आलोक देशवाल
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के सरकार के पुराने रिकार्डों के संग्रहकर्ता के रूप में 11 मार्च को अपना 110 स्थापना दिवस मनाया। सन् 1891 में 11 मार्च के दिन ही इस विभाग की कोलकाता में इंपीरियल सेक्रेटेरिएट बिल्डिंग में इंपीरियल रिकार्ड ऑफिस के रूप में स्थापना हुई थी। जी डब्ल्यू फोरेस्ट इस ऑफिस के पहले प्रभारी नियुक्त किए गए थे।
 
सन् 1911 में राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित होने के बाद यह आवश्यक हो गया कि इंपीरियल रिकार्ड ऑफिस को भी स्थानांतरित किया जाएगा। मौजूदा भवन 1926 में सरकार के रिकार्डों का स्थायी संग्रहालय बन गया। इस भवन का स्वरूप एडविन लुटियन द्वारा तैयार किया गया था। स्वतंत्रता के बाद इसका नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार कर दिया गया और इस संगठन के प्रमुख का पद रिकार्ड-रक्षक से बदलकर निदेशक कर दिया गया। ए. एफ.एम. अब्दुल अली के उत्तराधिकारी डा. एस. एन. सेन 1949 तक अभिलेखागार के निदेशक रहे और उन्होंने इंपीरियल रिकार्ड््स डिपार्टमेंटभारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की गतिविधियों को एक नया रूप दिया। पहली बार, 1939 में रिकार्ड प्रमाणिक शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराए गए और 1947 तक 1902 से पहले के रिकार्ड परामर्श के लिए मुहैया कराए गए। संरक्षण से जुड़ी समस्याओं पर शोध के लिए 1940 में संरक्षण शोध प्रयोगशाला की स्थापना की गई जो डॉ. सेन की एक बहुत बड़ी दूरदृष्टि थी। सन् 1941 में अभिलेख प्रबंधन में प्रशिक्षण शुरू किया गया तथा सन् 1944 में भारतीय ऐतिहासिक रिकार्ड आयोग में अभिलेख कार्यालयों की युध्दोपरांत पुनर्गठन योजना बनाई गई। सन् 1947 में विभाग का जर्नल भी निकलने लगा जिसमें आधुनिक भारतीय इतिहास, दस्तावेजों के संरक्षण, रिकार्ड-प्रबंधन, रिप्रोग्राफिक्स, अभिलेख संरक्षण के प्रति जनजागरूकता आदि विषयों से संबंधित शोधपत्र शामिल होते हैं।
 
इस प्रकार भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार आजादी के बाद पूरे देश में पुरालेख संबंधी क्षेत्र में ज्यादा गतिशील एवं प्रेरक भूमिका निभाने के लिए प्रगति के पथ पर बढता रहा। उसके बाद सार्वजनिक रिकार्ड एकत्रित करने, निजी पत्र एवं पुस्तकालय सामग्री के अधिग्रहण, रिकार्ड प्रबंधन, शोध एवं संदर्भ सामग्री, प्रकाशन, प्रशिक्षण, संरक्षण, रिप्रोग्राफी, बाहरी कार्यक्रम, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर समन्वय, क्षेत्रीय इलाकों में कार्यालय का विस्तार जैसी अभिलेखागार की गतिविधियां काफी बढी हैं। विभाग को दर्जे में जून, 1990 में एक और ऊंचाई हासिल हुई जब अभिलेखागार के निदेशक का पद बदलकर महानिदेशक कर दिया गया। फिलहाल भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत है और भोपाल में इसके क्षेत्रीय कार्यालय हैं तथा जयपुर, पुड्डुचेरी एवं भुवनेश्वर में रिकार्ड केंद्र हैं।
 
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के पास निजी पत्रों का भंडार है जो विभिन्न स्रोतों से दान एवं सौगात के रूप में मिले हैं। ये पत्र सार्वजनिक रिकार्डों से प्राप्त ज्ञान के लिए महत्त्वपूर्ण पूरक का काम करते हैं। निजी पत्रों में कुछ प्रमुख हैं- महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, दादाभाई नौरोजी, एम आर जयकर, मौलाना आजाद, जी के गोखले, सरदार पटेल,पी डी टंडन, मीनू मसानी आदि के पत्र। अखिलेखागार में इंडियन नेशनल आर्मी की फाइलें भी शामिल हैं।

अभिलेखागार में प्राच्य रिकार्डों के अंतर्गत करीब 1.5 लाख दस्तावेज हैं जिनमें उर्दू, पारसी, अरबी आदि भाषाओं में पांडुलिपियां, परवाना, हुकुम, खैरात, फरमान आदि शामिल हैं। दस्तावेजों के दुर्लभ और मूल्यवान संग्रह में फोर्ट विलियम कॉलेज संग्रह, इनायत जंग संग्रह, मथुरा दस्तावेज, गुजरात दस्तावेज, हल्दिया पत्र आदि शामिल हैं। ये सारे पत्र सार्वजनिक रिकार्ड नियमावली, 1997 के तहत आम लोगों के लिए उपलब्ध हैं।
 
प्राच्य रिकार्ड संभाग में रिकार्डों का विशाल संग्रह है जिनमें पारसी, अरबी, उर्दू, अंग्रेजी, हिंदी, मोदी, राजस्थानी, मराठी, तुर्की, बंगला और कई अन्य भाषाओं एवं लिपियों में दुर्लभ पांडुलिपियां, एकल यूनिट दस्तावेज और दुर्लभ पुस्तकें शामिल हैं।
 
इनायत जंग संग्रह में 1,37,000 दस्तावेज हैं और यह आधिकारिक मुगल दस्तावेज हैं। इनमें रिपोर्ट, दैन्दिन लेखाजोखा, और राजस्व आंकड़े शामिल हैं। ये राजस्व आंकड़े नियमित रूप से दक्कन के छह प्रांतों के दीवानों द्वारा दक्कन के प्रमुख दीवान को भेजे जाते थे। संग्रह में निम्नलिखित शासकों के काल से संबंधित दस्तावेज हैं- औरंगजेब (अवधि 1658-1707), आजम शाह (1707), शाह आलम बहादुर शाह प्रथम (1707-12),जहांदार शाह (1712-13), फरूख सेयर(1713-19),रफीउद दाराजात(1719), रफीउद दौलाह(1719), मुहम्मद शाह(1719-48), अहमद शा(1750-52) और शाह आलम द्वितीय (अवधि 1768-74)।
 
हल्दिया संग्रह में पारसी और उर्दू में 1060 दस्तावेज हैं। ये दस्तावेज राजस्थान में हल्दिया वंश की राजनीतिक भूमिका पर प्रकाश डालते हैं।
 
अभिलेखागार में प्राच्य भाषाओं खासकर पारसी और उर्दू में 14000 अन्य दस्तावेज हैं। ये दस्तावेज विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित हैं और राजसत्ता, समाज एवं संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। उदाहरणस्वरूप
 
  • 125 दस्तावेजों का अन्य संग्रह 18वीं-20वीं सदी के दौरान सोनीपत के जमींदार परिवार को मिले कानूनगो और अन्य पदों का विवरण उपलब्ध कराता है।
  • 150 दस्तावेजों का अन्य संग्रह मुगल काल में बिहार में राजस्व अनुदान पर प्रकाश डालता है।
  • सांडिला और जैस क्षेत्र से संबंधित विशाल दस्तावेज संग्रह व्यक्तियों, धार्मिक प्रमुखों आदि को दी जाने वाले मुपऊत अनुदान पर ब्यौरा प्रदान करता है। ये दस्तावेज मुगल काल में कृषि के स्वरूप एवं कृषि अर्थव्यवस्था में विभिन्न वर्गों की भूमिका पर प्रकाश डालते हैं।
  • 63 दस्तावेजों का संग्रह शहरी ढांचों खासकर गुजरात के शहरी ढांचों पर प्रकाश डालता है।
  • 70 दस्तावेजों का संग्रह इलाहाबाद क्षेत्र के विशेष संदर्भ में दासप्रथा पर प्रकाश डालता है।
  • 133 दस्तावेजों का संग्रह गुजरात (पाकिस्तान) में अंकगणित से संबध्द है।
  • एक अन्य संग्रह दक्कन राज्य के राजस्व अनुदान, जागीर प्रशासन आदि विषयों की सूचनाएं उपलब्ध कराता है।
  • 25 छायाप्रति दस्तावेज कूच बिहार में मुगल प्रशासन की रूपरेखा बताते हैं।
  • 125 दस्तावेजों का संग्रह मालवा क्षेत्र में जमींदारों के उद्भव की कहानी बताता है।
  • 150 दस्तावेजों का अन्य संग्रह टोंक के स्थानीय प्रशासन तथा दैन्दिन कार्यों में ईस्ट इंडिया कंपनी के हस्तक्षेप के बारे में बताता है।
  • 31 दस्तावेजों का संग्रह ओड़िसा में लखीराज राजस्व मुपऊत अनुदान की ब्रिटिश नीति की जानकारी देता है।
 भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने अरबी, ऊर्दू, संस्कृत, शारदा और बंगला आदि भाषाओं में धर्म, इतिहास, शब्दावली, साहित्य, जीवनी, कृषि, और चिकित्सा विज्ञान जैसे विविध विषयों पर खरीदकर या सौगात के रूप में करीब 400 दस्तावेज जुटाए हैं। ये पांडुलिपियां 10 वीं शताब्दी से लेकर 20 वीं शताब्दी के बीच की हैं। संस्थान ने ऊर्दू, हिंदी, और अन्य प्राच्य भाषाओं में क्रय द्वारा या उपहार के रूप में करीब 300 पुस्तकें हासिल की हैं जो धर्म, इतिहास, साहित्य, जीवनी, कृषि, चिकित्सा विज्ञान एवं यात्रा वृतांत से संबंधित हैं।
  
ओ आर संभाग का एक महत्त्वूपर्ण संभाग पुस्तकों और पांडुलिपियों का फोर्ट विलियम कालेज संग्रह है। यह महत्त्वपूर्ण संग्रह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से कोलकाता के उसके प्रतिष्ठित कॉलेज आफ फोर्ट विलियम के माध्यम से मिला था। इस संग्रह का बड़ा हिस्सा तो इंडिया हाउस, लंदन ले जाया गया और शेष पांडुलिपियां और पुस्तकें तत्कालीन इंपीरियल रिकार्ड ऑफिस (यानी अभी के भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार) को दे दी गयीं। इस संग्रह में करीब 200 पांडुलिपियाँ और 1000 पुस्तकें तथा कई महत्वपूर्ण कृतियां भी हैं। अरबी, पर्शियन, संस्कृत और बंगाली भाषाओं का यह महत्त्वपूर्ण संग्रह धर्म, शब्दावली, इपिस्टोलोग्राफी, साहित्य, इतिहास, पशुपालन, ज्योतिष, चिकित्सा विज्ञान आदि विषयों पर है। ये पुस्तकें 10 वीं शताब्दी से लेकर 20 वीं शताब्दी तक की हैं। उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तके हैं- तफसीर फतह अल अजीज, जवाहर अल तफसीर, फतव-ए-आलमगिरी, फतव-ए-इब्राहीम शाही, फतह-अल कादिर, फतुहात-ए-मक्का, तसव्वुफ-ए-शी, रज्म नामा, भगवत गीता, जबुर, जखीरत अल -मुलक, दबिस्तान-ए- मजाहिब, शमाइल अल नबी, बहार-ए-अजम और शब्दावली की कई किताबें हैं। -फोर्ट विलियम कॉलेज पुस्तक एवं पांडुलिपि संग्रह को छोड़कर दस्तावेजों का बाकी संग्रह उनके प्राप्ति नंबर के अनुसार है। फोर्ट विलियम कॉलेज पुस्तक एवं पांडुलिपि संग्रह हाल ही में एनएआई पुस्तकालय से ओआर संभाग में स्थानांतरित किया गया है जिसे क्रम संख्या के हिसाब से रखा गया है।
 
एनएआई के पास रामपुर रजा पुस्तकालय की 4000 पांडुलिपियां के ओरिएंटल रिकार्ड आफ माइक्रोफिल्म रोल्स, 16000 अन्य ओरिएंटल रिकार्ड और एक मध्य एशिया पुरावशेष संग्रहालय माइक्रोफिल्म भी है।
 
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार पुस्तकालय में 1,70,000 प्रकाशन हैं जिनमें दुर्लभ पुस्तकें, रिपोर्ट, संसदीय पत्र और बहस, विनिबंध, गजट, गजेटियर, यात्रा वृत्तांत, स्वदेशी अखबार, जर्नल आदि शामिल हैं। यह ज्ञान का सबसे मूल्यवान स्रोत है। ये प्रकाशन आधुनिक इतिहास एवं राजनीति, संस्कृति, जनसांख्यिकी, अभिलेख, अर्थशास्र, सामाजिक विज्ञान, लिंगीय अध्ययन, जनजातीय अध्ययन आदि विषयों के हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर तेजी से हो रहे विकास के मद्देनजर पुस्तकालय, विद्वानों का काम आसान करने एवं अपनी सेवाओं को उपयोगकर्ताओं के लिए ज्यादा अनुकूल बनाने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए अपने आप को तैयार कर रहा है।

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