जगदीश्वर चतुर्वेदी 
नेट का वर्चुअल जगत यूटोपिया के लिए आदर्श जगत है। यूटोपिया में जीने वालों के लिए इससे सुंदर जगह कहीं नहीं है। इसीलिए कुछ लोग इसे न्यूटोपिया भी कहते हैं। साइबरस्पेस हमारे पाठ की प्रकृति को बदल रहा है। इलैक्ट्रोनिक टेक्स्ट हमें गैर-टेक्स्ट के युग में ले जा रहा है। इसका अर्थ यह है कि अब हमें लिखने के लिए कागज की जरूरत नहीं होगी।अब लेखन पूरी तरह इलैक्ट्रोनिक अनुभव होकर रह जाएगा। साइबरस्पेस में मुद्रित सामग्री की आवश्यकता नहीं होगी। साइबर स्पेस स्वायत्त व्यक्ति का संसार बनकर रह जाएगा। इसका अर्थ है स्वयं की ईमानदारी ही सामाजिक प्रतिष्ठा का एकमात्र निर्धारक तत्व बन जाएगी। मुद्रित शब्द की सत्ता के लोप के बाद और ईमेल के विकेन्द्रीकृत रूप के आने के बाद लेखक और पाठक के नए संबंधों की शुरूआत हुई है। एक जमाना था मुद्रित सामग्री का मालिक संपादक हुआ करता था,यह सिलसिला अभी भी जारी है किन्तु भविष्य में ऐसा नहीं होगा। अब मुद्रित शब्द का मालिक लेखक ही होगा। वही उसका नियन्ता होगा।अब किसी भी बड़े लेखक के साथ कोई भी गुमनाम लेखक / लेखिका यूजनेट के खुले मंच पर अपनी रचना प्रकाशित कर सकता है। इसके कारण उसकी सामाजिक हैसियत भी बदल सकती है। लेखकों में छोटे-बड़े का भेदभाव ,महान् लेखक का बोध,रचना के चौकीदार के रूप में संपादक की भूमिका आदि में भी परिवर्तन आ गया है। लेखकों के बीच में नए किस्म का सामुदायिक भावबोध पैदा हो रहा है। यही स्थिति स्त्रीवाद की भी है। आज स्त्रीवाद के बारे में जितनी जानकारियां नेट पर उपलब्ध हैं उतनी जानकारियां पहले कभी नहीं थीं। महिला आन्दोलन और स्त्री के उत्पीडन का जितने व्यापक स्तर पर नेट ने उद्धाटन किया है वैसा पहले कभी नहीं हुआ। आज महिला आन्दोलन और स्त्री विमर्श सारी दुनिया के साथ संवाद और विमर्श कर रहा है। दूसरी ओर स्त्री विरोधी ताकतों के हमले भी तेज हुए हैं। पितृसत्ता के खिलाफ हमला करने वालों के खिलाफ एक तरह का जेहाद छेड़ दिया गया है।
लड़कियों के साथ खासकर कॉलेज / विश्वविद्यालय मे पढ़ने वाली लड़कियों के साथ उनके सहपाठियों के द्वारा की गई छेड़खानी अथवा गंदे चुटकुले सुनाने की प्रवृत्ति का भी मीडिया में अध्ययन किया गया है। इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण है परिभाषा। लड़की के साथ छेडखानी किसे कहा जाए ? यह छेड़खानी ऐसे सहपाठियों के द्वारा होती है जो साथ ही पढ़ते हैं। इन्हें प्रत्यक्षत: कोई विशेष अधिकार हासिल नहीं हैं। ये अपने साथ पढ़ने वाली लड़की को गंदे-गंदे चुटकुले ,कामुक आक्रामक टिप्पणियां या फब्तियां ,आवाजकशी , चिढ़ाना, कामुक ढ़ंग से निहारना,गंदे हावभाव का प्रदर्शन करना,अवांछित स्पर्श और चुम्बन के जरिए परेशान करते हैं,उत्पीडित करते हैं। 
        
मीडिया पंडितों में पोर्न के प्रभाव को गंभीर बहस चल रही है। पोर्न का दर्शकों के एटीटयूट्स और व्यवहार पर किस तरह का प्रभाव होता है ? सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि मीडिया में प्रसारित पोर्न सामग्री दर्शक के अन्दर कामुक झगड़ा और बलात्कार को जन्म देती है। हिंसक कामुकता का प्रदर्शन हिंसक प्रभाव पैदा करता है। प्रत्यक्ष नग्न सामग्री का आस्वाद औरतों के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करता है।ऐसी सामग्री के दर्शकों में औरतों के प्रति हिंसाभाव ज्यादा पाया जाता है। हिंसक पोर्न के दर्शकों पर किए एक बड़े अनुसंधान से यह तथ्य सामने आया कि दर्शक यह मानते थे कि कामुक औरत के प्रति जो हिंसा दर्शायी गयी ,वह सही थी, क्योंकि वह औरत इसी के लायक थी। हिंसक वीडियो,फिल्म आदि के दर्शकों पर किए गए अनुसंधान बताते हैं कि इनका दर्शकों में हिंसाबोध पैदा करने में महत्वपूर्ण अवदान रहा है। कुछ ऐसे भी अनुसंधान हुए हैं जो यह मानते हैं प्रत्यक्ष कामुकता वाली मीडिया सामग्री का दर्शकों पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।
(लेखक वामपंथी चिंतक और कलकत्‍ता वि‍श्‍ववि‍द्यालय के हि‍न्‍दी वि‍भाग में प्रोफेसर हैं) 

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