फ़िरदौस ख़ान
घुड़सवारी एक खेल ही नहीं है, बल्कि यह एक कला है. यह एक ऐसी कला है, जिसमें व्यक्ति घोड़े की पीठ पर सधकर बैठता और फिर उसकी सवारी करता है. इसमें सवार को पूरी तल्लीनता से काम लेना होता है, क्योंकि ज़रा सी भी चूक होते ही वह घोड़े की पीठ से सीधा नीचे गिर जाता है. घुड़सवारी कब से शुरू हुई, इसकी कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन इतना ज़रूर है कि इंसान हज़ारों सालों से घोड़े की सवारी कर रहा है. क़ुरआन में भी इसका ज़िक्र मिलता है.
घुड़सवारी सिर्फ़ मर्दों का ही शग़ल नहीं है, औरतें भी बख़ूबी घुड़सवारी करती रही हैं. इस्लामी तारीख़ में ऐसी औरतों का ज़िक्र बड़ी इज़्ज़त से किया जाता है, जो बहुत उम्दा घुड़सवारी किया करती थीं. इनमें हज़रत नुसायबाह बिन्त काब रज़ियाल्लाहु अन्हा का नाम प्रमुख है. उन्हें उम्म और अम्मारा नाम से भी जाना जाता है. वे मदीना के बानू नज्जर क़बीले से ताल्लुक़ रखती थीं. वे बेहद उम्दा घुड़सवार थीं. उन्होंने दूसरी बैत-उल-अक़ाबा, जंगे-उहुद, जंगे-हुनैन, जंगे-यमामा और जंगे-हुदैबियाह की संधि जैसी कई जंगों में शिरकत की थी. वे जंगे-उहुद में अल्लाह के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साथी थीं. उन्होंने पैग़म्बर को दुश्मनों के हमले से बचाया था. इसी तरह हज़रत ख़ौला बिन अल अज़वार रज़ियाल्लाहु अन्हा भी अपनी बेमिसाल घुड़सवारी और बहादुरी के लिए जानी जाती हैं. जब उनके भाई को दुश्मनों ने गिरफ़्तार कर लिया, तो वे अपने भाई को छुड़ाने के लिए निकलीं. वे इतनी तेज़ घुड़सवारी करती थीं कि दुश्मनों के पसीने छूट जाते थे. उन्हें देखकर कोई ये नहीं कह सकता था कि वह औरत हैं, क्योंकि वह मर्दों की तरह ही तेज़ घुड़सवारी करती थीं. सबको यही लगता था कि कोई मर्द घुड़सवारी कर रहा है. जब उनके चेहरे से नक़ाब हटा तो दुश्मन उन्हें देखकर दंग रह गए. उन्होंने इससे पहले किसी औरत को इतनी उम्दा घुड़सवारी करते हुए नहीं देखा था. ये औरतें एक हाथ में तलवार लेकर घुड़सवारी किया करती थीं. दायें हाथ में तलवार होती थी और बायें हाथ में घोड़े की लगाम. एक हाथ से मैदाने-जंग में घुड़सवारी करते देख लोग दांतों टेल उंगलियां दबा लिया करते थे.
इस्लामी तारीख़ में ऐसी औरतों की बहुत सी मिसालें हैं, जो बेहद शानदार घुड़सवारी किया करती थीं. उन्हें बाक़ायदा घुड़सवारी सिखाई जाती थी, ताकि ज़रूरत पड़ने पर वह उनके काम आ सके. यह इस बात की भी दलील है कि इस्लाम ने औरतों को किसी भी जायज़ काम से रोका नहीं है. आज जो लोग लड़कियों और औरतों पर बिना वजह की पाबंदियां लगाते हैं, दरअसल वे इस्लाम को जानते ही नहीं हैं. औरतों को कमतर समझने की सोच ने मुस्लिम औरतों की क़ाबिलियत के क़िस्सों को पुरानी किताबों में ही दफ़न करके रख दिया है. वे औरतों की दानिशमंदी, उनकी बहादुरी और उनकी क़ाबिलियत की तारीफ़ करना ही नहीं चाहते. उन्हें लगता है कि शायद ऐसा करने से वे औरतों को घर की चहारदीवारी तक क़ैद करके नहीं रख पाएंगे. आज इस बात की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है कि इस्लाम की बुनियादी तालीम को जन-जन तक पहुंचाया जाए. लोगों को बताया जाए कि इस्लाम में भी औरतों को अपनी क़ाबिलियत दिखाने का पूरा मौक़ा दिया गया है.
शानदार घुड़सवारी करती बेटियां
यह ख़ुशनुमा बात है कि तमाम पाबंदियों के बावजूद आज मुस्लिम समाज की लड़कियां आगे आ रही हैं. वे अपनी कामयाबी के परचम लहरा रही हैं. ऐसी ही एक घुड़सवार हैं साइमा सैयद, जो राजस्थान के सीकर जिले के क़स्बे खाटू की रहने वाली हैं. साइमा ने एक्वेस्ट्रियन फ़ैडरेशन ऑफ़ इंडिया और ऑल इंडिया राजस्थानी हॉर्स सोसाइटी के गुजरात चेप्टर के तत्वावधान में 17-18 फ़रवरी 2021 को अहमदाबाद में आयोजित ऑल इंडिया ओपन ऐंड्यूरेन्स प्रतियोगिता में शिरकत की थी. उन्होंने 80 किलोमीटर के इस मुक़ाबले में देश के कई विख्यात घुड़सवारों को टक्कर देते हुए कांस्य पदक जीता था. इसके साथ ही उन्होंने इस मुक़ाबले में क्वालीफ़ाई भी किया था. अपने शानदार प्रदर्शन के दम पर वह देश की ऐसी पहली महिला घुड़सवार बन गईं, जिसने वन स्टार केटेगरी हासिल की है. इससे पहले उन्होंने 40 किलोमीटर, 60 किलोमीटर और 80 किलोमीटर के मुक़ाबलों में पदक हासिल करते हुए क्क्वालीफ़ाई किया था. वन स्टार राइडर बनने के लिए 40 और 60 किलोमीटर की एक-एक और 80 किलोमीटर के दो मुक़ाबलों में क्वालीफ़ाई करना होता है.
क़ाबिले- ग़ौर बात यह है कि घुड़सवारी के एंड्यूरेंस मुक़ाबले में पुरुषों और महिलाओं के अलग-अलग मुक़ाबले नहीं होते, बल्कि महिलाओं को भी पुरुषों के साथ ही जद्दोजहद करके जीत हासिल करनी होती है. इससे पहले साइमा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 'वंडर वूमेन' का ख़िताब हासिल किया था. इसके साथ ही वह शो जम्पिंग और हेक्स आदि मुक़ाबलों में भी हिस्सा लेकर कई पदक जीत चुकी हैं. साइमा को बचपन से ही घुड़सवारी का शौक़ था. उन्हें बख़ूबी आता है कि कैसे घोड़ों को दौड़ाना है और कैसे उन्हें क़ाबू में करना है. घुड़सवारी की उनकी शुरुआत स्कूल से हो गई थी. उन्होंने बाक़ायदा घुड़सवारी का प्रशिक्षण लिया है. उन्होंने महज़ दस साल की उम्र में 100 मीटर की दौड़ में अपना पहला पदक जीता था. उसके बाद उन्होंने बहुत से मुक़ाबलों में हिस्सा लिया और तक़रीबन 50 पदक जीतकर अपने ख़ानदान और शहर का नाम रौशन किया.
पिछले दिसम्बर में ग़ाज़ियाबाद में आयोजित उत्तर प्रदेश राज्य स्तरीय घुड़सवारी प्रतियोगिता में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की छात्रा कुलसुम सलाहुद्दीन ने शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक हासिल किया.
दक्षिण लंदन की ख़दीजा मल्लाह की गिनती इस समय दुनिया की चुनिंदा महिला घोड़सवारों में होती है. 21 साल की ख़दीजा ब्रिटिश मुस्लिम महिलाओं की प्रेरणा बनी हुई हैं. कमाल यह है कि यह हिजाब में घुड़सवारी करती हैं.
दरअसल लड़कियों और महिलाओं की कामयाबी में इनके परिवार वालों का भी बहुत बड़ा योगदान होता है. उनकी मां और घर की दूसरी औरतें उन पर घर के कामकाज का बोझ नहीं डालतीं. इस तरह उन्हें अपनी पढ़ाई के साथ-साथ दूसरी चीज़ों के लिए भी काफ़ी वक़्त मिल जाता है. उनके पिता, भाई व परिवार के अन्य पुरुष भी उन पर पाबंदियां नहीं लगाते, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर उनकी मदद ही करते हैं. इस तरह परिजनों का साथ मिलने पर उनके कुछ कर गुज़रने के उनके जज़्बे को पंख मिल जाते हैं.
पुरुषों के वर्चस्व वाले इस खेल में महिलाएं बहुत कम हैं. लेकिन कहते हैं कि वक़्त कभी एक जैसा नहीं रहता. वक़्त के साथ-साथ बहुत कुछ बदल जाता है. अब घुड़सवारी में भी लड़कियां आगे आ रही हैं. देश में ऐसी कई महिला घुड़सवार हैं, जो अपने शानदार प्रदर्शन से अपने घर, शहर, राज्य और देश का नाम रौशन कर रही हैं. पिछले सितम्बर माह में भारतीय घुड़सवारी टीम ने जॉर्डन की वादी रम में आयोजित महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय टेंट पेगिंग चैम्पियनशिप में पदार्पण में कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रौशन किया. भारतीय टीम में रितिका दहिया, प्रियंका भारद्वाज और खुशी सिंह शामिल थीं. भारतीय घुड़सवारी महासंघ के मुताबिक़ इस प्रतियोगिता में कुल 14 देशों ने हिस्सा लिया था. भारतीय टीम ने पदार्पण में ही अपनी मौजूदगी दर्ज कराई और 136 अंक हासिल किए. इस प्रतियोगिता में 170.5 अंक के साथ दक्षिण अफ्रीका की टीम पहले और 146 अंक के साथ ओमान की टीम दूसरे स्थान पर रही. प्रतियोगिता के पहले दिन कप्तान दहिया और भारद्वाज ने व्यक्तिगत और पेयर्स लांस स्पर्धा में हिस्सा लिया. टीम पहले दिन के आख़िर में सातवें स्थान पर चल रही थी. दूसरे दिन भारत ने व्यक्तिगत और टीम स्वॉर्ड मुक़ाबले में हिस्सा लिया और 24 अंक से दूसरा स्थान हासिल कर लिया. व्यक्तिगत स्पर्धा में खुशी सिंह ने 18 अंक से पहला स्थान हासिल किया. उन्होंने ने भारत के लिए एक स्वर्ण पदक, रजत पदक और एक कांस्य पदक जीता.
सुदीप्ति हजेला
मध्य प्रदेश के इंदौर की सुदीप्ति हजेला भी शानदार घुड़सवार हैं. साल 2020 में उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया था. साल 2017 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें एकलव्य पुरस्कार से सम्मानित किया. उन्होंने शौक़िया घुड़सवारी सीखी थी, जो बाद में उनका करियर बन गई. साल 2013 में पश्चिम बंगाल के कोलकाता में उन्होंने अपना पहला नेशनल शो किया था, जिसमें उन्हें कांस्य पदक जीता था. उन्होंने 52 राष्ट्रीय और 7 अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं.
सुदीप्ति हजेला के मुताबिक़ घुड़सवारी में तीन मूव होते हैं, जिनमें शो जंपिंग, इवेंटिंग और ड्रैसेस शामिल हैं. वह ड्रैसेस करती हैं. ड्रैसेस बेसिकली बहुत ही क्लासिकल फ़ॉर्म ऑफ़ हॉर्स राइडिंग है, जिसमें घोड़े के साथ बेस्ट परफ़ॉर्म करना होता है. प्रदर्शन के आधार पर जज 1 से लेकर 10 के बीच के अंक देते हैं, जिसे सबसे ज़्यादा अंक मिलते हैं, वही विजेता होता है.
श्वेता हुड्डा
सांसद दीपेन्द्र हुड्डा की पत्नी व हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की पुत्रवधू श्वेता हुड्डा भी बहुत अच्छी घुड़सवार हैं. उन्होंने भारतीय अश्वारोही संघ द्वारा 2 नवंबर 2019 को दिल्ली में आयोजित ड्रैसेस वर्ल्ड चैलेंज चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम ऊंचा किया था. इस प्रतियोगिता में 50 से ज़्यादा देशों के घुड़सवारों ने हिस्सा लिया था. उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए सबसे ज़्यादा 62.426 अंक हासिल करते हुए पहला स्थान हासिल किया, जबकि एमएस राठौर 62.353 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहे. इस खेल में भी महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि वे किसी भी लिहाज़ से पुरुषों से कम नहीं हैं. इससे पहले उन्होंने साल 2018 में राष्ट्रीय स्तर पर दो स्वर्ण पदक हासिल किए थे. साल 2018 में ही उन्होंने सीनियर वर्ल्ड चैलेंज ड्रैसेस रिप्ले में रजत पदक और इसी साल 2018 एफ़ईआई वर्ल्ड चैंलेंज ड्रेसेज रिप्ले में रजत पदक जीता था. साल 2014 में उन्होंने मीडियम ड्रेसेज में रजत पदक हासिल किया था.
ज्योतिका हसन वालिया
महज़ 14 साल की उम्र से घुड़सवारी करने वाली ज्योतिका हसन वालिया भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की घुड़सवार हैं. वह साल 1996 में जूनियर भारतीय टीम की कप्तान रह चुकी हैं. उत्तराखंड की रहने वाली ज्योतिका ने दिसम्बर 2019 में दिल्ली में आयोजित वर्ल्ड जंपिंग चैंपियनशिप में 130 मीटर की ऊंचाई में घुड़सवारी करके कांस्य पदक जीता था. इससे पहले उन्होंने अप्रैल 2017 में बेल्ज़ियम में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में चौथा स्थान हासिल किया था.
ये सब महिला घुड़सवार लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी हुई हैं. इस मुक़ाम तक पहुंचने के लिए इन्होंने कड़ी मेहनत की है. अगर लड़कियों को खेलों व अन्य क्षेत्रों में काम करने का मौक़ा मिले, तो वे साबित कर देती हैं कि वह भी किसी से कम नहीं हैं. बस ज़रूरत होती है उन्हें काम करने का मौक़ा देने की और उनका हौसला बढ़ाने की. उन्हें बस रास्ते पर चलने की इजाज़त भर मिल जाए. फिर वह ख़ुद रास्ता तय कर लेती हैं और रास्ते में आने वाली तमाम तरह की रुकावटों का सामना भी कर लेती हैं. वे जानती हैं कि वे अपनी मंज़िल हासिल कर सकती हैं.
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में सम्पादक हैं)
साभार : आवाज़