अशोक हांडू
हाल की बजट प्रक्रिया में समान रूप से अत्यावश्यक दो बातों पर तालमेल बिछाने का स्पष्ट प्रयास किया गया है। ये हैं - आर्थिक विकास और वित्तीय सुदृढता विकास को जहां महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, वहीं वित्तीय सुदृढता इसलिए आवश्यक है कि मुदास्फीति के कारण, विकास के लाभ कहीं हाथ से छिटक न जाएं।

सौभाग्य से, देश में आज जो स्थिति दिखाई दे रही है वह है खाद्य पदार्थों की मंहगाई। पिछले 30 वर्षों में सबसे खराब मानसून के कारण आपूर्ति में आई कमी के कारण ही यह स्थिति उत्पन्न हुई है । परन्तु जैसा कि आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि यदि समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो यह मंहगाई अन्य क्षेत्रों में भी फैल सकती है।

इस परिदृश्य को भांपते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपने बजट प्रस्तावों में पिछले वर्ष प्रोत्साहन पैकेज में दी गई राहतों को आंशिक रूप से वापस लेने की मर्यादित शुरूआत कर वित्तीय समेकन की दिशा में पहला कदम बढ़ाया है। अर्थव्यवस्था उस समय गंभी रूप से मंदी का रुख कर रही और वैश्विक दबावों का सामना करनेके लिए उसे सरकारी सहायता की आवश्यकता थी, परन्तु आज तस्वीर अलग है। सभी संकेतक, विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं में सुधार के काफी पहले ही, भारतीय अर्थव्यवस्था के वापस पटरी पर आने की ओर इशारा कर रहे हैं। सभी गैर-पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पादन शुल्क में जो कटौती पहले की गई थी, उसे दो से लेकर 10 प्रतिशत तक पुन: बहाल कर दिया गया है। हालांकि पूर्व के 12 प्रतिशत से यह अभी भी कम है। सेवाकर में कोई वृध्दि नहीं की गई है परन्तु उसका दायरा बढ़ा दिया गया है।

यह कार्रवाई न केवल आर्थिक समीक्षा में दिये गए सुझावों के अनुकूल है बल्कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के भी, जिसने प्रोत्साहन पैकेज को आंशिक रूप से वापस लेने का सुझाव दिया था।

बजट बाद अपने साक्षात्कारों में श्री मुखर्जी ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रोत्साहन उपायों को वापस लेने की मर्यादित शुरु आत कर दी गई है और पूरी तरह से उसे वापस लेने के बारे मे तथा विचार किया जाएगा जब अर्थव्यवस्था की विकास दर 8.5 से 9 प्रतिशत की होगी। उनके स्वयं के अनुमान के अनुसार, जिसका समर्थन अन्य सर्वेक्षणों में भी किया गया है, इस वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की विकास दर लगभग 7.2 प्रतिशत रहेगी, जिसके 2010-11 में 8 से 85 प्रतिशत और उसके बाद के वर्ष के दौरान 9 प्रतिशत तक पहुंच जाने की संभावना है।

बजट में, वर्तमान वर्ष में राजकोषीय घाटा 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है, जो अगले वित्तीय वर्ष में 5.5 प्रतिशत और 2011-12 में 4.9 प्रतिशत तक सीमित रह जाएगा। इसका अर्थ है कि सरकार को कम कर्ज लेना होगा, जिससे निजी क्षेत्र के पास निवेश के लिये और अधिक पैसा उपलब्ध होगा।

वित्तीय मोर्चेपर सरकार को करों से 4 खरब 65 अरब रुपये का राजस्व प्राप्त होगा, परन्तु प्रत्यक्षकरों में दी गई रियायतों से 2 खरब 60 अरब रुपये की राजस्व हानि होगी। इस प्रकार उसे कुल 2 खरब 5 अरब रुपये का राजस्व ही प्राप्त होगा।

विनिवेश की एक स्पष्ट योजना भी तैयार की गई है। सरकार को विश्वास है कि 31 मार्च, 2010 को समाप्त होने वाले वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान विनिवेश से उसे 2 खरब 50 अरब रुपये प्राप्त होंगे। सरकार का विचार है कि विनिवेश के जरिये उसे अगले वित्त वर्ष में 4 खरब रूपये प्राप्त होंगे। थ्री जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से करीब 3 खरब 50 अरब रूपये की अतिरिक्त प्राप्ति होने की आशा है।

इन सभी उपायों का उद्देश्य राजकोष पर मुद्रास्फीति के दबावों को नियंत्रित करना है, परन्तु आपूर्ति की समस्या भी है। बजट में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि मंहगाई पर काबू पाने के लिये दर असल आपूर्ति की समस्या को प्रभावी ढंग से हल करना होगा। कृषि क्षेत्र के आवंटन में जो भारी वृध्दि की गई है, उसके पीछे यही कारण है। नौ प्रतिशत की विकास दर तभी संभव हो सकेगी जब कृषि क्षेत्र की विकास दर कम से कम 4 प्रतिशत रहे। वर्ष 2008-09 में कृषि की विकास दर केवल 1.6 प्रतिशत ही रही थी और वर्तमान में इसमें 0.2 प्रतिशत की और कमी आई है। अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को देखते हुए कृषि के विकास हेतु एक नई कार्य योजना तैयार की गई है। जहां बिहार, छत्तीसगढ, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा समेत समूचे पूर्वी क्षेत्र में हरित क्रांति के विस्तार के लिये 4 अरब रुपये का आबंटन किया गया है, वहीं संरक्षण कृषि के लिये 2 अरब रूपये का प्रावधान किया गया है, ताकि उत्पादकता में वृध्दि हो और हानियों में भी कमी आए। कृषि त्रऽण का लक्ष्य भी 32 खरब 50 अरब रुपये से बढ़ाकर 37 खरब 50 अरब रुपये कर दिया गया है। किसानों को 5 प्रतिशत की रियायती दर पर कर्ज दिया जाएगा। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढावा देने के लिये 5 और मेगा फूड पार्क स्थापित किये जाएंगे। ये पहले से बन रहे 10 फूड पार्कों के अलावा होंगे।

आयकार के स्लैब में परिवर्तन कर मध्यवर्ग को दी गई राहत और कर राहत के लिये अधोसंरचना बांड्स के रूप में 20 हजार रुपये तक की अतिरिक्त छूट से न केवल खर्च के लिये लोगों के हाथ में अधिक पैसा बचेगा बल्कि इससे बचत को बढावा भी मिलेगा । औसत भारतीय की यही प्रवृति होती है। इससे निवेश के लिये अतिरिक्त राशि जुटाई जा सकेगी।

पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढाए गए उत्पादकर से निसंदेह मुद्रास्फीति संबंधी दबाव बढ़ेगा, परन्तु जैसा कि वित्त मंत्री ने कहा है, इसका मामूली असर पड़ेगा, जो कि समय के साथ-साथ बर्दाश्त कर लिया जाएगा।

सामाजिक क्षेत्र के लिये किए गए भारी आबंटन से पिछड़े वर्गों को मदद मिलेगी और ग्रामीण क्षेत्र में आमदनी में इजाफा होगा। वर्ष 2010-11 के कुल योजना परिव्यय में इसमें 37 प्रतिशत की वृध्दि की गई है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिये 4 खरब 1 अरब रुपये का प्रावधान किया गया है जो कि पिछले वर्ष (2009-10) से दस अरब रूपये अधिक है। भारत निर्माण के तहत ग्रामीण अधोसंरचना कार्यक्रमों के लिये 4 खरब रुपये निर्धारित किये गए हैं। इसी प्रकार शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसे क्षेत्रों के आबंटन में भी पर्याप्त वृध्दि की गई है।

तेरहवें वित्त आयोग की सभी प्रमुख सिफारिशों को स्वीकार करते हुए वित्त मंत्री ने राज्यों की वित्तीय स्थिति पर भी ध्यान दिया है। आयोग ने राज्य सरकारों को अधिक राशि दिये जाने की सिफारिश की है। केन्द्रीय करों में उनके हिस्से में 2.5 प्रतिशत की वृध्दि की सिफारिश की है, जिससे उनके हिस्से में विभाज्य पूल से 7 खरब 10 अरब रुपये की अतिरिक्त राशि आएगी । राज्यों के साझा करों और अनुदानों में भी पर्याप्त वृध्दि होगी । वित्त मंत्री ने अप्रैल 2011 से प्रत्यक्ष कर संहिता (डायरेक्ट टैक्सेस कोड) डीटीसी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने की अपनी योजना का भी खुलासा किया है जिससे देश में वित्तीय संरचना को और भी कारगर रूप दिया जा सकेगा।

इस प्रकार, देश में माहौल उत्साहवर्धक है और भारत की अर्थव्यवस्था पट्टी पर वापस चल निकली है। वित्तीय समेकन की दिशा में नापतौल कर कदम उठाने वाला पहला देश होने के नाते भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि उसकी अर्थव्यवस्था की नींव मजबूत आधार पर खड़ी है। जैसा कि आर्थिक समीक्षा में संकेत दिया गया है, अगले चार वर्षों में भारत विश्व की चौथी सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था होगी। अर्थव्यवस्था के सुधार में सबसे बड़ी सहायता औद्योगिक क्षेत्र से मिली है, जिसने इस वर्ष लगातार वृध्दि दर्ज की है। निर्यात क्षेत्र में नकारात्मक वृध्दि (गिरावट) को यद्यपि रोकने में सफलता मिली है, परन्तु यह अभी भी खतरे से बाहर नहीं है । इस प्रकार जो सुविचारित नीतिगत उपाय अपनाये गए हैं, वे अर्थव्यवस्था की जरूरत के हिसाब से ही उठाए गए हैं। बहरहाल इस समय हमें खाद्य पदार्थों की दहाई अंकों की मंहगाई से निपटने पर ध्यान देना होगा, जो चिंता का विषय बनी हुई है।

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