सुरिन्दर सूद
समेकित विकास को बढ़ावा देने, ग्रामीण आमदनी में वृध्दि करने तथा खाद्य सुरक्षा को बनाये रखने के सरकार के संकल्प में कृषि क्षेत्र को मुख्य विषय बताते हुए वित्ता मंत्री प्रणब मुखर्जी ने केन्द्रीय बजट 2010-11 में इस क्षेत्र के लिए केन्द्रीय योजना परिव्यय में लगभग 21.6 प्रतिशत की वृध्दि का प्रस्ताव किया है। कई वर्षों में इस क्षेत्र के लिए योजना आवंटन में यह सबसे बड़ा कदम है।
यह बजट उस चार सूत्री योजना को दर्शाता है जिससे कृषि उपज बढ़े तथा आपूर्ति क्षेत्र का दबाव का कम हो जिसने हाल के महीनों में खाद्य पदार्थों की कीमतों को आसमान पर पहुंचा दिया है। इसके अंतर्गत उन फायदों को और ठोस बनाना है जिन्हें पहले प्राप्त किया जा चुका है और उसके अलावा, हरित क्रांति के दायरे को भी बढ़ाने का प्रस्ताव है। बजट में कई वित्तीय प्रोत्साहनों का प्रस्ताव किया गया है जिससे कृषि के संपोषण एवं खाद्य सामग्रियों के व्यापार में सुधार लाकर किसानों को मिलने वाले कीमतों और उपभोक्ताओं के द्वारा अदा की गई कीमतों के बड़े अंतर को कम करना है। कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र में आगे भी और तकनीकों के समावेश पर जोर दिया गया है। बजट में वर्ष 2010-11 के लिए कृषि एवं इससे संबंधित क्षेत्रों के लिए केन्द्रीय योजना परिव्यय के रूप में 12308 करोड़ रुपये तय किये गये हैं। यह वर्ष 2009-10 के संशोधित अनुमानित खर्च (आर ई) से 2185 करोड़ रुपये अधिक है जो वर्ष 2010 में 10,123 करोड़ रुपये था अर्थात यह 21.58 फीसदी ज्यादा है। अतिरिक्त आवंटन का मुख्य भाग कृषि एवं सहकारी विभाग को दिया गया है। शेष भाग कृषि एवं सहकारी विभाग और पशुपालन, दुग्ध उत्पादन एवं मत्स्य पालन विभाग के द्वारा बांट लिया गया है।
कृषि एवं सहकारी विभाग का परिव्यय वर्ष 2009-10 (आर ई) के 7,018 करोड़ रुपये से बढ़ाकर वर्ष 2010-11 में 8,280 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह 1,262 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी को दर्शाता है। इसी प्रकार, कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग को वर्ष 2010-11 में 2300 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है जो वर्ष 2009-10 (आर ई) के 1760 करोड़ रुपये के मुकाबले ज्यादा है, यानि 540 करोड़ रुपये की वृध्दि हुई है। पशुपालन, दुग्ध उत्पादन एवं मत्स्य पालन विभाग को वर्ष 2010-11 में 1300 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है जो वर्ष 2009-10 (आर ई) के 930 करोड़ रुपये के मुकाबले ज्यादा है, यानि 370 करोड़ रुपये की वृध्दि हुई है।
कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए बजट में चार मूल तत्वों को योजनाबध्द किया गया है जैसे - कृषि उत्पादन में वृध्दि, कृषि उत्पादों की बर्बादी में कमी, किसानों को ऋण सहायता और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र पर जोर देना।
पहले तत्व के अंतर्गत, देश के पूर्वी क्षेत्र में हरित क्रांति को बढ़ाते हुए कृषि उत्पादन में वृध्दि लाने का प्रस्ताव है क्योंकि पूर्वी क्षेत्र क़ो अभी तक हरित क्रांति से उतना फायदा नहीं हुआ है जितना कि कुछ पूर्वी-पश्चिमी और कुछ दक्षिणी राज्यों को हुआ है। इस उद्देश्य के लिए चिह्नित राज्य हैं बिहार, झारखंड , छत्तीसगढ़, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडीसा। इस प्रयास में ग्राम सभा एवं खेतिहर परिवारों को जोड़ कर इस उद्देश्य को हासिल करने का प्रस्ताव है। इस उद्देश्य के लिए 400 करोड़ रुपये अलग कर दिए गए हैं।
एक कदम आगे बढ़कर, बजट में भारतीय गणतंत्र का 60वां वर्ष मनाए जाने की योजना है जिसके लिए 60,000 दलहन एवं तिलहन गांव जो मुख्य रूप से वृष्टि छाया क्षेत्रों के हैं, उन्हें जोड़ना है। जिससे सम्मिलित कोशिश के जरिये दलहन एवं तिलहन की घरेलू आपूर्ति को बढ़ाया जा सके। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना कार्यक्रम के एक भाग के रूप में तिलहन ग्राम पहल के अंतर्गत वर्षा जल संरक्षण, जल संभर प्रबंधन और मृदा स्वास्थ्य सुधार संबंधित कार्यक्रम आरंभ करने की योजना बनाई गई है। इन योजनाओं के लिए वर्ष 2010-11 में 300 करोड़ रुपये का परिव्यय तय किया गया है।
हरित क्रांति वाले क्षेत्रों में हासिल की गई उपलब्धियों को बनाए रखने के लिए, बजट में कृषि संरक्षण का प्रस्ताव है जिसमें मृदा स्वास्थ्य, जल संरक्षण एवं जैव विविधता परिरक्षण पर समान रूप से ध्यान देना है। इस जलवायु अनुरूप कृषि उपाय को शुरू करने के लिए 200 करोड़ रुपये की राशि का आवंटन किया गया है।
चार सूत्री योजना के दूसरे तत्व के भाग में बजट में मौजूदा खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के संचालन के साथ ही भंडारों में बर्बादी को कम करने का प्रस्ताव है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शब्दों में ''हमें बृहत प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता है और इसलिए फुटकर व्यापार क्षेत्र को खोलने के लिए ठोस अवलोकन करने की आवश्यकता है।'' वित्ता मंत्री ने कहा कि यह खेत की कीमत, थोक कीमतों एवं फुटकर कीमतों के बीच के अंतर को कम करने में काफी सहायक होगा।
उन्होंने ध्यान दिलाया कि भारतीय खाद्य निगम की भंडारण क्षमता की भारी कमी के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली एवं अतिरिक्त भंडारण हेतु लिए गए अनाज की बर्बादी होती है। वित्ता मंत्री ने कहा कि भंडारण क्षमता की इस कमी को निजी क्षेत्र की सहभागिता से पूरा किया जा रहा है जिसमें एफ सी आई, निजी पार्टियों से, पांच वर्ष की गारंटी के आधार पर किराये पर गोदाम ले रहा है। अब इस अवधि को बढ़ाकर 7 वर्ष किया जा रहा है।इस योजना का तीसरा तत्व कृषि क्षेत्र को बेहतर संस्थागत ऋण सुविधा मुहैया कराने से संबंधित है। इसके लिए बजट में वर्ष 2009-10 के 3,25,000 करोड़ रुपये के मुकाबले वर्ष 2010-11 के लिए पूर्ण ऋण प्रवाह के लक्ष्य को बढ़ाकर 3,75,000 करोड़ रुपये किया गया है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आर आर बी) जो ग्रामीण लोगों की ऋण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं उन्हें पूंजी सहायता दी गयी है जिससे वे अपना कार्य पूरी क्षमतापूर्वक कर सकेंगे। इन बैंकों को आखिरी बार वर्ष 2006-07 में पूंजी दी गई थी।
ऐसे किसान जो हाल के सूखे के कारण समय पर ऋण का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं उन्हें सहायता पहुँचाने के लिए, कृषि ऋणों के भुगतान की अवधि 31 दिसंबर 2009 से छह महीने बढ़ाकर 30 जून 2010 कर दी गयी है। इसके अलावा वर्ष 2010-11 के लिए कृषि ऋण के पुनर्भुगतान की सरकारी सहायता को एक फीसदी से बढ़ाकर 2 फीसदी कर दिया गया है। इस प्रकार ऐसे किसान जो अपने ऋण का भुगतान समय पर कर रहे हैं, उनके लिए प्रभावी ब्याज दर 5 फीसदी प्रति वर्ष होगा जो सामान्यतया 7 फीसदी प्रति वर्ष है।
इसके चौथे तत्व के रूप में कृषि विकास की रणनीति में खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने की प्रक्रिया को शामिल किया गया है। बजट में 5 बड़े खाद्य पार्कों को स्थापित करने का प्रस्ताव है। इसके अतिरिक्त ऐसे 10 पार्क पहले ही बनाये जा चुके हैं जिनमें, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिए आधुनिकतम आधारभूत संरचना की सुविधा उपलब्ध होगी।
बजट में तीन मुख्य क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है जिसपर विशेष ध्यान दिया जाएगा। ये क्षेत्र हैं - (अ) खराब होने वाले कृषि उत्पादों को खपत व प्रसंस्करण केन्द्रों पर अविलंब पहुँचाने के लिए मजबूत आपूर्ति श्रृंखला (ब) इन उत्पादों को गुणवत्ताा युक्त उत्पाद बनाने के लिए आधारभूत संरचना व तकनीक और (स) कृषि उत्पाद को बढ़ाने के लिए इसमें तकनीक का समावेश।
इन क्षेत्रों के लिए, बजट ने 'परियोजना आयात स्थिति के अनुदान का प्रस्ताव रखा है जिसके साथ आयात शुल्क पर पांच फीसदी की रियायत मशीनी उपकरणों के लगाने एवं मंडियों में पैलेट रैकिंग उपकरण लगाने या अनाज व चीनी के लिए भंडार बनाने के लिए दी जाएगी। इसके साथ ही नये उपकरणों को स्थापित करने और शुरू करने पर सेवा कर पर पूर्ण छूट का भी प्रस्ताव है।
इसी प्रकार की रियायतें शीत भंडारणों, शीत कक्षों एवं कूलर स्थापित करने, कृषि या संबंधित उत्पादों के भंडारण करने पर दी जाएंगीे।
बजट में कई और कर रियायतें देने का भी प्रस्ताव है। पौधा रोपण क्षेत्र में, कुछ विशेष मशीनों के उपयोग पर आयात शुल्क में रियायत दी गई है। इसे वर्ष 2003 से जुलाई 2010 तक के लिए लागू किया गया। बाद में इसे मार्च 2011 तक बढ़ा दिया गया। ऐसा अनुमान है कि इससे इस क्षेत्र के मुख्य संचालनों के मशीनीकरण के उद्देश्य को पूरा करने के लिए समुचित समय मिलेगा। बजट में, वैसे कृषि उपकरण जो देश में नहीं बनाए जाते हैं उनपर आयात कर में 5 फीसदी रियायत देने का प्रस्ताव दिया गया है। कृषि में उपयोग किए जाने वाले ट्रेलर और सेमी ट्रेलर को उत्पाद शुल्क से पूर्णत: मुक्त रखा गया है। सेवा शुल्क के क्षेत्र में फसल बीज के जांच और प्रमाणीकरण के साथ ही सड़क मार्ग से तिेलहन एवं दलहन की ढुलाई पर भी पूर्णत: छूट दे दी गई है। रेल के द्वारा इन वस्तुओं की ढुलाई पर पहले से ही छूट लागू है।
उर्वरकों की पोषण आधारित सहायता नीति के बारे में, ज़िसका एक अप्रैल 2010 से प्रभाव में आना सुनिश्चित है, के बारे में वित्ता मंत्री ने कहा कि यह नए सुरक्षित उत्पादों के माध्यम से संतुलित निषेचन (फर्टीलाइजेशन) को बढ़ावा देगा और उर्वरक उद्योग की विस्तार सेवाओं पर गौर करेगा। यह बदले में, कृषि उत्पादन को बढ़ाएगा और इससे किसानों को ज्यादा फायदा मिलेगा। वित्ता मंत्री ने कहा कि ऐसा अनुमान है कि समय के साथ यह नीति राजसहायता विधेयक को नियंत्रित करने के अतिरिक्त उर्वरक राजसहायता की मांग के उतार चढ़ाव में कमी लाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि '' नई व्यवस्था, राजसहायता को सीधा किसानों तक पहुंचाने का काम करेगी।''
वित्ता मंत्री ने आश्वस्त किया कि सरकार यह देखेगी कि उर्वरकों की खुदरा कीमतें संक्रमण वर्ष यानी कि 2010-11 के वर्तमान स्तर के आस-पास रहें और राज सहायता प्रणाली को उत्पाद आधारित से हटाकर पोषण-आधारित बनाया जाए।
इस प्रकार के पहले प्रयास में महिला किसानों के सशक्तिकरण के उद्देश्य के लिए जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है, बजट में 'महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना की शुरुआत की गई है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के एक उपघटक के रूप में इस पहल के लिए 100 करोड़ रुपये का परिव्यय अलग रखा गया है।