स्टार न्यूज़ एजेंसी
नई दिल्ली. जापान इंटरनेशल कोऑपरेशन एजेंसी की सहायता से केन्द्र सरकार और उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा दिल्ली राज्य की सरकारों द्वारा यमुना नदी में प्रदूषण उपशमन के लिए यमुना कार्य योजना कार्यान्वित की जा रही है। यमुना कार्य योजना का पहला चरण अप्रैल, 1993 से फरवरी, 2003 तक कार्यान्वित किया गया था। यमुना योजना का द्वितीय चरण दिसम्बर, 2004 में शुरू हुआ था।
पर्यावरण और वन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयराम रमेश ने राज्यसभा में बताया कि दोनों चरणों की कुल अनुमोदित लागत 1339 करोड़ रुपए है। दोनों चरणों के अंतर्गत अब तक 908.89 करोड़ रुपए व्यय किया जा चुका है। यमुना कार्य योजना के दोनों चरणों के अंतर्गत अब तक तीन राज्यों के 21 शहरों में कुल 276 स्कीमें पूरी की जा चुकी हैं और 753.25 मिलियन लीटर प्रतिदिन की सीवेज का इंटर सेप्शन और दिशा परिवर्तन, सीवेज शोधन संयंत्रों की स्थापना, अल्पलागत शौचालयों का निर्माण , विद्युत उन्नत काष्ठ शवदाह गृह और नदी यमुना विकास शामिल है। यमुना कार्य योजना के अतिरिक्त राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार ने भी अन्य संसाधनों से यमुना नदी के लिए प्रदूषण उपशमन कार्य शुरू किए हैं।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कराए गए एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली में वजीराबाद से ओखला के बीच यमुना नदी का क्षेत्र अत्यधिक प्रदूषित है। यह सूचना मिली है कि दिल्ली से उत्पन्न अपशिष्ट जल की मात्रा, यमुना नदी के किनारों पर स्थित प्रमुख शहरों से उत्पन्न कुल अपशिष्ट जल की मात्रा की लगभग 79 प्रतिशत है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दिल्ली के चुनिंदा स्थानों पर की गई भू-जल गुणवत्ता मॉनीटरी से यह पता चलता है कि मानसून से पहले की अवधि के दौरान एक स्थान पर टॉक्सिक मेटल्स की सांद्रता भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा निर्धारित पेय जल गुणवत्ता मानकों से अधिक है। हालांकि मानसून की अवधि के बाद रीचार्ज के कारण भू-जल गुणवत्ता में सुधार हो जाता है।