लाल बिहारी लाल
लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी के नाम से मशहूर फ़िरदौस ख़ान ने फ़हम अल क़ुरआन लिखा हैं. फ़हम अल क़ुरआन का अर्थ है क़ुरआन का सरलार्थ.
स्टार न्यूज़ एजेंसी की सम्पादक फ़िरदौस ख़ान कहती हैं कि मेरी ज़िन्दगी का मक़सद अल्लाह की रज़ा हासिल करना है. मेरा काम इसी मंज़िल तक पहुंचने का रास्ता है, इसी क़वायद का एक हिस्सा है. कायनात की फ़ानी चीज़ों में मुझे न पहले कभी दिलचस्पी थी और न आज है और कभी होगी. फ़हम अल क़ुरआन लिखते वक़्त मुझे इस बात का अहसास हुआ कि मैंने अपनी ज़िन्दगी फ़ानी चीज़ों के लिए ज़ाया नहीं की. बचपन से ही मेरी दिलचस्पी इबादत और रूहानी इल्म हासिल करने में ही रही. बेशक ये क़ुरआन मेरी ज़िन्दगी का शाहकार होगा, जो रहती दुनिया तक लोगों को ख़ुदा के पैग़ाम से रूबरू कराएगा.
फ़िरदौस ख़ान शायरा, लेखिका और पत्रकार हैं. वे कई भाषाओं की जानकार हैं. उन्होंने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कई साल तक सेवाएं दीं. उन्होंने अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं का संपादन भी किया. ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर उनके कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहा है. उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनलों के लिए भी काम किया है. वे देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और समाचार व फ़ीचर्स एजेंसी के लिए लिखती हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. वे कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली. वे उर्दू, हिन्दी, पंजाबी और इंग्लिश में लिखती हैं. वे मासिक पैग़ामे-मादरे-वतन की भी संपादक रही हैं और मासिक वंचित जनता में संपादकीय सलाहकार भी रही हैं. फ़िलहाल वे स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं.
वे रूहानियत में यक़ीन रखती हैं. वे सूफ़ी सिलसिले से जुड़ी हैं. उन्होंने सूफ़ी-संतों के जीवन दर्शन पर आधारित एक किताब 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' लिखी है, जिसे साल 2009 में प्रभात प्रकाशन समूह के ज्ञान गंगा ने प्रकाशित किया था. वे अपनी अम्मी मरहूमा ख़ुशनूदी ख़ान उर्फ़ चांदनी ख़ान को अपना पहला मुर्शिद और अपने पापा मरहूम सत्तार अहमद ख़ान को अपना दूसरा मुर्शिद मानती हैं. उन्होंने कांग्रेस पर एक गीत लिखा है. उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर एक ग़ज़ल भी लिखी है. ये ग़ज़ल उन्होंने राहुल गांधी को समर्पित की है. क़ाबिले-ग़ौर है कि सबसे पहले फ़िरदौस ख़ान ने ही राहुल गांधी को ‘शहज़ादा’ कहकर संबोधित किया था, तभी से राहुल गांधी के लिए ‘शहज़ादा’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है.
वे ब्लॉग भी लिखती हैं. उनके कई ब्लॉग हैं. फ़िरदौस डायरी और मेरी डायरी उनके हिन्दी के ब्लॉग है. हीर पंजाबी का ब्लॉग है. जहांनुमा उर्दू का ब्लॉग है और द प्रिंसिस ऑफ़ वर्ड्स अंग्रेज़ी का ब्लॉग है. राहे-हक़ उनका रूहानी तहरीरों का ब्लॉग है. उन्होंने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम का पंजाबी अनुवाद किया है.
उनकी शायरी किसी को भी अपना मुरीद बना लेने की तासीर रखती है. मगर जब वे हालात पर तब्सिरा करती हैं, तो उनकी क़लम तलवार से भी ज़्यादा तेज़ हो जाती है. जहां उनकी शायरी में इबादत, इश्क़, समर्पण, रूहानियत और पाकीज़गी है, वहीं उनके लेखों में ज्वलंत सवाल मिलते है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर कर देते हैं. अपने बारे में वे कहती हैं-
नफ़रत, जलन, अदावत दिल में नहीं है मेरे
अख़लाक़ के सांचे में अल्लाह ने ढाला है…
वे ये भी कहती हैं-
मेरे अल्फ़ाज़, मेरे जज़्बात और मेरे ख़्यालात की तर्जुमानी करते हैं, क्योंकि मेरे लफ़्ज़ ही मेरी पहचान हैं...