फ़िरदौस ख़ान
इस्लाम में सूफ़ियों का अहम मुक़ाम है. सूफ़ी मानते हैं कि सूफ़ी मत का स्रोत ख़ुद पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम हैं. उनकी प्रकाशना के दो स्तर हैं, एक तो जगज़ाहिर क़ुरआन है, जिसे इल्मे-सफ़ीना यानी किताबी ज्ञान कहा गया है, जो सभी आमो-ख़ास के लिए है. और दूसरा इल्मे-सीना यानी गुह्य ज्ञान, जो सूफ़ियों के लिए है. उनका यह ज्ञान पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद, ख़लीफ़ा अबू बक़्र, हज़रत अली, हज़रत बिलाल और पैग़म्बर के अन्य चार क़रीबी साथियों के ज़रिये एक सिलसिले में चला आ रहा है, जो मुर्शिद से मुरीद को मिलता है. पीरों और मुर्शिदों की यह रिवायत आज भी बदस्तूर जारी है. दुनियाभर में अनेक सूफ़ी हुए हैं, जिन्होंने लोगों को राहे-हक़ पर चलने का पैग़ाम दिया. इन्हीं में से एक हैं फ़ारसी के सुप्रसिद्ध कवि रूमी. वह ज़िन्दगी भर इश्क़े-इलाही में डूबे रहे. उनकी हिकायतें और बानगियां तुर्की से हिंदुस्तान तक छाई रहीं. आज भी खाड़ी देशों सहित अमेरिका और यूरोप में उनके कलाम का जलवा है. उनकी शायरी इश्क़ और फ़ना की गहराइयों में उतर जाती है. ख़ुदा से इश्क़ और इश्क़ में ख़ुद को मिटा देना ही इश्क़ की इंतहा है, ख़ुदा की इबादत है.
वे कहते हैं-
बंदगी कर, जो आशिक़ बना सकती है
बंदगी काम है जो अमल में ला देती है
बंदा क़िस्मत से आज़ाद होना चाहता है
आशिक़ अबद से आज़ादी नहीं चाहता है
बंदा चाहता है हश्र के ईनाम व ख़िलअत
दीदारे-यार है आशिक़ की सारी ख़िलअत
इश्क़ बोलने व सुनने से राज़ी होता नहीं
इश्क़ दरिया वो जिसका तला मिलता नहीं
हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किताब रूमी में सूफ़ी कवि रूमी की ज़िन्दगी, उनके दर्शन और उनके कलाम को शामिल किया गया है. इसके साथ ही इस किताब में सूफ़ी मत के बारे में भी संक्षिप्त मगर अहम जानकारी दी गई है. इस किताब का संपादन अभय तिवारी ने किया है. इस किताब के दो खंड हैं-रूमी की बुनियाद : सूफ़ी मत और मसनवी मानवी से काव्यांश. पहले खंड में सूफ़ी मत का ज़िक्र किया गया है. बसरा में दसवीं सदी के पूर्वार्ध में तेजस्वी लोगों के दल इख़्वानुस्सफ़ा के मुताबिक़, एक आदर्श आदमी वह है, जिसमें इस तरह की उत्तम बुद्धि और विवेक हो जैसे कि वह ईरानी मूल का हो, अरब आस्था का हो, धर्म में सीधी राह की ओर प्रेरित हनी़फ़ी (इस्लामी धर्मशास्त्र की सबसे तार्किक और उदार शाख़ा के मानने वाले) हो, शिष्टाचार में इराक़ी हो, परम्परा में यहूदी हो, सदाचार में ईसाई हो, समर्पण में सीरियाई हो, ज्ञान में यूनानी हो, दृष्टि में भारतीय हो, ज़िन्दगी जीने के ढंग में रहस्यवादी हो. 
रूमी को कई नामों से जाना जाता है. अफ़ग़ानी उन्हें बलख़ी पुकारते हैं, क्योंकि उनका जन्म अफ़ग़ानिस्तान के बलख़ शहर में हुआ था. ईरान में वह मौलवी हैं, तुर्की में मौलाना और हिन्दुस्तान सहित अन्य देशों में रूमी. आज जो प्रदेश तुर्की नाम से प्रसिद्ध है, मध्यकाल में उस पर रोम के शासकों का अधिकार लम्बे वक़्त तक रहा था. लिहाज़ा पश्चिम एशिया में उसका लोकनाम रूम पड़ गया. रूम के शहर कोन्या में रिहाइश की वजह से ही मौलाना मुहम्मद जलालुद्दीन, मौलाना-ए-रूम या रूमी कहलाए जाने लगे. उनके सिलसिले के सूफ़ी मुरीद उन्हें ख़ुदावंदगार के नाम से भी पुकारते थे. रूमी का जन्म 1207 ईस्वी में बलख़ में हुआ था. उनके पुरखों की कड़ी पहले ख़ली़फ़ा अबू बक़्र रज़ियल्लाहु अन्हु तक जाती है. उनके पिता बहाउद्दीन वलेद न सिर्फ़ एक आलिम मुफ़्ती थे, बल्कि बड़े पहुंचे हुए सूफ़ी भी थे. उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी.
इस्लाम के मुताबिक़ अल्लाह ने कुछ नहीं से सृष्टि की रचना की यानी रचना और रचनाकार दोनों अलग-अलग हैं. इस्लाम का मूल मंत्र कलमा है ला इलाह इल्लल्लाह यानी अल्लाह के सिवा दूसरा कोई माबूद नहीं है. इसी कलमे पर सब मुसलमान ईमान लाते हैं. मगर सूफ़ी ये भी मानते हैं कि ला मौजूद इल्लल्लाह यानी उसके सिवा कोई मौजूद नहीं है. इस मौजूदगी में भी दो राय हैं. एक तो वहदतुल वुजूद यानी अस्तित्व की एकता, जिसे इब्नुल अरबी ने मुकम्मल शक्ल दी और जो मानता है कि जो कुछ है सब ख़ुदा है, और काफ़ी आगे चलकर विकसित हुआ. दूसरा वहदतुल शुहूद यानी (साक्ष्य की एकता, जो मानता है कि जो भी है उस ख़ुदा से है. 
इस्लाम में इस पूरी कायनात की रचना का स्रोत नूरे-मुहम्मद है. नूरुल मुहम्मदिया मत के मुताबिक़ जब कुछ नहीं था, तो वह सिर्फ़ ख़ुदा सिर्फ़ अज़ ज़ात यानी स्रोत के रूप में था. इस अवस्था के दो रूप मानते हैं- अल अमा यानी घना अंधेरा और वहदियत यानी एकत्व. इस अवस्था में ख़ुदा निरपेक्ष और निर्गुण रहता है. इसके बाद की अवस्था वहदत है, जिसे हक़ीक़तुल मुहम्मदिया भी कहा जाता है. इस अवस्था में ख़ुदा को अपनी सत्ता का बोध हो जाता है. तीसरी अवस्था वाहिदियत की है, जिसमें वह परम प्रकाश, अहं, शक्ति और इरादे के विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त हो जाता है. अन्य तरीक़े से इस हक़ीक़तुल मुहम्मदिया को ही नूरुल मुहम्मदिया भी कहा गया है. माना गया है कि ख़ुदा ने जब सृष्टि की इच्छा की तो अपनी ज्योति से एक ज्योति पैदा की-नूरे मुहम्मद. शेष सृष्टि का निर्माण इसी नूर से माना गया है. सभी पैग़म्बर भी इसी नूर की अभिव्यक्ति हैं. इस विधान और नवअफ़लातूनी विधान के वन, नूस और वर्ल्ड सोल के बीच काफ़ी साम्य है. वैसे तो इन दोनों से काफ़ी पूर्ववर्ती श्रीमद्भागवत में वर्णित सांख्य दर्शन के अव्यक्त, प्रधान आदि भी ऐसी ही व्यवस्था के अंग हैं, लेकिन उसमें नूरुल मुहम्मदिया या वर्ल्ड सोल जैसी कोई शय नहीं है. इसके बाद इस दिव्य ज्ञान की व्यवस्था में और भी विभाजन हैं, पांच तरह के आलम, ईश्वर का सिंहासन, उसके स्वर्ग का विस्तार आदि तमाम अंग हैं. इस विधान के दूसरे छोर पर आदमी है और उसकी ईश्वर की तरफ़ यात्रा की मुश्किलें हैं, उन्हें पहचानना और इस पथ के राही के लिए आसान करना ही इस ज्ञान का मक़सद है.
रूमी के कई क़िस्से बयान किए जाते हैं. एक बार एक क़साई की गाय रस्सी चबाकर भाग ख़डी हुई. क़साई उसे पक़डने को पीछे भागा, मगर गाय गली-गली उसे गच्चा देती रही और एक गली में जहां रूमी खड़े थे, उन्हीं के पास जाकर चुपचाप रुक गई. रूमी ने उसे पुचकारा और सहलाया. क़साई को उम्मीद थी कि रूमी उसे गाय सौंप देंगे, मगर रूमी का इरादा कुछ और था. चूंकि गाय ने उनके पास पनाह ली थी, इसलिए रूमी ने क़साई से गुज़ारिश की कि गाय को क़त्ल करने की बजाय छो़ड दिया जाए. क़साई ने सर झुकाकर इसे मान लिया. फिर रूमी बोले कि सोचे जब जानवर तक ख़ुदा के प्यार करने वालों द्वारा बचा लिए जाते हैं, तो ख़ुदा की पनाह लेने वाले इंसानों के लिए कितनी उम्मीद है. कहते हैं कि फिर वह गाय कोन्या में नहीं दिखी. एक बार किसी मुरीद ने पूछा कि क्या कोई दरवेश कभी गुनाह कर सकता है. रूमी का जवाब था कि अगर वह भूख के बग़ैर खाता है तो ज़रूर, क्योंकि भूख के बग़ैर खाना दरवेशों के लिए बड़ा संगीन गुनाह है.
किताब के दूसरे खंड में रूमी का कलाम पेश किया गया है. इश्क़े-इलाही में डूबे रूमी कहते हैं-
हर रात रूहें क़ैदे-तन से छूट जाती हैं
कहने करने की हदों से टूट जाती हैं
रूहें रिहा होती हैं इस क़फ़स से हर रात
हाकिम और क़ैदी हो जाते सभी आज़ाद
वो रात जिसमें क़ैदी क़फ़स से बे़खबर है
खोने पाने का कोई डर नहीं व ग़म नहीं
न प्यार इससे, उससे कुछ बरहम नहीं
सूफ़ियों का हाल ये है बिन सोये हरदम
वे सो चुके होते जबकि जागे हैं देखते हम
सो चुके दुनिया से ऐसे, दिन और रात में
दिखे नहीं रब का क़लम जैसे उसके हाथ में

बेशक इश्क़े-इलाही में डूबा हुआ बंदा ख़ुद को अपने महबूब के बेहद क़रीब महसूस करता है. वह इस दुनिया में रहकर भी इससे जुदा रहता है. रूमी के कलाम में इश्क़ की शिद्दत महसूस किया जा सकता है. रूमी कहते हैं-
क्योंकि ख़ुदा के साथ रूह को मिला दिया
तो ज़िक्र इसका और उसका भी मिला दिया
हर किसी के दिल में सौ मुरादें हैं ज़रूर
लेकिन इश्क़ का मज़हब ये नहीं है हुज़ूर
मदद देता है इश्क़ को रोज़ ही आफ़ताब
आफ़ताब उस चेहरे का जैसे है नक़ाब

इश्क़ के जज़्बे से लबरेज़ दिल सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने महबूब की बात करना चाहता है, उसकी बात सुनना चाहता है, उसके बारे में सुनना चाहता है और उसे बारे में ही कहना चाहता है. यही तो इश्क़ है.
बेपरवाह हो गया हूं अब सबर नहीं होता मुझे
आग पर बिठा दिया है इस सबर ने मुझे
मेरी ताक़त इस सबुरी से छिन गई है
मेरी रूदाद सबके लिए सबक़ बन गई है
मैं जुदाई में अपनी इस रूह से गया पक
ज़िंदा रहना जुदाई में बेईमानी है अब
उससे जुदाई का दर्द कब तक मारेगा मुझे
काट लो सर, इश्क नया सिर दे देगा मुझे
बस इश्क़ से ज़िंदा रहना है मज़हब मेरे लिए
इस सर व शान से ज़िंदगी शर्म है मेरे लिए

बहरहाल, ख़ूबसूरत कवर वाली यह किताब पाठकों को बेहद पसंद आएगी, क्योंकि पाठकों को जहां रूमी के कई क़िस्से पढ़ने को मिलेंगे, वहीं महान सूफ़ी कवि का रूहानी कलाम भी उनके दिलो-दिमाग़ को रौशन कर देगा.

समीक्ष्य कृति : रूमी 
संपादन : अभय तिवारी
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स
क़ीमत : 110 रुपये
 


ईद की मुबारकबाद

ईद की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते - *फ़िरदौस ख़ान*ज़िन्दगी का सबसे ख़ूबसूरत हिस्सा बचपन होता है. बचपन की यादें हमारे दिलो-दिमाग़ पर नक़्श हो जाती हैं. और जब बात गर्मियों की छुट्टियों की हो, त...
  • ईद-अल-ग़दीर - आज ईद-अल-ग़दीर है. ईद-अल-ग़दीर 18 जिल'हिज्ज को मनाई जाती है. इस दिन अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ग़दीर-ए-ख़ुम के मैदान में ...
  • Rahul Gandhi in Berkeley, California - *Firdaus Khan* The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Institute of International Studies at UC Berkeley, California on Monday. He...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • हमारा जन्मदिन - कल यानी 1 जून को हमारा जन्मदिन है. अम्मी बहुत याद आती हैं. वे सबसे पहले हमें मुबारकबाद दिया करती थीं. वे बहुत सी दुआएं देती थीं. उनकी दुआएं हमारे लिए किस...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं