फ़िरदौस ख़ान
देश में गेहूं की बंपर पैदावार होती है. हालत यह है कि यहां अनाज को रखने के लिए जगह कम पड़ जाती है. नतीजतन अनाज के भंडारण की समस्या पैदा हो गई है. फ़िलहाल देश के गोदामों में 545 लाख टन गेहूं और धान रखा हुआ है, जबकि कुल भंडार क्षमता 600 लाख टन है. इसमें से एक तिहाई अनाज खुले में रखा जाता है. एक अनुमान के मुताबिक़ जून में 750 लाख टन से ज़्यादा अनाज होगा. ज़ाहिर है उसे भी हमेशा की तरह ही खुले में ही रखा जाएगा. गोदामों में भंडारण की उचित व्यवस्था न होने की वजह से हर साल बहुत सा अनाज सड़ जाता है. पिछले काफ़ी अरसे से हर साल हज़ारों टन गेहूं बर्बाद हो रहा है. जहां बहुत-सा गेहूं खुले में बारिश में भीगकर सड़ जाता है, वहीं गोदामों में रखे अनाज का भी 15 फ़ीसदी हिस्सा हर साल ख़राब हो जाता है. आंकड़ों के मुताबिक़ भारतीय खाद्य निगम (एफ़सीआई) के गोदामों में वर्ष 1997 से 2007 के दौरान 1.83 लाख टन गेहूं, 6.33 लाख टन चावल, 2.20 लाख टन धान और 111 टन मक्का सड़ चुका है. इतना ही नहीं हर साल क़रीब 60 हजार करोड़ रुपये की सब्ज़ियां और फल भी ख़राब हो जाते हैं. एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले छह वर्षों में देशभर के गोदामों में 10 लाख 37 हज़ार 738 टन अनाज सड़ चुका है. साथ इन गोदामों की सफ़ाई पर क़रीब दो करोड़ 70 लाख रुपये ख़र्च हुए हैं. एफ़सीआई के मुताबिक़ साल 2010 के जनवरी तक 10688 लाख टन अनाज ख़राब हो चुका है, जबकि इससे पहले सालाना क़रीब दो लाख टन अनाज ख़राब होता रहा है.
पंजाब में इस मौसम में पूर्व निर्धारित 110 लाख टन की बजाय तक़रीबन 124 लाख टन गेहूं की ख़रीद हुई है, जो पिछले कई दशकों के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा है.  इसी तरह हरियाणा में भी निर्धारित 70 लाख टन की बजाय तक़रीबन 85 लाख टन गेहूं खरीदा गया है, जो अब तक की सर्वाधिक ख़रीद है. पंजाब के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के वरिष्ठ अधिकारी का कहना  है कि एक अप्रैल को जब पंजाब में गेहूं की ख़रीद शुरू हुई तो उस वक़्त 68 लाख अनाज भंडार में था. यह पिछले साल के मुक़ाबले 51 लाख टन से बहुत ज़्यादा है. पिछले साल 20 लाख टन से ज़्यादा अनाज उचित भंडारण न होने की वजह से ख़राब हो गया था. इस बार भी तक़रीबन 35 लाख टन गेहूं खुले में रखा जा सकता है. पंजाब के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरो का कहना है कि इस साल हमारे लक्ष्य से ज़्यादा ख़रीदारी हुई है. हालांकि इस बार भंडारण के काफ़ी उपाय किए गए हैं, लेकिन बंपर पैदावार की वजह से भंडारण की समस्या पैदा हो गई है. पंजाब में 200 लाख टन अनाज भंडारण की क्षमता है, जिसमें सिर्फ़ 100 लाख टन अनाज को छत के नीचे रखा जा सकता है और बाक़ी तिरपाल के नीचे. शर्मनाक बात तो यह भी है कि एक तो पहले ही गोदामों की कमी है, उसके बावजूद सरकारी गोदामों को निजी कंपनियों को किराये पर दे दिया जाता है और अनाज खुले में सड़ता रहता है. जिन गोदामों में अनाज रखने की जगह बची हुई है, लापरवाही के चलते वहां भी अनाज नहीं रखवाया जाता. खुले में पड़े अनाज को तिरपाल या प्लास्टिक शीट से ढक दिया जाता है, लेकिन बारिश और जलभराव के कारण अनाज सुरक्षित नहीं रह पाता. गोदामों में रखे अनाज को कीड़ों और चूहों से बचाने के भी व्यापक प्रबंध नहीं किए जाते, जिससे अनाज कम हो जाता है. अधिकारियों द्वारा चोरी-छुपे सरकारी अनाज बेचने के आरोप भी लगते रहे हैं.

अफ़सोस की बात तो यह भी है कि एक तरफ़ तो देश में अनाज की बंपर पैदावार हो रही है, वहीं दूसरी तरफ़ कुपोषण और भुखमरी से मौतें हो रही हैं. दरअसल, देश में अनाज का ख़राब होना बेहद चिंता का विषय है. जिस देश में हर रोज़ क़रीब सवा आठ करोड़ लोग भूखे सोते हों, वहां हर साल हज़ारों टन अनाज का सड़ जाना प्रशासनिक लापरवाही को ही दर्शाता है. अनाज की बर्बादी पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख़ अपनाते हुए केंद्र सरकार से कहा था कि गेहूं को सड़ाने से अच्छा है, इसे ज़रूरतमंद लोगों में बांट दिया जाए. न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी व न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की खंडपीठ ने सरकार को निर्देश दिए थे कि हर प्रदेश में एक बड़ा गोदाम बनाया जाए और प्रत्येक डिविज़न और ज़िलों में भी गोदामों का निर्माण किया जाना चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा था कि सूखे और बाढ़ प्रभावित इलाकों में भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मज़बूत किया जाना चाहिए. कोर्ट ने सरकार से यह भी सुनिश्चित करने को भी कहा था कि उचित मूल्य की दुकानें महीनेभर खुली रहें. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जहां लोग भूख से मर रहे हों, वहां अनाज का एक भी दाना बेकार छोड़ना गुनाह है. लेकिन अदालत के आदेश पर कितना अमल हुआ किसी से छुपा नहीं है.

विश्व भुखमरी सूचकांक में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्था (आईएफपीआरआई) के 88 देशों के विश्व भुखमरी सूचकांक में भारत का 66वां स्थान है.भारत में पिछले कुछ सालों में लोगों की खुराक में कमी आई है. जहां 1989-1992 में 177 किलोग्राम खाद्यान्न प्रति व्यक्ति उपलब्ध था, वहीं अब यह घटकर 155 किलोग्राम प्रति व्यक्ति रह गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति कैलोरी ग्रहण करने की प्रतिदिन की औसत दर जो 1972-1973 में 2266 कैलोरी थी, वह अब घटकर 2149 कैलोरी रह गई है. तक़रीबन तीन चौथाई लोग 2400 कैलोरी से भी कम उपयोग कर पा रहे हैं. देश में जहां आबादी 1.9 फ़ीसद की दर से बढ़ी है, वहीं खाद्यान्न उत्पादन 1.7 फ़ीसद की दर से घटा है. गौरतलब है कि क़रीब डेढ़ दशक पहले 1996 में रोम में हुए प्रथम विश्व खाद्य शिखर सम्मेलन में वर्ष 2015 तक दुनिया में भूख से होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने का संकल्प लिया गया था, लेकिन 2007 तक करीब आठ करोड़ लोग भुखमरी का शिकार हो चुके हैं.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक़ देश में 46 फ़ीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में तीन साल से कम उम्र के तक़रीबन 47 फ़ीसदी बच्चे कम वज़न के हैं. इसके कारण उनका शारीरिक विकास भी रुक गया है. देश की राजधानी दिल्ली में 33.1  फ़ीसदी बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं, जबकि मध्य प्रदेश में 60.3  फ़ीसदी , झारखंड में 59.2 फ़ीसदी, बिहार में 58  फ़ीसदी, छत्तीसगढ में 52.2  फ़ीसदी, उड़ीसा में 44  फ़ीसदी, राजस्थान में भी 44  फ़ीसदी,  हरियाणा में 41.9  फ़ीसदी, महाराष्ट्र में 39.7  फ़ीसदी, उत्तरांचल में 38  फ़ीसदी, जम्मू कश्मीर में 29.4  फ़ीसदी और पंजाब में 27  फ़ीसदी  बच्चे कुपोषणग्रस्त हैं.
यूनिसेफ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया के कुल कुपोषणग्रस्त बच्चों में से एक तिहाई आबादी भारतीय बच्चों की है. भारत में पांच करोड़ 70 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. विश्व में कुल 14 करोड़ 60 लाख बच्चे कुपोषणग्रस्त हैं. विकास की मौजूदा दर अगर ऐसी ही रही तो 2015 तक कुपोषण दर आधी कर देने का सहस्राब्दी विकास लक्ष्य 'एमडीजी' 2025 तक भी पूरा नहीं हो सकेगा. रिपोर्ट में भारत की कुपोषण दर की तुलना अन्य देशों से करते हुए कहा गया है कि भारत में कुपोषण की दर इथोपिया, नेपाल और बांग्लादेश के बराबर है. इथोपिया में कुपोषण दर 47  फ़ीसदी  तथा नेपाल और बांग्लादेश में 48-48  फ़ीसदी  है, जो चीन की आठ फ़ीसदी, थाइलैंड की 18  फ़ीसदी और अफ़गानिस्तान की 39  फ़ीसदी के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा है. यूनिसेफ के एक अधिकारी के मुताबिक़ भारत में हर साल बच्चों की 21 लाख मौतों में से 50  फ़ीसदी  का कारण कुपोषण होता है. भारत में खाद्य का नहीं, बल्कि जानकारी की कमी ही विकास में रुकावट बन रही है. उनका यह भी कहना है कि अगर नवजात शिशु को आहार देने के सही तरीक़े के साथ सेहत के प्रति कुछ सावधानियां बरती जाएं तो भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के छह लाख से ज़्यादा बच्चों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है.
         
देश के सर्वाधिक गरीब दो हज़ार विकास खंडों में ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को हर महीने तीन रुपये की दर से 35 किलोग्राम खाद्यान्न अनाज दिए जाने का प्रावधान है. अगर सरकार गेहूं को सड़ाने के बजाय ग़रीबों को दिए जाने वाले अनाज की मात्रा बढ़ा दे या फिर अनाज को थोड़ा सस्ता कर दे तो कुछ और भूखों को रोटी मिल जाएगी. बढ़ती महंगाई ने निम्न आय वर्ग के लिए दो वक़्त की रोटी का भी संकट खड़ा कर दिया है. ऐसे सरकार की कोशिश होनी चाहिए कि वह अनाज के उचित भंडारण की व्यवस्था करे और उसे ज़रूरतमंद तक लोगों तक पहुंचाए. 

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