हिंदी मासिक पत्रिका 'दिव्यता ' का विमोचन करते हुए प्रो. भाष्कर. साथ में हैं अनिल कुमार सिंह , संपादक प्रदीप श्रीवास्तव, श्रीमती दीपा सिंह , डॉ. हिम बिंदु और प्रबंधक वृतांत श्रीवास्तव.
लखनऊ (उत्तर प्रदेश). हम अपनी मातृभाषा में बात करने में शर्म महसूस करते हैं, जबकि विदेशियों को देखिए कि वे अपने देश में हों या विदेश में, वे अपनी ही भाषा में ही बात करते हैं. उन्हें अपनी भाषा में बोलने में ज़रा- सी भी शर्म महसूस नहीं होती. वहीं हम हैं कि विदेश की छोड़िए अपने देश में ही अपनी मातृभाषा में बात करने में हिचकिचाते हैं. आप चीन को देखिए केवल वे अपने व्यवसाय के लिए ही विदेशी भाषा का प्रयोग करते हैं, न कि दैनिक प्रयोग के लिए.
यह बात दिव्यता पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित हिंदी मासिक 'पत्रिका दिव्यता 'के विमोचन समारोह में भारतीय प्रबंधन संस्थान, लखनऊ के प्रो. भारत भाष्कर ने मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कही. उन्होंने कहा कि हमें अंग्रेजियत की मानसिकता से बाहर निकलकर हिंदी भाषा के उत्थान के बारे में सोचना चाहिए, तभी हमारी मातृभाषा को विश्व के पटल पर स्थापित कर पाएंगे. उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि 'दिव्यता 'हिंदी के प्रतिमान को अपने पाठकों के बीच स्थापित कर पाएगी. इस मौक़े पर पत्रिका के संपादक प्रदीप श्रीवास्तव ने कहा कि सही मायने में देखा जाए तो हिंदी पत्रकारिता के विकास में ग़ैर हिंदी भाषी लोगों का महत्वपूर्ण योगदान है. आज हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं-के फलने -फूलने में मारवाड़ी समाज का महत्वपूर्ण योगदान है. देश के किसी कोने में जाएं तो आप को वहां मारवाड़ी समाज के व्यवसायी ज़रूर मिलेंगे, जो कहीं से भी हिंदी अख़बार या पत्रिका को ज़रूर ख़रीद कर पढ़ते हैं. यही कारण है कि हिंदी पत्रकारिता फलफूल रही है. इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि सर्वश्री अनिल कुमार सिंह, श्रीमती दीपा सिंह और डॉ. हिमा बिंदु ने भी अपने विचार रखे. कार्यक्रम का सफल संचालन किया लखनऊ की अनीता सहगल ने तथा धन्यवाद ज्ञापन किया युवा प्रबंधक वृतांत श्रीवास्तव ने. समारोह में शहर के अनेक गणमान्य लोग शामिल थे.