक टन मछली उत्पादन करता है, जिसमें से 64 फ़ीसद देश के भीतर और 36 फ़ीसद समुद्री स्रोतों से किया जाता है. उन्होंने बताया कि वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण मछली पालन योगदान दे सकता है, क्योंकि पिछले साल देश के भीतर मछली उत्पादन की वृद्धि दर 7.9 रही थी. उन्होंने कहा कि हमारे देश में मत्स्य क्षेत्र का स्वरूप लघु स्तर का है. इस लघु क्षेत्र के स्वरूप में उत्पादन से उपभोग तक काफ़ी पक्ष शामिल हैं. देश में मछली पालन को आय और रोज़गार के सृजन का अधिक शक्तिशाली माध्यम माना जाता है, क्योंकि इससे कई सहायक क्षेत्रों की वृद्धिज़ होती है. देश के भीतर और समुद्री जल से मछली उत्पादन से रोज़गार और रोज़गार का महत्वपूर्ण स्रोत बनता है और यह बढ़ती जनसंख्या के लिए पोषक प्रोटीन प्रदान करता है. वास्तव में आबादी में तेज़ी से वृद्धि होने के कारण खाद्यान्न मांग बढ़ रही है, खेती योग्य ज़मीन सीमित हो रही है और कृषि उत्पाद गिर रहा है. ऐसे में खाद्यान्न की बढ़ती मांग पूरी करने के लिए मछली पालन क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण बनती जा रही है. खाद्यान्न का पोषण सुरक्षा में महत्वपूर्ण स्थान है. कई साल पहले मछली पालन को केवल पारंपरिक गतिविधि माना जाता था और अब ये हाल ही के कुछ वर्षों में प्रभावशाली वृद्धि के साथ व्यावसायिक उद्यम बन गया है. खाद्य कृषि संगठन की 2014 की जारी सांख्यिकी (द स्टेट ऑफ़ वर्ल्ड फिशरीज़ एंड एक्वाकल्चर 2014) वैश्विक मछली उत्पादन 15 करोड़ 80 लाख टन हो गया है और खान-पान के लिए मछली की आपूर्ति में औसत वार्षिक वृद्धि दर 3.2 हो गई है, जो जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर 1.6 से ज़्यादा है.
ग़ौरतलब है कि मछली की देश-विदेश में बहुत मांग है. कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॊ. एस अय्यप्पन के मुताबिक़ साल 2020 तक मछली की मांग 12.7 मिलियन टन पहुंच जाएगी.
बहरहाल, बेरोज़गार युवा मछली पालन का प्रशिक्षण हासिल करके अपना स्वरोज़गार शुरू कर सकते हैं. वे सरकारी योजना का फ़ायदा उठाते हुए मछली पालन करके जहां अच्छी ख़ासी आमदनी हासिल करेंगे, वहीं कुछ लोगों के लिए रोज़गार के अवसर भी पैदा कर देंगे. नीली क्रांति आज वक़्त की बहुत बड़ी ज़रूरत है. इसे अपनाकर अपनी ज़िन्दगी को बेहतर बनाया जा सकता है. 


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