फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस जन-जन की पार्टी है. कांग्रेस का एक गौरवशाली इतिहास रहा है. कांग्रेस नेताओं की क़ुर्बानियों को यह देश कभी भुला नहीं पाएगा. कांग्रेस नेताओं ने अपने ख़ून से इस धरा को सींचा है. महात्मा गांधी को भला कौन नहीं जानता. देश को आज़ाद कराने के लिए उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी क़ुर्बान कर दी. पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने इस देश को संवारा है. कांग्रेस इस देश की माटी में रची-बसी है. जनमानस में कांग्रेस की पैठ है. पीढ़ी-दर-पीढ़ी कांग्रेस की कट्टर समर्थक रही है. इसके बावजूद कांग्रेस ने केंद्र और कई राज्यों की सत्ता गंवाई है. आख़िर क्या वजह है कि कांग्रेस पर मर मिटने वाले लाखों-करोड़ों समर्थकों के बावजूद कांग्रेस सत्ता में वापस नहीं लौट पा रही है?

हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव के मुक़ाबले हाल में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का जनाधार बढ़ा है. बाक़ी राज्यों में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया. आसाम में पिछ्ले लोकसभा चुनाव 29.6 फ़ीसद के मुक़ाबले कांग्रेस को 31.1 फ़ीसद मत मिले. इसी तरह तमिलनाडु में 4.3 के मुक़ाबले 6.6 फ़ीसद, पश्चिम बंगाल में 9.6 के मुक़ाबले 12.1 फ़ीसद और पुडुचेरी में 24.6 फ़ीसद के मुक़ाबले 30.6 फ़ीसद वोट मिले. भारतीय जनता पार्टी की बात करें, तो पिछले लोकसभा चुनाव के मुक़ाबले उसका जनाधार घटा है. हालांकि इसके बावजूद भाजपा आसाम में सरकार बनाने में कामयाब रही है.

भारतीय जनता पार्टी जिसका अपना कोई इतिहास नहीं है, सिवाय इसके कि उसके मातृ संगठन यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कथित कार्यकर्ता ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की थी. इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई. आख़िर ऐसी कौन-सी बात है जो लोकप्रिय पार्टी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया. इसे समझना बहुत आसान है. जो जनता किसी पार्टी को हुकूमत सौंपती है, वही जनता उससे हुकूमत छीन भी सकती है. कांग्रेस नेताओं को यह बात समझनी होगी.

देश की आज़ादी के बाद कांग्रेस सत्ता में आई और कुछ साल पहले तक कांग्रेस की ही हुकूमत रही है. हालांकि आपातकाल और ऒप्रेशन ब्लू स्टार और की वजह से कांग्रेस को नुक़सान भी हुआ. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसके लिए सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगी और अवाम ने उन्हें माफ़ करके सत्ता सौंप दी. कांग्रेस ने फिर से लगातार दस साल तक हुकूमत की. इस दौरान कांग्रेस ने कुछ ऐसे काम किए, जिनसे विरोधियों को उसके ख़िलाफ़ दुष्प्रचार का मौक़ा मिल गया. मसलन इलेक्ट्रोनिक मीटर, जो तेज़ चलते हैं और बिल ज़्यादा आता है. रसोई गैस के सिलेंडरों की संख्या सीमित कर देना. भाजपा ने इसका जमकर फ़ायदा उठाया. कांग्रेस नेता मामले को संभाल नहीं पाए. हालांकि कांग्रेस ने मनरेगा, आरटीआई और खाद्य सुरक्षा जैसी अनेक ऐसी कल्याणकारी योजनाएं दीं, जिसका सीधा फ़ायदा आम जनता को हुआ. मगर कांग्रेस नेता चुनाव में इनका कोई फ़ायदा नहीं ले पाए. यह कांग्रेस की बहुत बड़ी कमी रही, जबकि भाजपा जनता से कभी पूरे न होने वाले लुभावने वादे करके सत्ता तक पहुंच गई.

क़ाबिले-ग़ौर यह भी है कि सत्ता के मद में चूर कांग्रेस नेता पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता से दूर होते चले गए. कांग्रेस की अंदरूनी कलह,  आपसी खींचतान, कार्यकर्ताओं की बात को तरजीह न देना उसके लिए नुक़सानदेह साबित हुआ. हालत यह थी कि अगर कोई कार्यकर्ता पार्टी नेता से मिलना चाहे, तो उसे वक़्त नहीं दिया जाता था. कांग्रेस में सदस्यता अभियान के नाम पर भी सिर्फ़ ख़ानापूर्ति ही की गई. इसके दूसरी तरफ़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भाजपा को सत्ता में लाने के लिए दिन-रात मेहनत की. मुसलमानों और दलितों के प्रति संघ का नज़रिया चाहे, जो हो, लेकिन उसने भाजपा का जनाधार बढ़ाने पर ख़ासा ज़ोर दिया. संघ और भाजपा ने ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पार्टी से जोड़ा. अगर कोई सड़क चलता व्यक्ति भी भाजपा कार्यालय चला जाए, तो उससे इस तरह बात की जाती है कि वह ख़ुद को भाजपा का अंग समझने लगता है.

पिछले दिनों उत्तराखंड में ख़ूब तमाशा हुआ. हालत यह हो गई कि अब पश्चिम बंगाल के कांग्रेस विधायकों को अपनी वफ़ादारी का हल्फ़नामा देना पड़ रहा है. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के विधायको ने 100 रुपये के स्टाम्प पेपर पर लिखकर दस्तख़त किए हैं कि वे कांग्रेस पार्टी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के प्रति निष्ठा रखेंगे और पार्टी के ख़िलाफ़ की जाने वाली किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे. हल्फ़नामे में यह भी कहा गया है कि वे पार्टी के ख़िलाफ़ कोई नकारात्मक बात नहीं कहेंगे. ऐसे किसी काम को करने की ज़रूरत लगने पर वे पहले ही अपने पद से इस्तीफ़ा दे देंगे. इसमें यह भी लिखा है कि वे पार्टी के दिशा-निर्देशों से बंधे हुए हैं. बताया जा रहा है कि विधायकों से दस्तख़त कराने का फ़ैसला चुनाव के बाद हुई एक बैठक में लिया गया था. बैठक में कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष अधीर चौधरी, निर्वाचित विधायकों और जिलाध्यक्षों ने भाग लिया था. इस बारे में चौधरी का कहना है कि यह कोई बॉंड नहीं है. हमने किसी पर कोई दबाव नहीं डाला है कि अगर वे शर्तों को नहीं मानेंगे, तो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी.  सभी ने पार्टी के प्रति वफ़ादारी दिखाने के लिए मर्ज़ी से दस्तख़त किए हैं. बहरहाल, कांग्रेस का यह क़दम उसके लिए फ़ायदेमंद साबित होगा, इसमें शक है.

वफ़ादारी काग़ज़ के टुकड़ों पर तय नहीं होती. यह तो दिल की बात है. कांग्रेस को अपने नेताओं, अपने सांसदों, अपने विधायकों, अपने कार्यकर्ताओं और अपने समर्थकों से ऐसा रिश्ता बनाना चाहिए, जिसे बड़े से बड़ा लालच तोड़ न पाए. इसके लिए कांग्रेस के नेताओं को ज़मीन पर उतरना पड़ेगा. सिर्फ़ सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी के कुछ लोगों के बीच चले जाने से कुछ नहीं होने वाला. कांग्रेस के सभी नेताओं को ह्क़ीक़त का सामना करना चाहिए. उन्हें चाहिए कि वे कार्यकर्ताओं की बात सुनें, जो लोग पार्टी के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, जब तक उनकी बात नहीं सुनी जाएगी, उन्हें तरजीह नहीं दी जाएगी, तब तक कांग्रेस अपना खोया मुक़ाम नहीं पा सकती.

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं