चांदनी
नई दिल्ली.
जो दवाएं कोलेस्टॉल को कम करती है वहीं दवाएं नसों को होने वाले नुकसान से भी कटौती में भागीदार साबित हो सकती हैं जो कि मधुमेह की वजह से होता है।

हार्ट केयर फाउंडेशन   ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल  के मुताबिक़    आस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने आठ साल तक किये अपने अध्ययन में स्टेटिंस और फाइब्रेट्स यानी अटोरवैस्टेटिन और फीनोफाइब्रेट, कोलेस्टॉल के दो वर्ग हैं, इन दोनों से ही होने वाले पैरीफेरल सेंसरी डायबिटिक न्यूरोपैथी के खतरे में कटौती के रूप में देखा गया। न्यूरोपैथी जिससे सारे मधुमेह रोगियों में से आधे प्रभवित होते हैं, इसकी वजह से प्रमुख समस्याएं स्टिंगिंग या जलन, टिंगलिंग, दर्द हाथ और पैरों में कमजोरी हर 50 सेकंड में होती हैं।

स्टेटिंन से एलडीएल यानी बैड कोलेस्टॉल में कमी होती है और जिससे हृदयाघात व आघात के खतरे में कमी होती है। फाइब्रेट्स वे दवाएं हैं जिनसे देखा गया है कि इनसे गुड एचडीएल कोलेस्टॉल बढ़ता है साथ ही टाइग्लाइसराइड में कमी होती है। दोनों दवाएं टाइप टू डायबिटीज के शिकार मरीजों को विशेष रूप से लेने के लिए कहा जाता है, ताकि उनमें दिल के दौरे को रोका जा सके।

यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न आस्ट्रेलिया के डॉ. टिमोथी डेविस द्वारा किये गए अध्ययन में यह  देखा गया कि इस तरह की नसों को होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिली। स्टेटिंस दवाओं से होने वाले पेरीफेरल न्यूरोपैथी के खतरे को 35 फीसदी कम किया जा सकता है और फाइब्रेट्स से इस खतरे को 48 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है।

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

ईद मिलाद उन नबी की मुबारकबाद

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं