कल्पना पालखीवाला
वैज्ञानिक सहमति के अभाव और राज्य सरकारों एवं अन्य समूहों के विरोध के कारण पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 9 फरवरी, 2010 को बीटी ब्रिंजल के व्यवसायीकरण पर तब तक रोक लगाने का निर्णय लिया जब तक आम जनता, गैर सरकारी संगठनों, वैज्ञानिकों और राज्य सरकारों की सभी चिंताओं का उचित रूप से समाधान नहीं हो जाता।

जेनेटिक ईंजीनियरिंग अप्रूवल कमिटी (जी ई ए सी) ने पिछले वर्ष आयोजित अपनी बैठक में तीन उच्चस्तरीय तकनीकी समितियों द्वारा की गई समीक्षा के परिणामों पर विचार करते हुए कहा था कि परिवेशी उद्भव के लिए बीटी ब्रिंजल सुरक्षित है। इन तीनों समितियों में से एक रिव्यू कमिटी ऑन जेनेटिक मैनिपुलेशंस (आर सी जी एम) और 2006 एवं 2009 में जी ई ए सी द्वारा गठित की गई दो विशेषज्ञ समितियां हैं। सरकार को जी ई ए सी की अनुशंसा देने के बाद इस मंत्रालय ने विषेषज्ञ समिति (ई सी -AA) की रिपोर्ट पर 31.12.2009 तक सभी हितधारकों से टिप्पणियों की मांग की थी। इसके बाद जनवरी-फरवरी 2010 के दौरान कोलकाता, भुवनेश्वर, अहमदाबाद, नागपुर, चंडीगढ़, हैदराबाद और बंगलोर (बैंगन का उत्पादन करने वाले मुख्य क्षेत्र) इन सात स्थानों पर राष्ट्रीय विचार-विमर्श किया गया था। पर्यावरण एवं वन मंत्री द्वारा सार्वजनिक विचार-विमर्शों की अध्यक्षता की गई थी। विचार-विमर्श की प्रक्रिया के एक हिस्से के रूप में मंत्रालय ने बैंगन उत्पादक राज्यों के साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को इस जी एम क्रॉप (अनुवांशिक संशोधित फसल) पर अपने विचार स्पष्ट करने के लिए पत्र लिखा था। राष्ट्रीय विचार-विमर्श के दौरान अनेक चिंताएँ प्रकट की गईं जिनमें स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे, जैव विविधता की क्षति, बीज के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भरता, जीन भंडार के प्रदूषण से देशी किस्मों की क्षति, प्रोद्योगिकी की धारणीयता, उपभोक्ता की पसंद और लेबलीकरण, नियंत्रणकारी प्रक्रिया की उपयुक्तता इत्यादि शामिल थे।

बीटी बैंगन विषय - ई.ई -1 पर रोक की अवधि
यह रोक तब तक लगी रहेगी जब तक कि स्वतंत्र वैज्ञानिक अध्ययनों से यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि बी टी बैंगन अपने दीर्घकालीन प्रभावों के कारण मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है। बी टी बैंगन पर रोक लगाने का निर्णय लेने के समय इसके बाद कई और कार्रवाइयों के लिए निर्देश दिए गए। इनमें उपयुक्त प्रयोगशालाओं में उचित प्रक्रिया के साथ परीक्षण और अध्ययन, विचार-विमर्श प्रक्रिया के हिस्से के रूप में प्राप्त की गई सभी सामग्रियों की समीक्षा और सभी वैज्ञानिक, संस्थान और लोक समाज समूह शामिल हैं जिन्होंने आम जनता में विश्वास पैदा करने के लिए किए जाने वाले खास परीक्षणों के लिए नई प्रक्रियाओं को तैयार करने के लिए प्रोफेसर एम एस स्वामीनाथन, डॉ. पी एम भार्गव, डॉ. जी पद्मनाभन, डॉ. एम विजयन, डॉ. केशव क्रांति, डॉ. माधव गाडगिल जैसे वैज्ञानिकों और अन्य लोगों के साथ परामर्श और लिखित आवेदन दिया था। इस परामर्श प्रक्रिया के दौरान प्राप्त किए गए परिणाम और विचारों के आधार पर जेनेटिक ईंजीनियरिंग अप्रूवल कमिटी (जी ई ए सी) द्वारा बी टी बैंगन की सुरक्षा की समीक्षा की जाएगी। यह रोक अन्य जी एम फूड या फूड क्रॉप (आनुवांशिक संशोधित खाद्य या खाद्य फसल) पर लागू नहीं होगी।

बीटी बैंगन विषय - ई.ई - 1 के लिए जी ई ए सी की मंजूरी का आधारपर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत नुकसानदेह सूक्ष्म-जीवों/आनुवांशिक रूप से तैयार जीवों/ कोशिकाओं के निर्माण, प्रयोग, आयात, निर्यात और भंडारण के लिए नियम, 1989 (जो 1989 के नियमों के नाम से जाने जाते हैं) के अंतर्गत अधिसूचित आनुवांशिक जोड़-तोड़ पर समीक्षा समिति (आर सी जी एम) की मंजूरी के साथ 2002 में फल और शूट बोरर के लिए सहनशील बीटी बैंगन विषय ई ई 1 का विकास शुरू किया गया था।

आर सी जी एम ने शामिल किए गए जीन की क्षमता और सुरक्षा का पता लगाने के लिए मेसर्स माहाइको द्वारा दी गई विस्तृत जानकारी और डाटा पर विचार किया। इसने निष्कर्ष दिया कि बीटी बैंगन नाशक कीटाणुओं को नियंत्रित करने में प्रभावी है, पर्यावरण के लिए सुरक्षित है, विषाक्तता और जानवरों के भोजन परीक्षण में विषैला नहीं है, एलर्जीकारक नहीं हैं और किसानों के लिए लाभदायक है। आर सी जी एम ने यह भी सिफारिश दी कि आवेदक द्वारा सौंपे गए नियमों के अनुसार जी ई ए सी वृहत स्तर पर क्षेत्रीय परीक्षणों को आयोजित करने के लिए अनुमोदन देने पर विचार कर सकता है।

एक विशेषज्ञ समिति (ईसी-1) ने किसानों और जन समाजों समेत विभिन्न हितधारकों से प्राप्त टिप्पणियों की समीक्षा की। ईसी-। ने जैव सुरक्षा के पुनर्प्रमाणीकरण के लिए और विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों के तहत बीटी बैंगन की प्रभावक्षमता का मूल्यांकन करने के लिए बीटी बैंगन के वृहत स्तर पर परीक्षणों की अनुशंसा की है। ईसी-1 की रिपोर्ट सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है। ईसी-। की रिपोर्ट पर आधारित जीईएसी ने अगस्त 2007 में आई आई वी आर के निदेशक के पर्यवेक्षण में भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान/राज्य कृषि विश्वविद्यालयों/भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसंधान खेतों में बीटी बैंगन के वृहत स्तर पर क्षेत्रीय परीक्षणों (एल एस टी) की मंजूरी दी थी। जी ई ए सी द्वारा अनुशंसित यह एल एस टी रिपोर्ट और अन्य अध्ययनों को जनवरी-मार्च 2009 में सौंप दिया गया था।

इस मंत्रालय को अनेक आवेदन प्राप्त हुए, जिसमें अनेक आधारों पर सभी जी एम ओ (आनुवांशिक संशोधित जीव) पर रोक लगाने के लिए जी ई ए सी से अनुरोध किया गया है। उन्होंने लिखा है कि देश में अपर्याप्त जैव सुरक्षा नियंत्रणकारी तंत्र और प्रवेश के दौरान जी एम ओ परीक्षण के लिए अनुपयुक्त सुविधाओं और विशेषज्ञता की कमी और छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए आनुवांशिक संशोधित प्रौद्योगिकी की अनुपलब्धता की वजह से बीटी बैंगन का पर्यावरण एवं स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है।

बीटी बैंगन पर एल एस टी और अन्य अध्ययनों के परिणामों की समीक्षा करने के लिए और गैर सरकारी संगठनों एवं अन्य लोगों से प्राप्त किए गए आवेदनों में व्यक्त की गई चिंताओं का समाधान करने के लिए मंत्रालय ने एक और विशेषज्ञ समिति ( ई सी-1 ) का गठन किया। यह समिति हैदराबाद के योगी विमाना विश्वविद्यालय के उपकुलपति और जी ई ए सी के सह अध्यक्ष प्रोफेसर अर्जुला आर रेड्डी की अध्यक्षता में खास निर्देशों के साथ जैसे-वृहत स्तर पर किए गए परीक्षणों के दौरान इकट्ठा किए गए डाटा के परिणामों की समीक्षा करने, उपलब्ध वैज्ञानिक प्रमाण, अंतर्राष्ट्रीय#राष्ट्रीय विशेषज्ञों की रिपोर्टों और गैरसरकारी संगठनों और अन्य हितधारकों के आवेदनों के प्रकाश में बीटी बैंगन के जैव सुरक्षा डाटा की समीक्षा करने और उपरोक्त समीक्षा पर आधारित जी ई ए सी द्वारा विचार किए जाने के लिए उचित अनुशंसा करने के लिए गठित की गई।

ई.सी.-1 ने अपनी बाद की बैठकों में एल एस टी के दौरान इकट्ठा किए गए डाटा, विकासकर्ता द्वारा दिए गए जैव सुरक्षा डाटा, विकासकर्ता द्वारा बाहर के अनेक संस्थानों द्वारा आयोजित किए गए अध्ययनों, प्रकाशित लेखों, अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय समूहों की रिपोर्टों और गैर सरकारी संगठनों और अन्य हितधारकों के आवेदनों के परिणामों की समीक्षा की। ई.सी.-। ने निष्कर्ष के रूप में कहा कि बीटी ब्रिंजल विषय ई.ई.-। निम्नलिखित आधार पर भारत में पर्यावरणीय समावेश के लिए सुरक्षित है।

* शामिल किए गए सभी जीन और नियंत्रणकारी प्रभावों का इतिहास बताता है कि उनके प्रयोग सुरक्षित हैं।
* सवंर्धित बीटी प्रोटीन लेपिडोप्टेरॉन कीटाणुओं का मुकाबला करने के लिए खास तौर पर तैयार किया गया है।
* क्राई/एसी जीन की अभिव्यक्ति इस फसल के संपूर्ण जीवन के दौरान अनुकूल रहती है और विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों में एफ एस बी के प्रभावी नियंत्रण के लिए क्राई/एसी प्रोटीन के स्तर पर्याप्त हैं।
* बीटी बैंगन में सुस्पष्ट क्राई/एसी प्रोटीन उस क्राई/एसी प्रोटीन का शत प्रतिशत समरूप है जो स्वीकृत बीटी कॉटन विषय एम ओ एम 531 में तैयार किया गया था।
* क्राई/एसी जीन के आविर्भाव का पारक क्षमता और घास-पात निकलने की विशेषताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
* लाभकारी जीवों और सूक्ष्म वनस्पतियों समेत गैर-लक्ष्य जीवों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ा है।
* कृष्ट बैंगन के लिए जंगली प्रजातियों के साथ प्राकृतिक अंतर जातीय संकरण का कोई उदाहरण नहीं मिला है।
* यह अनुरूपित जठराग्नि और ऑंत द्रवों में 30 सेकण्ड में तेजी से अपघटित हो जाता है और पकाने पर भी तेजी से अपघटित होता है। बीटी बैंगन विषय ई.ई.-1 के लाभ अनुमानित और समझे जाने वाले लक्ष्यों की तुलना में कहीं ज्यादा है। यह उच्चतर विपणीय उत्पाद और कीटनाशक स्प्रे के कम प्रयोग से आर्थिक लाभों में वृध्दि करेगा।
* बीटी ब्रिंजल विषय ई.ई.-1 का जैव सुरक्षा के लिए व्यापक परीक्षण किया गया है और अब किसी अतिरिक्त अध्ययन या समीक्षा की आवश्यकता नहीं है।

ई.सी.-1 की रिपोर्ट को जी.ई.ए.सी. की एक बैठक में विचार के लिए रखा गया जहां जी ई ए सी ने यह निष्कर्ष दिया कि पर्यावरण में जारी करने के लिए बीटी बैंगन सुरक्षित है। जी ई ए सी ने यह निष्कर्ष तीन उच्च स्तरीय तकनीकी समितियों द्वारा की गई समीक्षा के परिणामों पर विचार करते हुए दिया। इन समितियों के नाम हैं - आर सी जी एम और जी ई ए सी द्वारा 2006 और 2009 में गठित की गई दो विशेषज्ञ समितियां। बीटी बैंगन की सुरक्षा पर जी ई ए सी का यह निर्णय 2002-2009 के दौरान इकट्ठा किए गए वैज्ञानिक तथ्यों एवं डाटा और आनुवांशिक संशोधित फसलों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय अनुभव पर आधारित है और पर्यावरण के लिए सुरक्षित है। चूंकि जी ई ए सी के इस निर्णय के कारण महत्वपूर्ण नीतिगत प्रभाव हो सकते हैं इसलिए जी ई ए सी ने बीटी बैंगन विषय ई.ई.-1 की सुरक्षा और प्रभाव क्षमता पर ई.सी.- की अनुशंसाओं और रिपोर्ट को अंतिम रूप से विचार करने के लिए सरकार के पास भेजने का निर्णय लिया। इसके बाद पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए विचार-विमर्श के बाद निष्कर्ष के तौर पर बीटी बैंगन पर रोक लगा दी गई।


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