फ़िरदौस ख़ान
सियासत में कामयाबी के लिए सही नेतृत्व और मज़बूत संगठन की ज़रूरत होती है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर उसके बाद कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में नाकामी मिलने के बाद से ही कांग्रेस में बड़े बदलाव की ज़रूरत पेश आ रही थी. एक लंबे अरसे के बाद ही सही, कांग्रेस ने इसे अंजाम देना शुरू कर दिया है. हाल में कांग्रेस ने पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह से गोवा और कर्नाटक के प्रभारी महासचिव की ज़िम्मेदारी वापस ले ली. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एआईसीसी सचिव ए चेला कुमार को गोवा का प्रभार सौंपा है. सांसद केसी वेणुगोपाल को कर्नाटक का प्रभारी नियुक्त किया गया है. उन्हें महासचिव पद भी सौंपा गया है. उनका साथ देने के लिए मनिकम टैगोर, पीसी विष्णुनंद, मधु याक्षी गौड़ और डॉक्टर साके सैलजानाथ को भी कर्नाटक भेजा गया है. बताया जा रहा है कि ये नियुक्तियां पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के कहने पर की गई हैं. दिवंगत नेता विलासराव देशमुख के बेटे अमित देशमुख को गोवा का सचिव बनाया गया है. अगले साल कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.

बहरहाल, पार्टी के प्रभारी पद से हटाए जाने के बाद दिग्विजय सिंह ने ट्वीट में लिखा, ‘मैं बहुत ख़ुश हूं. आख़िरकार यह नई टीम राहुल द्वारा चुनी गई है. गोवा और कर्नाटक में कांग्रेस नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ काम करते हुए मुझे बहुत मज़ा आया. उन सबके सहयोग के लिए मैं उनका आभारी हूं. मैं कांग्रेस पार्टी और नेहरू-गांधी परिवार का वफ़ादार हूं. मैं पार्टी में आज जो कुछ भी हूं, सब उन्हीं की वजह से है. ग़ौरतलब है कि गोवा की 40 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस ने सबसे ज़्यादा 17 सीटों जीती थीं. लेकिन इसके बावजूद वह राज्य में सरकार बनाने में नाकाम रही. भारतीय जनता पार्टी ने महज़ 13 सीटें जीतकर भी गोवा में सरकार बना ली. इतना ही नहीं, कांग्रेस के विधायक पार्टी छोड़ रहे हैं. कुछ दिन पहले विश्वजी राणे कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. उसके बाद विधायक सैवियो रोड्रिग्ज़ ने भी कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया है. वह पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे के पुत्र हैं. गोवा में कांग्रेस की नाकामी को लेकर दिग्विजय सिंह की भूमिका पर सवाल उठने शुरू हो गए थे.

हालांकि दिग्विजय सिंह भी जानते हैं कि गोवा में भारतीय जनता पार्टी से ज़्यादा सीटें जीते जाने के बाद भी सरकार न बना पाने का ख़ामियाज़ा उन्हें भुगतना पड़ा है. इसलिए अब वे सफ़ाई देते हुए इसके लिए कांग्रेस के राज्य स्तरीय नेताओं को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं. उन्होंने इन आरोपों को भी ख़ारिज कर दिया, जिनमें कहा गया था कि कांग्रेस का विधायक दल का नेता चुनने में कोई देरी की गई. उन्होंने ट्वीट में कहा कि चुनाव पूर्व विजय सरदेसाई की पार्टी गोवा फॉरवर्ड से गठबंधन नहीं कर पाना हमारे लिए बड़ी ग़लती साबित हुई. उनका कहना है कि राज्य के कांग्रेस नेतृत्व और विजय सरदेसाई के बीच विश्वास की कमी की वजह से ही यह गठबंधन नहीं हो पाया. अगर कांग्रेस का गोवा फॉरवर्ड से गठबंधन हो जाता, तो आज तस्वीर दूसरी होती. उन्होंने कहा कि यह कहना ग़लत और पक्षपातपूर्ण है कि विधायक दल का नेता चुनने में देरी की गई. कांग्रेस ने इस काम को कुछ घंटों में ही कर दिया था और राहुल गांधी ने इसमें पूरी आज़ादी भी दी हुई थी. ग़ौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता नितिन गडकरी और गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने संसद में दिग्विजय सिंह पर तंज़ कसते हुए कहा था कि कांग्रेस महासचिव और गोवा चुनाव के प्रभारी गोवा में सैर कर रहे थे, तब तक भाजपा ने गोवा में सरकार बना ली. दिग्विजय सिंह का यह भी कहना है कि गोवा की राज्यपाल ने भी नियमों का पालन नहीं किया. नियम के मुताबिक़ खंडित जनादेश की हालत में राज्यपाल को सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मधुसूदन मिस्त्री को महासचिव के पद से हटाकर पार्टी की केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण (सीईए) का सदस्य नियुक्त किया है. इसके अलावा कांग्रेस चुनाव प्राधिकरण के अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामचंद्रन और भुवनेश्वर कलिता को भी इसमें शामिल किया गया है. कांग्रेस सीईए की सलाहकार समिति में सांसद शमशेर सिंह डुल्लो, पूर्व सांसद अश्क अली टाक और बिरेन सिंह एंगती को मनोनीत किया गया है. चूंकि मधुसूदन मिस्त्री को सीईए का सदस्य बनाया किया गया है, इसलिए वह पार्टी के संविधान के मुताबिक़ पार्टी में किसी अन्य पद पर नहीं  रह सकते. ग़ौरतलब है कि कांग्रेस सीईए पर पार्टी के संगठनात्मक चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी होती है. पिछले दिनों गुजरात का प्रभार गुरदास कामत से लेकर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री रहे पार्टी महासचिव अशोक गहलोत को दिया गया था.

एक लंबे अरसे बाद कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव का कार्यक्रम तय कर किया गया है. माना जा रहा है कि आगामी 15 अक्टूबर तक पार्टी अध्यक्ष चुन लिया जाएगा. सनद रहे कि इस साल 31 दिसंबर तक कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव होने हैं. पहले ये चुनाव 30 जून तक कराए जाने थे, लेकिन पार्टी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर छह महीने का और वक़्त मांगा था. ग़ौरतलब है कि साल 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं. इससे पहले दस राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे, जिनमें  हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा और नगालैंड शामिल हैं. इस साल के आख़िर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. राहुल गांधी ने गुजरात में चुनावी मुहिम शुरू भी कर दी है. अगर कांग्रेस ने पिछली नाकामियों से सबक़ लेकर सोच-समझकर चुनावी रणनीति बनाई, तो उसे कामयाबी हासिल हो सकती है.

भले ही कांग्रेस ने केंद्र की हुकूमत गंवा दी. कई राज्यों की सत्ता भी छिन गई, लेकिन देश का मिज़ाज, देश की जनता की भावनाएं आज भी कांग्रेस से जुड़ी हुई हैं. कांग्रेस इस देश की माटी में इतनी रची-बसी है कि इसे अलग करना तो दूर, ऐसा सोचना भी मुमकिन नहीं. कांग्रेस को चाहिए कि वह अपने संगठन को मज़बूत करे. पार्टी का बूथ स्तर का संगठन भी उतना मज़बूत होना चाहिए कि उसकी एक पुकार पर हज़ारों कार्यकर्ता, समर्थक उठ खड़े हों. कांग्रेस को अपनी चुनावी रणनीति बनाते वक़्त कई बातों को ध्यान में रखना होगा. उसे सभी वर्गों का ख़्याल रखते हुए अपने पदाधिकारी तय करने होंगे. विधानसभा स्तर के पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी विश्वास में लेना होगा, क्योंकि जनता के बीच तो इन्हीं को जाना है. राहुल गांधी को चाहिए कि वे पार्टी के आख़िरी कार्यकर्ता तक से संपर्क करें, उससे संवाद करें. उसकी बात सुनें. साथ ही ऐसे लोगों के पर कतरने होंगे, जो पार्टी में रहकर कांग्रेस को खोखला करने का काम कर रहे हैं.

बहरहाल, कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव का सिलसिला जारी है. उम्मीद है कि पार्टी में मेहनती, योग्य और निष्ठावान नेताओं और कार्यकर्ताओं को जगह मिलेगी.

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