फ़िरदौस ख़ान  
मौलाना मुहम्मद अली जौहर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे. वे वतन पर मर मिटने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे. वे गंभीर पत्रकार थे. वे एक बेहद उम्दा शायर थे. अपने वक़्त के नामचीन शायरों और लेखकों में उनका शुमार होता था. इसके साथ-साथ वे एक समाज सुधारक भी थे. शिक्षा के क्षेत्र में किए गए उनके उत्कृष्ट कार्यों को कभी भुलाया नहीं जा सकता. वे मानते थे कि शिक्षा के ज़रिये ही व्यक्ति का संपूर्ण और सर्वांगीण विकास हो सकता है. शिक्षा ही व्यक्ति को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के उजाले तक ले आती है.  

मौलाना मुहम्मद अली जौहर का जन्म 10 दिसम्बर 1878 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में हुआ था. जब वे पांच साल के थे, तब उनके पिता अब्दुल अली ख़ान का इंतक़ाल हो गया. उनकी परवरिश की सारी ज़िम्मेदारी उनकी मां आब्दी बानो बेगम पर आ गई. वे एक तालीमयाफ़्ता और दिलेर ख़ातून थीं. उन्होंने अपने बच्चों को दीनी और दुनियावी दोनों ही तरह की तालीम दी थी. उनकी उर्दू, फ़ारसी और अरबी की तालीम घर से ही शुरू हुई. फिर मैट्रिक की पढ़ाई उन्होंने बरेली में की. इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्ध अलीगढ़ के मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज से स्नातक की उपाधि हासिल की. उनके बड़े भाई शौकत अली चाहते थे कि मुहम्मद अली जौहर इंडियन सिविल सर्विसेज़ पास करें, इसलिए उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए लन्दन भेजा गया, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई और वे वापस आ गए. कुछ अरसे बाद उन्हें फिर लन्दन भेजा गया और साल 1898 में उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड के लिंकन कॉलेज से आधुनिक इतिहास में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की. 

लन्दन से वापस आने के बाद उन्होंने कई जगह नौकरी की, लेकिन कहीं भी उनका दिल नहीं लगा. उन्हें तो कुछ और ही करना था, शायद इसलिए. उनकी दिलचस्पी पत्रकारिता और शायरी में थी. वे द टाइम्स, द ऑब्ज़र्वर और द मैनचेस्टर गार्डियन जैसे नामचीन अंग्रेज़ी अख़बारों के लिए लेख लिखा करते थे. इसके साथ ही उर्दू अख़बारों में भी उनके लेख शाया होते थे. बाद में उन्होंने ख़ुद अपने अख़बार निकाले. उन्होंने साल 1911 में कोलकाता में अंग्रेज़ी भाषा में ‘कॉमरेड’ नाम से एक साप्ताहिक अख़बार निकाला. यह अख़बार बहुत लोकप्रिय हुआ. हिन्दुस्तानी ही नहीं, अंग्रेज़ भी इस अख़बार को ख़ूब पढ़ते थे. अगले ही साल 1912 में वे दिल्ली आ गए. यहां उन्होंने साल 1913 में अपना दूसरा अख़बार शुरू किया. उर्दू के इस अख़बार का नाम ‘हमदर्द’ रखा गया. अपने नाम के अनुरूप ही यह अख़बार अवाम का हमदर्द था. इसमें अवाम के मुद्दों को उठाया जाता था और उनकी आवाज़ बुलंद की जाती थी. अंग्रेज़ी और उर्दू के ये दोनों ही अख़बार अपने वक़्त के नामी अख़बार माने जाते थे.

मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने ब्रिटिश हुकूमत की जनविरोधी नीतियों का खुलकर विरोध किया. इसके साथ ही उन्होंने ख़िलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करते हुए इसमें बढ़ चढ़कर शिरकत की. 26 सितम्बर 1914 को ब्रिटिश अधिकारियों ने ‘कॉमरेड’ पर पाबंदी लगा दी और प्रेस अधिनियम के प्रावधानों के तहत ज़मानत राशि के साथ अख़बार की सभी प्रतियां ज़ब्त कर ली गईं. उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया. उन्हें चार साल की क़ैद हुई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उनका हौसला बरक़रार रहा, बल्कि पहले से भी ज़्यादा बढ़ गया. दरअसल ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेने की वजह से उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा.  

मौलाना मोहम्मद अली जौहर ने साल 1906 में मुस्लिम लीग के सदस्य के रूप में अपना सियासी सफ़र शुरू किया था. उन्होंने इसकी स्थापना के लिए ढाका में हुई बैठक में भी शिरकत की थी. साल 1917 में उन्हें सर्वसम्मति से मुस्लिम लीग का अध्यक्ष चुना गया. साल 1919 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए. जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अपने बड़े भाई मौलाना शौकत अली के साथ साल 1919 में अमृतसर में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में शिरकत की. इस अधिवेशन में ख़िलाफ़त आंदोलन के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित हुआ. वे ख़िलाफ़त आंदोलन के लिए एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए लंदन भी गए.

वे देश को ग़ुलामी की ज़ंजीरों से आज़ाद कराने की लड़ाई में महात्मा गांधी के साथ रहे. उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का समर्थन करते हुए इसमें हिस्सा लिया. वे साल 1923 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. लेकिन कुछ अरसे बाद ही उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया. दरअसल कुछ मुद्दों पर उनका कांग्रेस के अन्य नेताओं से टकराव होता रहा. उन्होंने नेहरू रिपोर्ट का ज़ोरदार विरोध किया. इसी तरह के मतभेदों की वजह से वे कांग्रेस से दूर होते गए और आख़िरकार उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया. लेकिन लोगों की भलाई के उनके काम मुसलसल जारी रहे. उन्होंने अपने भाई शौकत अली के साथ मिलकर साल 1924 में दोबारा कॉमरेड का प्रकाशन शुरू किया किया, लेकिन वह ज़्यादा वक़्त तक नहीं चल पाया और साल 1926 में वह फिर से बंद कर दिया गया. 

उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किए. उन्होंने अलीगढ़ के मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज का विस्तार कर उसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बनाने के लिए बहुत मशक़्क़त की. उन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना में भी अहम किरदार अदा किया था. वे इसके संस्थापकों में से एक थे. जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना 1920 में अलीगढ़ में हुई थी. बाद में इसे दिल्ली लाया गया. 

उन्होंने 1931 में लन्दन में संपन्न हुए गोलमेज़ सम्मेलन में शिरकत की. इस सम्मेलन में दी गई उनकी तक़रीर उनकी आख़िरी ख़्वाहिश बनकर रह गई. सम्मलेन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था- "मेरे मुल्क को आज़ादी दो या मेरी क़ब्र के लिए मुझे दो गज़ जगह दो, क्योंकि यहां मैं अपने मुल्क की आज़ादी लेने आया हूं और उसे लिए बिना वापस नहीं जाऊंगा."

उन्होंने ऐसा इसलिए कहा, क्योंकि वे किसी ग़ुलाम मुल्क में मरना नहीं चाहते थे. कहते हैं कि दिन में एक घड़ी ऐसी आती है, जब मुंह से निकली बात फ़ौरन पूरी हो जाती है. उनके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. लंदन में ही 4 जनवरी 1931 को उनका इंतक़ाल हो गया. उन्हें यरूशलेम की मस्जिद-अल-अक़सा के क़ब्रिस्तान में दफ़नाया गया. इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद यह मस्जिद सबसे ज़्यादा मुक़द्दस मानी जाती है.

महात्मा गांधी ने मौलाना मुहम्मद अली जौहर को श्रद्धांजलि देते हुए यंग इंडिया के 19 फ़रवरी 1931 के अंक में लिखा था- यरवदा जेल से मौलाना शौकत अली के नाम एक समुद्री तार द्वारा मुझे मौलाना मुहम्मद अली के प्रति अपनी श्रद्धांजलि भेंट करने का सुअवसर प्राप्त हुआ था. किन्तु आज जब मैं यंग इंडिया का सम्पादन शुरू कर रहा हूं तो सार्वजनिक रूप से यह कहे बिना नहीं रह सकता कि मौलाना मुहम्मद अली के रूप में मैंने एक ऐसे व्यक्ति को खोया है, जिनको मैं अपना भाई और मित्र कहता था. और राष्ट्र ने एक निडर देशभक्त खोया है. हमारे विचारों में अंतर रहा, किन्तु जो प्यार मतभेदों को सहन नहीं कर सकता, वह खोखला होता है.     

वाक़ई मौलाना मुहम्मद अली जौहर एक नेक दिल इंसान थे. उनकी शायरी में उनके वजूद का अक्स अयां होता है. 
उनकी शायरी में दुनियावी मसलों का ज़िक्र है, तो आख़िरत की फ़िक्र भी है. बानगी देखिए-  
न नमाज़ आती है मुझको, न वुज़ू आता है 
सज्दा कर लेता हूं जब सामने तू आता है 

तौहीद तो ये है कि ख़ुदा हश्र में कह दे 
ये बंदा ज़माने से ख़फ़ा मेरे लिए है

क़त्ल-ए-हुसैन असल में मर्ग-ए-यज़ीद है 
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद 

वक़ार-ए-ख़ून-ए-शहीदान-ए-कर्बला की क़सम 
यज़ीद मोरचा जीता है जंग हारा है 

जीते जी तो कुछ न दिखलाया मगर 
मर के 'जौहर' आपके जौहर खुले

मौलाना मुहम्मद अली जौहर और उनके भाई मौलाना शौकत अली को ‘अली बंधुओं’ के नाम से भी जाना जाता है.  मौलाना मुहम्मद अली जौहर भले ही हमारे दरमियान नहीं हैं, लेकिन अपने नेक कामों के ज़रिये वे हमेशा याद किए जाते रहेंगे.  
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में सम्पादक हैं)
साभार : आवाज़ 






फ़िरदौस ख़ान का फ़हम अल क़ुरआन पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

या हुसैन

या हुसैन

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

सत्तार अहमद ख़ान

सत्तार अहमद ख़ान
संस्थापक- स्टार न्यूज़ एजेंसी

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • अच्छा इंसान - अच्छा इंसान बनना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी. एक अच्छा इंसान ही दुनिया को रहने लायक़ बनाता है. अच्छे इंसानों की वजह से ही दुनिय...
  • कटा फटा दरूद मत पढ़ो - *डॉ. बहार चिश्ती नियामतपुरी *रसूले-करीमص अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मेरे पास कटा फटा दरूद मत भेजो। इस हदीसे-मुबारक का मतलब कि तुम कटा फटा यानी कटा उसे क...
  • Good person - It is most important to be a good person, for yourself and for others. A good person makes the world worth living in. The world exists because of good pe...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • संग्रहणीय पुस्तक है नवगीत कोश - *फ़िरदौस ख़ान*सुप्रसिद्ध कवि एवं गीतकार डॉ. रामनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ द्वारा लिखित ‘नवगीत कोश’ पढ़ने का मौक़ा मिला। इसे पढ़कर लगा कि अगर इसे पढ़ा नहीं हो...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं