कल्पना पालकीवाला 
घरों में पायी जाने वाली गौरैया के बारे में अनगिनत कविताएं, गीत, लोरियां, लोकगीतों और चित्रों की हमारी विशद परम्परा है लेकिन आज इस पक्षी का जीवन संकटमय हो गया है। एक लंबा समय बीत गया जब हमने गौरैया की चीं ची की ध्वनि और उसका नृत्य देखा हो ।
गुजरात के एक सेवानिवृत्त वन अधिकारी के इस गौरैया को बचाने की कोशिशों से प्रेरणा पाकर एक आंदोलन की शुरूआत हुयी है । इसमें लोगों ने इस पक्षी और तोतों एवं गिलहरियों के लिए घोंसलों का निर्माण किया । ये घोसलें मिट्टी या पुराने बक्सों की मदद से बनाए गए और इन्हें बाद में पेडों, खेतों, मैदानों यहां तक कि आवासीय बंगलों में टांग दिया गया । इंसानों के बनाए इन घोसलों में पानी और खाने के लिए दाने तक रख दिए गए।
विश्व भर में अपनी पहचान रखने वाली इस गौरैया का विस्तार पूरे संसार में देखने को मिलता है लेकिन पिछले कुछ सालों में इस चिड़िया की मौजूदगी रहस्यमय तरीके से कम हुयी है। पतझड़ का मौसम हो या सर्दियों का यह पक्षी हम सालों साल से अपने बगीचों में अक्सर देखने के आदी रहे हैं । लेकिन अब सप्ताह के हिसाब से समय बीत जाता है और इस भूरा पक्षी देखने को नहीं मिलता । इससे अनायास ही मुझे अपने विद्यालय के उन पुराने दिनों की याद ताजा हो जाती है जब मैनें महान हिन्दी कवियत्री महादेवी वर्मा की  गौरैया नामक कविता पढी थी । उस समय यह अजूबे से कम नही था क्योंकि कविता राजा या किसी महान नेता के बारे में नहीं बल्कि एक साधारण से पक्षी को केंद्र में रखकर लिखी गयी थी  । कवि सुब्रहमण्यम भारती ने भी कहा है ..आजादी की चिड़िया ।..
यह चिड़िया शहरों. घरेलू बगीचों. घरों में खाली पडी जगहों या खेतों में अपना घर बनाती है और वहीं प्रजनन भी करती है । यह पक्षी अब शहरों में देखने को नहीं मिलता हालांकि कस्बों और गांवों में इसे पाया जा सकता है । गौरैया को भले ही लोग अवसरवादी चिड़िया कहें लेकिन आज यह चिड़िया पूरे विश्व में अन्य पक्षियों के साथ अपने जीवन को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है । गौरैया की जनसंख्या नीदरलैंड में इतनी गिर चुकी है कि इसे अब रेड लिस्ट में डालने पर विवश होना पड़ा है ।
भारत में भी इस चिड़िया की जनसंख्या में हाल के वर्षो में भारी गिरावट दर्ज की गयी है । यूरोप महाद्वीप के कई जगहों पर पायी जाने वाली गौरैया की तादाद में  यूनाइटेड किंगडम. फ्रांस. जर्मनी. चेक गणराज्य. बेल्जियम .इटली और फिनलैंड में खासी कमी पायी गयी है ।
घरेलू गौरैया को एक समझदार चिड़िया माना जाता है और यह इसकी आवास संबंधी समझ से भी पता चलता है जैसे घोसलों की जगह. खाने और आश्रय स्थल के बारे में यह चिड़िया बदलाव की क्षमता रखती है । विश्वभर में गाने वाली  चिड़िया के नाम से मशहूर गौरैया एक सामाजिक पक्षी भी है तथा लगभग साल भर यह समूह में देखा जा सकता है । गौरैया का समूह 1.5 से दो मील तक की दूरी की उडान भरता है लेकिन भोजन की तलाश में यह आगे भी जा सकता है । गौरैया मुख्य रूप से हरे बीज. खासतौर पर खाद्यान्न को अपना भोजन बनाती है । लेकिन अगर खाद्यान्न उपलब्ध नहीं है तो इसके भोजन में परिवर्तन आ जाता है इसकी वजह यही है कि इसके खाने के सामानों की संख्या बहुत विस्तृत है । यह चिड़िया कीड़ो मकोड़ों को भी खाने में सक्षम है खासतौर पर प्रजनन काल के दौरान यह चिड़िया ऐसा करती है ।

घोंसला निर्माण       
घरेलू गौरैया को अपने  के आवास के निर्माण के लिए आम घर ज्यादा पसंद होते हैं । वे अपने घोंसलों को बनाने के लिए मनुष्य के किसी निर्माण को प्राथमिकता देती हैं । इसके अलावा ढंके खंभों अथवा घरेलू बगीचों या छत से लटकती किसी जगह पर यह पक्षी घोंसला बनाना पसंद करता है लेकिन घोंसला मनुष्य के आवास के निकट ही होता है । नर गौरैया की  यह जिम्मेदारी होती है कि वह मादा के प्रजननकाल के दौरान घोंसले की सुरक्षा करे  और अगर कोई अन्य प्रजाति का पक्षी गौरैया समुदाय के घोंसले के आसपास घोंसला बनाता है तो उसे गौरैया का  कोपभाजन बनना पडता है । गौरैया का घोंसला  सूखी पत्तियों व पंखों और डंडियों की मदद से बना होता है । इसका एक सिरा खुला होता है ।                                                                                                
घरेलू गौरेया  पास्सेर डोमेस्टिकस विश्व गौरैया  परिवार पास्सेराइडे का पुरानी सदस्य है । कुछ लोग मानते हैं कि यह वीबर फिंच परिवार की सदस्य है । इस पक्षी की कई अन्य प्रजातियां भी पायी जातीं हैं । इन्हें प्राय इसके आकार तथा गर्दन के रंग के आधार पर अलग किया जाता है । विश्व के पूर्वी भाग में पायी जाने वाली इस   चिड़िया के गाल   धवल तथा पश्चिमी भाग में भूरे होते हैं । इसके अलावा नर गौरैया की छाती का रंग अंतर के काम में लाया जाता है । दक्षिण एशिया की गौरैया     पश्चिमी गोलार्ध्द की तुलना में छोटी होती है । यूरोप में मिलने वाली गौरैया को पास्सेर डोमेस्टिकस. खूजिस्तान में मिलने वाली को पास्सेर पर्सीकस . अफगानिस्तान व तुर्कीस्तान में पास्सेर बैक्टीरियन . रूसी तुर्कीस्तान के पूर्वी भाग के सेमीयेरचेंस्क पर्वतों पर मिलने वाली  गौरैया को पास्सेर सेमीरेट्सचीन्सिस कहा जाता है । फिलीस्तीन और सीरिया में मिलने वाली  गौरैया की छाती का रंग हल्का होता है । भारत .श्रीलंका और हिमालय के दक्षिण में पायी जानी वाली  गौरैया को पास्सेर इंडिकस कहते हैं जबकि नेपाल से लेकर कश्मीर श्रीनगर में इस चिड़िया की पास्सेर परकीनी नामक प्रजाति पायी जाती है ।
भारत के हिन्दी पट्टी इलाके में इसका लोकप्रिय नाम गौरैया है तथा केरल एवं तमिलनाडु में इसे कुरूवी के नाम से जाना जाता है । तेलुगू में इसे पिच्चूका . कन्नड में गुब्बाच्ची . गुजराती में चकली .तथा मराठी में चिमनी. पंजाब में चिरी. जम्मू कश्मीर में चायर. पश्चिम बंगाल में चराई पाखी तथा उडीसा में घाराचटिया कहा जाता है । उर्दू भाषा में इसे चिड़िया और सिंधी भाषा में इसे झिरकी के नाम से पुकारा जाता है ।

लक्षण 
14 से 16 सेंटीमीटर लंबी इस पक्षी के पंखों की लंबाई 19 से 25 सेंटीमीटर तक होती है जबकि इसका वजन 26 से 32 ग्राम तक का होता है । नर  गौरैया का शीर्ष व गाल और अंदरूनी हिस्से भूरे जबकि गला. छाती का ऊपरी हिस्सा श्वेत होता है । जबकि मादा  गौरैया के सिर पर काला रंग नहीं पाया जाता बच्चों का रंग गहरा भूरा होता है ।
 गौरैया की आवाज की अवधि कम समय की और धात्विक गुण धारण करती है जब उसके बच्चे घोंसले में होते हैं तो वह लंबी सी आवाज निकालती है ।  गौरैया एक बार में कम से कम तीन अंडे देती है । इसके अंडे का रंग धवल पृष्ठभूमि पर काले .भूरे और धूसर रंग का मिश्रण होता है । अंडो का आकार अलग अलग होता है जिन्हें मादा  गौरैया सेती है । इसका  गर्भधारण काल 10 से 12 दिन का होता है । इनमें गर्भधारण की क्षमता उम्र के साथ बढती है और ज्यादा उम्र की चिड़िया का गर्भकाल का मौसम जल्द शुरू होता है ।

गिरावट के कारण 
इस चिडिया की जनसंख्या में गिरावट की कई वजहें बतायी गयी हैं । इनमें से एक प्रमुख वजह सीसे रहित पेट्रोल का प्रयोग होना है । इसके जलने से मिथाइल नाइट्रेट जैसे पदार्थ निकलते हैं । जो छोटे कीड़े के लिए जानलेवा होते हैं और ये कीड़े
ही  गौरैया के भोजन का मुख्य अंग हैं । दूसरी वजह के अनुसार खरपतवार या भवनों के नए तरह के डिजायन जिससे गौरेया को घोंसला बनाने की जगह नहीं मिलती है ।  पक्षी विज्ञानी और वन्य जीव विशेषज्ञों का अनुमान है कि कंक्रीट के भवनों की वजह से घोंसला बनाने में मुश्किल आती हैं इसके अलावा घरेलू बगीचों की कमी व खेती में कीटनाशकों के बढते प्रयोग के कारण भी इनकी संख्या में कमी आयी है । हाल के दिनों में इनकी जनसंख्या में गिरावट का मुख्य कारण मोबाइल फोन सेवा मुहैया कराने वाली टावरें हैं  । इनसे निकलने वाला विकिरण  गौरैया के लिए खतरनाक साबित हो रहा है । ये विकिरण कीड़ो  मकोड़ों और इस चिड़िया के अंडो के विकास के लिए हानिकारक साबित हो रहा है ।

इंडियन क्रेन्स और वेटलैंडस वकिर्गं ग्रुप से जुडे के एस गोपी के अनुसार हालांकि इस बारे में कोई ठोस सुबूत या अध्ययन नहीं है जो इसकी पुष्टि कर सके पर एक बात निश्चित है कि इनकी जनसंख्या में गिरावट अवश्य आयी है । उनके अनुसार खेतों में प्रयोग होने वाले कीटनाशक आदि वजहों से  गौरैया का जीवन परिसंकटमय हो गया है ।

कोयम्बटूर के सालिम अली पक्षी विज्ञान केंद्र एवं प्राकृतिक इतिहास के डा. वी एस विजयन के अनुसार यह पक्षी विश्व के दो तिहाई हिस्सों में अभी भी पाया जाता है लेकिन इसकी तादाद में गिरावट आयी है । बदलती जीवन शैली और भवन निर्माण के तरीकों में आये परिवर्तन से इस पक्षी के आवास पर प्रभाव पड़ा है
आज मैं  गौरैया के शोर को याद करती हूं और उसके इस डाल से उस डाल तक फुदकने को भी स्मरण करती हूं । मुझे महादेवी वर्मा की कविता  गौरैया का भी ध्यान आता है जिसमें  गौरैया हाथ में रखे कुछ दानों को खा रही है और कंधों पर कूदती है तथा लुकाछिपी कर रही है । ये दृश्य मुझे इतने याद हैं कि जैसे यह मेरे सामने हो रहा हो। मैं उम्मीद करती हूं कि महादेवी वर्मा की कविता पन्नों में सिमट के नहीं रह जायेगी और  गौरैया हमेशा के लिए हमारे पास वापस आयेगी ।

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