फ़िरदौस ख़ान
खुम्बी यानी मशरूम बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक खाद्य पदार्थ है. यह एक प्रकार की कवक है. इसे खुम्ब और कुकुरमुत्ता भी कहा जाता है. अमूमन बरसात के मौसम में यह उग जाती है. दुनिया में दो हज़ार से ज़्यादा क़िस्मों की खुम्बी पाई जाती हैं.  मगर इनमें से बहुत कम यानी तक़रीबन 250 क़िस्म की खुम्बी ही खाने के लायक़ होती हैं. बाक़ी खुम्बी ज़हरीली होती हैं, जो सेहत के लिए नुक़सानदेह हैं. चीन खुम्बी की कई प्रजातियों की खेती बहुत पहले से होती रही है. लेकिन दुनिया में सबसे पहले 1650 में फ़्रांस में श्वेत बटन खुम्बी की बाक़ायदा खेती शुरू हुई थी. भारत में तक़रीबन पांच दशक पहले खुम्बी की खेती की तरफ़ ध्यान दिया गया. हालांकि फ़िलहाल दुनिया में तक़रीबन 40 क़िस्म की खुम्बी की खेती की जा रही है, जिनमें श्वेत बटन मशरूम, ग्रीष्मकालीन श्वेत बटन मशरूम, ब्लैक ईयर मशरूम, शिटाके मशरूम, काबुल ढींगरी, ढींगरी मशरूम, पराली मशरूम और दूधिया मशरूम आदि शामिल हैं. श्वेत बटन मशरूम विश्व में सर्वाधिक उगाई जाने वाली खुम्बी है. औषधीय गुणों की उपलब्धता के कारण इसका औषधीय महत्व भी है. शिटाके मशरूम विश्व खुम्बी उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. इसे खुम्बी का राजा भी कहा जाता है. ढिंगरी मशरूम विश्व में उगाए जानी वाली खुम्बियों में तीसरे स्थान पर है. एक अनुमान के मुताबिक़ दुनियाभर के एक सौ से भी ज़्यादा देशों में 50 लाख टन से ज़्यादा खुम्बी का सालाना उत्पादन किया जाता है, जबकि भारत में हर साल तक़रीबन 40 हज़ार टन श्वेत बटन मशरूम का उत्पादन किया जाता है. यहां से हर साल हज़ारों टन खुम्बी का निर्यात किया जा रहा है.

ग़ौरतलब है कि विश्व बाज़ार में खुम्बी की बढ़ती मांग को देखते हुए भारत में भी इसे प्रोत्साहन मिला. हिमाचल प्रदेश के चम्बाघाट में स्थित हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में खुम्बी पर शोध कार्य शुरू किया गया. 23 अक्टूबर 1982 को छठी पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय मशरूम अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र सोलन में स्थापित करने का फ़ैसला किया गया. अगले ही साल 8 जून 1983 को इसका निर्माण कार्य शुरू हो गया. फिर 21 जून 1986 को तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री जीएस ढिल्लो ने इसका उदघाटन किया. सोलन से ही अखिल भारतीय समन्वित मशरूम अनुसंधान परियोजना शुरू की गई.  इसके केंद्र लुधियाना, पंत नगर, फ़ैज़ाबाद, रायपुर, उदयपुर, कोयंबटूर, पुणे और गोआ काम कर रहे हैं. कृषि वैज्ञानिकों के शोध के बाद वैज्ञानिक तरीक़े से इसकी खेती की जा रही है. अन्य फ़सलों की तरह इसे ख़ास तरह की ज़मीन की ज़रूरत नहीं होती. इसकी खेती कमरों, छप्परों और गमलों में भी की जा सकती है. इसलिए खुम्बी की खेती भूमिहीन, सीमांत किसानों और महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रही है.

खुम्बी की खेती दो तरह से की जाती है. पहली सीजनल और दूसरी नियंत्रित वातावरण में. खुम्बी को विभिन्न फ़सली चक्रों में साल भर उगाया जा सकता है, जैसे मैदानी इलाक़ों और कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर सर्दियों के मौसम में श्वेत बटन मशरूम, गर्मियों में ग्रीष्मकालीन श्वेत बटन मशरूम व ढींगरी और बारिश के मौसम में पराली मशरूम व दूधिया मशरूम की खेती की जा सकती है. मैदानी इलाकों में नवम्बर से फ़रवरी तक श्वेत बटन मशरूम उगाया जा सकता है. इसी तरह सितम्बर से नवम्बर और फ़रवरी से अप्रैल तक ग्रीष्मकालीन श्वेत बटन मशरूम की खेती की जा सकती है. सितम्बर से मई तक ढींगरी मशरूम उगाया जा सकता है.  जुलाई से सितम्बर तक पराली मशरूम की खेती की जा सकती है.  दूधिया मशरूम फ़रवरी से अप्रैल और जुलाई से सितम्बर तक उगाया जा सकता है. मध्यम उंचाई वाले पहाड़ी इलाक़ों में सितम्बर से मार्च तक श्वेत बटन मशरूम की खेती की जा सकती है. इसी तरह जुलाई से अगस्त और मार्च से मई तक ग्रीष्मकालीन श्वेत बटन मशरूम उगाया जा सकता है. अक्टूबर से फ़रवरी तक शिटाके मशरूम और अप्रैल से जून तक दूधिया मशरूम की खेती की जा सकती है. ढिंगरी मशरूम को पूरे साल उगाया जा सकता है. ज़्यादा उंचाई वाले पहाड़ी इलाक़ों में मार्च से नवम्बर तक श्वेत बटन मशरूम की खेती की जा सकती है. इसी तरह मई से अगस्त तक ढिंगरी मशरूम और दिसम्बर से अप्रैल तक शिटाके मशरूम उगाया जा सकता है.

कृषि विशेषज्ञ के मुताबिक़ खुम्बी की अच्छी पैदावार लेने के लिए उन्नत क़िस्म के बीज और कुशल प्रबंधन की ज़रूरत होती है. खुम्बी उत्पादन के लिए सही कमरे का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. कमरा हमेशा पूर्व-पश्चिम दिशा में होना चाहिए. इससे ताज़ी हवा और तापमान सही बना रहता है. कमरों का इंतज़ाम ऐसा होना चाहिए कि इनकी दूषित हवा दूसरे कमरे में न जाए. कमरे में बिजली के पंखों और पानी का इंतज़ाम होना चाहिए. कमरों का आकार 35 गुणा 25 गुणा 12 हो, तो बेहतर है, क्योंकि इसमें पांच शेल्फ़ों में 18 से 20 टन कम्पोस्ट ली जा सकेगी. खुम्बी उत्पादन के लिए उन्हीं पदार्थों से कंपोस्ट तैयार करनी चाहिए, जो आसानी से उपलब्ध होने के साथ-साथ सस्ते भी हों. कंपोस्ट पक्के फ़र्श पर ही बनानी चाहिए. कम्पोस्ट बनाने से पहले फ़र्श पर दो फ़ीसद फ़ारमेलिन के घोल डाल देना चाहिए, ताकि रोगों और कीटों से बचाव हो सके. कम्पोस्ट बनाते वक़्त पानी की मात्रा शुरू में ही इतनी हो, जिससे जिप्सम मिलाने के बाद कम्पोस्ट में पानी न डालना पड़े, क्योंकि बाद में पानी डालने पर चिकनापन आ जाता है, जिससे खुम्बी का जाला फैलने में परेशानी आती है.

कम्पोस्ट बनाते वक़्त बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत होती है. कम्पोस्ट का ढेर बनाते वक़्त उसकी चौड़ाई और ऊंचाई पांच फ़ुट से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए.  पलटाई इस तरह करनी चाहिए कि नीचे की खाद ऊपर और ऊपर की नीचे आ जाए, ताकि रासायनिक क्रियाएं सुचारू रूप से हो सकें. ढेर बनाते वक़्त कम्पोस्ट में नाइट्रोजन की मात्रा 1.5 से 1.75 फ़ीसद होनी चाहिए, जबकि खाद में इसकी दर 2. 6 फ़ीसद से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. तैयार कम्पोस्ट का पीएच मान 7.2 से 7.8 होना चाहिए और इसमें अमोनिया गैस की गंध न हो. तैयार कम्पोस्ट का रंग गहरा भूरा होना चाहिए. उसमें चिपचिपापन नहीं होना चाहिए और नमी की मात्रा 68 से 72 फ़ीसद होनी चाहिए.  तैयार कम्पोस्ट में खुम्बी का बीज मिलाने से पहले नमी और अमोनिया की जांच ज़रूर करें.  ज़्यादा पानी और अमोनिया दोनों ही खुम्बी के बीज के लिए नुक़सानदेह हैं. इन्हें कम करने के लिए तीन-चार दिन के अंतराल पर पलटाई करते हुए खाद को खुला छोड़ देना चाहिए. खुम्बी का बीज मिलाने के लिए कम्पोस्ट की तह छह इंच रखनी चाहिए, जबकि थैलों में सिर्फ़ तीन चौथाई खाद डालनी चाहिए. पीली फफूंद की रोकथाम के लिए प्रति  10 क्विंटल कम्पोस्ट में 1.5 लीटर फ़ारमोलिन और 75 ग्राम बाविस्टीन 50 लीटर पानी में घोल कर छिड़कें और दो दिन के लिए ढक दें.

खुम्बी का अच्छा उत्पादन लेने के लिए हमेशा अच्छी क़िस्म का ताज़ा बीज इस्तेमाल करना चाहिए. ध्यान रहे कि अनाज के दाने पर खुम्बी के फफूंद का जाला सफ़ेद और रेशम जैसा होना चाहिए.  खुम्बी का बीज स्पॊन बनाने के लिए गेहूं का इस्तेमाल किया जाता है. गेहूं को ठंडे पानी में कई बार धोकर तब तक उबाला जाता है, जब तक उसके दाने नरम नहीं हो जाते. बस दाने फटने नहीं चाहिए. इसके बाद गेहूं के दानों को छाया में सुखा लिया जाता है. अब इनमें कैल्शियम कार्बोनेट और कैल्शियम सल्फ़ेट मिलाते हैं. बीज आपस में चिपकने नहीं चाहिए. इन दानों को बोतलों या प्लास्टिक के थैलों में भर लिया जाता है. बोतलों के मुंह पर रूई लगाकर और थैलियों के मुंह को डोरी से बांधकर बंद कर दिया जाता है. अब इन बोतलों और थैलों को निवेशन कक्ष में रख दिया जाता है. इन्हें 28 से 30 डिग्री सेल्सियस पर तीन हफ़्ते तक रखा जाता है. इस दौरान खुम्बी का जाल फैल जाता है. कम्पोस्ट में हमेशा खुम्बी का बीज 5.0 से 7.5 फ़ीसद की दर से मिलाना चाहिए. कम्पोस्ट में बीज मिलाने के बाद फ़ौरन रैकों और थैलियों को दो फ़ीसद फ़ारमेलिन से उपचारित काग़ज़ से ढक दें. बिजाई के बाद खुम्बी भवन में 0.1 फ़ीसद मैलाथियान या 0.5 फ़ीसद नुवान का छिड़काव करें, ताकि कीटों के संक्रमण से बचा जा सके. खुम्बी का जाल फैलने के लिए खुम्बी भवन का तापमान 24 से 26 डिग्री सैल्सियस और नमी की मात्रा 90 फ़ीसद के आसपास होनी चाहिए. शुरू में खुम्बी का जाला कम्पोस्ट में तेज़ी से फैलने के लिए खुम्बी भवन में कार्बन डाई ऒक्साइड की मात्रा ज़्यादा रखने के लिए सभी खिड़कियां, रौशनदान और दरवाज़े बंद रखने चाहिए. कम्पोस्ट में जाला फैलने के वक़्त खुम्बी भवन का तापमान 27 डिग्री सैल्सियस से ज़्यादा नहीं होना चाहिए.

केसिंग मिश्रण को भी अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए. केसिंग मिश्रण को 5 फ़ीसद फ़ारमेलिन से निर्जीवीकरण करने के बाद ही इस्तेमाल करना चाहिए. केसिंग मिश्रण का पीएच मान 7 फ़ीसद से 7.5 के बीच होना चाहिए. इसमें पानी सोखने की क्षमता तक़रीबन 60 फ़ीसद होनी चाहिए. कम्पोस्ट में पूरी तरह से जाला फैलने के बाद केसिंग मिश्रण को साफ़ पानी से गीला करने के बाद समानांतर मात्रा में कम्पोस्ट के ऊपर ढक देना चाहिए. ध्यान रहे सतह की मोटाई 4 सेंटीमीटर से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. केसिंग के बाद 0.15 फ़ीसद डाईथेन एम-45 या 0.1 फ़ीसद बावस्टिन और 0.1 फ़ीसद मैलाथियान 50 ईसी का छिड़काव करना चाहिए. केसिंग के 8 से 10 दिन बाद कमरों में नमी की मात्रा 90 से 95 फ़ीसद और तापमान 24 से 26 डिग्री सैल्सियस के बीच होना चाहिए. कार्बन डाई ऒक्साइड की ज़्यादा मात्रा बनाए रखने के लिए कमरे के दरवाज़े, खिड़कियां और रौशनदान बंद रखने चाहिए.  केसिंग के 8 से 10 दिन बाद जब छोटे-छोटे पिन हैड निकलने लगें, तो कमरे की खिड़कियां, रौशनदान और दरवाज़े खोल दें, ताकि ताज़ी हवा अंदर आ सके और कार्बन डाई ऒक्साइड की मात्रा घट जाए. ऐसे में कमरे का तापमान 16 से 18 डिग्री सैल्सियस और नमी की मात्रा 80 से 90 फ़ीसद होनी चाहिए.

खुम्बी के उत्पादन के बाद बची कंपोस्ट का एक अति उत्तम ऑर्गेनिक खाद के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. बहुत से किसान अपनी पारंपरिक फ़सलों के अलावा खुम्बी उत्पादन करके अतिरिक्त आमदनी अर्जित कर रहे हैं.  बेकार पड़ी बंजर भूमि में भी खुम्बी की खेती की जा सकती है. कच्चे कमरे बनाकर भी इसकी खेती की जा सकती है. खुम्बी की कई क़िस्में 15 से 20 दिनों में ही उगनी शुरू हो जाती हैं, जबकि कुछ क़िस्मों को उगने में ढाई महीने तक का वक़्त लग जाता है. ग्रामीण महिलाएं भी खुम्बी का उत्पादन करके आत्मनिर्भर बन रही हैं. बेरोज़गारों के लिए खुम्बी आमदनी का बेहतर ज़रिया है. उत्तर भारत के मैदानी इलाक़ों में सर्दी के महीनों में बटन खुम्ब और गर्मियों में धान पुआल खुम्ब की खेती की जा सकती है. उत्तर भारत में सफ़ेद बटन मशरूम सबसे ज़्यादा उगाई जाती है.  नियंत्रित वातावरण में बटन मशरूम की खेती सालभर की जा सकती है. इस दौरान मशरूम की चार से पांच फ़सलें मिल जाएंगी. खुम्बी की सीजनल खेती में लागत कम होने की वजह से यह ज़्यादा फ़ायदेमंद साबित हो रही है.

खुम्बी स्वास्थ्यवर्धक और औषधीय गुणों से भरपूर है. इसमें एमीनो एसिड, खनिज, लवण, विटामिन बी, विटामिन सी, विटामिन बी-12 जैसे पौष्टिक तत्व होते हैं. इससे बहुत-सी दवाएं और टॊनिक बनाए जाते हैं. यह खाने में स्वादिष्ट है. इससे तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं. बाज़ार में इसकी मांग बढ़ रही है. चूंकि खुम्बी एक महंगी सब्ज़ी है, इसलिए यह पंच सितारा होटलों में पौष्टिक आहार के रूप में परोसी जाती है. विशेष समारोहों में भी खुम्बी पौष्टिक और महंगे भोजन की जगह ले रही है.

पिछले तीन दशकों में खुम्बी उत्पादन में क्रांति आई है. खुम्बी की बढ़ती मांग का ही नतीजा है कि आज पारंपरिक खेतीबाड़ी करने वाले किसान भी खुम्बी उत्पादन में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब और तमिलनाडु आदि राज्यों में खुम्बी का उत्पादन फलफूल रहा है. हर साल खुम्बी उत्पादन में इज़ाफ़ा हो रहा है और यह बढ़ोतरी देश ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर देखी जा रही है. खुम्बी उत्पादन को स्वरोज़गार के तौर पर अपनाया जा सकता है. सरकार ने स्वरोजगार योजनाओं में खुम्बी उत्पादन को भी शामिल किया है. सरकार खुम्बी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी जानकारी के अलावा क़र्ज़ भी मुहैया करवा रही है. इस क्षेत्र में अब निजी बैंक भी सक्रिय हो रहे है, जिसका सीधा फ़ायदा उत्पादकों को मिल रहा है. बेरोज़गार युवा प्रशिक्षण हासिल करते खुम्बी की खेती कर रहे हैं. 



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