अतुल मिश्र 
22 मार्च 2008 को होली की सुबह अचानक एक ऐसे महामानव को हमने को दिया, जो एक सिद्धहस्त कवि और लेखक तो थे ही, अद्भुत पुरा-मनीषी भी थे। उनके देहावसान की ख़बर ने सारे साहित्य-समाज को स्तब्ध कर दिया। उनका सहज और सरल व्यक्तित्व उनके प्रशंसकों में महीनों तक चर्चा का विषय बना रहा। पुरातत्वविदों के बीच भी उनके विशाल पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना और उस पर किये गये शोध-कार्य विशेष रूप से चर्चा में रहे। उनके अनेक मित्रों और शुभचिंतकों ने राय दी कि उनकी तमाम उपलब्धियों पर एक संस्मरणात्मक ग्रंथ प्रकाशित किया जाये, जिसमें उनके काव्य और पुरातत्व के पक्ष को उजागर करते आलेख हों। 'पुरातत्व खोजता कवि' एक ऐसी ही नव प्रकाश्य पुस्तक है, जिसमें स्वर्गीय पं. सुरेंद्र मोहन मिश्र के अनेक प्रशंसकों के संस्मरण संग्रहीत हैं। इसी पुस्तक के तीन आलेख यहां अविकल दिये जा रहे हैं।

"यह एक सौभाग्यपूर्ण सुयोग ही था कि मेरा परिचय श्रद्धेय सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी से हो सका। तब मैं मुरादाबाद विकास प्राधिकरण में बीसवीं सदी के अन्तिम दशक में सचिव के तौर पर तैनात था और आदरणीय मिश्र जी भी एम.डी.ए. की नवविकसित कॉलोनी में अपने प्रवास हेतु किन्हीं पारिवारिक स्थितियों के चलते अचानक चन्दौसी से आये थे। जब कभी भी मैं सोनकपुर ग्राम में विकसित दीनदयाल नगर नाम की कॉलोनी जाता, मैं कविवर मिश्र जी से बिना मिले न आया करता। छंद्धबद्ध शरीर, मुख पर विराजती सदामुदित मुद्रा वाली स्मित मुस्कान ,सहज भाव वृत्ति के स्वामी के दर्शन कर मुझे ऐसा लगता था कि मिश्र जी उस ऐतिहासिक पुरुष दीनदयाल उपाध्याय की प्राण-प्रतिष्ठा करने के साथ-साथ उस पुनर्वसित कॉलोनी  का प्रतिनिधित्व भी कर रहे हों। 
मिश्र जी  की  भाव प्रवणता में इतना आत्मिक सुख हुआ करता था जो इक्वीस्वी सदी के संक्रमण काल के आते आते  जन जीवन से विलुप्त हो चुका था क्योंकि  अब संबंधों  की तरलता मुद्रा की गुरुता से आंकी जाने लगी है । मिश्र जी के विराट व्यक्तित्व  में न  केवल भारतीय संस्कृति की भाव भंगिमा ही स्पष्ट झलकती थी वरन्  वे भारत के प्राचीन इतिहास  के विन्सेंट स्मिथ व मोर्तिमर व्हीलर जैसे  पुरातत्त्ववेत्ता  थे । यह कह पाना आज भी असम्भव है कि इनके व्यक्तित्व  या कृतित्व में कौन सा पक्ष अधिक मुखर रहा- एक कवि रचनाकार का या पुरातत्ववेत्ता व इतिहासविद् का।

इन्होंने हिन्दी के कवि साहित्यकार के रुप मे न जाने कितने साहित्यकारों की नयी पीढ़ी को जन्म दिया। उनके काव्य-शिष्यों की फ़ेहरिस्त तो बहुत लम्बी है, मगर  वरन् एक गवेषणापूर्ण सत्यार्थी  के रूप में धरातली सतहों के अन्धेरे  में से दम तोड़ती पंचाल क्षेत्र  की न जाने कितनी पीढ़ियों की जीवन-पद्धति को  उजागर कर पुनर्जीवित किया। मिश्र जी ने क्या खूब लिखा है -
"घिरी है सांझ तुलसी पर, जला दीपक धरा होगा।
उसे दीपक की लौ में, एक चेहरा ही दिखा होगा।।"

मिश्र जी का वास्तविक  मूल्यांकन करने की क्षमता भी यदि नयी पीढ़ी में आ सकी, तो भी मैं  भारत-भारती के इस अवदान को धन्य मानूंगा। जिस भूमि पर देवता भी जन्म लेने को कतार लगाकर खड़े रहते हैं, वहीं  शेष लोगों के अवचेतन मन में तो बस आवागमन के छुटकारा पाने की लालसा ही जन्म होते ही घुट्टी में पिला दी जाती रही है, इसीलिए काल-अवधारित इतिहास नगण्य ही रहा। आदरणीय मिश्र जी ने इतिहास और संस्कृति की उस लुप्तप्राय कड़ी को अपने जीवन भर जोड़कर सेतुबंध का कार्य एक गिलहरी की भांति किया, जो उनके सम्पूर्ण  कृतित्व व व्यक्तित्व में दिखाई पड़ता है।

उनका ज्योतिष-शास्त्र पर भी अटूट विश्वास रहा था और वे स्वयं भी इस विद्या के जानकार थे। गृह-दशाओं पर बात करते-करते, जब मेरी वार्ता पंचम गृह पर आ टिकी, तो उन्होंने मुझसे अतुल जी के जीवन के संबंध पर अपनी प्रकट करते हुआ कहा था- "मेरा बड़ा पुत्र अतुल दिल्ली से पत्रकारिता की सफ़ल ज़िन्दगी को छोड़कर यहीं रह रहा है। अतुल जी के स्थानीय दैनिक अखबार में छपने वाले आलेखों व स्थाई स्तम्भ 'जबर ख़बर' को पढ़कर वे बहुत प्रसन्न भी होते थे और कहते थे कि मेरी बौद्धिक धरोहर को आगे बढ़ाने की आशा भी इसी पुत्र से है। पूर्ण जीवन जीकर भी अमरत्व पाने वाले प्राण-पुरुष तो वस्तुतः श्री सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी ही थे, जो स्वयं में एक जीती जागती संस्था या विश्वविद्यालय थे। वर्तमान में उनके सुयोग्य पुत्र श्री अतुल मिश्र उनके जीवन-सन्देश को आगे ले जा रहें हैं । वे पिता की इस धरोहर को संजोने-संवारने में सफ़ल रहें, यही मेरी अभिलाषा है।" (प्रदीप कुमार अग्रवाल, पूर्व सचिव, उ.प्र. सचिवालय)      

"हजारों साल नर्गिस, अपनी बेनूरी पे रोती है ! 
बड़ी मुश्किल से होता है, चमन में दीदावर पैदा !!            
        
इतिहास खुद लिखा, खुद जिया और खुद इतिहास बन गए श्रद्धेय बाबूजी। ज़माना उन्हें इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता और  श्रृंगार रस के कवि श्री सुरेंद्र मोहन मिश्र के नाम से जानता है। उनसे ज्ञानार्जन करते वक़्त मुझे उनमें हमेशा इस सदी के महान दार्शनिक एवं विचारक 'ओशो' दिखाई देते थे। वे अद्भुत सम्मोहन से भरे सरल स्वभाव, विनम्र और मृदुभाषी व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके जेष्ठ पुत्र वरिष्ठ पत्रकार और 'हिंदवार्ता' फ़ीचर्स के प्रधान संपादक अतुल मिश्र जी मेरे सहपाठी रहे हैं। उनकी ही वजह से मुझे इस जीवन में अनेकों बार सदी की इस महान हस्ती से मिलने के अवसर मिले। वे हमारी ऋषि-परंपरा के एक ऐसे एकात्मान्वेषी पुराविद-कवि थे, जिन्होंने अपने क्षेत्र के प्राचीन इतिहास को निर्मित ही नहीं किया, बल्कि एक योगर्षि की तरह जिया भी था। उन्होंने धरती के गर्भ में छिपे सैकड़ों सत्यपरक ऐतिहासिक तथ्यों को इसी मिट्टी से निकालकर जीवंत किया और पाषाण काल से लेकर मौर्य काल, गुप्त काल, मध्य काल और मुग़ल काल को मोइनजोदड़ो-हड़प्पा की इतर सभ्यता की तरह हमारी आने वाली पीढ़ियों को गौरवांवित करने के लिए सजोकर रखा है। लेकिन बड़े दुख की बात है कि उनकी पुरातत्व और साहित्य संबंधी सेवाओं को पारिवारिक और पैतृक संपत्ति में विवाद के चलते वर्ष 2008 में सदी के महानायक को हमने खो दिया। उनका लिखा कालजयी इतिहास हमारी क्षेत्रीय सभ्यता की बहुमूल्य धरोहर है, इसे कभी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। मैं अपने प्रिय मित्र अतुल मिश्र का ऋणी हूं कि उन्होंने मुझे  बाबू जी के वंदनीय कार्यों को एक लम्बे अरसे तक समझने का मौक़ा दिया।" (सग़ीर सैफी, पूर्व अध्यक्ष, चंदौसी बार एसोसिएशन)

"स्वर्गीय सुरेंद्र मोहन मिश्र  बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे। वे जितने अच्छे गीतकार थे, उतने ही गहरे पुरातत्ववेत्ता भी थे। दुर्भाग्य से मेरा यद्यपि उनसे कभी सीधा साक्षात्कार तो नहीं हुआ, परंतु हम दोनों को बरेली से छपने वाले एक दैनिक के समाचार पत्र के रविवासरीय परिशिष्ट में अक्सर एक-दूसरे से परिचित होने का संयोग बनता। यह अस्सी के पहले दशक की बात रही होगी। जब न तो इंटरनेट था और न ही लोग इतने साधन संपन्न थे, जो देश की राजधानी में जाकर सहजता से शोध कर सकते थे। मिश्र जी के ऐतिहासिक महत्व के लेख उस समय पाठकों को न केवल भरपूर जानकारी देते थे, बल्कि वे नौजवानों में विरासत के प्रति जागरूकता उत्पन्न करते थे। आज लगभग चालीस साल पूरे हो जाने के बाद मैं यह तथ्य सहर्ष स्वीकार करता हूँ  कि मुझे उनके लेख सदा प्रेरणा देते रहे और आलेख लिखने के इस पड़ाव पर पहुँचने में उनकी भूमिका अंतर्निहित है। 
वे एक पुरातत्ववेत्ता के साथ-साथ एक स्थापित साहित्यकार भी थे, जिन्होंने गीतों की गंगा में गहरी डूबकियाँ लगाईं और जब हास्य-व्यंग्य विधा में लिखने लगे, तो उनकी उपस्थिति के बिना क्या प्रदेश क्या देश कहीं भी सफल कवि-सम्मेलन संपन्न नहीं होते थे। उन दिनों मैं बरेली में ही रहता था और आकाशवाणी के रामपुर-केंद्र से उनकी कविताओं के प्रसारण का बेसब्री से इंतज़ार किया करता था। 
मेरे लिए इससे सुखद कुछ नहीं हो सकता था कि एक दिन सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के सुयोग्य पुत्र अतुल मिश्र मेरे कार्यालय राष्ट्रीय अभिलेखागार में आए और उन्होंने अपनी व्यवहार कुशलता से धीरे-धीरे छोटे भाई वाला स्थान बना लिया। उन दिनों अतुल मिश्र जी पत्रकारिता-जगत में संघर्षरत थे और साथ-साथ अपनी अलग से पहचान भी बना रहे थे, लेकिन कुछ अपने पिताश्री के संग्रहालय संबंधी और कुछ पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के कारण उन्हें अपने गृह नगर चंदौसी जाना पड़ा। वहां पहुंच कर वे आज भी स्वर्गीय सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के अधूरे कामों को पूरा करने में निरंतर कार्यरत हैं। ये मेरा सौभाग्य है कि वे मुझसे अक्सर ऐतिहासिक मुद्दों पर चर्चा करके देश व समाज के हित में निर्णय लेते रहते हैं। सुरेंद्र मोहन जी की विरासत को ईमानदारी व निष्ठापूर्वक भविष्य के लिए सहेजने में अतुल मिश्र जी की भूमिका निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि देश की ऐतिहासिक धरोहर के लिए चिंतित पुरातत्ववेत्ता व समाज को विषमताओं को जागृति करने वाले सुरेंद्र मोहन जी की आत्मा अतुल जी को सदा सर्वहित में कार्य करने के लिए मार्गदर्शन करती रहेगी। आज भले ही सुरेंद्र मिश्र जी हमारे बीच सशरीर नहीं हैं, लेकिन उनका आशीष हम सब पर सदा ही बना रहेगा।" (राजमणि, पूर्व सहायक निदेशक, राष्ट्रीय अभिलेखागार)

ईद की मुबारकबाद

ईद की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • सालगिरह - आज हमारी ईद है, क्योंकि आज उनकी सालगिरह है. और महबूब की सालगिरह से बढ़कर कोई त्यौहार नहीं होता. अगर वो न होते, तो हम भी कहां होते. उनके दम से ही हमारी ज़...
  • خطبہ حجۃ الوداع - ” سب تعریف اللہ ہی کے لیے ہم اسی کی حمد کرتے ہیں۔ اسی سے مدد چاہتے ہیں۔ اس سے معافی مانگتے ہیں۔ اسی کے پاس توبہ کرتے ہیں اور ہم اللہ ہی کے ہاں اپنے نف...
  • Rahul Gandhi in Berkeley, California - *Firdaus Khan* The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Institute of International Studies at UC Berkeley, California on Monday. He...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • हमारा जन्मदिन - कल यानी 1 जून को हमारा जन्मदिन है. अम्मी बहुत याद आती हैं. वे सबसे पहले हमें मुबारकबाद दिया करती थीं. वे बहुत सी दुआएं देती थीं. उनकी दुआएं हमारे लिए किस...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं