फ़िरदौस ख़ान
बचपन, उम्र का सबसे प्यारा दौर होता है. यह अलग बात है कि जब हम छोटे होते हैं तो बड़ा होना चाहते हैं, क्योंकि कई बार स्कूल, पढ़ाई और रोकटोक से परेशान हो जाते हैं. हम कहते हैं कि अगर बड़े होते तो हम पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं होती, न स्कूल ड्रैस पहननी पड़ती और न ही रोज़ सुबह जल्दी उठकर स्कूल जाना पड़ता. मगर जब हम बड़े होते हैं, तो अहसास होता है कि वाक़ई बचपन कितना प्यारा होता है. काश, बचपन वापस मिल सकता. ज़िंदगी में कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं, जो हमें बचपन की याद दिला जाती हैं. इन्हीं में से एक चीज़ है बाल कविता. ये कविताएं हमें हमेशा याद रहती हैं, बिलकुल हमारे बचपन की खु़शगवार यादों की तरह. कविता लिखना कोई बच्चों का खेल नहीं है. यह बात बाल मन को समझते हुए कविता लिखने वाला ही समझ सकता है.

हाल में कल्पज़ पब्लिकेशन्स द्वारा बाल कविता संग्रह अस्सी नब्बे पूरे सौ प्रकाशित हुआ है. किताब की शुरुआत कवि आनंद कुमार ने आओ खेलें, अक्कड़ बक्कड़, बॉम्बे बो, अस्सी नब्बे पूरे सौ… के साथ की है. एक के बाद एक बाल कविताएं, कुल मिलाकर एक सौ एक कविताएं. दरअसल, बच्चे खेल-खेल में जितना सीख लेते हैं, उतना वे डांट-फटकार से नहीं सीख पाते. बक़ौल कवि उन्होंने पूरी कोशिश की है कि इन कविताओं को पढ़ने का आनंद क्षणिक न होकर जीवन यात्रा में उनकी समझदारी को स्थायी तौर पर बढ़ाता, मांजता चले, उन्हें दुनिया को देखने समझने की एक सहज, मानवीय एवं तर्कपूर्ण दृष्टि प्रदान करे. इन कविताओं के संसार में आपको सब कुछ मिलेगा. कवि ने कीट-पतंगों से लेकर चांद-सितारे, गांव-शहर, झील-पहाड़, नदी-जंगल और इतिहास-विज्ञान आदि विषयों पर सहज भाषा में लिखा है. कभी शिशु की तरफ़ से, कभी भाई-बहन की तरफ़ से तो कभी मम्मी-पापा बनकर कवि ने सभी के अंदर झांकने की कोशिश में अनेक कविताओं की रचना की है. कवि के मुताबिक़, उन्होंने मूलत: पांच से 15 वर्ष आयु वर्ग के लड़के-लड़कियों के लिए कविताएं लिखी हैं. किताब के पहले खंड में फूल और तितलियों की बातें हैं, तो दूसरे खंड में चिड़ियाघर और डाकिया को जगह दी गई है. तीसरे खंड में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, भगत सिंह और जयप्रकाश नारायण आदि महापुरुषों के बारे में जानकारी दी गई है. कवि ने महापुरुषों से लेकर आज के आइडियल यानी सचिन तेंदुलकर और अमिताभ तक अपनी कविताओं का पात्र बनाया है. खास बात यह भी है कि उपयोगी जानकारी और संदेशों से भरी इन कविताओं को प़ढकर कहीं से ऐसा नहीं लगता कि इनमें कोरे उपदेश दिए गए हैं.

अंग्रेज़ी के महान कवि विलियम वड्‌र्सवथ का यह कहना कि सत्य है कि बच्चा व्यक्ति का पिता होता है यानी हर व्यक्ति में, अस्सी साल के बुज़ुर्ग में भी कहीं न कहीं बालपन अपनी सहज मुस्कान और कौतुकता के साथ जीवित रहता है. इसलिए यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि इन कविताओं का आनंद हर उम्र में उठाया जा सकता है.

कवि पूर्व नौकरशाह हैं. बच्चों के लिए ज्ञानवर्द्धक कविताएं लिखने के लिए वह बधाई के पात्र तो हैं ही, उनके साथ कल्पज़ प्रकाशन भी बधाई का पात्र है, जिसने आकर्षक साज-सज्जा के साथ इन कविताओं को पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुंचाया है. बच्चों के लिए यह एक बेहतर किताब है, लेकिन इसकी क़ीमत कुछ ज़्यादा है.

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