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फरीदाबाद (हरियाणा). सूरजकुंड में चल रहे 24वें हस्तशिल्प मेले में न केवल देश के बल्कि विदेशी शिल्पकारों ने भी अपनी-अपनी कृतियों एवं दस्तकारी से दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया है। इन्हीं कृतियों में से एक बंगाल की प्रसिद्ध साड़ियों में कांथा डिजाईन की साड़ियों ने अपनी अलग पहचान बनाई है और इस प्राचीन कला ने मेले की शोभा बढ़ाई है और इस मेले में बंगाल के विश्वजीत की बूथ नं0 62 को उनकी इस क्षेत्र में बेहतरीन सेवाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है।

परम्परागत रूप से साड़ी पर कांथा वर्क कपड़े को नया जीवन प्रदान करता है और एक साड़ी पर यह कार्य पूरा करने पर कम से कम पांच से छह माह का समय लगता है। सर्वप्रथम ट्रेसिंग पेपर से साड़ी पर ड्राईंग बनाई जाती है। इसके बाद विभिन्न रंगों के धागों से कढ़ाई का कार्य किया जाता है। इसी प्रकार, छत्तीसगढ़ के शिल्पकार देवव्रत डे के बूथ नं 189 में भी कांथा कढ़ाई की साड़ियां उपलब्ध हैं। वर्ष 2003 में डे को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डे अपनी साड़ियों को आस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना तथा स्विटजरलैंड जैसे देशों में निर्यात करता है। इसके अलावा देश में भी इसकी काफी मांग है।

मेले में राजस्थान का प्रसिद्ध कठपुतली नृत्य भी लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। विभिन्न प्राचीन कहानियों पर आधारित 90 मिनट से भी अधिक का प्रदर्शन किया जाता है। इसी प्रकार, मेले में राजस्थान के नृत्य कलाकार शामलाल धर्मा ने बताया कि उनका प्रसिद्ध कठपुतली नृत्य अनारकली है, जो हमेशा ऐसे मेलों में प्रदर्शित करते हैं।

सूरजकुंड मेले में बिहार के मैथिली क्षेत्र की प्रसिद्ध पारम्परिक मधुबनी चित्रकला प्रदर्शनी के स्टॉल भी दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। बिहार की मधुबनी जिले के चन्द्रभूषण कलाकार ने बताया कि इसके लिए वे खादी पेपर और प्राकृतिक रंगों से चित्रकारी करते हैं और पिछले 20 वर्षों से इस कार्य में लगे हैं। उन्होंने कहा कि उनकी चित्रकला में वेद पुराण, उपनिषद्, रामायण तथा महाभारत से जुड़ी कृतियां होती हैं। मधुबनी चित्रकला बिहार के चम्पारण, सहारसा, वैशाली तथा दरभंगा जिलों में काफी लोकप्रिय है।


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