सीने में जलन आंखों में तूफ़ान सा क्यूं है
इस शहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूं है
दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंडे
पत्थर की तरह बे-हिस-व-बेजान-सा क्यूं है
तन्हाई की यह कौन-सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
ता हददे-नज़र एक बयाबान-सा क्यूं है
हम ने तो कोई बात निकाली नही ग़म की
वह ज़ूद-ए-पशीमान, पशीमान-सा क्यूं है
-शहरयार
ग़ालिब की डायरी है दस्तंबू
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*फ़िरदौस ख़ान*
हिन्दुस्तान के बेहतरीन शायर मिर्ज़ा ग़ालिब ने उर्दू शायरी को नई ऊंचाई दी.
उनके ज़माने में उर्दू शायरी इश्क़, मुहब्बत, विसाल, हिज्र और हुस्...
