सोनिया गांधी के माता-पिता इटली के वैनिटो प्रांत से थे आल्प्स की तलहटी पर एशियागो की पहाड़ियों में स्थित लुसियाना गांव __
इसी पशुपालक क्षेत्र से इटली को अपना प्रिय खाद्य पदार्थ "चीज" मिला है और यह स्थान संगमरमर की खदानों के लिए भी जाना जाता था ।
सोनिया जी के पिता स्टीफेनो और पाओला की शादी लुसियाना के चर्च में ही हुई थी ।
और सोनिया जी का जन्म 9 दिसंबर 1946 को रात 9:30 बजे हुआ था।
वे मारोसटिका के नगर निगम के अस्पताल में जन्मी थीं जो एशियागो पहाड़ियों की तलहटी में स्थित एक पुराना छोटा और चारदीवारी वाला शहर था।
यह खबर जल्दी ही लुसियाना गांव में पहुंच गई और यह गूंज पथरीले घरों, घोड़े के अस्तबलों पथरीली ढलानों और आसपास की पहाड़ियों से टकराते हुए सुदूर स्थित झरनों में जाकर खो गई।
नवजात कन्या के आगमन की खुशी में और परंपरा के अनुसार पड़ोसियों ने अपने घरों के दरवाजे और खिड़कियों पर गुलाबी रिबन बांधे।
कुछ दिन बाद पादरी ने बच्ची का नाम रखा "एडविग एंटोनियो अल्बीना माइनो"
यह नाम सोनिया की नानी के नाम पर था लेकिन स्टेफेनो अपनी बेटी के लिए अलग सा नाम चाहते थे क्योंकि बड़ी बेटी का नाम एना रखा गया था पर वे उसे अनुष्का बुलाते थे और एंटोनिया को वे सोनिया बुलाने लगे ।
इस तरह उन्होंने रूसी मोर्चे से स्वयं के जीवित वापस आने के बाद अपने आप से किया गया वादा निभाया।
क्यों कि गरीबी झेल रहे अनेक इतालवी लोगों की तरह स्टीफेनो भी मुसोलिनी के प्रचार और फासिस्टवाद से मुग्ध हो गए थे और दूसरा विश्व युद्ध आरंभ होने पर उन्होंने 166 वीकोंजा सैन्य टुकड़ी में अपना नाम लिखवा लिया यह रेजीमेंट वरसैगलिरी से संबंध रखती थी।
जिसे इतालवी सेवा में प्रतिष्ठित माना जाता था।
ड्यूक द्वितीय भी इसमें काम कर चुके थे यह टुकड़ी परेड के दौरान अपनी तेज चाल के लिए जानी जाती थी ( प्रति मिनट 130 से अधिक कदमों की चाल )
वे अपने आसपास अदम्य साहस और कभी पराजित ना होने के भाव से घिरे हुए थे। परंतु रूसियों ने पहले ही हमले में उनको नष्ट कर दिया था और हजारों सिपाही बंदी बना लिए गए थे उनके बीच स्टिफेनो भी थे जो किसी तरह अपनी प्राण रक्षा करने में सफल हो गए थे और रुसी स्टेपिज के एक फार्म हाउस में आश्रय पाने में सफल रहे थे जहां उन्हें एक ग्रामीण परिवार के संरक्षण में कई सप्ताह बिताने पड़े थे उस परिवार की औरतों ने उनके घाव पर मरहम-पट्टी की थी और पुरुषों ने रसद जुटाई।
अपनी जान बचाने के सिवा वहां हुए दूसरे अनुभवों ने उन लोगों को पूरी तरह से बदल दिया था वह हजारों इतालवी लोगों की तरह वापस आए और जो फासिस्टवाद में जा उलझे थे और जिन्हें रूसी लोगों द्वारा सहायता प्रदान की गई थी तब से स्टीफेनो राजनीति की बात ही नहीं करते थे उनके लिए यह झूठ की पोटली के सिवा कुछ नहीं था ।
अपनी जान बचाने वाले परिवार को श्रद्धांजलि देने के लिए ही उन्होंने अपनी बेटियों को रुसी नाम देने का निर्णय लिया था।
वे पादरी और अपने ससुराल वालों से जिरह नहीं करना चाहते थे जिनके अनुसार सोनिया का नाम संतों के कैलेंडर का हिस्सा नहीं था।
स्टीफेनो ने हामी भरी कि वह बच्ची का नाम का पंजीकरण कैथोलिक नाम से ही करवाएंगे ।
नामकरण के बाद उस प्रांत के स्वादिष्ट व्यंजन बकाला आला वीसेंटिया के साथ पड़ोसियों को दावत दी गई उस समय कॉड परोसना भी किसी विलासिता से कम ना था।
क्योंकि उस समय हर चीज का अभाव था यहां तक कि प्रांतीय राजधानी विकेंजा में भी कुछ नहीं मिल रहा था।
उस समय गरीबी के चंगुल से निकलना आसान नहीं था उनके पास पहनने को कपड़े खाने के लिए भोजन और बस उससे थोड़ा सा अधिक था।
माइनो के पास अपनी जमीन नहीं थी केवल पत्थरों से बना हुआ घर और कुछ गायें थी घर को स्टिफेनो ने स्वयं बनाया था।
यह उसी गली के आखिरी छोर पर था जहां जर्मनी से आए अन्य संबंधियों की पीढ़ियां घर बना कर रहती थी।
वह सादगी से भरा जीवन व्यतीत करते थे किंतु घाटी से उन्हें अद्भुत दृश्य देखने को मिलते पत्थरों की नीची दीवारें , चारागाहों की चार दिवारी बनती जहां उनके पशु चरते और इस इलाके में पशुपालन प्रमुख था।
क्योंकि ये जगह कृषि के लिए उपयुक्त नहीं थी।
सोनिया और उनकी बहनें लुसियाना घाटी में ही बड़ी हुई जो बदलते मौसम के साथ रंग बदला करती थीं।
उनकी आंखों के सामने हरे और भूरे रंग के सभी शेड्स तैर जाया करते थे ।
उनकी आंखें पेड़ों को बसंत गर्मी शरद और शीत ऋतु में हरे पीले तांबई और सफेद रंगों में बदलते देखतीं।
बच्चों के लिए साल की पहली बर्फ किसी समारोह से कम ना होती वह उसका पूरा आनंद लेते सड़कों पर खेलते एक दूसरे को बर्फ के गोलो से मारते।
स्नोमैन बनाते परंतु यह कड़ी मेहनत और सर्दी सोनिया को जल्दी थका देती , और उन्हें मजबूरन घर लौटना पड़ता उन्हें किचन में आयरन स्टोव के पास बैठकर हाथ सेंकना अच्छा लगता था।
रविवार की सुबह गायों के गले में बंधी हुई घंटियों के सुर में चर्च की बज रही घंटियों के सुर विलीन हो जाते।
पूरा परिवार अच्छे कपड़े पहनकर चर्च जाता ।
उन्होंने कभी इसी क्रम में नागा नहीं किया । वे प्रार्थना करते कि स्टिफेनो को काम मिल जाए। और सोनिया का दमा रोग न उभरे।
घर के हालात में सुधार हो और लड़कियों को स्वस्थ रूप से बड़े होने के लिए सारी सुख सुविधाएं मिलें।
50 के दशक के आरंभ में स्टिफेनो नो को नौकरी मिली पर वह उनके गांव में नहीं थी यह पर्वत की दूसरी ओर स्विट्जरलैंड में थी उन्हें अनुभवी राजगीर के रूप में बनी पहचान के कारण समय-समय पर काम मिलता था।
वह कम से कम 2 महीने के लिए घर से बाहर जाते और जब लौटते तो जेबों में भरे पैसे उनकी अपेक्षा से कम समय में समाप्त हो जाते।
1956 में उन्होंने अपने तीनों भाइयों और बहुत से देशवासियों की तरह उन्होंने प्रवास का निर्णय लिया ।
तूरिन बड़ी तेजी से एक औद्योगिक नगर बन रहा था और देहात में रहने वाले बहुत से लोग रोजगार के लिए उस और खींचे चले आ रहे थे माइनो परिवार ने रेल से उतरकर इटली को पार किया और ऑरबेस्सानो में आ बसे।
जो तूरिन की बाहरी सीमा पर स्थित था।
ऑरबेस्सानो स्थित सोनिया जी के घर की तस्वीरें ____
राजीव गांधी की मृत्यु के बाद यहां के मेयर कार्लो मारोनी ने इस घर के सामने की सड़क का नाम उनके नाम पर रखा था।
(ये लेख जेवियर मोरो की किताब "द रेड साड़ी" से है)
