सलीम अख्तर सिद्दीकी
सरकार के हालिया आर्थिक फैसलों के चलते आम आदमी बौखलाया हुआ है और प्रधानमंत्री की सफाई से मुतमुईन नहीं है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस अपने पतन की पटकथा खुद लिख रही है। जनता का गुस्सा चरम पर है।
क व्यक्ति का कमीज उतारकर प्रधानमंत्री का विरोध करना और कोयला मंत्री र्शीप्रकाश जायसवाल के काफिले पर जूते-चप्पल फेंककर विरोध जताना मीडिया की सुर्खियां बनीं हैं। यदि आम आदमियों के बीच जाकर सरकार के बारे में उसकी टिप्पणियां सुनीं जाएं, तो किसी सर्वे आदि की जरूरत ही नहीं है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का देश के नाम संदेश में इस कथन ने कि पैसे पेड़ पर नहीं लगते, जनता की जख्मों को पर नमक ही छिड़का है। सवाल हो रहा है कि जनता के घरों में क्या पैसों के पेड़ लगे हैं, जिनसे पैसा तोड़कर वह सुरसा की तरह बढ़ती महंगाई का मुकाबला कर लेगी? जैसे इतना ही काफी न हो। हमारे गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे फरमाते हैं कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है। जिस तरह वह बोफोर्स घोटाला भूल गई, इसी तरह कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला भी भूल जाएगी। ऐसा नहीं है कि जनता की याददाश्त कमजोर है। उसे सब याद है और हो सकता है कि जब चुनाव आएं, तो वह मतदान केंद्रों पर पहुंचकर सरकार का र्मसिया पढ़ दे।

सरकार के हालिया आर्थिक फैसलों के चलते आम आदमी बौखलाया हुआ है और प्रधानमंत्री की सफाई से मुतमुईन नहीं है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस अपने पतन की पटकथा खुद लिख रही है। भले ही आज की तारीख में विपक्ष कमजोर दिख रहा है, लेकिन जनता का गुस्सा चरम पर है और उसे कांग्रेस के अलावा कोई भी मंजूर है। आम आदमी गूढ़ अर्थशास्त्र नहीं समझता। उसे इतना समझ में आता है कि उसकी थाली का भोजन लगातार महंगा होता जा रहा है। 200 रुपये रोज कमाने वाला आदमी कैसे अपने परिवार का पालन करे, यह बड़ा सवाल उसके सामने मुंह बाए खड़ा है। लेकिन हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री जनता को एफडीआई के फायदे गिना रहे हैं। विदेशी रिटेल मॉल्स में गरीब आदमी शॉपिंग करने नहीं जाएगा। जिस मध्यम और उच्च वर्ग के लिए एफडीआई को मंजूरी दी गई है, वह वोट देने जाना अपनी शान के खिलाफ समझता है। प्रधानमंत्री यह नहीं समझ रहे हैं कि सरकारों को वही वर्ग बनाता-गिराता है, जिसकी वह अनदेखी कर रहे हैं।
जनता को यह भी मलाल है कि ममता बनर्जी की तरह मुलायम सिंह यादव और मायावती ने क्यों सरकार से सर्मथन वापस नहीं लिया। सरकार को सर्मथन दिए जाने के संबंध में मुलायम सिंह यादव का यह तर्क भी लोगों के गले नहीं उतर रहा है कि उसने सांप्रदायिक ताकतों को रोकने लिए ऐसा किया है। मुलायम 1990 की सांप्रदायिक राजनीति की उपज हैं। इसमें दो राय नहीं कि उस समय सांप्रदायिकता उफान पर थी और वही ऐसे शख्स थे, जिसने फन उभारती सांप्रदायिकता से लोहा लिया था। इसका उन्हें फायदा भी हुआ था। लेकिन तब से अब तक बहुत कुछ बदल गया है। राममंदिर मुद्दा कभी का राख में तब्दील होकर दफन हो चुका है। 2002 के गुजरात कलंक का भाजपा हर हाल में धोना चाहती है। ऐसे में मुलायम कब तक सांप्रदायिक ताकतों का खौफ दिखाकर जनता को मूर्ख बनाएंगे, यह सवाल भी जनता की जबान पर है। यूं भी उनकी रणनीति किसी के समझ नहीं आ रही है। वह यूपीए सरकार पर हमलावर भी होते हैं और सरकार की बैसाखी बनने से भी उन्हें गुरेज नहीं है। इतना ही नहीं, उनके बेटे अखिलेश यादव अलग सुर अलापते हुए कहते हैं कि आर्थिक संकट के लिए प्रधानमंत्री ही जिम्मेदार हैं और सपा मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार है। इन सब बातों से लगता है कि वह खुद ही कंफ्यूज हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए। समझ में यही आता है कि वह विरोध और सर्मथन की नावों पर सवार होना चाहते हैं, लेकिन दो नाव की सवारी करने वाला कब मंझधार में बह जाए, कहा नहीं जा सकता।

हो सकता है कि मुलायम सिंह यादव सरकार को मोहलत देकर उसे और ज्यादा अलोकप्रिय होने देना चाहते हों, जिससे उसका राजनीतिक फायदा उठाया जा सके। लेकिन घोटालों का रिकॉर्ड बनाने और महंगाई के लिए जिम्मेदार यूपीए सरकार का साथ देने का खामियाजा किसी और को नहीं, सपा को ही भुगतना पड़ेगा। जिस तीसरे मोर्चे पर सवार होकर वह प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं, उसका अस्तित्व भविष्य के गर्भ में है। वह क्या आकार लेगा, उसमें कौन-कौन पार्टियां शामिल होंगी, कुछ पता नहीं है। ऐसे में जब इस समय कई लोग प्रधानमंत्री बनने की कतार में हैं, आने वाले वक्त में मुलायम सिंह की स्थिति क्या होगी, कहना मुश्किल है। लेकिन सवाल यह है कि क्या समाजवादी पार्टी के इतने सांसद जीतकर लोकसभा में पहुंच जाएंगे, जिनके बल पर वह प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे हैं? उत्तर प्रदेश में सपा सरकार जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पा रही है। अगर सपा ने यूपीए सरकार का ऐसे ही सर्मथन जारी रखा और उत्तर प्रदेश में सपा सरकार का ऐसा ही प्रदर्शन जारी रहा, तो उसका हर्श भी बसपा सरीखा हो सकता है।
(लेखक जनवाणी से जुड़े हैं)


फ़िरदौस ख़ान का फ़हम अल क़ुरआन पढ़ने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

या हुसैन

या हुसैन

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से

Star Web Media

सत्तार अहमद ख़ान

सत्तार अहमद ख़ान
संस्थापक- स्टार न्यूज़ एजेंसी

ई-अख़बार पढ़ें

ब्लॉग

  • सालगिरह - आज हमारी ईद है, क्योंकि आज उनकी सालगिरह है. और महबूब की सालगिरह से बढ़कर कोई त्यौहार नहीं होता. अगर वो न होते, तो हम भी कहां होते. उनके दम से ही हमारी ज़...
  • Thank Allah - When we are happy in our life, thank us Allah and celebrate. And when we are unhappy in our life, say thank us Allah and grow. Allah's mercy is greater t...
  • Life - Life is most difficult exam for everyone. Many people fail because they try to copy others. They not realizing that everyone has a different question pap...
  • میرے محبوب - بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا گناہ مانا جات...
  • हमारा जन्मदिन - कल यानी 1 जून को हमारा जन्मदिन है. अम्मी बहुत याद आती हैं. वे सबसे पहले हमें मुबारकबाद दिया करती थीं. वे बहुत सी दुआएं देती थीं. उनकी दुआएं हमारे लिए किस...
  • 25 सूरह अल फ़ुरक़ान - सूरह अल फ़ुरक़ान मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 77 आयतें हैं. *अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. वह अल्लाह बड़ा ही बाबरकत है, जिसने हक़ ...
  • ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ - ਅੱਜ ਆਖਾਂ ਵਾਰਿਸ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਕਿਤੋਂ ਕਬੱਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਬੋਲ ਤੇ ਅੱਜ ਕਿਤਾਬੇ-ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਕੋਈ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲ ਇਕ ਰੋਈ ਸੀ ਧੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਤੂੰ ਲਿਖ ਲਿਖ ਮਾਰੇ ਵੈਨ ਅੱਜ ਲੱਖਾਂ ਧੀਆਂ ਰੋਂਦੀਆਂ ਤ...

एक झलक

Followers

Search

Subscribe via email

Enter your email address:

Delivered by FeedBurner

साभार

इसमें शामिल ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं