फ़िरदौस ख़ान
न हींग लगे, न फिटकरी और रंग चौखा. यह कहावत सनाय की खेती पर पूरी तरह से लागू होती है, क्योंकि सनाय की खेती में लागत बहुत कम आती है और आमदनी ख़ूब होती है. सबसे बड़ी बात, इसे न तो उपजाऊ ज़मीन की ज़रूरत होती है, न ज़्यादा सिंचाई जल की, न ज़्यादा खाद की और न ही ज़्यादा कीटनाशकों की. इसे किसी ख़ास देखभाल की भी ज़रूरत नहीं होती. तो हुआ न फ़ायदा का सौदा. इसके फ़ायदों को देखते हुए किसान सनाय की खेती करने लगे हैं. बहुत से किसानों ने सनाय की खेती करके बंजर ज़मीन को हराभरा बना दिया है. ऐसे ही एक व्यक्ति हैं राजस्थान के जोधपुर के नारायणदास प्रजापति. उन्होंने बंजर ज़मीन पर सनाय की खेती की और इतनी कामयाबी हासिल कर ली कि आज उनका उद्योग भी है. उन्होंने अरब देशों से सनाय के बीज मंगवाकर इसकी खेती शुरू की थी. अब वह कई देशों में सनाय की पत्तियों का निर्यात करते हैं. शुरू में उन्हें अपनी फ़सल बेचने में परेशानी काफ़ी हुई. फिर उन्होंने ऐसे व्यापारियों को ढूंढा, जो सनाय की पत्तियां ख़रीदते हैं. जब एक बार व्यापारियों से उनका संपर्क हो गया, तो फिर उन्हें फ़सल बेचने में कोई दिक़्क़त नहीं हुई. इसके बाद उन्होंने अपना उद्योग स्थापित कर लिया. उन्होंने एक प्रशिक्षण केंद्र भी खोला, जहां किसानों को सनाय की खेती की जानकारी दी जाती है. उन्होंने सनाय पर आधारित एक संग्रहालय भी बनाया हुआ है. उनके परिवार के सदस्य भी उनका हाथ बटा रहे हैं. उनके यहां से प्रशिक्षण पाकर बहुत से किसान सनाय की खेती करने लगे हैं.
सनाय औषधीय पौधा है. इसे स्वर्णमुखी, सोनामुखी और सुनामुखी भी कहा जाता है. यह झाड़ीनुमा पौधा है. इसकी ऊंचाई 120 सेंटीमीटर तक होती है. भारत में यह अरब देश से आया और सबसे पहले तमिलनाडु में इसकी खेती शुरू हुई. इसके बाद देश के अन्य राज्यों में भी इसकी खेती शुरू हो गई. नतीजतन, आज भारत सनाय की खेती के मामले में दुनियाभर में पहले स्थान पर है. यह बहुवर्षीय पौधा है. एक बार बिजाई के बाद यह पांच साल तक उपज देता है. सनाय की ख़ासियत यह है कि यह बंजर ज़मीन में भी उगाया जा सकता है. रेतीली और दोमट भूमि इसके लिए सबसे ज़्यादा बेहतर है. लवणीय भूमि इसके लिए ठीक नहीं होती. जिस भूमि में बरसात का पानी थोड़ा भी रुकता है, उसमें सनाय नहीं उगाना चाहिए, क्योंकि वहां यह पनप नहीं पाता. इसकी जड़ें गल जाती हैं, जिससे पौधा सूख जाता है. इसे ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती. इसलिए यह बहुत कम वर्षा वाले इलाक़ों में भी उगाया जा सकता है. किसानों को इसकी सिंचाई पर ज़्यादा पैसे ख़र्च नहीं करने पड़ते. पौधे के बढ़ने पर इसकी जड़ें ज़मीन से पानी सोख लेती हैं. यह पौधा चार डिग्री से 50 डिग्री सैल्सियस तापमान में भी ख़ूब फलता-फूलता है. देश के शुष्क और बंजर इलाक़ों में इसकी खेती की जा सकती है.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक़ सनाय की बिजाई के लिए 15 जुलाई से 15 सितंबर का वक़्त अच्छा माना जाता है. इसकी बिजाई के लिए किसी ख़ास तैयारी की ज़रूरत नहीं होती. खेत में एक-दो जुताई करना ही काफ़ी है. इसकी बिजाई एक फ़ुट की दूरी पर करनी चाहिए. सनाय की एक ख़ासियत यह भी है कि इसमें किसी भी तरह की कोई बीमारी नहीं लगती. हालांकि बरसात के मौसम में कभी-कभार इसके पत्तों पर काले धब्बे आ जाते हैं, लेकिन धूप निकलने पर ये धब्बे ख़ुद-ब-ख़ुद दूर हो जाते हैं. इसलिए फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है. सनाय को किसी भी तरह की ज़्यादा खाद और रसायनों की ज़रूरत नहीं होती. कीट-पतंगे और पशु-पक्षी भी इसे कोई नुक़सान नहीं पहुंचाते. इसलिए इसे किसी विशेष देखभाल की ज़रूरत नहीं होती. बिजाई के तक़रीबन सौ दिन बाद इसकी पत्तियां काटी जा सकती हैं. पौधों को ज़मीन से पांच इंच ऊपर काटना चाहिए, ताकि फिर से पौधे में पत्तियां उग सकें. कटाई वक़्त पर कर लेनी चाहिए. दूसरी कटाई 70 दिन बाद की जा सकती है, जबकि तीसरी कटाई 60 दिन में की जा सकती है. दोबारा बिजाई के लिए इसके बीज प्राप्त करने के लिए स्वस्थ पौधों को छोड़ देना चाहिए. इनकी कटाई नहीं करनी चाहिए. इससे इनमें फलियां लग जाएंगी. पकने पर फलियां भूरे रंग की हो जाती हैं. इन फलियों को धूप में सुखाकर इनके बीज निकाल लेने चाहिए. यही बीज बाद में नई फ़सल उगाने में काम आएंगे.
पत्तियों को सुखाते वक़्त ध्यान रखना चाहिए कि इनका रंग हरा रहे. ताकि बाज़ार में इनकी अच्छी क़ीमत मिल सके. टहनियों की छोटी-छोटी ढेरियां बनाकर इन्हें छाया में सुखाना चाहिए. इनके सूख जाने पर इन्हें किसी तिरपाल पर झाड़ देना चाहिए, जिससे पत्तियां टहनी से अलग हो जाएं. फिर इन्हें बोरियों में भर देना चाहिए. अब सनाय बिक्री के लिए तैयार है. सनाय औषधीय पौधा है, इसलिए बाज़ार में इसकी ख़ासी मांग है. सनाय की पत्तियों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक, यूनानी और एलोपैथिक दवाओं के निर्माण में किया जाता है. इससे पेट संबंधी दवाएं बनाई जाती हैं. बड़े स्तर पर खेती करने पर दवा निर्माता खेत से ही सनाय की पत्तियां ख़रीद लेते हैं, जिससे किसानों को बिक्री के लिए बाज़ार जाना नहीं पड़ता. सनाय अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, चीन सहित कई देशों में निर्यात किया जाता है. इससे भारत को हर साल तीस करोड़ रुपये से ज़्यादा की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है.
बहरहाल, जिन लोगों को कृषि की ज़्यादा जानकारी नहीं है, वे भी सनाय की खेती करके मुनाफ़ा हासिल कर सकते हैं.