वी. मोहन राव 
साक्षरता मिशन और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए सुधारों के माध्यम से सरकार द्वारा अपनाए गए विविध उपायों की बदौलत भारत धीरे-धीरे विश्व में ज्ञान का केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है। इस बात का अहसास होते ही कि नए ज्ञान का उदय और उसका प्रसार समाज की तरक्की और विकास के लिए जरूरी है, सरकार ने उच्च शिक्षण संस्थानों को सशक्त बनाने के साथ ही नए ज्ञान पर आधारित सहज ज्ञान, सार्वजनिक क्षेत्रों के साथ ही किसी लाभ के किए जाने वाले निजी प्रयासों के क्षेत्र में अनुसंधान में गुणवत्ता और उत्कृष्टता लाने के प्रयास करने जैसे नए कई कारगर कदम उठाए हैं।

साक्षरता मिशन को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए, सरकार ने कई उपायों की शुरुआत की है जिनमें देश में उच्च साक्षरता दर हासिल करने के लिए नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा पाने के बच्चे के अधिकार को स्वीकृति देना शामिल हैं। इसके अलावा महिलाओं की साक्षरता पर ध्यान देने, स्कूली स्तर पर पढ़ाई अधूरी छोड़ने वालों की संख्या में कमी लाने और स्कूली शिक्षा में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की शुरुआत करने के लिए राष्ट्रीय साक्षरता मिशन को नए रूप में ढालने के लिए भी निरंतर प्रयास किए गए हैं।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009
यह अधिनियम पहली अप्रैल 2010 से लागू हुआ। इसे 6 से 14 साल तक की आयु वर्ग वाले सभी बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए लागू किया गया। इस अधिनियम के प्रावधानों में तीन साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के लिए तैयार करने और बाल्यावस्था की शुरुआती देखभाल तथा सभी बच्चों के पूरे छह बरस का हो जाने पर उन्हें शिक्षा मुहैया कराने पर बल दिया गया है। समन्वित बाल विकास सेवा योजना (आईसीडीएसएस) के तहत 3 से 6 साल के आयुवर्ग वाले 3.5 करोड़ से ज्यादा बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्रों में स्कूल-पूर्व शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। 

साक्षर भारत
साक्षर भारत, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का नया घटक है जिसे सितम्बर 2009 में शुरू किया गया। इस मिशन को तीन करोड़ प्रौढ़ों विशेषतौर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यकों और अन्य कमजोर वर्गों को लक्ष्य करते हुए 167 जिलों में शुरू किया गया। इसका उद्देश्य साक्षरता, बुनियादी शिक्षा, कौशल विकास और प्रौढ़ों के लिए एवं विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए शिक्षा उपलब्ध कराना है। 11वीं पंचवर्षीय योजना में, साक्षर भारत का लक्ष्य 5,257 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर सात करोड़ निरक्षर प्रौढ़ों को साक्षर बनाना है। इसे 11वीं योजना के आखिर तक 80 प्रतिशत साक्षरता हासिल करने के लक्ष्य के साथ प्राथमिक तौर पर लैंगिक भेद मिटाने के लिए लागू किया गया है। प्रौढ़ साक्षरता कार्यक्रम के अधीन अब तक देश भर के कुल 597 जिलों को शामिल किया जा चुका है।

सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) 
सर्व शिक्षा अभियान सरकार का राष्ट्रीय फ्लैगशिप कार्यक्रम है जिसे देशभर में लागू किया जा रहा है। विश्व बैंक सर्व शिक्षा अभियान के कार्यान्वयन के लिए क्षेत्रवार सहयोग समर्थन के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है। विश्व बैंक ने पिछले तीन वर्षों में 2736 करोड़ रुपये की राशि का पुनर्भुगतान किया है। 11वीं योजना के दौरान पहुंच, गुणवत्ता, इक्विटी और योग्यता बढ़ाने के लिए वर्तमान उच्च शिक्षण संस्थानों को सशक्त बनाने के वास्ते कई योजनाएं लागू की गई हैं। सरकार द्वारा नियुक्त प्रमुख विशेषज्ञों के कार्यबल ने एक अति महत्वपूर्ण प्रोत्साहक एवं विनियामक प्राधिकरण के लिए एक विधेयक का मसौदा प्रसारित किया है। भारत को ज्ञान का वैश्विक केंद्र बनाने और अन्य संस्थानों के लिए उत्कृष्टता का मानदंड तय करने, शिक्षण और अनुसंधान में भागीदारी के लिए सरकार का 11वीं और 12वीं पंचवर्षीय योजना में नवीनता के लिए 14 विश्वविद्यालय खोलने का प्रस्ताव है।

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद 
सरकार ने शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए 8 जुलाई 2010 को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) का गठन किया। आरटीई अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन के प्रमुख माध्यम सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) के लिए 2010-11 के वास्ते 15,000 करोड़ रुपये का केंद्रीय बजट आबंटित किया गया है। प्राथमिक शिक्षा के लिए 13वें वित्त आयोग ने 2010-11 से 2014-15 की अवधि के लिए 24,068 करोड़ रुपए की राशि दी है। 

साक्षरता दर
वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, शहरी इलाकों में 7 से ज्यादा आयु वाले बच्चों में साक्षरता दर 79.92 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 58.74 प्रतिशत थी। देश में शहरी और ग्रामीण साक्षरता दरों में 21.18 प्रतिशत का अंतर था। साक्षरता पर यूनेस्को की वैश्विक निगरानी रिपोर्ट 2010 के अनुसार 15 साल और उससे ज्यादा के आयुवर्ग में 66 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ अपने पड़ोसी देशों के बीच भारत दूसरे स्थान पर है। श्रीलंका 91 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ प्रथम स्थान पर है।

स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ने वाले
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन की ओर से 2009 में किए गए अध्ययन के मुताबिक 81.50 लाख बच्चों ने स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ी जो 6-13 आयुवर्ग के बच्चों की आबादी के 4.28 प्रतिशत है। सरकार ने स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी लाने के लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है। सरकार ने मध्याह्न भोजन योजना को असरदार बनाने के लिए कई उपाय भी किए हैं। 

उच्च शिक्षा में कुल दाखिला अनुपात 
सरकार उच्च शिक्षा में कुल नामांकन अनुपात वर्तमान के 12.4 प्रतिशत से बढ़ाकर वर्ष 2020 तक 30 प्रतिशत करने की योजना बना रही है। अनुमान के अनुसार देश को 27,000 अतिरिक्त कॉलेजों और 24,000 से ज्यादा तकनीकी कॉलेजों की जरूरत है। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का अनुमान है कि मौजूदा 504 विश्वविद्यालय स्तरीय संस्थानों की जगह 1500 विश्वविद्यालयों की जरूरत होगी। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में क्षमता विस्तार हासिल करने के लिए सरकार की सार्वजनिक निवेश बढ़ाने, अलाभकारी निजी भागीदारी और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहन देने से जुड़ी मिश्रित प्रयासों की योजना है।


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