फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस अपनी खोई हुई सियासी ज़मीन को पाने के लिए ख़ूब मशक़्क़त कर रही है. राहुल गांधी की अगुवाई में निकल रही भारत जोड़ो यात्रा भी इसी क़वायद का एक हिस्सा है. पिछले आठ सालों से कांग्रेस सत्ता से बाहर है. उसकी माली हालत भी कुछ अच्छी नहीं है. पार्टी के वरिष्ठ नेता भी कांग्रेस छोड़कर जा रहे हैं. पार्टी में ख़ेमेबाज़ी भी अपने चरम पर है. आंतरिक कलह की वजह से पार्टी बिखर रही है. ऐसे वक़्त में जब राहुल गांधी का पूरा ध्यान पार्टी को मज़बूत करने पर होना चाहिए, वह भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं. दरअसल राहुल गांधी मेहनत तो ख़ूब करते है, लेकिन दिशा सही न होने की वजह से वह अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच पाते और भटक जाते हैं.
बेशक किसी भी देश के लिए सिर्फ़ सरकार का मज़बूत होना ही काफ़ी नहीं होता. देश की ख़ुशहाली के लिए, उसकी तरक़्क़ी के लिए एक मज़बूत विपक्ष की भी ज़रूरत होती है. ये विपक्ष ही होता है, जो सरकार को तानाशाह होने से रोकता है, सरकार को जनविरोधी फ़ैसले लेने से रोकता है. सरकार के हर जनविरोधी क़दम का जमकर विरोध करता है. अगर सदन के अंदर उसकी सुनवाई नहीं होती है, तो वह सड़क पर विरोध ज़ाहिर करता है. जब सरकार में शामिल अवाम के नुमाइंदे सत्ता के मद में चूर हो जाते हैं और उन लोगों की अनदेखी करने लगते हैं, जिन्होंने उन्हें सत्ता की कुर्सी पर बिठाया है, तो उस वक़्त ये विपक्ष ही तो होता है, जो अवाम का प्रतिनिधित्व करता है. अवाम की आवाज़ को सरकार तक पहुंचाता है. आज देश को ऐसी ही मज़बूत विपक्ष की ज़रूरत है. साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार आने के बाद से जिस तरह के फ़ैसले लिए जा रहे हैं, उससे अवाम की हालत दिनोदिन बद से बदतर होती जा रही है.
अवाम ने जिन लोगों को अपना प्रतिनिधि बनाकर संसद में, विधानसभा में भेजा था, वे अब सत्ता के नशे में हैं. उन्हें जनमानस के दुखों से, उनकी तकलीफ़ों से कोई सरोकार नहीं रह गया है. ऐसे में जनता किसके पास जाए, किसे अपने अपने दुख-दर्द बताए. ज़ाहिर है, ऐसे में जनता विपक्ष से ही उम्मीद करेगी. जनता चाहेगी कि विपक्ष उसका नेतृत्व करे. उसे इस मुसीबत से निजात दिलाए. यह विपक्ष की ज़िम्मेदारी भी है कि वे जनता की आवाज़ बने, जनता की आवाज़ को मुखर करे.
राहुल गांधी को कांग्रेस की बागडौर सौंपने के बाद सोनिया गांधी आराम करना चाहती थीं. अध्यक्ष पद पर रहते हुए ही उन्होंने सियासत से दूरी बना ली थी. राहुल गांधी ही पार्टी के सभी अहम फ़ैसले कर रहे थे. मगर राहुल गांधी वह करिश्मा नहीं कर पाए, जिसकी उनसे उम्मीद की जा रही थी. क़ाबिले-ग़ौर है कि जब-जब कांग्रेस पर संकट के बादल मंडराये, तब-तब सोनिया गांधी ने आगे आकर पार्टी को संभाला और उसे मज़बूती दी. उन्होंने कांग्रेस की हुकूमत में वापसी के लिए देशभर में रोड शो किए थे. आख़िरकार उनकी अगुवाई में कांग्रेस ने साल 2004 और 2009 का आम चुनाव जीतकर केन्द्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार बनाई थी. उस दौरान देश के कई राज्यों में कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन जब से अस्वस्थता की वजह से सोनिया गांधी की सियासत में सक्रियता कम हुई है, तब से पार्टी पर संकट के बादल मंडराने लगे. साल 2014 में केन्द्र की सत्ता से बेदख़ल होने के बाद कांग्रेस ने कई राज्यों में भी शासन खो दिया. कई राज्यों में नीतिगत ख़ामियों और आंतरिक कलह की वजह से कांग्रेस जीतकर भी हार गई और विरोधी सत्ता पर क़ाबिज़ हो गए. कांग्रेस विधायकों पर पैसे लेकर पार्टी बदलने के आरोप लगे. मामला जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस अपने विधायकों को संभाल नहीं पाई. जिस तरह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, वह भी पार्टी के लिए चिंता की बात है.
ग़ौर करने लायक़ बात यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी जिसका अपना कोई इतिहास नहीं है, सिवाय इसके कि उसके मातृ संगठन यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कथित कार्यकर्ता ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की थी. इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई. आख़िर ऐसी कौन-सी बात है जो लोकप्रिय पार्टी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया. इसे समझना बहुत आसान है. जो जनता किसी पार्टी को हुकूमत सौंपती है, वही जनता उससे हुकूमत छीन भी सकती है. कांग्रेस नेताओं को यह बात समझनी होगी.
देश की आज़ादी के बाद कांग्रेस सत्ता में आई और साल 2014 तक कांग्रेस की ही हुकूमत रही है. हालांकि आपातकाल और ऑप्रेशन ब्लू स्टार की वजह से कांग्रेस को नुक़सान भी हुआ. तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसके लिए सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगी और अवाम ने उन्हें माफ़ करके सत्ता सौंप दी. कांग्रेस ने फिर से लगातार दस साल तक हुकूमत की. इस दौरान कांग्रेस ने कुछ ऐसे काम किए, जिनसे विरोधियों को उसके ख़िलाफ़ दुष्प्रचार का मौक़ा मिल गया, मसलन तेज़ चलने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीटर और रसोई गैस के सिलेंडरों की संख्या सीमित कर देना आदि. भाजपा ने इसका जमकर फ़ायदा उठाया. कांग्रेस नेता मामले को संभाल नहीं पाए. हालांकि कांग्रेस ने मनरेगा, आरटीआई और खाद्य सुरक्षा जैसी अनेक कल्याणकारी योजनाएं दीं, जिनका सीधा फ़ायदा जनता को हुआ. मगर कांग्रेस नेता चुनाव में इनका कोई फ़ायदा नहीं ले पाए. यह कांग्रेस की बहुत बड़ी कमी रही, जबकि भाजपा जनता से कभी पूरे न होने वाले लुभावने वादे करके सत्ता तक पहुंच गई.
ग़ौरतलब यह भी है कि सत्ता के मद में चूर कांग्रेस नेता पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता से दूर होते चले गए. कांग्रेस की अंदरूनी कलह, आपसी खींचतान, कार्यकर्ताओं की बात को तरजीह न देना उसके लिए नुक़सानदेह साबित हुआ. हालत यह थी कि अगर कोई कार्यकर्ता पार्टी नेता से मिलना चाहे, तो उसे वक़्त नहीं दिया जाता था. कांग्रेस में सदस्यता अभियान के नाम पर भी सिर्फ़ ख़ानापूर्ति ही की गई. इसके दूसरी तरफ़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भाजपा को सत्ता में लाने के लिए दिन-रात मेहनत की. मुसलमानों और दलितों के प्रति संघ का नज़रिया चाहे जो हो, लेकिन उसने भाजपा का जनाधार बढ़ाने पर ख़ासा ज़ोर दिया. संघ और भाजपा ने ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पार्टी से जोड़ा. अगर कोई सड़क चलता व्यक्ति भी भाजपा कार्यालय चला जाए, तो उससे इस तरह बात की जाती है कि वह ख़ुद को भाजपा का अंग समझने लगता है.
राहुल गांधी अगर वाक़ई कांग्रेस का खोया जनाधार वापस पाना चाहते हैं, तो उन्हें पहले अपनी पार्टी को मज़बूत करना होगा. उन्हें अपने नेताओं, अपने सांसदों, अपने विधायकों, अपने कार्यकर्ताओं और अपने समर्थकों से ऐसा रिश्ता बनाना चाहिए, जिसे बड़े से बड़ा लालच तोड़ न पाए. इसके लिए कांग्रेस के नेताओं को ज़मीन पर उतरना पड़ेगा. सिर्फ़ सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी के कुछ लोगों के बीच चले जाने से कुछ नहीं होने वाला. कांग्रेस के सभी नेताओं को हक़ीक़त का सामना करना चाहिए. उन्हें चाहिए कि वे कार्यकर्ताओं की बात सुनें, जो लोग पार्टी के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, जब तक उनकी बात नहीं सुनी जाएगी, उन्हें तरजीह नहीं दी जाएगी, तब तक कांग्रेस अपना खोया मुक़ाम नहीं पा सकती.
भले ही देश पर हुकूमत करने वाली कांग्रेस आज गर्दिश के दौर से गुज़र रही है, लेकिन इसके बावजूद वह देश की माटी में रची-बसी है. देश का मिज़ाज हमेशा कांग्रेस के साथ रहा है और आगे भी रहेगा. कांग्रेस जनमानस की पार्टी रही है. कांग्रेस का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है. इस देश की माटी उन कांग्रेस नेताओं की ऋणी है, जिन्होंने अपने ख़ून से इस धरती को सींचा है. देश की आज़ादी में महात्मा गांधी के योगदान को भला कौन भुला पाएगा. देश को आज़ाद कराने के लिए उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी क़ुर्बान कर दी. पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने देश के लिए, जनता के लिए बहुत कुछ किया है. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश के विकास की जो बुनियाद रखी, इंदिरा गांधी ने उसे परवान चढ़ाया. राजीव गांधी ने देश के युवाओं को आगे बढ़ने की राह दिखाई. उन्होंने युवाओं के लिए जो ख़्वाब संजोये, उन्हें साकार करने में सोनिया गांधी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. कांग्रेस ने देश को दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाया. कांग्रेस ने हमेशा देश के लिए संघर्ष किया, देशवासियों के लिए संघर्ष किया. राहुल गांधी भी लगातार सड़क से सदन तक संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन नतीजा सिफ़र ही रहता है.
बहरहाल, जब कांग्रेस बिखराव के दौर से गुज़र रही है, तो ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा निकालना नूराकुश्ती से ज़्यादा कुछ नहीं है.