❀ शाम अल्लाह की ज़मीनों में से सबसे बेहतरीन ज़मीन है।
ज़ैद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह ﷺ को फ़रमाते सुना:
''शाम के लिए ख़ुशख़बरी हो! शाम के लिए ख़ुशख़बरी हो! शाम के लिए ख़ुशख़बरी हो!''
सहाबाؓ ने पूछा: ''या रसूलुल्लाह! शाम को यह फ़ज़ीलत क्यों?''
आप ﷺ ने फ़रमाया:
''अल्लाह के फ़रिश्ते शाम पर अपने पर फैलाए हुए हैं।''
[सुनन तिर्मिज़ी: 3954, सहीह]
❀ शाम अहले ईमान का मरकज़ होगा
आप ﷺ ने फ़रमाया:
अनक़रीब तुम तीन लश्करों में तक़सीम हो जाओगे: एक शाम में, एक यमन में, और एक इराक़ में...
सहाबाؓ ने अर्ज़ किया: या रसूलुल्लाह! हमें किस तरफ़ रहना बेहतर है?
आप ﷺ ने फ़रमाया:
तुम पर लाज़िम है कि शाम को इख़्तियार करो, क्योंकि वह अल्लाह की चुनी हुई ज़मीन है, अल्लाह अपने चुने हुए बंदों को वहाँ समेटेगा।
(सुनन अबू दाऊद: 2483, सहीहुल इसनाद, मुस्नद अहमद: 21381)
❀ ईमान और हिजरत का मरकज़ शाम होगा
''जब फ़ितने आएंगे तो ईमान शाम में होगा।''
إِنَّ الإِيمَانَ حِينَ تَقَعُ الفِتَنُ بِالشَّامِ.
(सनद सहीह, अल-बज़्ज़ार: 3332, वत-तबरानी फी अश-शामीयीन: 449, इन्ज़ुर मुस्नद अहमद तर्कीम अर-रिसाला: 21733 तर्कीम बैतुल अफ़कार अद-दौलिया: 22076)
❀ आख़िरुज़्ज़माँ में मुसलमानों का मज़बूत क़िला
''ईमान का मज़बूत क़िला शाम होगा।''
عُقْرُ دَارِ الْإِيمَانِ بِالشَّامِ
(मुस्नद अहमद: 21716, सनद सहीह)
❀ दज्जाल के ख़िलाफ़ जंग का मरकज़ भी शाम
يَنْزِلُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ... عِندَ الْمَنَارَةِ الْبَيْضَاءِ شَرْقِيَّ دِمَشْقَ
हज़रत ईसा बिन मरियम अलैहिस्सलाम दमिश्क (शाम) के मशरिक़ में सफ़ेद मीनार के क़रीब नाज़िल होंगे।
(सहीह मुस्लिम: 2937)
❀ शाम: नुबुव्वत व बरकत की ज़मीन
अब्दुल्लाह बिन उमरؓ फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
''मैंने देखा कि किताब (कुरआन) का स्तंभ मेरे तकिये के नीचे से निकाला गया, और मैंने उसकी रौशनी देखी, तो वह शाम की तरफ़ बुलंद किया गया। याद रखो! जब फ़ितने आएंगे तो ईमान शाम में होगा।
رأيت عمودَ الكتابِ انتُزع من تحت وسادتي، فأتبعْتُه بصري، فإذا هو نورٌ ساطعٌ عُمِد به إلى الشامِ، ألا وإنَّ الإيمانَ حين تقعُ الفتنُ بالشامِ.
«सहीह, तबरानी फी मुस्नद अश-शामीयीन: 1357, (इन्ज़ुर मुस्नद अहमद तर्कीम अर-रिसाला: 17775 तर्कीम बैतुल अफ़कार अद-दौलिया: 17928
❀ अल्लाह के फ़रिश्ते शाम में फैलाए जाते हैं
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
"तुम शाम को लाज़िम पकड़ो, क्योंकि वह अल्लाह की बेहतरीन ज़मीन है, वहाँ उसके चुन्निदा बंदे रहते हैं। अगर तुम (शाम जाना) क़बूल न करो, तो यमन में चले जाओ और अपने चश्मों से पानी पिया करो, क्योंकि अल्लाह ने शाम और उसके लोगों की हिफ़ाज़त की ज़मानत ली है।"
عليك بالشام فإنها صفوة بلاد الله، يسكنها خيرته من خلقه، فإن أبَيْتَ فإلْحَقْ بيمنك واسق من غُدُرك، فإن الله قد تكفّل لي بالشام وأهله.
(मुस्नद अहमद: 21665, सहीह)
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
अनक़रीब इस्लाम को इस क़दर ग़लबा हासिल होगा कि अहले इस्लाम के बहुत से लश्कर होंगे, एक लश्कर शाम में, एक यमन में और एक इराक़ में होगा।
तो इब्न हवाला रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:
ऐ अल्लाह के रसूल! अगर मुझे यह दौर नसीब हो तो मेरे लिए किसी इलाक़े का इंतेख़ाब फ़रमा दें, आप ﷺ ने फ़रमाया:
तुम मुल्के शाम में रहना, तुम शाम को लाज़िम पकड़ना, बस तुम शाम में रहना, जो इस इलाक़े का इंकार करे तो वह यमन में चला जाए और वहाँ के जोहड़ों का पानी पिए, पस बेशक अल्लाह तआला ने मुझे शाम और अहले शाम की हिफ़ाज़त की ज़मानत दी है।
(हदीस सहीह बित्रुक़िहा व शवाहिदिहा, अबू दाऊद: 2483, (इन्ज़ुर मुस्नद अहमद तर्कीम अर-रिसाला: 17005 तर्कीम बैतुल अफ़कार अद-दौलिया: 17130)
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